आज हम नामकरण संस्कार (Namkaran Sanskar) के बारे में बात करने वाले हैं। हिंदू धर्म में मनुष्य के अपनी माँ के गर्भ में आने से लेकर उसकी मृत्यु तक सोलह संस्कार निश्चित किये गए हैं जिसमें से नामकरण संस्कार को पांचवां संस्कार माना गया है। यह उसके जन्म के बाद होने वाला दूसरा संस्कार होता हैं क्योंकि पहले के तीन संस्कार भ्रूण अवस्था में उसके माता-पिता के द्वारा संपन्न करवा लिए जाते है।
नामकरण संस्कार (Naamkaran Sanskar) का एक व्यक्ति के जीवन में बहुत बड़ा स्थान होता है। वह इसलिए क्योंकि इस दिन उसका नाम रखा जाता हैं जिससे वह अपनी मृत्यु तथा मृत्यु के पश्चात भी पहचाना जाता है। इसलिए आज हम आपको नामकरण संस्कार पूजा विधि सहित संपूर्ण जानकारी देंगे।
जैसा की नाम से ही विदित हैं कि इस दिन शिशु का नामकरण किया जाता है जो उसकी पहचान बनता है। अब यह नाम केवल अपनी रुचि या इच्छा के अनुसार यूँ ही नही रख दिया जाता है। आजकल देखा जाए तो बच्चो का नाम अजीब तथा मनमाने ढंग से रखे जा रहे है जो कि सर्वथा अनुचित है। एक व्यक्ति की पहचान में उसके नाम का अत्यधिक महत्व होता है।
नामकरण संस्कार वह है जिस दिन एक शिशु का नाम रखा जाता हैं जिससे वह अपने जीवन में पहचाना जाता है। इस दौरान घर पर पंडित बुलाये जाते हैं और पूजा की तैयारियां की जाती है। यज्ञ का आयोजन होता है और पंडित जी शिशु के जन्म के समय के नक्षत्र, तिथि व समय को ध्यान में रखते हुए एक या एक से अधिक अक्षर सुझाते हैं।
अब माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों को उस अक्षर से शुरू होने वाले शब्द के नाम पर ही उस शिशु का नाम रखना होता है। अब यह अक्षर मात्र सहित भी हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी शिशु के Naamkaran Sanskar में उसे पंडित जी के द्वारा कु, क, के शब्द दिए गए तो आप उसका नाम कौस्तव या किरण इत्यादि नहीं रख सकते हैं। वह इसलिए क्योंकि यह कौ व कि से शुरू हो रहे हैं।
जब एक शिशु का जन्म होता है तब जन्म लेते ही जातकर्म संस्कार किया जाता है तथा उस समय के बाद से सूतक काल लग जाता है। यह सूतक काल वर्ण व्यवस्था के अनुसार विभिन्न अवधि का होता है। सामान्यतया शिशु का Namkaran Sanskar उसके जन्म के दसवें दिन किया जाता है। इसके लिए ग्यारहवां, सौवां दिन या एक वर्ष के पश्चात का समय शुभ माना गया है। ज्यादातर यह जन्म के दसवें दिन ही करवा दिया जाता है।
नामकरण संस्कार के दिन घर पर हवन करवाया जाता है तथा ब्राह्मणों को बुलाया जाता है। उस दिन शिशु के जन्म के समय के नक्षत्रों, ग्रहों की दिशा, तिथि, समय, इत्यादि कई महत्वपुर्ण बातों को ध्यान में रखकर उसकी कुंडली का निर्माण किया जाता हैं तथा उसके जन्म के अनुसार ही राशि निर्धारित की जाती है। इसी राशि तथा ज्योतिष विद्या को ध्यान में रखकर Naamkaran Sanskar करने की प्रथा है जो उसके विशिष्ट गुणों को ध्यान में रखकर किया जाता हैं।
इस दिन शिशु को सूर्य देव के दर्शन करवाए जाते हैं तथा देवताओं को प्रणाम करवाया जाता है। शिशु के द्वारा सभी ब्राह्मणों तथा घरवालों का भी अभिवादन किया जाता है। शिशु का नाम रखने के पश्चात उसके दादा-दादी तथा माता-पिता उसके दाहिने कान के पास उसके नाम का उच्चारण करते हैं तथा अपना आशीर्वाद देते है।
नाम रखने में एक भाषा का अत्यधिक योगदान होता है। एक भाषा की पहचान उसके अर्थ या बोलने की सुगमता के आधार पर नही अपितु ध्वनि सीमा के आधार पर होती है। अंग्रेजी भाषा की ध्वनि सीमा कम होती है जबकि भारतीय भाषाओं का संस्कृत से निकले होने के कारण उनकी ध्वनि सीमा अधिक होती है। संस्कृत भाषा की ध्वनि सीमा को अद्वितीय माना गया हैं जिसका अनुभव आप स्वयं संस्कृत के शब्दों तथा मंत्रों का उच्चारण करके कर सकते है।
हमारे महान ऋषियों द्वारा जब धर्म की व्याख्या की गयी तब उन्हें मानव को एक विशिष्ट तथा अन्य से एक अलग पहचान देने की आवश्यकता महसूस हुई। तब से उन्होंने नामकरण को सोलह संस्कारों में सम्मिलित किया तथा मनुष्य के जीवन में इसका महत्वपूर्ण योगदान बताया। हम पाते हैं कि प्रत्येक शब्द के द्वारा हमारे मस्तिष्क में एक आकृति बनती हैं उसी प्रकार एक आकृति के साथ एक ध्वनि भी जुड़ी हुई हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर एक शिशु का Namkaran Sanskar किया जाता है।
चूँकि एक व्यक्ति अपने कर्मों के द्वारा ही पहचाना जाता हैं लेकिन उसको पहचानने के लिए लोग उसके नाम को ही याद रखते है। जैसे कि सदियों से मंथरा, रावण, कंस, कैकेयी, महिषासुर इत्यादि जैसे नाम किसी के नही रखे जाते क्योंकि इनके कर्म इनके नाम से सदा के लिए जुड़ गए। एक मनुष्य के जीवन में उसके नाम के अत्यधिक महत्व को देखते हुए इस संस्कार की मान्यता बढ़ जाती है
चूँकि बच्चे के जन्म के पश्चात यह घर पर पहला उत्सव होता हैं तथा घर में यज्ञ आयोजित किया जाता है। ऐसे में घर पर अतिथियों तथा परिचित लोगों का भी आना होता है। ऐसे समय में आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए जिससे बाद में कोई समस्या न हो तथा शिशु का नामकरण भी सही प्रकार से हो जाये। आइये जानते हैं:
इस तरह से आज आपने नामकरण संस्कार (Namkaran Sanskar) के बारे में समूची जानकारी प्राप्त कर ली है। एक बात का विशेष ध्यान रखे कि बच्चों का नाम रखते समय अच्छे से विचार-विमर्श अवश्य कर ले क्योंकि यहीं जीवनभर उसकी पहचान बनने वाली है।
नामकरण संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: नामकरण संस्कार कैसे किया जाता है?
उत्तर: नामकरण संस्कार में घर पर यज्ञ का आयोजन होता है। उस दौरान पंडित जी पूजा करते हैं और शिशु के जन्म के समय की तिथि, समय व नक्षत्रों को ध्यान में रखकर उसके नाम के शुरूआती अक्षर की जानकारी देते हैं।
प्रश्न: नवजात शिशु का नाम कैसे निकाले?
उत्तर: नवजात शिशु का नाम निकालने के लिए नामकरण संस्कार किया जाता है। इसके तहत पंडित जी उस शिशु के नाम के प्रथम अक्षर के बारे में बताते हैं। अब आपको उसी अक्षर से शुरू होने वाले नामों को चुनना होता है।
प्रश्न: हिंदू में नामकरण संस्कार कैसे करें?
उत्तर: नामकरण संस्कार हिंदू धर्म में ही किया जाता है। अब नामकरण संस्कार की संपूर्ण विधि को हमने इस लेख में विस्तार से बताया है। साथ ही उस समय रखी जाने वाली सावधानियों और इसके महत्व को भी बताया गया है।
प्रश्न: बच्चे का नामकरण कैसे करें?
उत्तर: यदि आप अपने बच्चे का नामकरण करना चाहते हैं तो अपने जानकर या पास के मंदिर के पंडित से संपर्क करें। उसके बाद एक निश्चित तिथि पर उसका नामकरण संस्कार करें।
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