श्रीहरि के आदेश पर जब देवता व दानव साथ मिलकर समुंद्र मंथन का कार्य कर रहे थे तब उसमे से चौदह रत्नों की प्रप्ति हुई थी। उस समय समुंद्र में से भगवान धन्वंतरि भी निकले थे जो अपने साथ अमृत कलश के साथ ही आयुर्वेद का ज्ञान लेकर प्रकट हुए थे। ऐसे में भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। इसलिए आज के इस लेख में आपको धन्वंतरि आरती (Dhanvantari Aarti) पढ़ने को मिलेगी।
आयुर्वेद में मानवीय शरीर की सभी जटिल सरंचनाओं का गहन अध्ययन कर उसमें हो सकने वाले रोगों और उनके उपचारों का विस्तृत उल्लेख किया गया है जो किसी भी मनुष्य को स्वस्थ बनाने की क्षमता रखता है। इसी को ध्यान में रखते हुए और भगवान धन्वंतरि के महत्व को बताने के उद्देश्य से हम आपके साथ धन्वंतरि आरती इन हिंदी (Dhanvantari Aarti In Hindi) में भी सांझा करेंगे ताकि आप उसका भावार्थ समझ सकें।अंत में आपको धन्वंतरी आरती पढ़ने के लाभ व महत्व (Dhanvantari Ji Ki Aarti) भी जानने को मिलेंगे।
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा॥
जय धन्वंतरि देवा।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए॥
जय धन्वंतरि देवा।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया॥
जय धन्वंतरि देवा।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी॥
जय धन्वंतरि देवा।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे॥
जय धन्वंतरि देवा।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा॥
जय धन्वंतरि देवा।
धन्वंतरि जी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे॥
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा॥
जय धन्वंतरि देवा।
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा॥
धन्वन्तरि देवता की जय हो, जय हो। इस सृष्टि में यदि कोई व्यक्ति किसी रोग से पीड़ित है तो उसका रोग ठीक कर उसे सुख देने का कार्य धन्वन्तरी देवता जी करते हैं।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए॥
देवता व दानवों के द्वारा किये गए समुंद्र मंथन के समय निकले चौदह रत्नों से एक रत्न अमृत कलश को लेकर आप निकले थे। आपने आयुर्वेद का ज्ञान देकर देवताओं व असुरों के संकट को दूर कर दिया था।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया॥
आपने ही आयुर्वेद की रचना की और उसे इस जगत में फैलाने का कार्य किया। आपने मनुष्य जाति को सदैव स्वस्थ रहने के कारण व विधि बतायी।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी॥
आपकी चार भुजाएं बहुत ही सुंदर लग रही हैं और आपने शंख व अमृत लिया हुआ है। आपने हम सभी को आयुर्वेद व वनस्पतियों का ज्ञान देकर बहुत उपकार किया है जिस कारण आपकी शोभा बढ़ गयी है।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे॥
जो कोई भी धन्वंतरी भगवान का ध्यान करता है और उनकी आराधना करता है, उसे किसी भी तरह का रोग नहीं सताता है। यदि उसे गंभीर रोग है जिसका निवारण सरलता से नहीं किया जा सकता है तो वह भी ठीक हो जाता है।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा॥
हे धन्वंतरि देवता!! आपका यह दास आपके सामने हाथ जोड़कर खड़ा आपसे प्रार्थना कर रहा है। वैद्य समाज आपके चरणों की वंदना करता है क्योंकि उन्हें शिक्षित करने का कार्य आपने ही किया है।
धन्वंतरि जी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे॥
जो भक्तगण धन्वंतरि जी की आरती का पाठ करते हैं और सच्चे मन से धन्वंतरि भगवान का ध्यान करते हैं, उन्हें किसी भी तरह का रोग या शोक नहीं सताता है तथा साथ ही उनके घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के जनक हैं और उन्हें भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना जाता है। उन्हीं के कारण ही इस सृष्टि को आयुर्वेद का ज्ञान हो पाया जिस कारण हम किसी भी रोग का निवारण कर पाने में सक्षम हुए। भारतीय चिकित्सा पद्धति इतनी अधिक उन्नत थी कि हम मानव के शरीर को पूर्ण रूप से स्वस्थ बनाने की क्षमता रखते थे किन्तु 800 वर्षों की दासता और उसमे भी 600 वर्षों के बर्बर इस्लामिक अत्याचारों ने सनातन साहित्य को नष्ट करने का काम किया।
फिर भी धन्वंतरि आरती में भगवान धन्वंतरि के गुणों, महत्व, शिक्षा, उद्देश्य इत्यादि के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है। ऐसे में यदि हम नित्य रूप से धन्वंतरी आरती का पाठ करते हैं तो हमें उसके बहुत लाभ देखने को मिलते हैं। भगवान धन्वंतरि के बारे में संक्षिप्त रूप से संपूर्ण जानकारी देने तथा उनकी आराधना करने के लिए धन्वन्तरि आरती की रचना की गयी। यही धन्वन्तरी आरती का महत्व होता है।
आयुर्वेद का महत्व आप सभी को शायद ही बताने की आवश्यकता हो क्योंकि आप आयुर्वेद की शक्ति व क्षमता को अच्छे से जानते होंगे। जिस रोग या व्याधि का उपचार अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति में भी संभव नहीं होता है, वह आयुर्वेद की सहायता से सरलता से किया जा सकता है। इतना ही नहीं, आयुर्वेद की सहायता से व्यक्ति के शरीर पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है और वह रोग जड़सहित दूर हो जाता है। वह इसलिए क्योंकि आयुर्वेद में मनुष्य के शरीर की सभी जटिल प्रणालियों, सरंचनाओं और उसकी कार्यप्रणाली पर गहन अध्ययन कर उपचार लिखे गए हैं।
ऐसे में यदि आप धन्वंतरि जी की आरती का प्रतिदिन पाठ करते हैं और भगवान धन्वंतरि का सच्चे मन से ध्यान करते हैं तो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है तथा हमारे अंदर रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है। इसी के साथ ही भगवान धन्वंतरि की कृपा दृष्टि भी हमारे ऊपर रहती है और वे हमें स्वस्थ शरीर प्रदान करते हैं। यही धन्वंतरि आरती को पढ़ने के मुख्य लाभ होते हैं।
धन्वंतरि आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: धन्वंतरि जी की पूजा कैसे करें?
उत्तर: यदि आप भगवान धन्वंतरि जी की पूजा करना चाहते हैं तो सुबह के समय नहा-धोकर धन्वंतरि जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर सच्चे मन से धन्वंतरि चालीसा व आरती का पाठ करना चाहिए।
प्रश्न: धन्वंतरि का अर्थ क्या है?
उत्तर: धन्वंतरि का अर्थ देवताओं के वैद्य या चिकित्सक से है। मुख्य रूप से देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार को माना जाता है लेकिन उन्हें आयुर्वेद का ज्ञान श्रीहरि के अंशावतार भगवान धन्वन्तरि जी ने ही प्रदान किया था।
प्रश्न: धन्वंतरि की पूजा क्यों की जाती है?
उत्तर: धन्वंतरि जी भगवान विष्णु के अंशावतार तथा आयुर्वेद के जनक हैं। ऐसे में शरीर को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से भगवान धन्वंतरी की पूजा करने का विधान है।
प्रश्न: क्या हम घर पर धन्वंतरि की पूजा कर सकते हैं?
उत्तर: इसमें पूछने वाली क्या बात है? अवश्य ही आप अपने घर पर भगवान धन्वंतरि की पूजा कर सकते हैं।
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