आज हम आपको जातकर्म संस्कार (Jatkarm Sanskar) के बारे में बताने वाले हैं। हिंदू धर्म के कुल सोलह संस्कारों में से तीन संस्कार शिशु के जन्म से पूर्व ही संपन्न हो जाते हैं। शिशु के जन्म लेने पर चौथा संस्कार किया जाता है जिसे जातकर्म संस्कार के नाम से जाना जाता है। इस दौरान वैदिक मंत्रों का भी जाप किया जाता है जिसे जातकर्म संस्कार मंत्र भी कह देते हैं।
यह संस्कार शिशु के माँ के गर्भ से बाहर आने के समय किया जाता है ताकि उसके जन्म के दोष दूर हो सके। शिशु के विकास के लिए जातकर्म संस्कार का किया जाना अति-महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में आइये जानते हैं जातकर्म संस्कार क्या है, इसमें क्या कुछ किया जाता है तथा इसका क्या महत्व है।
जैसे ही एक शिशु जन्म लेता हैं तो उसे स्नान करवाया जाता हैं ताकि उसके शरीर से अशुद्धियाँ हटाई जा सके और उसमें किसी प्रकार का संक्रमण न फैले। उसके मुहं में ऊँगली देकर उसे साफ किया जाता है तथा कफ को बाहर निकाला जाता है। जातकर्म संस्कार (Jatkarm Sanskar In Hindi) में शिशु को सोने की चम्मच या अनामिका (हाथ की तीसरी ऊँगली) से शहद व घी को चटाया जाता है।
इसके अलावा उसे माँ के द्वारा प्रथम स्तनपान करवाया जाना भी जातकर्म संस्कार में आता है जो शिशु को अमरत्व प्रदान करता है। साथ ही शिशु के शरीर पर उबटन का लेप किया जाता है जो कि चने के आटे इत्यादि से बना होता है। कुल मिलकर शिशु के जन्म लेते ही जो भी कार्य किये जाते हैं वे सभी जातकर्म संस्कार के अंतर्गत आते है।
जातकर्म संस्कार के दौरान शिशु के कान में मुख्य तौर पर गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है। इसके लिए शिशु के कान के पास अपने मुहं को ले जाकर धीमी आवाज में और शुद्ध उच्चारण के साथ गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है। इसी के साथ ही ॐ मंत्र का भी जाप किया जा सकता है।
हालाँकि इस दौरान आप इस बात का विशेष ध्यान रखे कि आपको बेहद धीमी आवाज में शिशु के कान में इन मंत्रों का उच्चारण करना है। साथ ही उच्चारण स्पष्ट व शुद्ध होना चाहिए। इसके अलावा कई अन्य वैदिक मंत्रों का उच्चारण भी किया जा सकता है।
एक शिशु भ्रूण रूप में अपनी माँ के गर्भ में नौ महीने तक रहता है तथा वही उसका शारीरिक व मानसिक विकास होता है। नौ माह के पश्चात जब प्रसव का समय आता है तब एक नए जीवन का इस संसार में उदय होता है तथा पहली बार वह इस संसार के दर्शन करता है। शिशु के जन्म के समय घरवालों के द्वारा जो भी कर्म किये जाते है उसे Jatkarm Sanskar कहा जाता है। आइये जानते हैं उस दौरान क्या-क्या किया जाता है।
जातकर्म संस्कार का अत्यधिक लाभ मिलता है जो शिशु को इस बाहरी दुनिया में रहने के लिए सुरक्षा प्रदान करता है। चूँकि जन्म के समय शिशु का पहली बार बाहरी वातावरण से सामना होता है जबकि इससे पहले उसकी सब आवश्यकताएं अपनी माँ के गर्भ में गर्भनाल के द्वारा ही पूर्ण हो रही होती है लेकिन अब वह गर्भनाल तोड़ दी जाती है तथा उसे माँ के बंधन से मुक्त कर दिया जाता है। ऐसे में उसे बाहरी वातावरण में रहने तथा उसका सामना करने के लिए यह सब कार्य किये जाते है।
जब शिशु जन्म लेता हैं तब उसके मुहं में कफ भरा होता हैं जिससे उसे सांस लेने में कठिनाई होती है। इसलिये उसके मुहं में ऊँगली डालकर उसे साफ करना आवश्यक होता है ताकि वह सही से साँस ले पाए। इसके साथ ही घी व शहद को चटाने से उसके वात, कफ व पित्त के दोष दूर होते है। माँ के द्वारा जो प्रथम दूध शिशु को पिलाया जाता है वह उसके लिए अमृत समान होता हैं जिससे उसके संपूर्ण शरीर के रोग दूर होते है। जातकर्म संस्कार को करने से शिशु को रक्त व मूत्र संबंधी समस्या नही होती तथा वह स्वस्थ रहता है।
जातकर्म संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: जातकर्म संस्कार कब होता है?
उत्तर: शिशु के जन्म के तुरंत बाद ही जातकर्म संस्कार किया जाता है। इस दौरान शिशु को शहद व घी चटाना और वैदिक मंत्रों का उच्चारण करना, इत्यादि क्रियाएं की जाती है।
प्रश्न: जात कर्म संस्कार में क्या होता है?
उत्तर: जात कर्म संस्कार में शिशु के मुहं से अशुद्धियों को बाहर निकाला जाता है। उसे शहद व घी चटाया जाता है और माँ के द्वारा स्तनपान भी करवाया जाता है।
प्रश्न: बच्चे के जन्म के बाद कौन सा संस्कार किया जाता है?
उत्तर: बच्चे के जन्म के बाद जातकर्म संस्कार किया जाता है। यह संस्कार बच्चे के जन्म के तुरंत बाद ही कर दिया जाता है ताकि जन्म के समय की शुद्धियों को दूर किया जा सके।
प्रश्न: बालक के जन्म के तुरंत बाद संपन्न किए जाने वाले संस्कार को क्या कहा जाता है?
उत्तर: बालक के जन्म के तुरंत बाद संपन्न किए जाने वाले संस्कार को जातकर्म संस्कार कहा जाता है। इसमें कई तरह की गतिविधियाँ करनी होती है जो उसके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है।
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