श्रीकृष्ण व गोपियों की महारास लीला

Maharaas Leela

महारास या रास लीला या प्रभु के सबसे मनोहर रूप से मिलन या आत्माओं का परमात्मा से मिलन या एक निश्चल प्रेम या जिसे शब्दों में व्यक्त ही नही किया जा सके अर्थात जिसके लिए शब्द भी कम पड़ जाये (Maharas Krishna)। वह था कान्हा का राधा व गोपियों संग किया गया महारास लीला जिसमें समय की चाल थम गयी थी, चंद्रमा अस्त नही हुआ तथा ना ही सूर्य उदय हुआ, यमुना का पानी रुक गया तथा गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण बस गए थे (Krishna Maharaas)।

कान्हा के द्वारा किया गया महारास इतना अत्यधिक मनोहर व प्रेम से परिपूर्ण था कि केवल कल्पना मात्र से ही यह हमारे हृदय को भावपूर्ण कर देगा तो सोचिये जो इसकी साक्ष्य बनी थी उन गोपियों की क्या दशा हुई होगी (Krishna Gopi Leela)। आज हम आपको कान्हा के द्वारा किये गए उसी महारास के बारे में बताएँगे।

महारास लीला: कृष्ण व गोपियों की रासलीला (Shri Krishna Maharas Full Story In Hindi)

राधा व गोपियों का महागौरी का व्रत (Sharad Purnima Maharas Leela)

राधा व सभी गोपियों ने मिलकर महागौरी का व्रत किया था। इसमें वह गोपियाँ भी थी जिनका विवाह हो चुका हैं तथा वह भी जो अभी तक कुंवारी थी। महागौरी ने प्रसन्न होकर सभी को दर्शन दिए तथा उनसे पूछा की वे क्या चाहती हैं। सभी के मन में केवल एक ही अभिलाषा थी कि जिन परम भगवान ने स्वयं गोकुल गाँव में एक ग्वाले के रूप में जन्म लिया हैं वे उन्हें अपने प्रेमी/ पति रूप में पा सके।

महागौरी ने सभी के हृदय की बात को जान लिया तथा आशीर्वाद दिया कि आज से तीन माह के पश्चात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की शरद पूर्णिमा की मनोहर रात्रि को उन्हें अपना मनवांछित वर की प्राप्ति होगी। यह कहकर महागौरी अंतर्धान हो गयी।

शरद पूर्णिमा तक राधा व गोपियों की दशा (Radha And Gopiyan With Krishna Maharas Leela)

उसके बाद गोपियों के लिए तीन मास का समय व्यतीत करना बहुत कठिन था। वे जो भी कार्य करती उनका मन केवल कान्हा में ही होता। सभी का मन उस रात्रि की प्रतीक्षा में था। यह मनोदशा ऐसी ही थी कि जैसे मानों किसी अपने से विरह की होती है। चेतना में स्वप्न में सभी को कान्हा की ही छवि दिखाई पड़ती। इसी प्रकार तीन मास का समय व्यतीत हो गया और शरद पूर्णिमा की वह मनोहर रात्रि आ गयी।

उस समय चंद्रमा अपने पूर्ण में निकले थे तथा अपने दिव्य प्रकाश से मथुरा के जल को और निर्मल कर रहे थे। वनों में सुंदर पुष्पों की सुगंध लहरा रही थी। तितलियाँ तथा भवरें विचरण कर रहे थे तथा गोपियाँ अपने काम में व्यस्त थी कि अचानक से कान्हा ने यमुना किनारे तीन मास के पश्चात मधुर ध्वनि में बंसी बजानी शुरू कर दिया।

महारास की रात्रि बंसी की ध्वनि सुन गोपियों व राधा की दशा (Lord Krishna Maharaas On Sharad Purnima)

उस समय कोई गोपी सो रही थी तो कोई भोजन कर रही थी, कोई गाय का दूध दुह रही थी तो कोई चंद्रमा को निहार रही थी। अचानक से कान्हा की बंसी की मधुर ध्वनि हवा के साथ बहती हुई गोपियों के कानों तक पहुंची तो सभी की धड़कने मानों थम सी गयी थी। उस समय सभी बेसुध हो गयी तथा अपने सभी काम छोड़कर उस धुन की दिशा में भागने लगी।

किसी-किसी गोपी के केश बंधे हुए नही थे तो किसी की साड़ी का पल्लू नीचे गिर चुका था। कोई सीधे शयन कक्ष से उठकर जा रही थी तो कोई नंगे पैर चल पड़ी थी। उन्हें आसपास का कुछ नही दिखाई पड़ रहा था। उन गोपियों की जो दशा थी उसे शायद ही शब्दों में व्यक्त किया जा सकता हो।

स्वयं राधा ने जब कान्हा की मुरली की धुन सुनी तो वह यमुना किनारे नंगे पैर दौड़ पड़ी थी। उनके मार्ग में एक विषैला सर्प बैठा था लेकिन राधा कान्हा के प्रेम में ऐसा खोई हुई थी कि उन्हें वह सर्प भी नही दिखाई पड़ा। वह केवल कान्हा की बंसी की दिशा में दौड़े जा रही थी।

कृष्ण व गोपियों की महारास लीला (Maharaas Leela)

जैसे ही राधा सभी गोपियों संग यमुना किनारे पहुंची तो कान्हा को देख बेचैन हो उठी। कान्हा अपना दिव्य मनोहर रूप लिए बंसी बजा रहे थे। राधा उनके पास गयी व सभी गोपियाँ उनके चारो ओर खड़ी अपने कान्हा को निहारने लगी। कान्हा बंसी की धुन बजा रहे थे व राधा नाच रही थी। कान्हा भी राधा के संग नृत्य करते।

जब कान्हा ने अपने चारों और देखा तो उन्हें सभी गोपियों की आँखों में एक बेचैनी दिखाई दी। वे सभी उन्हें पाना चाहती थी व उनके साथ नृत्य करना चाहती थी। कान्हा ने सभी गोपियों की इच्छा पूर्ण की तथा अपनी माया के प्रभाव से गोपियों की संख्या के जितने कान्हा का निर्माण किया। सभी गोपियाँ अपने कान्हा को पाकर भावविभोर हो उठी।

उसके बाद महारास लीला का आरंभ हुआ जिसमें सभी गोपियाँ कान्हा संग मुरली की धुन पर नृत्य कर रही थी तथा उनके प्रेम में डूबी हुई थी। यह दृश्य इतना मनोहर था कि चंद्रमा अपने स्थान पर छह माह के लिए ठहर गए थे तथा अगला सवेरा छह माह पश्चात हुआ था अर्थात यह महारासलीला छह माह तक चली थी।

उस समय पूरे स्वर्ग लोक में नृत्य हुआ था तथा शिव शंकर व ब्रह्मा आनंदित व प्रेम में डूब गए थे। यमुना का जल निर्मल हो गया था तथा स्वयं भगवान शिव इस महारास को देखने गोपी बनकर आये थे। इस प्रेम रस से मिले आनंद को शायद ही संपूर्ण रूप से विश्व की किसी भी भाषा के शब्दों में व्यक्त किया जा सके क्योंकि यह केवल और केवल कान्हा को अपने हृदय में पाकर ही अनुभव किया जा सकता हैं।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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