आज हम काकभुशुण्डि रामायण (Kakbhushundi Ramayan) की बात करने जा रहे हैं। हम सभी यह जानते हैं कि महर्षि वाल्मीकि ने भगवान ब्रह्मा के आदेश पर रामायण को काव्य रूप दिया था। हालाँकि जब वे राम कथा को लिखने जा रहे थे तो उससे पहले ही श्रीराम भक्त काकभुशुण्डि ने गरुड़ देवता को रामकथा सुना दी थी। काकभुशुण्डि को श्रीराम ने सदा अमर होने का वरदान दिया था। उनके आश्रम में हमेशा राम कथा का ही पाठ होता रहता था। इस कथा को सुनने कभी-कभी समस्त देवता तथा भगवान शिव भी आया करते थे।
जब महर्षि वाल्मीकि ने रामायण कथा को लिखना आरंभ किया था तब उस समय पक्षीराज गरुड़ काकभुशुण्डि के आश्रम पहुँचे थे तथा उनसे राम कथा सुनाने का अनुरोध किया था। इसे काकभुशुण्डि गरुड़ संवाद के नाम से भी जाना जाता है जब उन्होंने गरुड़ देवता को संपूर्ण राम कथा (Kakbhushundi Ramayan In Hindi) का वर्णन किया। आइए उस घटनाक्रम के बारे में जानते हैं।
काकभुशुण्डि भगवान श्रीराम के परम भक्त थे। जब श्रीराम अपनी बाल अवस्था में थे तब उन्होंने काकभुशुण्डि की अपने प्रति भक्ति देखकर उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके सभी रूपों को पहचान जाएंगे। साथ ही उन्हें हमेशा श्रीराम के जीवन में घटित हो रही घटनाओं इत्यादि का ज्ञान रहेगा।
इस वरदान से काकभुशुण्डि अपने ध्यान से श्रीराम के संपूर्ण जीवनकाल में घटित हुई घटनाओं को जानते थे तथा उसका पाठ अपने आश्रम में करते थे। इसलिए जब महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण कथा लिखना आरंभ किया तब काकभुशुण्डि ने उन्हें आशीर्वाद दिया। अब इसमें काकभुशुण्डि गरुड़ संवाद के माध्यम से रामायण कथा का वर्णन मिलता है। यह गरुड़ देवता के अहंकार से जुड़ी हुई कथा है। आइए उसके बारे में जान लेते हैं।
जब भगवान श्रीराम का रावण की सेना से युद्ध चल रहा था तब उस समय मेघनाद ने नागपाश की सहायता से उन्हें तथा लक्ष्मण को बंदी बना लिया था। तब हनुमान के कहने पर गरुड़ देवता ने ही उन्हें नागपाश से मुक्ति दिलवाई थी। इसके पश्चात उनके मन में यह शंका घर कर गई कि यदि श्रीराम भगवान विष्णु का ही रूप हैं तो उन्हें उनकी सहायता की आवश्कता क्यों पड़ी? इसका समाधान पाने के लिए वे देवर्षि नारद मुनि के पास पहुँचे लेकिन नारद मुनि ने उन्हें भगवान शिव के पास जाने को कहा।
गरुड़ देवता भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत पहुँचे तथा उनके सामने अपनी शंका रखी। भगवान शिव ने उन्हें बताया कि प्रभु की माया बहुत शक्तिशाली है तथा इसके कारण स्वयं गरुड़ देवता भी भ्रमित हो गए हैं। उन्होंने गरुड़ जी को इसका केवल एक उपचार बताया और वह था श्रीराम के सत्संग को सुनना तथा उनकी कथा को विस्तारपूर्वक जानना।
इसके लिए उन्होंने गरुड़ देवता को सुमेरु पर्वत की उत्तर दिशा में नील पर्वत पर जाने को बोला। उसी पर्वत पर एक सरोवर के पास काकभुशुण्डि जी का आश्रम था। उन्होंने बताया कि वहाँ काकभुशुण्डि निरंतर राम कथा का प्रवचन करते हैं जिसे सुनने हर तरह के प्राणी तथा देवता वहाँ पक्षियों इत्यादि के रूप में आते हैं। उन्होंने गरुड़ देवता को उनकी शरण में जाने तथा श्रीराम का सत्संग करने का आदेश दिया जिससे उनका उद्धार हो जाएगा।
गरुड़ देवता के जाने के पश्चात माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि जब आप ही उनका मार्गदर्शन कर सकते थे तो आपने उन्हें Kakbhushundi Ramayan सुनने ही क्यों भेजा? इस पर भगवान शिव ने इसका बहुत सरल तथा उत्तम उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि गरुड़ देवता का अभिमान दूर करने के लिए उन्होंने उसे काकभुशुण्डि जी के आश्रम में भेजा है। क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके द्वारा नागों के चंगुल से मुक्त किए जाने पर ही प्रभु बंधन मुक्त हुए थे।
गरुड़ देवता पक्षियों के राजा हैं जबकि काकभुशुण्डि एक कौवा है जो पक्षियों में निम्न स्तर का माना जाता है। उसे एक चांडाल पक्षी की संज्ञा भी दी गई है। इस प्रकार जब गरुड़ देवता पक्षियों के राजा होने के बाद भी एक निम्न स्तर के पक्षी से ज्ञान का प्रकाश पाएंगे तो उनका अभिमान भी दूर हो जाएगा।
इसका दूसरा कारण उन्होंने यह बताया कि जहाँ काकभुशुण्डि जी का आश्रम है वहाँ आस पास का क्षेत्र सभी प्रकार की माया, अज्ञानता, हिंसा, नास्तिकता इत्यादि से दूर रहता है। इस कारण वहाँ रहने से गरुड़ देवता के मन से माया, अहंकार, मूर्खता इत्यादि दूर हो जाएंगे तथा उनका उद्धार हो जाएगा।
भगवान शिव से आदेश पाकर गरुड़ देवता सीधे काकभुशुण्डि जी के आश्रम पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही आसपास के वातावरण के प्रभाव से उनका अभिमान दूर होने लगा था तथा उन्होंने काकभुशुण्डि जी के पास जाकर उनसे रामायण कथा सुनने की विनती की। काकभुशुण्डि रामायण (Kakbhushundi Ramayan) सुनकर गरुड़ देवता का अहंकार दूर हो गया था।
काकभुशुण्डि रामायण से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: गरुड़ ने काकभुशुण्डि से कितने प्रश्न पूछे?
उत्तर: गरुड़ ने काकभुशुण्डि से रामायण के बारे में ही प्रश्न पूछे थे। वे उनके आश्रम में रहकर रामायण कथा सुना करते थे। ऐसा करने के लिए उन्हें भगवान शिव ने आदेश दिया था।
प्रश्न: काकभुशुण्डि जी के गुरु कौन थे?
उत्तर: काकभुशुण्डि जी के गुरु का नाम ज्ञात नहीं है। हालाँकि कुछ लोग कहते हैं कि जिस लोमश ऋषि ने उन्हें श्राप दिया था, वही उनके गुरु भी थे।
प्रश्न: शिव ने काकभुशुंडी को श्राप क्यों दिया?
उत्तर: शिव ने काकभुशुंडी को श्राप नहीं दिया था। उन्हें श्राप लोमश ऋषि के द्वारा मिला था। शिव जी ने तो उन्हें रामायण कथा सुनाई थी।
प्रश्न: काकभुशुंडी ने कितनी बार महाभारत देखा था?
उत्तर: कहते हैं कि काकभुशुंडी ने अलग-अलग लोकों या समय में कुल 16 बार महाभारत को देखा है। हालाँकि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है।
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