चालीसा

श्री शनि चालीसा लिरिक्स – महत्व व लाभ सहित

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आज हम आपके साथ श्री शनि चालीसा (Shri Shani Chalisa) का पाठ करेंगे। जिस किसी पर शनि देव की कृपा हो जाती है, उसके सभी संकट, बाधाएं, अड़चने, समस्याएं, चुनौतियों, कष्ट इत्यादि का स्वतः ही अंत हो जाता है। इसके लिए व्यक्ति को प्रतिदिन और मुख्यतया शनिवार के दिन श्री शनि देव की चालीसा का पाठ करना चाहिए।

आज के इस लेख में हम आपके साथ शनि चालीसा लिरिक्स (Shani Chalisa Lyrics) को हिंदी में साझा करने वाले हैं। इसके साथ ही आपको शनि चालीसा पढ़ने के लाभ और उसके महत्व के बारे में भी जानकारी दी जाएगी। आइए सबसे पहले पढ़ते हैं श्री शनि चालीसा हिंदी में।

Shri Shani Chalisa | श्री शनि चालीसा

॥ दोहा ॥

श्री शनिश्चर देवजी, सुनहु श्रवण मम टेर।
कोटि विघ्ननाशक प्रभो, करो न मम हित बेर॥

॥ सोरठा ॥

तव स्तुति हे नाथ, जोरि जुगल कर करत हौं।
करिये मोहि सनाथ, विघ्नहरन हे रविसुवन॥

॥ चौपाई ॥

शनिदेव मैं सुमिरौं तोही। विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही॥

तुम्हरो नाम अनेक बखानौं। क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं॥

अन्तक, कोण, रौद्रय मगाऊँ। कृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ॥

पिंगल मन्दसौरि सुख दाता। हित अनहित सब जगके ज्ञाता॥

नित्य जपै जो नाम तुम्हारा। करहु व्याधि दुःख से निस्तारा॥

राशि विषमवस असुरन सुरनर। पन्नग शेष साहित विद्याधर॥

राजा रंक रहहिं जो नीको। पशु पक्षी वनचर सबही को॥

कानन किला शिविर सेनाकर। नाश करत सब ग्राम्य नगर भर॥

डालत विघ्न सबहि के सुख में। व्याकुल होहिं पड़े सब उख में॥

नाथ विनय तुमसे यह मेरी। करिये मोपर दया घनेरी॥

मम हित विषम राशि मंहवासा। करिय न नाथ यही मम आसा॥

जो गुड उड़द दे वार शनीचर। तिल जब लोह अन्न धन बिस्तर॥

दान दिये से होंय सुखारी। सोइ शनि सुन यह विनय हमारी॥

नाथ दया तुम मोपर कीजै। कोटिक विघ्न क्षणिक महं छीजै॥

वंदत नाथ जुगल कर जोरी। सुनहुं दया कर विनती मोरी॥

कबहुं तीरथ राज प्रयागा। सरयू तोर सहित अनुरागा॥

कबहुं सरस्वती शुद्ध नार महं। या कहुं गिरी खोह कंदर महं॥

ध्यान धरत हैं जो जोगी जनि। ताहि ध्यान महं सूक्ष्म होहि शनि॥

है अगम्य क्या करूं बड़ाई। करत प्रणाम चरण शिर नाई॥

जो विदेश में बार शनीचर। मुड कर आवेगा जिन घर पर॥

रहैं सुखी शनि देव दुहाई। रक्षा रवि सुत रखैं बनाई॥

जो विदेश जावैं शनिवारा। गृह आवैं नहिं सहै दुखारा॥

संकट देय शनीचर ताही। जेते दुखी होई मन माही॥

सोई रवि नन्दन कर जोरी। वन्दन करत मूढ़ मति थोरी॥

ब्रह्मा जगत बनावन हारा। विष्णु सबहिं नित देत अहारा॥

हैं त्रिशूलधारी त्रिपुरारी। विभू देव मूरति एक वारी॥

इकहोइ धारण करत शनि नित। वंदत सोई शनि को दमनचित॥

जो नर पाठ करै मन चित से। सो नर छूटै व्यथा अमित से॥

हौं सुपुत्र धन सन्तति बाढ़े। कलि काल कर जोड़े ठाढ़े॥

पशु कुटुम्ब बांधन आदि से। भरो भवन रहिहैं नित सबसे॥

नाना भांति भोग सुख सारा। अन्त समय तजकर संसारा॥

पावै मुक्ति अमर पद भाई। जो नित शनि सम ध्यान लगाई॥

पढ़ै प्रात जो नाम शनि दस। रहै शनीश्चर नित उसके बस॥

पीड़ा शनि की कबहुं न होई। नित उठ ध्यान धरै जो कोई॥

जो यह पाठ करै चालीसा। होय सुख साखी जगदीशा॥

चालिस दिन नित पढ़ै सबेरे। पातक नाशे शनी घनेरे॥

रवि नन्दन की अस प्रभुताई। जगत मोहतम नाशै भाई॥

याको पाठ करै जो कोई। सुख सम्पत्ति की कमी न होई॥

निशिदिन ध्यान धरै मनमाहीं। आधिव्याधि ढिंग आवै नाहीं॥

॥ दोहा ॥

पाठ शनीश्चर देव को, कीहौं विमल तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

जो स्तुति दशरथ जी कियो, सम्मुख शनि निहार।
सरस सुभाषा में वही, ललिता लिखें सुधार॥

इस तरह से आज आपने शनि चालीसा लिरिक्स (Shani Chalisa Lyrics) को हिंदी में पढ़ लिया है। अब हम श्री शनि चालीसा का पाठ करने से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व के बारे में भी जान लेते हैं।

शनि चालीसा लिरिक्स का महत्व

श्री शनि चालीसा को पढ़ने से ज्ञात होता है कि उनकी कुदृष्टि से राजा-महाराजा ही नही अपितु नारायण के अवतार श्रीराम, श्रीकृष्ण और यहाँ तक कि स्वयं महादेव भी नही बच सके। हालाँकि हिन्दू धर्म में भगवान या ईश्वर को देवता से ऊपर स्थान दिया गया है किंतु फिर भी शनि देव ने ईश्वर तक पर अपनी दृष्टि टेढ़ी की लेकिन कैसे।

इसका सीधा सा तात्पर्य यह हुआ कि जो भी हमारे भाग्य में लिखा है या जो हमे भोगना है, फिर चाहे वह अच्छा हो या बुरा, उसका निर्धारण शनि देव ही करते हैं। अब वह चाहे कौरवों की बुद्धि भ्रष्ट होने पर महाभारत का भीषण युद्ध होना हो या रावण द्वारा माता सीता का हरण करने पर उसका वध होना हो। जिसकी नियति में जो लिखा होगा वह होकर ही रहेगा।

इसके साथ ही शनि चालीसा लिरिक्स से हमे यह पता चलता है कि व्यक्ति को अपने पूर्व जन्मों के कर्मों का फल भोगना ही होगा। इसी के साथ वह इस जन्म में भी जो कार्य कर रहा है चाहे वह बुरे हैं या अच्छे, उनका फल भी उसे किसी ना किसी दिन भोगना ही पड़ेगा। हमारे सभी कर्मों का लेखा-जोगा शनि देव रखते हैं और उसका उचित दंड या पुरस्कार हमें अवश्य देते हैं।

श्री शनि चालीसा के लाभ

जब हम किसी भी भगवान या देवी-देवता की आरती, स्तुति, चालीसा पढ़ते हैं या उनका ध्यान करते हैं तो इसका मुख्य उद्देश्य उनके गुणों का ध्यान करना होता है। श्री शनि चालीसा को हिंदी में पढ़कर हमें शनि देव के कार्यों व गुणों का स्मरण करना होता है। दिखने में शनि देव भयंकर लग सकते हैं और साथ ही हम में से कोई भी नही चाहेगा कि शनि देव की कुदृष्टि हम पर पड़े।

शनि देव का भय या डर ही शनि चालीसा को पढ़ने का मुख्य लाभ है। जिस प्रकार आज के समय में मनुष्यों को गलत कर्म करने से डराने के लिए पुलिस, सेना इत्यादि का भय दिखाया जाता है और उस पर न्यायालय के द्वारा कार्यवाही करने का डर भी बना रहता है; ठीक उसी प्रकार मनुष्यों को अनैतिक कार्यों को करने से रोकने के लिए शनि देव का भय दिखाया जाता है।

यह तो निश्चित है कि मनुष्य को उसके कर्मों का फल भोगना ही होगा फिर चाहे वह दंड के रूप में हो या पुरस्कार के रूप में। तो इसमें बुरे कर्मों का दंड देने का उत्तरदायित्व इन्हीं शनि देव के ऊपर ही होता है। शनि चालीसा लिरिक्स को पढ़कर हमे सबसे मुख्य लाभ यही मिलता है कि हम बुरे कर्म करने से बचें, दूसरों को कष्ट ना दें और हमेशा नैतिक कर्म करें।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने श्री शनि चालीसा (Shri Shani Chalisa) पढ़ ली है। साथ ही आपने शनि चालीसा लिरिक्स पाठ से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो आप नीचे कमेंट करें। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देंगे।

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