आज हम कन्हैया जी की आरती (Kanhaiya Ji Ki Aarti) का पाठ करेंगे। कन्हैया की आरती जो सभी में प्रसिद्ध है वह है आरती कृष्ण कन्हैया की। इसलिए इस लेख में आपको सर्वप्रथम कृष्ण कन्हैया की आरती पढ़ने को मिलेगी। तत्पश्चात कन्हैया की आरती का हिंदी अनुवाद आपके लिए किया जाएगा ताकि आप उसका संपूर्ण ज्ञान ले सके।
अंत में हम आपके साथ कन्हैया की आरती (Kanhaiya Ki Aarti) पढ़ने से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व के बारे में भी बात करेंगे। तो आइए सबसे पहले पढ़ते हैं कन्हैया जी की आरती लिखित में।
आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की,
मथुरा कारागृह अवतारी,
गोकुल जसुदा गोद विहारी,
नंदलाल नटवर गिरिधारी,
वासुदेव हलधर भैया की॥
आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की…
मोर मुकुट पीताम्बर छाजै,
कटि काछनि कर मुरली विराजै,
पूर्ण सरद ससि मुख लखि लाजै,
काम कोटि छबि जितवैया की॥
आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की…
गोपीजन रस रास विलासी,
कौरव कालिय कंस विनाशी,
हिमकर भानु कृसानु प्रकासी,
सर्वभूत हिय बसवैया की॥
आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की…
कहुं रन चढ़े भागि कहुं जावै,
कहुं नृप कर कहुं गाय चरावै,
कहुं जागेस बेद जस गावै,
जग नचाय बृज नचवैया की॥
आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की…
अगुन सगुन लीला बपुधारी,
अनुपम गीता ज्ञान प्रचारी,
दामोदर सब बिधि बलिहारी,
बिप्र धेनु सुर रखवैया की॥
आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की…
आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की,
मथुरा कारागृह अवतारी,
गोकुल जसुदा गोद विहारी,
नंदलाल नटवर गिरिधारी,
वासुदेव हलधर भैया की॥
हम सभी श्री कृष्ण के रूप कन्हैया जी की आरती करते हैं। कन्हैया का जन्म मथुरा के कारागृह में हुआ था जो की श्रीहरि के एक अवतार थे। उसके बाद उनका लालन-पोषण माता यशोदा की देखरेख में हुआ। वे गोकुल की गलियों में विचरण करते थे और नंदबाबा के प्रिय थे, वे बहुत ही चंचल और गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले थे। हे वासुदेव पुत्र और हल को धारण करने वाले बलराम के भाई की जय हो।
मोर मुकुट पीताम्बर छाजै,
कटि काछनि कर मुरली विराजै,
पूर्ण सरद ससि मुख लखि लाजै,
काम कोटि छबि जितवैया की॥
कन्हैया ने अपने सिर पर मोर का मुकुट पहना हुआ है, उन्होंने पीले रंग के वस्त्र पहने हुए हैं, उन्होंने अपने हाथों में मुरली पकड़ी हुई है, शरद पूर्णिमा की रात्रि में उनका मुख अलग ही चमकता है, जिसे देखकर सभी अपना-अपना काम छोड़कर उन्हीं की ओर दौड़े चले आते हैं।
गोपीजन रस रास विलासी,
कौरव कालिय कंस विनाशी,
हिमकर भानु कृसानु प्रकासी,
सर्वभूत हिय बसवैया की॥
सभी गोपियाँ कन्हैया की रासलीला में ही डूबी हुई है। कन्हैया ने ही सभी कौरवों, कालिया नाग और कंस के अहंकार का नाश किया था। वे चंद्रमा, सूर्य इत्यादि की तरह प्रकाशमान हैं। वे हर जगह विद्यमान हैं।
कहुं रन चढ़े भागि कहुं जावै,
कहुं नृप कर कहुं गाय चरावै,
कहुं जागेस बेद जस गावै,
जग नचाय बृज नचवैया की॥
कहीं वे भीषण युद्ध करते हैं तो कभी वे रणभूमि छोड़कर भाग जाते हैं, कहीं वे राजा की भूमिका निभाते हैं तो कहीं वे गायों को चराते हैं, कहीं वे बांसुरी की मीठी धुन बजाकर ब्रजवासियों को नचाते हैं।
अगुन सगुन लीला बपुधारी,
अनुपम गीता ज्ञान प्रचारी,
दामोदर सब बिधि बलिहारी,
बिप्र धेनु सुर रखवैया की॥
उनमे सभी तरह के गुण विद्यमान हैं और वे निर्गुण भी हैं, उनके मुख से ही भगवत गीता का उदघोष हुआ था, वे दामोदर बलिहारी हैं, वे ही कामधेनु माता की रखवाली करते हैं। हे कृष्ण कन्हैया आपकी जय हो।
इस तरह से आज आपने कन्हैया की आरती (Kanhaiya Ki Aarti) हिंदी में अर्थ सहित पढ़ ली है। अब हम कृष्ण आरती पढ़ने से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व को भी जान लेते हैं।
कन्हैया जी की आरती के माध्यम से हमें श्रीकृष्ण के गुणों, शक्तियों, महिमा, महत्व इत्यादि के बारे में जानकारी मिलती है। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का एक ऐसा पूर्ण अवतार है जो सभी गुणों से संपन्न है। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में एक नहीं बल्कि कई उद्देश्यों को पूरा किया है। अपने कर्मों के द्वारा उन्होंने हमें कई तरह की शिक्षा भी दी है।
श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में ही कलियुग के अंत तक की शिक्षा दे दी थी। जैसे-जैसे कलियुग का समयकाल आगे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे ही श्रीकृष्ण भी अधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं। ऐसे में श्रीकृष्ण के बारे में और अधिक जानने और उनके गुणों को आत्मसात करने के उद्देश्य से ही कन्हैया की आरती का पाठ किया जाता है। यहीं कन्हैया जी की आरती का महत्व है।
यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन के साथ कन्हैया की आरती का पाठ करते हैं तो इससे श्रीकृष्ण आपसे प्रसन्न होते हैं। श्रीकृष्ण के प्रसन्न होने का अर्थ हुआ, आपकी सभी तरह की दुविधाओं, संकटों, कष्टों, परेशानियों, विघ्नों, दुविधाओं, उलझनों, मतभेदों, समस्याओं, नकारात्मकता, द्वेष, ईर्ष्या, इत्यादि का अंत हो जाना।
श्रीकृष्ण की कृपा से हमारा जीवन सरल हो जाता है, घर में सुख-शांति का वास होता है, व्यापार, करियर व नौकरी में उन्नति होती है, शिक्षा में अव्वलता आती है, स्वास्थ्य उत्तम होता है, रिश्ते मधुर बनते हैं और समाज में प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है। इसलिए आपको शुद्ध तन, निर्मल मन और स्वच्छ स्थान पर कन्हैया जी की आरती का पाठ करना चाहिए।
आज के इस लेख के माध्यम से आपने कन्हैया जी की आरती (Kanhaiya Ji Ki Aarti) को अर्थ सहित पढ़ लिया है। आशा है कि आपको धर्मयात्रा संस्था के द्वारा दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी। यदि आप अपनी प्रतिक्रिया देना चाहते हैं या इस विषय पर हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो आप नीचे कमेंट कर सकते हैं। हमारी और से आप सभी को जय श्रीकृष्ण।
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