भारत की भूमि ने सदियों-सदियों तक विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण झेले (Alexander And Porus Battle In Hindi) हैं। पहले भारतवर्ष के पश्चिमी भूभाग में पाकिस्तान व अफगानिस्तान भी आते थे जिन्हें क्रमशः कैकेय व गांधार के नाम से जाना जाता था। गांधार के राजा आम्भी कुमार ने तो सिकंदर के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया था लेकिन कैकेय नरेश पोरस ने सिकंदर की अविजयी सेना के साथ भयंकर युद्ध किया (Battle Of Hydaspes In Hindi) था।
आज हम उस युद्ध को झेलम नदी का युद्ध या Hydaspes का युद्ध के नाम से जानते हैं जो लगभग 326 ईसा पूर्व लड़ा गया था। इस युद्ध के बारे में यूनानी, भारतीय, बौद्ध व जैन इतिहासकारों सभी ने लिखा हैं। किसी में सिकंदर को विजयी बताया गया (Sikander And Porus History In Hindi) हैं तो किसी में राजा पोरस को। इसलिए आज हम झेलम नदी के किनारे लड़े गए सिकंदर व राजा पोरस के युद्ध का संपूर्ण वर्णन आपको देंगे।
भारत की पश्चिमी सीमा का आखिरी राज्य गांधार था। भारत कई छोटे-बड़े जनपदों में बंटा हुआ था जिसमें सबसे बड़ा व समृद्ध जनपद मगध (वर्तमान बिहार व आसपास के कुछ राज्य) था। उन्हीं जनपदों में सीमावर्ती जनपद गांधार (वर्तमान अफगानिस्तान) व कैकेय (वर्तमान पाकिस्तान) प्रमुख थे।
सिकंदर ने जब गांधार में प्रवेश किया तब गांधार नरेश आम्भी राज ने आत्म-समर्पण कर दिया व सिकंदर का भव्य स्वागत भी किया। इतना ही नही, कैकेय नरेश से अपनी पुरानी शत्रुता निभाने के लिए आम्भी नरेश ने सिकंदर को गुप्त रूप से गांधार की सैन्य सहायता भी दे दी ताकि कैकेय को पराजित किया जा सके।
इसके बाद सिकंदर ने अपने दूत को राजा पोरस के लिए एक संदेश देकर कैकेय जनपद भेजा। दूत ने कैकेय नरेश पोरस को सिकंदर के सामने आत्म-समर्पण करने के लिए कहा अन्यथा युद्ध करने की चेतावनी दी। राजा पोरस का राज्य अत्यधिक विशाल था जिसके पास हजारों-लाखों की संख्या में सैनिक, घुड़सवार, घोड़े व हाथी थे।
उन्होंने सिकंदर के समक्ष आत्म-समर्पण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और तुरंत अपनी सेना को युद्ध की तैयारी करने के आदेश दे दिए। युद्ध का मैदान झेलम नदी का किनारा था क्योंकि उसे पार करके ही कैकेय जनपद में प्रवेश किया जा सकता था। राजा पोरस अपनी संपूर्ण सेना के साथ झेलम नदी के किनारे सिकंदर की सेना की प्रतीक्षा करने लगे।
दूसरी ओर, राजा पोरस के द्वारा आत्म-समर्पण का प्रस्ताव ठुकराए जाने के पश्चात सिकंदर अपनी व गांधार की सेना के साथ युद्ध के लिए निकल पड़ा। उसकी सेना झेलम नदी के दूसरे किनारे तक आ पहुंची।
जब सिकंदर और उसकी सेना ने राजा पोरस की सेना को देखा तो आतंकित हो उठी। उन्होंने पहली बार हाथियों की इतनी विशाल सेना देखी थी और उनके पास तो केवल घोड़े थे। साथ ही राजा पोरस की सेना को सामने से नही हराया जा सकता था और यह बात सिकंदर भलीभांति जानता था।
इसके लिए उसने एक रणनीति के तहत काम लिया। झेलम नदी के जिस किनारे दोनों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थी, वहां से सिकंदर के लिए युद्ध जितना असंभव था। यहीं झेलम नदी आगे जाकर एक जगह मुड़ती थी और उसके पास में ही वनस्पतियों से घिरा एक बड़ा सा टापू था। नदी पार करके कैकेय में प्रवेश करने का यह एक सुगम रास्ता हो सकता था।
सिकंदर ने इस पर गहन विचार-विमर्श किया और रात में उसी रास्ते से अपने विशिष्ट सैनिक टुकड़ी के साथ नदी पार करने का निर्णय लिया। साथ ही रातभर बहुत तेज तूफान आया और मूसलाधार वर्षा हुई जिस कारण सिकंदर के सैनिकों के झेलम नदी पार करने की आवाज उसमें दब गयी। अत्यधिक वर्षा से नदी के पास की जमीन भी दलदली हो गयी। यह दलदली जमीन पोरस की हाथियों की सेना के लिए दुर्गम थी क्योंकि वहां उन्हें नियंत्रित करना बहुत मुश्किल हो जाता था।
सिकंदर ने सफलतापूर्वक झेलम नदी पार कर ली और सेनासहित युद्ध के लिए आगे बढ़ने लगा। तब तक राजा पोरस को सिकंदर के नदी पार करने उस ओर से आगे बढ़ने की सूचना मिल चुकी थी। उन्होंने अपने बेटे को घुड़सवार सेना के साथ उस ओर भेजा। दोनों के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया लेकिन पोरस का बेटा और उसकी घुड़सवार सेना सिकंदर की सेना के बीच फंस गयी।
सिकंदर की सेना के द्वारा राजा पोरस के बेटे की हत्या कर दी गयी और सभी घुड़सवारों को भी मार दिया गया। उसमे से कुछ घुड़सवार बच निकले और जल्दी से जाकर राजा पोरस को इस बारे में सूचना दी। राजा पोरस अपने बेटे की मृत्यु से बिल्कुल भी विचलित नही हुए और स्वयं सेना का नेतृत्व किया।
इस युद्ध में कुछ इतिहासकारों ने सिकंदर को विजयी घोषित किया था जबकि कुछ ने राजा पुरु को लेकिन प्रबल मान्यता सिकंदर के विजयी होने की हैं। हालाँकि सभी इतिहासकारों का यह भी मानना हैं कि इस युद्ध ने सिकंदर की सेना के मनोबल को बुरी तरह तोड़ दिया था और उसमे विद्रोह हो गया था। इसके बाद सिकंदर भारत की भूमि पर आगे बढ़ने की बजाए वापस चला गया था। आइए जाने उस युद्ध में क्या हुआ था।
राजा पोरस के पुत्र की हत्या करने के पश्चात सिकंदर की सेना पोरस पर आक्रमण करने आगे बढ़ी। राजा पोरस ने भी सिकंदर की सेना पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया और स्वयं अपने हाथी को भी उस ओर आगे बढ़ा दिया। एक साथ असंख्य हाथियों के चलने से भूमि कांपने लगी थी और विशालकाय हाथियों को अपनी ओर बढ़ते देख सिकंदर की घुड़सवार सेना में आंतक छा गया था।
यह देखकर सिकंदर युद्ध के मुख्य केंद्र में कूद पड़ा। अपने राजा को ऐसे युद्ध करते देखकर सेना भी युद्ध में कूद पड़ी। हालाँकि दलदली जमीन होने के कारण कुछ ही देर में हाथियों से नियंत्रण खोने लगा। साथ ही हाथियों को संभालने वाले महावत भी सिकंदर के तीरंदाज सेना का शिकार होकर मारे जा रहे थे। इस कारण कुछ हाथी अनियंत्रित होकर और तीरों की बोछार से परेशान होकर पीछे की ओर मुड़ गए और अपनी ही सेना को कुचलने लगे।
हालाँकि इससे पहले पोरस के हाथियों ने सिकंदर की सेना को भारी क्षति पहुंचा दी थी और असंख्य सैनिकों को अपने पैरों तले कुचल डाला था लेकिन अब वही हाथी पोरस की सेना में आंतक मचा रहे थे। फिर भी राजा पोरस अपने हाथी पर बैठे सिकंदर की सेना से युद्ध किये जा रहे थे। इसके बाद इतिहासकारों की दो भिन्न-भिन्न मान्यताएं देखने को मिलती हैं:
प्रथम मान्यता के अनुसार, इस युद्ध में सिकंदर का घोड़ा बुकिफाइलस मारा गया था। यह घोड़ा शुरुआत से सिकंदर के साथ था जिसने हर युद्ध में उसका साथ दिया था लेकिन राजा पोरस से लड़ा गया युद्ध उनके लिए आज तक का सबसे भीषण युद्ध था। राजा पोरस के भाई या सेनापति ने सिकंदर के घोड़े को मार दिया जिस कारण सिकंदर जमीन पर गिर पड़ा।
जब सिकंदर ने ऊपर देखा तो उसके सामने राजा पोरस का हाथी खड़ा था और उस पर 7 फुट से भी अधिक लंबाई के राजा पोरस। स्वयं यूनानियों ने राजा पोरस को 7 फुट से लंबा बताया हैं। हालाँकि उस समय राजा पोरस एक निहत्थे राजा को मारा जाये या नही, यह सोचने लग गए थे जिसका लाभ उठाकर सिकंदर के सैनिक उसे तुरंत वहां से ले गए। यूनानियों ने पहली बार अपने राजा की यह स्थिति देखी थी। सिकंदर घायल हो चुका था व उसकी सेना ने राजा पोरस के सामने हार स्वीकार कर ली थी और वापस लौट गए थे।
दूसरी मान्यता के अनुसार, राजा पोरस बहुत बहादुरी से लड़े थे लेकिन विजयी नही हो पाए थे। इसके कई कारण थे जैसे कि:
अपने पुत्र के मारे जाने के बाद राजा पोरस ने स्वयं नेतृत्व करते हुए सिकंदर से युद्ध किया। हालाँकि सिकंदर ने राजा पोरस की सेना पर चारों ओर से भीषण आक्रमण कर दिया था। पोरस की अधिकांश सेना मारी जा चुकी थी या पराजित हो चुकी थी। हालाँकि पोरस अभी भी युद्ध किये जा रहे थे।
जब उन्होंने अपनी सेना को पराजित होते हुए देख लिया था तब भी युद्ध करना नही छोड़ा था। यह देखकर सिकंदर ने अपने कुछ दूतों को संदेश देकर पोरस के पास भेजा। राजा पोरस अपने आत्म-समर्पण की बात सुनकर और अधिक क्रोधित हो गए और भाले से दूतों पर ही हमला कर दिया। अचानक हुए इस हमले से दूत भाग खड़े हुए थे।
सिकंदर राजा पोरस से क्रोधित नही हुआ बल्कि उनकी वीरता से अत्यधिक प्रभावित हुआ था। उसने युद्धभूमि में लड़ रहे राजा पोरस के पास तब तक दूत भेजे जब तक वे मान नही गए। अन्तंतः प्यास से व्याकुल राजा पोरस ने युद्ध करना छोड़ दिया और अपने हाथी से उतर गए। उसके बाद अपने मित्र से पानी लिया और सिकंदर के दूतों के साथ उससे मिलने चल पड़े।
राजा पोरस को पता चल गया था कि अब उनकी पराजय हो चुकी हैं व सिकंदर के सामने आत्म-समर्पण करना ही पड़ेगा। जब वे सिकंदर से मिले तब सिकंदर ने उनसे पूछा कि आपके साथ कैसा व्यवहार किया जाये। इस पर राजा पोरस ने कहा था कि जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।
यह सुनकर सिकंदर उनसे और अधिक प्रभावित हुआ और पुनः उन्हें कैकेय का राजा घोषित किया। हालाँकि उस पर नियंत्रण अभी भी सिकंदर का ही था। अपने विजय की खुशी में उसने वहां निकैया नाम का एक नगर बसाया जो झेलम नदी के तट पर हुआ था। इसके साथ ही झेलम नदी के उस पार उसने अपने प्यारे घोड़े बुकिफाइलस के नाम पर बुसेफालस नामक नगर बसाया था।
मान्यताएं चाहे कुछ भी हो लेकिन इसके परिणाम पर सभी एकमत हैं। इस युद्ध में चाहे राजा पोरस विजयी रहे थे या यूनान का सिकंदर लेकिन युद्ध के पश्चात सिकंदर को भारत भूमि छोड़कर जाना पड़ा था। सिकंदर अभी भी आगे बढ़ना चाहता था लेकिन उसकी सेना ने विद्रोह कर दिया था।
सेना के विद्रोह को दबाने के लिए सिकंदर ने स्वयं आगे आकर जोशीला भाषण दिया था और युद्ध करने को कहा था लेकिन सैनिकों ने उसकी एक नहीं सुनी। उनके अनुसार, जब भारत के सीमावर्ती जनपदों ने सिकंदर की सेना में इतना आंतक मचा दिया तो भारत के मगध जैसे अन्य विशाल जनपद जिनके पास लाखों की संख्या में हाथी व घोड़ों की सेना हैं, उनके सामने क्या हाल होगा।
इस युद्ध के पश्चात सिकंदर की सेना ने भारत के 2-3 छोटे-छोटे जनपदों को और जीता था लेकिन लगातार हो रहे विरोध और भारत के बड़े जनपदों से युद्ध ना करने की रणनीति को ध्यान में रखकर सिकंदर हमेशा के लिए वापस अपने देश लौट गया। हालाँकि बीच रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गयी थी जिसका एक कारण पोरस से हुए युद्ध में उसको लगी चोट थी।
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