आज हम आपको परशुराम भीष्म पितामह का युद्ध (Parshuram Bhishma Pitamah Ka Yudh) के बारे में बताने वाले हैं जो बहुत ही भीषण था। हम सभी यह तो जानते हैं कि भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार थे जिन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी से हैहय वंश के क्षत्रियों का नाश किया था।
महाभारत के समय भी परशुराम जी का महत्वपूर्ण योगदान था तथा उन्होंने तीन महान योद्धाओं भीष्म, द्रोणाचार्य तथा कर्ण को शिक्षा प्रदान की थी। हालाँकि एक दिन उनका अपने ही शिष्य भीष्म पितामह से भी भयंकर युद्ध हुआ जिसे परशुराम भीष्म युद्ध (Parshuram Bhishm Yuddh) के नाम से जाना जाता है। आज हम आपको भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच हुए युद्ध की कथा का वर्णन करेंगे।
भीष्म राजा शांतनु तथा माँ गंगा के पुत्र थे जिन्होंने आजीवन विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली थी। इसलिये उनके पिता की मृत्यु के पश्चात उनकी सौतेली माँ सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य राजा बने। उनकी माँ सत्यवती ने विचित्रवीर्य के लिए योग्य कन्या को लाने को कहा।
यह आदेश पाकर भीष्म काशी नगरी पहुंचे जहाँ अंबा, अंबिका और अंबालिका के स्वयंवर की तैयारी चल रही थी। वे तीनों ही काशी की राजकुमारी तथा बहनें थी। भीष्म ने वहां आये सभी राजाओं को परास्त कर दिया तथा तीनों राजकुमारियों का अपहरण करके हस्तिनापुर ले आये। वहां लाकर उन्होंने तीनों राजकुमारियों को माँ सत्यवती के सामने प्रस्तुत कर दिया।
तब राजकुमारी अंबा ने भीष्म के सामने याचना की कि वह सौबल देश के राजा शाल्व से प्रेम करती है तथा वे भी उससे प्रेम करते है। वे उस स्वयंवर में भी आये थे किंतु भीष्म ने सभी राजाओं समेत शाल्व को भी पराजित कर दिया था। यह सुनकर भीष्म ने अंबा को राजा शाल्व के पास भेज दिया।
अंबा राजा शाल्व के पास गयी तथा स्वयं को पत्नी रूप में स्वीकार करने को कहा। चूँकि भीष्म भरी सभा से राजा शाल्व को परास्त कर राजकुमारी अंबा को हरकर ले गए थे, इसलिये उन्होंने अंबा को पत्नी रूप में स्वीकार करने से मना कर दिया।
निराश होकर अंबा पुनः हस्तिनापुर लौट आई और राजा विचित्रवीर्य के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। तब राजा विचित्रवीर्य ने भी उससे विवाह करने से मना कर दिया। हताश अंबा ने भीष्म से विवाह करने का प्रस्ताव रखा लेकिन भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा याद दिलाते हुए उससे विवाह करने से मना कर दिया। यह सुनकर अंबा को अत्यधिक क्रोध आ गया तथा भीष्म से बदला लेने के लिए वह वहां से से चली गयी।
क्रोधित अंबा भगवान परशुराम के पास गयी तथा उन्हें सारी घटना बताई। भगवान परशुराम अंबा की यह व्यथा सुनकर अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्होंने भीष्म को अंबा से विवाह करने के लिए कहा। भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण अंबा से विवाह करने को मना कर दिया। इस पर परशुराम ने भीष्म को स्वयं से युद्ध (Parshuram Bhishm Yuddh) करने को कहा।
दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ जो कई दिनों तक चला। चूँकि परशुराम भगवान विष्णु का रूप थे तथा भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, इसलिये इस युद्ध में कोई भी पराजित नही हो सका। अंत में देवताओं के द्वारा दोनों के बीच युद्ध को शांत करवाया गया। तब परशुराम ने अंबा से कहा कि वे अपनी संपूर्ण शक्ति लगा चुके हैं लेकिन भीष्म को पराजित करने में वे असमर्थ हैं। इसलिये अब वे उसकी सहायता नहीं कर सकते।
निराश अंबा ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की तथा उनसे वरदान माँगा कि भविष्य में वह भीष्म की मृत्यु का कारण बने। भगवान शिव के वरदान से अंबा अगले जन्म में शिखंडी के रूप में जन्मी तथा महाभारत के युद्ध में भीष्म की मृत्यु का कारण बनी। इस तरह से आज आपने परशुराम भीष्म पितामह का युद्ध (Parshuram Bhishma Pitamah Ka Yudh) किन परिस्थितियों में लड़ा गया था और उसका क्या परिणाम हुआ, उसके बारे में जानकारी ले ली है।
परशुराम भीष्म युद्ध से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: भीष्म और परशुराम के बीच युद्ध क्यों हुआ?
उत्तर: भीष्म और परशुराम के बीच युद्ध अंबा के कारण हुआ था। भीष्म ने अपने भाई के कारण अंबा का उसकी आज्ञा के विरुद्ध अपहरण किया था जिस कारण उसका जीवन बर्बाद हो गया था। इसी कारण दोनों के बीच युद्ध हुआ।
प्रश्न: परशुराम ने भीष्म को शिक्षा क्यों दी?
उत्तर: भीष्म पितामह कोई सामान्य प्राणी नहीं बल्कि गंगापुत्र थे। इसी कारण भगवान परशुराम ने उसकी शिक्षा का भार अपने सिर पर उठाया था।
प्रश्न: भीष्म और परशुराम को किसने रोका?
उत्तर: जब भीष्म और परशुराम को युद्ध करते हुए कई दिन बीत गए और इसका कोई परिणाम नहीं निकला तो देवताओं के द्वारा उनके युद्ध को रुकवाया गया था।
प्रश्न: भीष्म और परशुराम का युद्ध कितने दिन चला?
उत्तर: भीष्म और परशुराम का युद्ध कई दिनों तक चला था। जब इसका कोई परिणाम नहीं निकला तो देवताओं के द्वारा इसे रुकवाया गया था।
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