चित्रगुप्त भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं जो उनकी काया से बने थे। इसलिए कायस्थ समुदाय को चित्रगुप्त भगवान के वंशज ही माना जाता है। चित्रगुप्त देवता की उत्पत्ति मृत्यु के देवता यमराज की सहायता करने के उद्देश्य से की गयी थी जो मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोगा रखते हैं। ऐसे में आज के इस लेख में हम आपके साथ चित्रगुप्त जी की आरती का पाठ (Chitragupta Aarti) करने जा रहे हैं।
यहाँ आपको ना केवल चित्रगुप्त आरती (Chitragupta Ji Ki Aarti) पढ़ने को मिलेगी बल्कि आप उसका भावार्थ भी जान पाएंगे। कहने का अर्थ यह हुआ कि हम आपके साथ चित्रगुप्त आरती इन हिंदी में भी सांझा करेंगे। अंत में आपको चित्रगुप्त आरती को पढ़ने से मिलने वाले लाभ व उसका महत्व भी जानने को मिलेगा। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं श्री चित्रगुप्त जी की आरती (Chitragupt Ji Ki Aarti)।
ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामीजय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी।
भक्तन के प्रतिपालक, त्रिभुवन यशछायी॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै।
मातु इरावती, दक्षिणा, वामअंग साजै॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभु अंतर्यामी।
सृष्टि सम्हारन, जन दुःखहारन, प्रकटभये स्वामी॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मनमोहै॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
विश्व न्याय का कार्य सम्भाला, ब्रह्मा हर्षाये।
तैंतीस कोटि देवी देवता, तुम्हारे चरणन में धाये॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
नृप सुदास अरू भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा।
वेग विलम्ब न कीन्हौं, इच्छित फल दीन्हा॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, प्रेम सहित गावैं।
चौरासी से निश्चित छूटैं, इच्छित फल पावैं॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते।
हम हैं शरण तिहारी, आस न दूजी करते॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामीजय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे॥
॥ॐ जय चित्रगुप्त हरे॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामीजय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे॥
चित्रगुप्त भगवान की जय हो। हम सभी के स्वामी चित्रगुप्त देवता की जय हो। चित्रगुप्त भगवान ही हमारे मन की सभी कामनाओं को पूरा करते हैं।
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी।
भक्तन के प्रतिपालक, त्रिभुवन यशछायी॥
वे हमारे सभी तरह के विघ्नों का नाश कर मंगल कार्य करते हैं। वे ही हमें सुख प्रदान करते हैं। उनके द्वारा अपने भक्तों की रक्षा की जाती है और उनका यश तीनों लोकों में फैला हुआ है।
रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै।
मातु इरावती, दक्षिणा, वामअंग साजै॥
चित्रगुप्त भगवान की चार भुजाएं हैं और श्याम रंग है। वे पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं। उनकी पत्नी इरावती व सूर्यदक्षिणा वामअंग में विराजती हैं।
कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभु अंतर्यामी।
सृष्टि सम्हारन, जन दुःखहारन, प्रकटभये स्वामी॥
चित्रगुप्त भगवान हमारे कष्टों का निवारण कर देते हैं, शत्रुओं का संहार कर देते हैं और इस विश्व में हर जगह व्याप्त हैं। इस सृष्टि का पालन करने तथा प्रजा के दुखों को दूर करने के लिए ही उनका प्राकट्य हुआ है।
कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मनमोहै॥
उन्होंने अपने हाथ में कलम, दवात, शंख व पत्रिका ले रखी है। साथ ही गले में वैजयंती वनमाला पहन रखी है जिसे देखकर तीनों लोकों के प्राणियों का मन मोहित हो जाता है।
विश्व न्याय का कार्य सम्भाला, ब्रह्मा हर्षाये।
तैंतीस कोटि देवी देवता, तुम्हारे चरणन में धाये॥
उन्होंने ही विश्व में न्याय करने का कार्य संभाल रखा है जो ब्रह्मा जी के मन को आनंदित कर रहा है। तैंतीस प्रकार के देवी-देवता चित्रगुप्त जी के चरणों का ध्यान कर उन्हें प्रणाम करते हैं।
नृप सुदास अरू भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा।
वेग विलम्ब न कीन्हौं, इच्छित फल दीन्हा॥
राजा सुदास व भीष्म पितामह भी उन्हें याद करते हैं। हे चित्रगुप्त भगवान!! अब आप बिना देरी किये हमें इच्छानुसार फल प्रदान कीजिये।
दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता॥
पत्नी, पुत्र इत्यादि सभी अपने स्वास्थ्य के प्रति उतरदायी हैं। मैं तो अकेला हूँ और अब मैं किसकी शरण में जाऊं। आप ही मेरे स्वामी हैं।
बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
तुम ही मेरे मित्र, पिता व स्वामी हो। मैं आपकी ही शरण आया हूँ। आपके बिना मेरा कोई दूसरा सहारा नहीं है और मुझे आपसे ही सभी आशाएं हैं।
जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, प्रेम सहित गावैं।
चौरासी से निश्चित छूटैं, इच्छित फल पावैं॥
जो भी व्यक्ति सच्चे मन के साथ चित्रगुप्त जी की आरती प्रेम सहित गाता है, उसे जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष प्राप्त होता है।
न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते।
हम हैं शरण तिहारी, आस न दूजी करते॥
आप ही बैकुण्ठ धाम में बैठकर हमारे कर्मों के अनुसार पाप-पुण्य का निर्धारण करते हो। इसी कारण हम आपकी शरण में आये हैं और अब आपके सिवाए हमारा कोई दूसरा आसरा नहीं है।
हिन्दू धर्म में कर्मों के महत्व को अच्छे से बताया गया है। हम इस संसार में चाहे अच्छे कर्म करें या बुरे कर्म, उन सभी का परिणाम हमें भुगतना ही पड़ता है। हम जो भी करते हैं, ईश्वर सब देखते हैं और एक दिन हमें अपने कर्मों का सुखद या दुखद परिणाम भुगतना ही होता है। तो हमारे इन सभी कर्मों का लेखा-जोगा रखने का उत्तरदायित्व भगवान चित्रगुप्त जी के पास ही होता है।
हम इस संसार में जो भी कर्म कर रहे हैं या करने वाले हैं, उन सभी को चित्रगुप्त जी लिखते रहते हैं। फिर जब हमारी मृत्यु हो जाती है तो चित्रगुप्त जी ही यमराज के सामने हमारे सभी कर्मों को विस्तारपूर्वक पढ़कर सुनाते हैं। हमारे कर्मों के अनुसार ही यमराज जी यह निर्णय लेते हैं कि हमें स्वर्ग मिलेगा या नरक। इस तरह चित्रगुप्त भगवान के बारे में संपूर्ण विवरण देने के उद्देश्य से ही चित्रगुप्त आरती की रचना की गयी है जो उनके महत्व को दर्शाती है।
अब यदि आप सच्चे मन के साथ चित्रगुप्त भगवान का ध्यान कर उनकी आरती का पाठ करते हैं तो इससे चित्रगुप्त भगवान की कृपा आप पर बरसती है। चूँकि वे हर समय हम पर नज़र बनाये हुए हैं और हमारे सभी कर्मों को लिख रहे हैं तो वे अपनी कृपा से आपको बुरे कर्म करने से रोकते हैं या उसके बारे में सचेत करते हैं।
इतना ही नहीं, जब हमारी मृत्यु हो जाती है और हमें यमराज जी के दरबार में पेश किया जाता है तो उस समय चित्रगुप्त जी हमारे कर्मों को पढ़ते समय यमराज जी से हम पर कुछ दया करने का आग्रह भी करते हैं। अब हम चित्रगुप्त जी की जितनी भक्ति करेंगे, उतना ही वे हमसे अधिक प्रसन्न होंगे और यमराज जी के प्रकोप से हमें बचायेंगे। यही चित्रगुप्त जी की आरती के लाभ होते हैं।
चित्रगुप्त आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: कायस्थ किस भगवान की पूजा करते हैं?
उत्तर: कायस्थ समुदाय का उदय भगवान चित्रगुप्त के कारण हुआ था और वे ही उनके पूर्वज माने जाते हैं। ऐसे में कायस्थ के प्रमुख देवता भगवान चित्रगुप्त ही हैं।
प्रश्न: चित्रगुप्त की पत्नी कौन है?
उत्तर: चित्रगुप्त भगवान की दो पत्नियाँ थी जिनके नाम नंदिनी व शोभावती है। इसमें से नंदिनी को सूर्यदक्षिणा तथा शोभावती को ऐरावती के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न: कायस्थ ब्राह्मण कौन है?
उत्तर: चित्रगुप्त भगवान की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा की काया अर्थात शरीर से हुई थी जिस कारण उन्हें कायस्थ नाम दिया गया। कायस्थ ब्राह्मणों को चित्रगुप्त देवता के ही वंशज माना जाता है।
प्रश्न: क्या कायस्थ ब्राह्मण होते हैं?
उत्तर: कायस्थ समुदाय के लोग चित्रगुप्त भगवान के वंशज हैं। चित्रगुप्त भगवान ब्रह्मा से उत्पन्न हुए थे जिस कारण उनके जन्म का गोत्र ब्राह्मण था किन्तु भगवान ब्रह्मा ने उन्हें क्षत्रिय धर्म का पालन करने को कहा था।
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