आज हम आपको जानकी कृत पार्वती स्तोत्र (Janki Krit Parvati Stotram In Hindi) हिंदी में अर्थ सहित देंगे। माता पार्वती ने बहुत ही कठिन तपस्या के बाद भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। यह सती माता का ही पुनर्जन्म था जो हिमालय पर्वत की पुत्री के रूप में जन्मी थी।
इसके पश्चात त्रेतायुग में माता जानकी अर्थात माता सीता ने श्रीराम से विवाह करने के लिए पार्वती स्तोत्र की रचना की थी। इस कारण इसे जानकी कृत पार्वती स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। यदि किसी कन्या के विवाह में अड़चन आ रही है या उसके विवाह में विलंब हो रहा है या उसे अपनी इच्छानुसार वर चाहिए तो उसे बिना देर किये आज से ही प्रतिदिन कम से कम एक बार पार्वती माता के स्तोत्र का पाठ करना शुरू कर देना चाहिए।
आज के इस लेख में हम आपके साथ पार्वती स्तोत्र इन हिंदी (Parvati Stotram In Hindi) में भी साझा करेंगे ताकि आप इसका भावार्थ जान सकें। अंत में आपको पार्वती स्तोत्र के लाभ व महत्व भी जानने को मिलेंगे। आइए सबसे पहले पढ़ते हैं जानकी कृत पार्वती स्तोत्र हिंदी में।
॥ जानकी उवाच ॥
माता जानकी कहती हैं कि…
शक्तिस्वरूपे सर्वेषां सर्वाधारे गुणाश्रये।
सदा शंकरयुक्ते च पतिं देहि नमोस्तुते॥
हे माँ पार्वती!! आप शक्ति का स्वरुप हैं, सभी की ईश्वरी हैं, सभी की आधार हैं व गुणों को धारण किये हुए हैं। आप सदैव भगवान शिव के साथ रहती हैं। ऐसे में आप मुझे भी एक योग्य पति दीजिये। आपको मेरा नमन है।
सृष्टिस्थित्यन्त रूपेण सृष्टिस्थित्यन्त रूपिणी।
सृष्टिस्थियन्त बीजानां बीजरूपे नमोस्तुते॥
इस सृष्टि का जो रूप है, वह रूप आपने ही इसे प्रदान किया है। इस सृष्टि की उत्पत्ति जिस बीज से हुई है, वह बीज आप ही हैं। आपको मेरा नमन है।
हे गौरि पतिमर्मज्ञे पतिव्रतपरायणे।
पतिव्रते पतिरते पतिं देहि नमोस्तुते॥
हे माँ गौरी!! आप पति की हर आज्ञा का पालन करने वाली, पति का अनुसरण करने वाली, पति के नाम का व्रत करने वाली, पति को अपने शरीर में धारण करने वाली है। आपको मेरा नमन है।
सर्वमंगल मंगल्ये सर्वमंगल संयुते।
सर्वमंगल बीजे च नमस्ते सर्वमंगले॥
आप हम सभी का मंगल करती हैं, सभी मंगल आपके कारण ही है, मंगल का मूल आप ही हैं और आपको मेरा नमन है।
सर्वप्रिये सर्वबीजे सर्व अशुभ विनाशिनी।
सर्वेशे सर्वजनके नमस्ते शंकरप्रिये॥
आपको हर कोई प्रेम करता है, आप ही सभी की आत्मा हैं, आप ही अशुभ का नाश कर देती हैं, आप सभी की ईश्वरी हैं, आप सभी की माता हैं और आप शंकर भगवान को भी प्रिय हैं।
परमात्मस्वरूपे च नित्यरूपे सनातनि।
साकारे च निराकारे सर्वरूपे नमोस्तुते॥
आप ही परमात्मा का स्वरुप हैं और आप ही भिन्न रूपों में विद्यमान हैं। आपका आकार हैं भी और नहीं भी। हर रूप आपका ही है। आपको मेरा नमन है।
क्षुत् तृष्णेच्छा दया श्रद्धा निद्रा तन्द्रा स्मृति: क्षमा।
एतास्तव कला: सर्वा: नारायणि नमोस्तुते॥
भूख, इच्छा, दया, श्रद्धा, नींद, ध्यान, मन, क्षमा इत्यादि सभी आपकी ही कलाएं हैं। आप ही नारायणी का स्वरुप हो और आपको मेरा नमन है।
लज्जा मेधा तुष्टि पुष्टि शान्ति संपत्ति वृद्धय:।
एतास्त्व कला: सर्वा: सर्वरूपे नमोस्तुते॥
लाज, बुद्धि, संतोष, सामर्थ्य, शांति, संपत्ति, वृद्धि इत्यादि भी आपकी ही कलाएं हैं। आप ही सभी रूपों में हो और आपको मेरा नमन है।
दृष्टादृष्ट स्वरूपे च तयोर्बीज फलप्रदे ।
सर्वानिर्वचनीये च महामाये नमोस्तुते॥
आप दिखाई भी देती हैं और नहीं भी, आप ही अपने भक्तों को भिन्न-भिन्न प्रकार के फल प्रदान करती हैं। आप हर जगह निवास करती हैं और आप ही महामाया हैं। आपको मेरा नमन है।
शिवे शंकर सौभाग्ययुक्ते सौभाग्यदायिनि।
हरिं कान्तं च सौभाग्यं देहि देवी नमोस्तुते॥
शिव शंकर आपके सौभाग्य का प्रतीक हैं और आप हम सभी को भी सौभाग्य प्रदान करती हैं। श्रीहरि मेरे सौभाग्य हैं और अब आप मुझे मेरे सौभाग्य को प्रदान कीजिये। आपको मेरा नमन है।
॥ फलश्रुति ॥
स्तोत्रणानेन या: स्तुत्वा समाप्ति दिवसे शिवाम्।
नमन्ति परया भक्त्या ता लभन्ति हरिं पतिम्॥
जो भी स्त्री शिवजी व माँ पार्वती के नाम का व्रत कर और उसकी समाप्ति पर इस पार्वती स्तोत्र का पाठ करती है और उन्हें नमन करती है, उसे पति रूप में स्वयं श्रीहरि प्राप्त होते हैं।
इह कान्तसुखं भुक्त्वा पतिं प्राप्य परात्परम्।
दिव्यं स्यन्दनमारुह्य यान्त्यन्ते कृष्णसंनिधिम्॥
इस लोक में वह पति के रूप में श्रीहरि के सम्मुख रहने का सुख प्राप्त करती हैं और अंत समय में दिव्य विमान में चढ़कर कृष्ण लोक को चली जाती हैं।
इस तरह से आज हमने पार्वती स्तोत्र इन हिंदी (Parvati Stotram In Hindi) में पढ़ लिया है। अब बारी आती है पार्वती स्तोत्र के लाभ और महत्व को जानने की। तो चलिए वह भी जान लेते हैं।
माता सती भगवान शिव की प्रथम पत्नी थी जिन्होंने अपने पिता दक्ष के द्वारा भगवान शिव का अपमान किये जाने पर अग्नि कुंड में कूदकर आत्म-दाह कर लिया था। उसके पश्चात माता सती ने हिमालय पर्वत के यहाँ पुत्री रूप में पुनर्जन्म लिया जिनका नाम पार्वती रखा गया। माता सती के आत्म-दाह के बाद से ही भगवान शिव अनंत योग साधना में चले गए थे। तब माता पार्वती ने शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त करने के लिए कई वर्षों की कठोर तपस्या की थी जिस कारण उनका शिव से पुनः विवाह हुआ।
इसी प्रकार माता लक्ष्मी ने जब त्रेता युग में माता सीता के रूप में जन्म लिया और श्रीहरि ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया। तब माता सीता जो जानकी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं, उन्होंने स्वयंवर से पहले श्रीराम को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इस पार्वती स्तोत्र की रचना की थी। इसके बाद ही उनके विवाह में आने वाली हर बाधा दूर हो गयी थी और श्रीराम ने उस स्वयंवर में विजयी होकर माता सीता से विवाह किया था। यही जानकी कृत पार्वती स्तोत्र का महत्व होता है।
यदि किसी कन्या के विवाह में बार-बार अड़चन आ रही है, उसके विवाह में बिना किसी कारण विलंब हो रहा है, उसे अपनी इच्छा के अनुरूप वर चाहिए जो जीवनपर्यंत उसका साथ निभाए, तो उसे जानकी माता के द्वारा लिखे गए इस पार्वती स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे विवाह में आ रही हर प्रकार की अड़चन व ग्रह दोष दूर हो जाते हैं।
कई बार यह देखने में आता है कि व्यक्ति की कुंडली या ग्रहों की स्थिति इस प्रकार होती है कि उसका विवाह नहीं हो पाता है या विवाह के उपरांत भी अड़चन आती है। ऐसे में मनचाहा वर प्राप्त करने और विवाह बाद शांति से जीवनयापन करने के लिए हर स्त्री को पार्वती स्तोत्रम् का पाठ करना चाहिए। पुरुष भी मनचाही स्त्री से विवाह करने के लिए पार्वती स्तोत्र का पाठ कर सकता है।
आज के इस लेख के माध्यम से आपने जानकी कृत पार्वती स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित (Janki Krit Parvati Stotram In Hindi) पढ़ लिया हैं। साथ ही आपने पार्वती स्तोत्र के लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।
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