[web_stories title=”false” excerpt=”false” author=”false” date=”false” archive_link=”true” archive_link_label=”सूर्य ग्रहण की संपूर्ण जानकारी” circle_size=”150″ sharp_corners=”false” image_alignment=”left” number_of_columns=”1″ number_of_stories=”5″ order=”DESC” orderby=”post_title” view=”circles” /]
सूर्यग्रहण (Suryagrahan) एक खगोलीय घटना है। इस दौरान सूर्य चंद्रमा के पीछे कुछ समय के लिए छिप जाता है तथा ऐसा प्रतीत होता है कि दिन के समय में रात हो गई है। सूर्य ही पृथ्वी का पालनहार है और उसके बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। हमें ऊर्जा, प्रकाश, ऊष्मा, भोजन, जल इत्यादि सब सूर्य देव से ही मिलता है।
ऐसे में जब कुछ समय के लिए ही चंद्रमा के कारण सूर्य ग्रहण (Surya Grahan) की स्थिति उत्पन्न होती है तो यह पृथ्वी के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं होती है। उस समय हमें घरों से बाहर निकलने तथा सूर्य को नग्न आँखों से देखने को मना किया जाता है। सूर्य ग्रहण वर्ष में एक या दो बार ही दिखाई देता है। आइए सूर्यग्रहण के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
पृथ्वी सूर्य के आकार के सामने कुछ नहीं है। एक सूर्य में कई हज़ार पृथ्वी समा सकती है। वहीं कई सैकड़ों चंद्रमा एक पृथ्वी में समा सकते हैं। इस हिसाब से देखें तो सूर्य के सामने चंद्रमा तो कुछ ही नहीं है। फिर भी वह इतने विशाल सूर्य को ढक लेता है और पृथ्वी पर सूर्यग्रहण लग जाता है। ऐसा केवल और केवल दूरी के कारण होता है।
इसे आप इस तरीके से समझिए कि आपके सामने एक विशाल बिल्डिंग है लेकिन वह बहुत दूर है। आपके हाथ में एक कंचा है और आप उसे अपनी आँखों से कुछ दूर एकदम सीधी रेखा में रखते हैं। अब वह कांच की छोटी सी गोली भी उस विशाल बिल्डिंग को छुपा देती है। तो कुछ यही चंद्रमा सूर्य के साथ करता है। इसे ही सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
सूर्यग्रहण के बारे में ऐसे ही कई रोचक तथ्य हैं जो आपको जानने चाहिए। आज के इस लेख के माध्यम से हम Suryagrahan के एक नहीं बल्कि कुल 10 तथ्य आपके सामने रखने जा रहे हैं। आइए एक-एक करके उनके बारे में जान लेते हैं।
पृथ्वी निरंतर सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। इसी के साथ वह अपनी धुरी पर भी घूमती रहती है। पृथ्वी गोलाकार आकार में होती है। पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के कारण ही दिन-रात होते हैं। हालाँकि पूरी पृथ्वी पर एक ही समय में दिन या रात नहीं हो सकते हैं। पृथ्वी के आधे हिस्से में दिन होता है तो आधे हिस्से में रात। वह इसलिए क्योंकि पृथ्वी का जो हिस्सा सूर्य के सामने होता है, वहाँ दिन होता है और जो पीछे होता है, वहाँ रात होती है।
अब Surya Grahan में होता यह है कि दिन में जब पृथ्वी का जो हिस्सा सूर्य के सामने होता है, उसके बीच में चंद्रमा आ जाता है। अब आपकी आँखों के सामने कोई चीज़ आ जाती है तो आपको सामने वाली चीज़ दिखाई नहीं देती है। बस यही सूर्य के साथ होता है। पृथ्वी की आँखों के सामने चंद्रमा के आ जाने के कारण सूर्य कुछ समय के लिए दिखाई नहीं देता है और उसे ही सूर्यग्रहण कहते हैं।
यह तो हम सभी जानते हैं कि सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनों ही गतिमान हैं।सूर्य मंदाकिनी आकाशगंगा के चक्कर लगा रहा है, पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगा रही है तो वहीं चंद्रमा पृथ्वी के। अब चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए कुछ इस तरह की स्थिति बना लेता है कि वह सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है।
इससे सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर कुछ समय के लिए पहुँच नहीं पाता है और Suryagrahan की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सूर्य ग्रहण होने के लिए चंद्रमा का पृथ्वी तथा सूर्य के बीच में होना ही काफी नहीं है बल्कि उसको दोनों के बीच एक सीधी रेखा में होना चाहिए। तीनों के एक दम सीधी रेखा में होने पर ही सूर्य ग्रहण लगता है।
क्या आप जानते हैं कि सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा पृथ्वी से कितना दूर है यह भी निर्भर करता है। चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी के आधार पर ही हम सूर्य ग्रहण के विभिन्न प्रकार देख पाते हैं जैसे कि पूर्ण सूर्य ग्रहण, अर्ध सूर्य ग्रहण या वलयाकार सूर्य ग्रहण। कहने का अर्थ यह हुआ कि चंद्रमा पृथ्वी के एक ही स्थिति में चक्कर नहीं लगाता है। कभी वह पृथ्वी के ज्यादा पास में होता है तो कभी उससे दूर।
ऐसे में जब वह ज्यादा पास में होता है तो वह सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है। इस कारण पूर्ण सूर्य ग्रहण की स्थिति बनती है। जब वह थोड़ा दूर होता है तो वलयाकार सूर्य ग्रहण बनता है। इसमें सूर्य बीच में से छुप जाता है और उसकी किनारे प्रकाशमान होती है। वहीं यदि चंद्रमा और ज्यादा दूर होता है तो अर्ध सूर्य ग्रहण बनता है जिसमें सूर्य का कुछ हिस्सा छुप जाता है।
कभी-कभी चंद्रमा पृथ्वी से एक ऐसी दूरी पर होता है जिस कारण पृथ्वी के दो अलग-अलग क्षेत्रों में दो सूर्य ग्रहण एक साथ देखने को मिलते हैं। इसे हम संकर सूर्यग्रहण के नाम से जानते हैं। इस सूर्य ग्रहण में पृथ्वी के एक क्षेत्र में पूर्ण सूर्य ग्रहण लगता है तो दूसरे क्षेत्र में वलयाकार सूर्य ग्रहण।
कहने का तात्पर्य यह हुआ कि पृथ्वी के कुछ हिस्से में सूर्य पूरी तरह ढक जाता है तो वहीं दूसरे हिस्से में सूर्य का कुछ अंश ही ढका हुआ होता है। इसे हाइब्रिड सूर्यग्रहण के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह का Surya Grahan बहुत कम ही देखने को मिलता है।
जिस दिन सूर्य ग्रहण होता है उस दिन अमावस्या की भी रात होती है अर्थात जो चंद्रमा दिन के समय सूर्य को छिपा देता है, वह स्वयं रात्रि में नहीं निकलता। इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए आपको अमावस्या कैसे होती है, इसे समझना होगा। तो पहले तो आप यह जान लें कि चंद्रमा का खुद का कोई प्रकाश नहीं होता है और वह हमें सूर्य की रोशनी के कारण ही दिखाई देता है।
अब चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर 29.5 दिन में एक चक्कर लगा लेता है। इसमें जैसे-जैसे वह सूर्य के सामने आता जाता है, वैसे-वैसे उसका आकार घटता जाता है। वह इसलिए क्योंकि उसका जो हिस्सा सूर्य के सामने होता है, वह सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने नहीं देता है और इस कारण चंद्रमा का वह हिस्सा दिखाई नहीं देता है।
अब जब वह पूरी तरह से सामने आ जाता है तो वह सूर्य के प्रकाश को ले तो लेता है लेकिन पृथ्वी तक नहीं पहुँचने देता जिस कारण अमावस्या होती है। बस इसी स्थिति में यदि तीनों एक सीधी रेखा में आ जाते हैं तो उस दिन अमावस्या के साथ-साथ Suryagrahan भी होता है।
कभी-कभी आप सोचते होंगे कि चंद्रमा तो पृथ्वी से भी बहुत छोटा है तो वह अपने से आकार में हज़ार गुना बड़े सूर्य को कैसे ढक लेता है तो इसका उत्तर है दूरी। सूर्य पृथ्वी से चंद्रमा की अपेक्षा बहुत दूर है इसलिए वह सूर्य को ढक पाने में सक्षम हो पाता है।
पृथ्वी के पास होने के पश्चात भी चंद्रमा में इतनी शक्ति नहीं कि वह संपूर्ण पृथ्वी पर एक साथ सूर्य ग्रहण लगा दे। इसलिए जब भी सूर्य ग्रहण लगता है वह पृथ्वी के कुछ क्षेत्र तक ही सिमट कर रह जाता है।
Surya Grahan के समय में सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के कुछ हिस्से तक नहीं पहुँचता है या उसमें गतिरोध उत्पन्न होता है। इससे सूर्य ग्रहण के दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं। वातावरण में हानिकारक किरणों और तत्वों का समावेश हो जाता है और नकारात्मकता हावी हो जाती है। यह हम सभी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
सूर्य ग्रहण के समय सभी मंदिरों के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि मंदिरों को इस प्रकार बनाया जाता है जिससे उनमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है जबकि सूर्य ग्रहण के समय वातावरण में अशुद्ध किरणें बहुतायत में हो जाती है। इसलिए भगवान की मूर्तियों को छूने या पूजा स्थल में जाने की मनाही होती है। सूर्यग्रहण के समाप्त होने के बाद मंदिरों का शुद्धिकरण किया जाता है और मूर्तियों को गंगाजल से स्नान करवाया जाता है।
Suryagrahan को खुली आँखों से देखने को इसलिए मना किया जाता है क्योंकि जब चंद्रमा सूर्य के आगे आता है तब वह उसके प्रकाश को एक दम से ढक लेता है। यदि हम खुली आखों से सूर्य ग्रहण को देखेंगे तो अचानक से चंद्रमा के थोड़ा सा भी हटने पर सूर्य का प्रकाश तेज गति से आपकी आँखों पर पड़ेगा जिससे वे हमेशा के लिए प्रभावित हो सकती है।
ग्रहण के समय नुकीली वस्तुओं के इस्तेमाल से मना किया जाता है जैसे कि सुई, चाकू इत्यादि। यह इसलिए किया जाता है क्योंकि सूर्य के प्रकाश के अचानक से कम या तेज होने से हमारी आँखें चौंधिया जाती है तथा इससे हमें नुकसान हो सकता है। साथ ही इस दौरान आपको कुछ खाना पीना भी नहीं चाहिए क्योंकि वह भी दूषित हो जाते हैं। ग्रहण लगने से पहले ही भोजन कर लेंगे तो बेहतर रहेगा।
ऊपर आपने यह तो जान लिया कि सूर्यग्रहण में क्या ना करें लेकिन अब यह भी जान लें कि उस समय आपको क्या करना चाहिए। सबसे पहली बात तो उस समय आपको नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मक व्यवहार करना चाहिए। इस दौरान आप सकारात्मक लोगों से बात कर सकते हैं, ऐसी चीज़े पढ़ सकते हैं या जिस काम में आपको खुशी मिलती है, वह कर सकते हैं।
जब Surya Grahan समाप्त हो जाए तब आपको अपने घर की साफ-सफाई करनी चाहिए। हर कमरे में गंगाजल को छिड़कें। इसके बाद आप खुद भी नहाएं और नहाने के पानी में गंगाजल मिलाएं। आपने पहले जो कपड़े पहन रखे थे, उन्हें धोने में रख दें और नए कपड़े पहने। साथ ही पीने के पानी में तुलसी का पत्ता डालकर पिएं।
गर्भवती महिलाओं को इस समय बाहर निकलने तथा सूर्यग्रहण देखने की मनाही होती है क्योंकि गर्भ में पल रहा शिशु अत्यंत नाजुक होता है। उस पर यदि नकारात्मक किरणों का प्रभाव पड़ेगा तो उसमें अपंगता तक आ सकती है। ऐसे में ज़रा सी भी असावधानी अजन्मे शिशु पर बहुत बुरा प्रभाव दिखा सकती है। इस दौरान गर्भवती महिला को कोई भी काम नहीं करना चाहिए और केवल और केवल आराम करना चाहिए।
आराम का अर्थ सो जाने, बिस्तर पर लेटने या टीवी या मोबाइल पर कुछ देखने से नहीं है क्योंकि इस समय यह सब करना भी वर्जित होता है। शास्त्रों के अनुसार Suryagrahan के समय गर्भवती महिला को अपनी गोद में नारियल रखकर मंत्रों का जाप करना चाहिए या ध्यान में जाना चाहिए। ऐसा करने से अजन्मे बच्चे पर ग्रहण का प्रभाव ना के बराबर देखने को मिलता है।
सूर्यग्रहण से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: सूर्य ग्रहण में क्या करें क्या न करें?
उत्तर: सूर्य ग्रहण में बाहर ना निकलें, मंदिर और पूजा स्थल ना जाएं और कुछ भी खाएं-पिएं नहीं। इस दौरान आपको वैदिक मंत्रों का जाप करना चाहिए और सकारात्मक चीज़े पढ़नी चाहिए।
प्रश्न: सूर्य ग्रहण में पानी पी सकते हैं क्या?
उत्तर: वैसे तो सूर्य ग्रहण में पानी पीने की मनाही होती है। हालाँकि यदि आप पानी पिए बिना नहीं रह सकते हैं तो उसमें ग्रहण शुरू होने से पहले ही दो से तीन तुलसी के पत्ते डालकर रखें।
प्रश्न: सूर्य ग्रहण में चाय पी सकते हैं क्या?
उत्तर: सूर्य ग्रहण में कुछ भी खाने या पीने की पूर्णतया मनाही होती है। ऐसे में ना तो आप चाय पी सकते हैं और ना ही जल।
प्रश्न: सूर्य ग्रहण में स्नान करने से क्या होता है?
उत्तर: सूर्य ग्रहण में आपको स्नान करने से बचना चाहिए। जब सूर्य ग्रहण समाप्त हो जाए, तो उसके बाद पानी में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए।
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