आज हम आपको बताएँगे कि त्रेता युग में महिष्मति का राजा सहस्त्रबाहु कौन था (Sahastrabahu Kon Tha) और क्यों भगवान परशुराम ने उसका वध कर दिया था। उसकी राजधानी महिष्मति नगरी थी जो नर्मदा नदी के तट पर बसी थी। वर्तमान में यह स्थान मध्य प्रदेश राज्य के नर्मदा नदी के पास महेश्वर नगर हैं। यहाँ सहस्त्रबाहु को समर्पित एक मंदिर भी स्थित है।
अपने समय में सहस्त्रबाहु अत्यधिक शक्तिशाली तथा पराक्रमी राजा था। उसने तीनों लोकों के राजा रावण को भी पराजित कर दिया था और उसे अपने कारावास में बंदी बनाकर रखा था। हालाँकि भगवान परशुराम के द्वारा उसका अपने कुल सहित नाश भी हो गया था। आज हम सहस्त्रबाहु अर्जुन की वंशावली (Sahastrabahu Kaun Tha) सहित उसके जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे।
सहस्त्रबाहु राजा कृतवीर्य के पुत्र थे जो हैहय वंश के राजा थे। उनका वास्तविक नाम अर्जुन था किंतु समय के साथ-साथ उनके कई नाम पड़े। अपने पिता के बाद सहस्त्रबाहु महिष्मति नगरी के परम प्रतापी राजा बने। उनका नाम सहस्त्रबाहु इसलिए पीडीए था क्योंकि उनकी हज़ार भुजाएं थी। जी हां, सही सुना आपने। राजा सहस्त्रबाहु के एक हज़ार हाथ थे जिस कारण वे अत्यधिक शक्तिशाली थे। उनका राज्य वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ था।
सहस्त्रबाहु भगवान दत्तात्रेय का बहुत बड़ा भक्त था और दिन रात उनकी भक्ति में ही डूबा रहता था। एक दिन उसने भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान दत्तात्रेय ने अर्जुन को एक हज़ार भुजाएं दी। इसके बाद ही उसका नाम सहस्त्रबाहु अर्जुन पड़ गया।
राजा बनने के पश्चात उनका पृथ्वी के कई महान योद्धाओं से युद्ध हुआ था लेकिन उनकी एक गलती उनके संपूर्ण वंश के नाश का कारण बनी थी। सहस्त्रबाहु ने उस समय के शक्तिशाली राजा रावण तक को हरा दिया था। रावण का वध करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु को श्रीराम के रूप में इस धरती पर अवतरित होना पड़ा था। उसी रावण को सहस्त्रबाहु ने पहले ही हार का मुहं दिखा दिया था। हालाँकि सहस्त्रबाहु को भगवान परशुराम से बैर लेना बहुत भारी पड़ा था। इसका प्रभाव केवल उन पर ही नहीं बल्कि उनकी आने वाली पीढ़ियों तक ने भुगता था।
सहस्त्रबाहु कौन था (Sahastrabahu Kaun Tha), इसके बारे में अच्छे से जाने के लिए आपको उनके हरेक नाम और उनका अर्थ जानना होगा। चूँकि हमनें आपको बताया कि उनके बचपन का तथा वास्तविक नाम अर्जुन था लेकिन इसी के साथ उन्हें कई अन्य नामों से भी बुलाया जाता था। अब उन्हें हरेक नाम किसी ना किसी कारण से ही दिए गए थे जो उनके पराक्रम और गुणों को दिखाते थे। आइये जानते हैं उनके विभिन्न नाम व उनका अर्थ।
यह नाम उन्हें अपने पिता के कारण मिला। उनके पिता का नाम कृतवीर्य था जिससे उन्हें कार्तवीर्य बुलाया जाने लगा।
सहस्त्र का अर्थ होता है एक हज़ार तथा बाहु का अर्थ होता है भुजाएं अर्थात जिसकी एक हज़ार भुजाएं हो। सहस्त्रार्जुन को अपन गुरु दत्तात्रेय के द्वारा मिले वरदान स्वरुप एक हज़ार भुजाएं मिली थी जिसके बाद उन्हें सहस्त्रबाहु/ सहस्त्रार्जुन के नाम से जाना जाने लगा।
सहस्त्रार्जुन अपने हैहय वर्ष में सबसे प्रतापी राजा था। इसलिये उसे हैहय वंश का प्रमुख अधिपति भी कहा गया।
महिष्मति नगरी के प्रमुख राजा होने के कारण उन्हें इस नाम से जाना जाता है।
लंका के दस मुख वाले राजा रावण के ऊपर विजय प्राप्त करने के कारण उन्हें इस नाम की उपाधि मिली थी।
सातों दीपों पर राज करने के कारण कार्तवीर्य को इस नाम से भी जाना गया।
राजाओं के भी राजा होने के कारण उन्हें इस नाम से पहचान मिली। इसी नाम से उनका मंदिर भी वहां स्थित है।
एक बार रावण विश्व विजय के अभियान से महिष्मति नगरी आया था तथा नर्मदा नदी के तट पर भगवान शिव की पूजा कर रहा था। तब सहस्त्रबाहु ने अपनी हज़ार भुजाओं के बल से नर्मदा नदी का पानी रोक दिया था। यह देखकर रावण की पूजा में व्यवधान उत्पन्न हुआ और उसने सहस्त्रबाहु को युद्ध की चुनौती दे डाली।
सहस्त्रबाहु ने भी बिना देर किये रावण की युद्ध की चुनौती को स्वीकार कर लिया। दोनों के बीच भीषण युद्ध शरू हो गया और अंत में सहस्त्रबाहु ने अपनी हज़ार भुजाओं के बल पर रावण को बंदी बना लिया और कारावास में डाल दिया। उसके बाद रावण के दादा ऋषि पुलत्स्य के कहने पर उसने रावण को अपने कारावास से मुक्त किया था और लंका वापस जाने दिया था।
एक बार सहस्त्रबाहु अपनी सेना के साथ भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम गए थे। वहां उन्हें उनकी कामधेनु गाय पसंद आ गयी थी लेकिन ऋषि जमदग्नि ने उन्हें यह देने से मना कर दिया। इसके पश्चात अपने अहंकार में राजा सहस्त्रबाहु ने बल का प्रयोग कर आश्रम को तहस-नहस कर दिया तथा वहां से गाय लेकर चले गए। उस समय भगवान परशुराम आश्रम में नही थे लेकिन जब परशुराम वापस आये तो उनका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया था।
भगवान परशुराम अपना परशु/ कुल्हाड़ी लेकर महिष्मति नगरी गए तथा राजा सहस्त्रबाहु की सारी भुजाएं काट डाली और उसका वध कर डाला। राजा के वध के पश्चात जब परशुराम तीर्थयात्रा पर गए हुए थे तब सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी। इससे कुपित होकर भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु के कुल का इक्कीस बार नाश कर दिया था तथा हैहय वंश का नामोनिशान मिटा दिया था।
इसलिये कहा जाता हैं कि भगवान परशुराम ने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था जबकि उन्होंने क्षत्रिय वंश की एक जाति हैहय वंश का 21 बार नाश किया था। जहाँ एक ओर, राजा सहस्त्रबाहु ने तीनों लोकों के राजा रावण को पराजित कर अपनी कीर्ति का लोहा मनवाया था तो वही दूसरी ओर, उनकी एक गलती के कारण केवन उनका नहीं बल्कि उनके समूचे वंश का नाश हो गया था।
अब हम आपके सामने राजा सहस्त्रबाहु की वंशावली रखने जा रहे हैं। हालाँकि अलग-अलग जगहों पर इसको लेकर अलग-अलग जानकारी देखने को मिलती है। ऐसे में हमने सबसे विश्वनीय स्रोतों के माध्यम से सहस्त्रबाहु अर्जुन की वंशावली का पता लगाया है जो हम आपके सामने रखने जा रहे हैं।
इस तरह से आज आपने सहस्त्रबाहु कौन था (Sahastrabahu Kon Tha) और वह इतिहास में किन-किन कारणों से प्रसिद्ध है, इसके बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है।
सहस्त्रबाहु अर्जुन से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: सहस्त्रबाहु अर्जुन कौन थे?
उत्तर: सहस्त्रबाहु अर्जुन त्रेता युग में हैहय वंश के महान राजा थे। उनका राज्य नर्मदा नदी के किनारे महिष्मति के नाम से था। उन्होंने रावण तक को पराजित किया था लेकिन भगवान परशुराम के हाथों मारे गए थे।
प्रश्न: सहस्त्रबाहु को किसने मारा था?
उत्तर: सहस्त्रबाहु को भगवान परशुराम ने मारा था। सहस्त्रबाहु ने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम को तहस-नहस कर दिया था और उनकी गाय को चुरा लिया था। इसी कारण भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु की सभी भुजाएं काटकर उसका वध कर दिया था।
प्रश्न: सहस्त्रबाहु का वध किसने किया था?
उत्तर: सहस्त्रबाहु का वध भगवान परशुराम ने किया था। उन्होंने सहस्त्रबाहु की सभी भुजाएं काट दी थी और अंत में उसका वध कर दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने सहस्त्रबाहु के कुल का 21 बार नाश किया था।
प्रश्न: सहस्त्रबाहु अर्जुन की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर: सहस्त्रबाहु अर्जुन की मृत्यु अपनी एक हज़ार भुजाओं के कट जाने के कारण हुई थी। भगवान परशुराम ने क्रोध में आकर सहस्त्रबाहु की सभी भुजाओं को एक-एक कर काट दिया था और उसका वध कर डाला था।
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