मिश्रा जी अखबार पढ़ने की कोशिश कर रहे थे। केवल मोटे-मोटे अक्षर ही पढ़ पा रहे थे क्योंकि छोटे अक्षर तो धुंधले दिख रहे थे। दरअसल कुछ सप्ताह पहले नजर का चश्मा गलती से टूट गया था, बेटे को कई बार बोला था लेकिन वह हमेशा भूल गया का कहकर बात टाल देता था।
मिश्रा जी अखबार पढ़ ही रहे थे कि उनका बेटा रमेश ऑफिस से आया और आश्चर्य की बात थी कि वह अपने साथ बापूजी का चश्मा भी लेकर आया था। यह देखकर मिश्रा जी बहुत खुश हो गए। इतना ही नही आज इतने सालों बाद रमेश ने बापूजी से पूछा कि रात के खाने में क्या खाना पसंद करेंगे? यह प्रश्न सुन मिश्रा जी एकदम से सकपका गए क्योंकि पत्नी के जाने के बाद किसी ने पहली बार उनसे उनकी पसंद पूछी थी। अचानक से हुए इस प्रश्न से सकपकाए मिश्रा जी ने बोल दिया कि बहु जो बना लेगी, वही खा लेंगे। लेकिन आज पता नही रमेश को क्या हो गया था कि जिद्द करने लगा कि बापूजी क्या खाएंगे, तो मिश्रा जी ने डरते हुए भिंडी की सब्जी बोल दी।
दूसरे कमरे से झांकती संगीता रमेश के इस व्यवहार को देखकर आश्चर्यचकित भी थी और गुस्से में भी। बापूजी से दस मिनट मीठी बाते करके जब रमेश अपने कमरे में गया तो संगीता ने प्रश्नों की बौछार कर दी। कहने लगी, तुम तो इस सप्ताह बापूजी को वृद्धाश्रम छोड़कर आने वाले थे तो अचानक से इतना प्यार कैसे उमड़ पड़ा? उनका चश्मा भी बनवा लिया और सब्जी भी उनकी पसंद की बनवाई जा रही हैं। आखिर हो क्या गया है तुम्हे? संगीता ने गुस्से में पूछा।
रमेश बात को टालने लगा लेकिन संगीता के गुस्से के आगे उसकी एक ना चली तो झुंझला कर बोला कि वो बस एक सिद्धि प्राप्त ज्योतिषी की वजह से।
संगीता के मन में रहस्य गहरा गया और अब वह पूरी बात जाने बिना उसे छोड़ने वाली नही थी। रमेश पर जोर देने लगी कि उस ज्योतिष की वजह से कैसे? बताओ मुझे।
रमेश ने भी बता दिया कि मैं उनसे अपना भविष्य जानने गया था बस। इसके आगे वह कुछ नही बोला। आखिर संगीता आधी-अधूरी बात जाने बिना रमेश को कैसे छोड़ सकती थी। अब तो वह आग-बबूला हो गयी और रमेश को पूरी बात बताने को बोला।
रमेश भी जान चुका था कि अब बात बतानी ही पड़ेगी लेकिन बस एक पंक्ति में उसने अपनी बात कह दी और पूरी बहस उसी समय समाप्त हो गयी। रमेश ने संगीता को बताया कि ज्योतिषी ने मेरे भविष्य के बारे में बताया कि “तुम्हारा भविष्य बिल्कुल वैसा ही होगा जैसा तुम्हारे पिता जी का हैं।”
चर्चा समाप्त हो गयी, बापूजी को वृद्धाश्रम जाने का ख्याल त्याग दिया गया, हर दो दिन में उनकी पसंद की सब्जी बन जाती, बहु अब कड़वे शब्द बोलने से हिचकिचाती तो वही रमेश भी ऑफिस से आकर दस मिनट मिश्रा जी के साथ बैठने लगा था।
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