वृंदावन में स्थित बांके बिहारी जी का मंदिर पूरे देश में प्रसिद्ध है जिसके दर्शन करने हर वर्ष करोड़ो की संख्या में श्रद्धालु मथुरा पहुँचते हैं। मान्यता है कि बांके बिहारी जी की मूर्ति इतनी मनमोहक है कि उन्हें ज्यादा देर तक निहारने से हमारी नज़र उन्हें लग जाती है। ऐसे में आज के इस लेख के माध्यम से हम आपके साथ बांके बिहारी चालीसा का पाठ (Banke Bihari Chalisa) करने जा रहे हैं।
यहाँ आपको केवल श्री बांके बिहारी चालीसा (Shri Banke Bihari Chalisa) ही पढ़ने को नहीं मिलेगी अपितु उसका हिंदी अर्थ भी पढ़ने को मिलेगा ताकि आप उसका भावार्थ भी समझ सकें। अंत में आपको बांके बिहारी जी की चालीसा का महत्व व लाभ (Banke Bihari Ji Ki Chalisa) भी पढ़ने को मिलेगा। तो आइये सबसे पहले करते हैं बांके बिहारी की चालीसा।
॥ दोहा ॥
बांकी चितवन कटि लचक, बांके चरन रसाल।
स्वामी श्री हरिदास के बांके बिहारी लाल॥
॥ चौपाई ॥
जै जै जै श्री बाँकेबिहारी, हम आये हैं शरण तिहारी।
स्वामी श्री हरिदास के प्यारे, भक्तजनन के नित रखवारे।
श्याम स्वरूप मधुर मुसिकाते, बड़े-बड़े नैन नेह बरसाते।
पटका पाग पीताम्बर शोभा, सिर सिरपेच देख मन लोभा।
तिरछी पाग मोती लर बाँकी, सीस टिपारे सुन्दर झाँकी।
मोर पाँख की लटक निराली, कानन कुण्डल लट घुँघराली।
नथ बुलाक पै तन-मन वारी, मंद हसन लागै अति प्यारी।
तिरछी ग्रीव कण्ठ मनि माला, उर पै गुंजा हार रसाला।
काँधे साजे सुन्दर पटका, गोटा किरन मोतिन के लटका।
भुज में पहिर अँगरखा झीनौ, कटि काछनी अंग ढक लीनौ।
कमर-बांध की लटकन न्यारी, चरन छुपाये श्री बाँकेबिहारी।
इकलाई पीछे ते आई, दूनी शोभा दई बढाई।
गद्दी सेवा पास बिराजै, श्री हरिदास छवी अतिराजै।
घंटी बाजे बजत न आगै, झाँकी परदा पुनि-पुनि लागै।
सोने-चाँदी के सिंहासन, छत्र लगी मोती की लटकन।
बांके तिरछे सुधर पुजारी, तिनकी हू छवि लागे प्यारी।
अतर फुलेल लगाय सिहावैं, गुलाब जल केशर बरसावै।
दूध-भात नित भोग लगावैं, छप्पन-भोग भोग में आवैं।
मगसिर सुदी पंचमी आई, सो बिहार पंचमी कहाई।
आई बिहार पंचमी जबते, आनन्द उत्सव होवैं तबते।
बसन्त पाँचे साज बसन्ती, लगै गुलाल पोशाक बसन्ती।
होली उत्सव रंग बरसावै, उड़त गुलाल कुमकुमा लावैं।
फूल डोल बैठे पिय प्यारी, कुंज विहारिन कुंज बिहारी।
जुगल सरूप एक मूरत में, लखौ बिहारी जी मूरत में।
श्याम सरूप हैं बाँकेबिहारी, अंग चमक श्री राधा प्यारी।
डोल-एकादशी डोल सजावैं, फूल फल छवी चमकावैं।
अखैतीज पै चरन दिखावैं, दूर-दूर के प्रेमी आवैं।
गर्मिन भर फूलन के बँगला, पटका हार फुलन के झँगला।
शीतल भोग, फुहारें चलते, गोटा के पंखा नित झूलते।
हरियाली तीजन का झूला, बड़ी भीड़ प्रेमी मन फूला।
जन्माष्टमी मंगला आरती, सखी मुदित निज तन-मन वारति।
नन्द महोत्सव भीड़ अटूट, सवा प्रहार कंचन की लूट।
ललिता छठ उत्सव सुखकारी, राधा अष्टमी की चाव सवारी।
शरद चाँदनी मुकट धरावैं, मुरलीधर के दर्शन पावैं।
दीप दीवारी हटरी दर्शन, निरखत सुख पावै प्रेमी मन।
मन्दिर होते उत्सव नित-नित, जीवन सफल करें प्रेमी चित।
जो कोई तुम्हें प्रेम ते ध्यावें, सोई सुख वांछित फल पावैं।
तुम हो दिनबन्धु ब्रज-नायक, मैं हूँ दीन सुनो सुखदायक।
मैं आया तेरे द्वार भिखारी, कृपा करो श्री बाँकेबिहारी।
दिन दुःखी संकट हरते, भक्तन पै अनुकम्पा करते।
मैं हूँ सेवक नाथ तुम्हारो, बालक के अपराध बिसारो।
मोकूँ जग संकट ने घेरौ, तुम बिन कौन हरै दुख मेरौ।
विपदा ते प्रभु आप बचाऔ, कृपा करो मोकूँ अपनाऔ।
श्री अज्ञान मंद-मति भारि, दया करो श्रीबाँकेबिहारी।
बाँकेबिहारी विनय पचासा, नित्य पढ़ै पावे निज आसा।
पढ़ै भाव ते नित प्रति गावैं, दुख दरिद्रता निकट नही आवैं।
धन परिवार बढैं व्यापारा, सहज होय भव सागर पारा।
कलयुग के ठाकुर रंग राते, दूर-दूर के प्रेमी आते।
दर्शन कर निज हृदय सिहाते, अष्ट-सिद्धि नव निधि सुख पाते।
मेरे सब दुख हरो दयाला, दूर करो माया जंजाला।
दया करो मोकूँ अपनाऔ, कृपा बिन्दु मन में बरसाऔ।
॥ दोहा ॥
ऐसी मन कर देउ मैं, निरखूँ श्याम-श्याम।
प्रेम बिन्दु दृग ते झरें, वृन्दावन विश्राम॥
॥ दोहा ॥
बांकी चितवन कटि लचक, बांके चरन रसाल।
स्वामी श्री हरिदास के बांके बिहारी लाल॥
बांके बिहारी जी लचक-लचक कर चलते हैं और यही उनकी चाल है जो हर किसी का मन मोह लेती है। कहने का अर्थ यह हुआ कि श्रीकृष्ण टेढ़ी मुद्रा में इधर-उधर लहराते हुए चलते हैं। स्वामी श्री हरिदास जी बांके बिहारी को बहुत प्रिय हैं और वे उनके मन को बहुत भाते हैं।
॥ चौपाई ॥
जै जै जै श्री बाँकेबिहारी, हम आये हैं शरण तिहारी।
स्वामी श्री हरिदास के प्यारे, भक्तजनन के नित रखवारे।
श्याम स्वरूप मधुर मुसिकाते, बड़े-बड़े नैन नेह बरसाते।
पटका पाग पीताम्बर शोभा, सिर सिरपेच देख मन लोभा।
बांके बिहारी लाल की जय हो, जय हो, जय हो। हम सभी आपकी शरण में आये हैं। आप स्वामी श्री हरिदास को बहुत प्यारे हो जो अपने भक्तों की रक्षा करते हो। आपका श्याम रूप में मधुर मुस्कान लिए हुए हो और आपकी बड़ी-बड़ी आँखें हम पर कृपा बरसाती है। आपने पीले रंग के वस्त्र पहने हुए हैं तो वहीं सिर पर मुकुट सुशोभित है।
तिरछी पाग मोती लर बाँकी, सीस टिपारे सुन्दर झाँकी।
मोर पाँख की लटक निराली, कानन कुण्डल लट घुँघराली।
नथ बुलाक पै तन-मन वारी, मंद हसन लागै अति प्यारी।
तिरछी ग्रीव कण्ठ मनि माला, उर पै गुंजा हार रसाला।
आप त्रिभंगी मुद्रा में अर्थात टेढ़ी-मेढ़ी मुद्रा में खड़े हैं और यह आपको एक अद्भुत रूप दे रहा है। आपके सिर पर मोर पंख अलग ही रूप दे रहा है। आपने कानो में कुंडल पहन रखे हैं और उस पर आपके घुंघराले बाल उसे आकर्षक रूप दे रहे हैं। आपकी नथ पर तो हमारा तन-मन सब न्यौछावर है और आपकी मंद-मंद मुस्कान बहुत ही प्यारी लगती है। आपने गले में तिरछी माला पहन रखी है जो मणियों का हार है।
काँधे साजे सुन्दर पटका, गोटा किरन मोतिन के लटका।
भुज में पहिर अँगरखा झीनौ, कटि काछनी अंग ढक लीनौ।
कमर-बांध की लटकन न्यारी, चरन छुपाये श्री बाँकेबिहारी।
इकलाई पीछे ते आई, दूनी शोभा दई बढाई।
कंधे पर आपने पटका ले रखा है जिस पर मोतियों का गोटा लटक रहा है। भुजाओं में अंगरखा है जिसने आपके अंगों को ढका हुआ है। फिर कमर में आपने कमर-बंध पहनी हुई है जो आपके चरणों को छुपा देती है। वह कमरबंध पीछे से आकर आपकी शोभा को दुगुना बढ़ा देती है।
गद्दी सेवा पास बिराजै, श्री हरिदास छवी अतिराजै।
घंटी बाजे बजत न आगै, झाँकी परदा पुनि-पुनि लागै।
सोने-चाँदी के सिंहासन, छत्र लगी मोती की लटकन।
बांके तिरछे सुधर पुजारी, तिनकी हू छवि लागे प्यारी।
आपके पास में ही आपके सेवक हरिदास की गद्दी है जिस पर वे विराजते हैं। आपकी आराधना में घंटियाँ बज रही है और आपके रूप को भक्तों की नज़र से बचाने के लिए उस पर बार-बार पर्दा किया जा रहा है। आपके लिए सोने-चांदी का सिंहासन सजा हुआ है और उसके ऊपर मोतियों का छत्र है। आपकी छवि बांकी टेढ़ी है जो हर किसी को प्यारी लगती है।
अतर फुलेल लगाय सिहावैं, गुलाब जल केशर बरसावै।
दूध-भात नित भोग लगावैं, छप्पन-भोग भोग में आवैं।
मगसिर सुदी पंचमी आई, सो बिहार पंचमी कहाई।
आई बिहार पंचमी जबते, आनन्द उत्सव होवैं तबते।
हम आपको इत्र व रंग लगाते हैं और गुलाब जल व केसर को आप पर बरसाते हैं। आपको प्रतिदिन दूध-भात का भोग लगाया जाता है और साथ ही आपके लिए छप्पन भोग भी बनता है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन बांके बिहारी जी का जन्मदिन मनाया जाता है। उस दिन पूरी वृंदावन नगरी में उत्सव का वातावरण होता है।
बसन्त पाँचे साज बसन्ती, लगै गुलाल पोशाक बसन्ती।
होली उत्सव रंग बरसावै, उड़त गुलाल कुमकुमा लावैं।
फूल डोल बैठे पिय प्यारी, कुंज विहारिन कुंज बिहारी।
जुगल सरूप एक मूरत में, लखौ बिहारी जी मूरत में।
बसंत पंचमी के दिन तो आपको गुलाल से नहला दिया जाता है और आपके सभी वस्त्र गुलाल में भर जाते हैं। होली के उत्सव में आपके मंदिर में रंग ही रंग उड़ता है। आप उस समय फूलों पर विराजमान रहते हैं और भक्तों के संग होली खेलते हैं। आपका यह स्वरुप एक ही मूरत में है जो लाखों में भी एक है।
श्याम सरूप हैं बाँकेबिहारी, अंग चमक श्री राधा प्यारी।
डोल-एकादशी डोल सजावैं, फूल फल छवी चमकावैं।
अखैतीज पै चरन दिखावैं, दूर-दूर के प्रेमी आवैं।
गर्मिन भर फूलन के बँगला, पटका हार फुलन के झँगला।
आपका यह बांके बिहारी रूप श्याम रूप में है जिसे देखकर राधा रानी के मन में भी आनंद छा जाता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन आपको फल व फूल चढ़ाये जाते हैं। आखातीज पर आप अपने भक्तों को अपने चरणों के दर्शन देते हैं जिसे देखने दूर-दूर से आपके प्रेमी आते हैं। आपका मंदिर फूलों से भर जाता है और आपके पटके को झटकने पर भी उसमें से फूल निकलते हैं।
शीतल भोग, फुहारें चलते, गोटा के पंखा नित झूलते।
हरियाली तीजन का झूला, बड़ी भीड़ प्रेमी मन फूला।
जन्माष्टमी मंगला आरती, सखी मुदित निज तन-मन वारति।
नन्द महोत्सव भीड़ अटूट, सवा प्रहार कंचन की लूट।
आपके उत्सव में तो गुलाब के शीतल पानी की फुहारे चलती है और आपको पंखा किया जाता रहता है। हरियाली तीज के दिन तो आपको झुला झुलाया जाता है जिसे देखकर भक्तों का मन प्रफुल्लित हो उठता है। जन्माष्टमी के दिन तो आपकी मंगला आरती की जाती है और हम सभी तन-मन-धन से आपका ध्यान करते हैं। नंद महोत्सव के दिन तो आपके मंदिर में भक्तों की भीड़ टूट पड़ती है और सभी आपके दर्शन को लालायित नज़र आते हैं।
ललिता छठ उत्सव सुखकारी, राधा अष्टमी की चाव सवारी।
शरद चाँदनी मुकट धरावैं, मुरलीधर के दर्शन पावैं।
दीप दीवारी हटरी दर्शन, निरखत सुख पावै प्रेमी मन।
मन्दिर होते उत्सव नित-नित, जीवन सफल करें प्रेमी चित।
ललिता छठी उत्सव भी बहुत सुखकारी है तो वहीं राधा अष्टमी के दिन आपकी सवारी निकलती है। शरद चांदनी के दिन तो आप अपना मुकुट रखवा देते हैं और हम सभी को आपके मुरलीधर रूप के दर्शन होते हैं। आपके दर्शन बहुत ही मुश्किल से मिलते हैं और आपको देखकर हम प्रेमीजनों को बहुत ही सुख की अनुभूति होती है। आपके मंदिर में तो उत्सव होते ही रहते हैं और आपकी कृपा से हमारा जीवन सफल हो जाता है।
जो कोई तुम्हें प्रेम ते ध्यावें, सोई सुख वांछित फल पावैं।
तुम हो दिनबन्धु ब्रज-नायक, मैं हूँ दीन सुनो सुखदायक।
मैं आया तेरे द्वार भिखारी, कृपा करो श्री बाँकेबिहारी।
दिन दुःखी संकट हरते, भक्तन पै अनुकम्पा करते।
जो कोई भी बांके बिहारी जी का प्रेमपूर्वक ध्यान करता है, उसे सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है और इच्छानुसार फल मिलता है। आप ही दीन बंधुओं के स्वामी और ब्रज के नायक हो। मैं भी आपका एक सेवक आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ। मैं भिखारी रूप में आपके द्वार पर आया हूँ और अब आप मुझ पर अपनी कृपा कीजिये। आप तो दीन व दुखी लोगों के संकटों को दूर कर देते हो और अपने भक्तों पर कृपा करते हो।
मैं हूँ सेवक नाथ तुम्हारो, बालक के अपराध बिसारो।
मोकूँ जग संकट ने घेरौ, तुम बिन कौन हरै दुख मेरौ।
विपदा ते प्रभु आप बचाऔ, कृपा करो मोकूँ अपनाऔ।
श्री अज्ञान मंद-मति भारि, दया करो श्रीबाँकेबिहारी।
मैं तो आपका सेवक हूँ और आप मेरे अपराध के लिए मुझे क्षमा कर दीजिये। मुझे इस जगत में कई तरह के संकटों ने घेरा हुआ है और अब आपके बिना मेरा कौन ही सहारा है। आप मुझे इन सभी संकटों से बचा लीजिये और मुझे अपनी शरण में ले लीजिये। मैं तो अज्ञानी व मंद बुद्धि हूँ और अब आप मुझ पर दया कीजिये।
बाँकेबिहारी विनय पचासा, नित्य पढ़ै पावे निज आसा।
पढ़ै भाव ते नित प्रति गावैं, दुख दरिद्रता निकट नही आवैं।
धन परिवार बढैं व्यापारा, सहज होय भव सागर पारा।
बांके बिहारी जी की चालीसा को जो भो प्रतिदिन पढ़ता है, उसकी हरेक इच्छा पूरी हो जाती है। जो भी बांके बिहारी चालीसा को भाव सहित गाता है, दुःख व गरीबी उसके पास भी नहीं आती है। उसका व्यापार व परिवार दोनों बढ़ता है और वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
कलयुग के ठाकुर रंग राते, दूर-दूर के प्रेमी आते।
दर्शन कर निज हृदय सिहाते, अष्ट-सिद्धि नव निधि सुख पाते।
मेरे सब दुख हरो दयाला, दूर करो माया जंजाला।
दया करो मोकूँ अपनाऔ, कृपा बिन्दु मन में बरसाऔ।
कलयुग में तो वही ठाकुर रूप में देवता हैं जिनके दर्शन करने दूर-दूर से उनके प्रेमी आते हैं। उनके दर्शन करके हम सभी मन ही मन बहुत प्रसन्न होते हैं और आठों सिद्धियों व नौ निधियों को प्राप्त करते हैं। हे बांके बिहारी जी!! आप मेरे सभी दुखों को दूर कर दीजिये और मुझे इस मोहमाया के जंजाल से मुक्त कीजिये। मुझ पर दया कर आप मुझे अपना लीजिये और मेरे मन को आनंद दीजिये।
॥ दोहा ॥
ऐसी मन कर देउ मैं, निरखूँ श्याम-श्याम।
प्रेम बिन्दु दृग ते झरें, वृन्दावन विश्राम॥
मैं मन ही मन आपका ध्यान करता हूँ और श्याम नाम का जाप करता हूँ। मेरे हृदय में प्रेम के भाव उत्पन्न हो और वृंदावन में ही मेरा आसरा हो।
कृष्ण भगवान के एक नहीं बल्कि कई रूप प्रचलित हैं और उनके हरेक रूप का अपना अलग महत्व है। ये रूप उनके भिन्न-भिन्न गुणों, विशेषताओं तथा महिमा का वर्णन करते हैं जिनमें से एक रूप बांके बिहारी जी का है। अब श्रीकृष्ण जी त्रिभंगी मुद्रा में खड़े होते हैं जो कि टेढ़ा रूप है। वे मोर पंख भी टेढ़ी लगाते हैं और व्यवहार में भी नटखट हैं।
ऐसे में बांके बिहारी मंदिर में उनकी यही मूर्ति लगायी गयी है जो भक्तों के बीच लोकप्रिय हैं। इस मुद्रा में वे सभी का मन मोह लेते हैं। ऐसे में श्रीकृष्ण के इस रूप का वर्णन करने और उनकी आराधना करने के उद्देश्य से ही बांके बिहारी चालीसा लिखी गयी है। बांके बिहारी जी की चालीसा के माध्यम से आप श्रीकृष्ण के रूप का वर्णन तो करते ही हैं और साथ के साथ उनकी आराधना भी कर लेते हैं।
यदि आप सच्चे मन के साथ श्रीकृष्ण का ध्यान कर बांके बिहारी जी की चालीसा करते हैं तो अवश्य ही उनकी कृपा आप पर बरसती है। श्रीकृष्ण यदि हमसे प्रसन्न हो जाते हैं तो फिर हमें किसी भी चीज़ की कमी नहीं रह जाती है। वे हमारी हर तरह की इच्छा को पूरी करने में समर्थ हैं और उसे करते भी हैं।
इसी के साथ ही आपके मन में प्रेम के भाव उत्पन्न होते हैं और क्रोध, ईर्ष्या, लोभ, उदासी इत्यादि की भावनाएं दूर होती जाती है। मन में सकारात्मक भावनाओं के आने के कारण हम कार्य भी उसी तरह से कर पाते हैं और रिश्तों में भी मजबूती देखने को मिलती है। यही श्री बांके बिहारी चालीसा से मिलने वाले लाभ होते हैं।
बांके बिहारी चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: बांके बिहारी के दर्शन कितने बजे होते हैं?
उत्तर: बांके बिहारी जी के दर्शन समय में बदलाव होता रहता है। अभी इसका समय सुबह 8 बजे से लेकर दोपहर 1 बजे तक और फिर संध्या में 4:30 बजे से लेकर 9:30 बजे तक का है।
प्रश्न: बांके बिहारी मंदिर कितने साल पुराना है?
उत्तर: सन 1864 में श्रीकृष्ण के एक भक्त हरिदास जी ने बांके बिहारी जी के मंदिर का निर्माण करवाया था। मान्यता है कि इस मंदिर में बांके बिहारी जी की मूर्ति अपने आप ही प्रकट हुई थी।
प्रश्न: बांके बिहारी मंदिर में फोन की अनुमति है?
उत्तर: बांके बिहारी मंदिर में फोन ले जाने की अनुमति तो है लेकिन आप बहुत ही संभल कर इसे ले जाएं। वहां फोन के चोरी होने की घटनाएँ बहुत ज्यादा आम है क्योंकि चोर भीड़ का अनुचित लाभ उठाते हैं।
प्रश्न: बांके बिहारी मंदिर का मालिक कौन है?
उत्तर: बांके बिहारी मंदिर का निर्माण हरिदास जी ने वर्ष 1864 में करवाया था और उसके बाद मंदिर के प्रबंधन का उत्तरदायित्व उन्हीं के ही वंशजो के पास है।
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