क्या आपने कभी सोचा है कि सूर्य ग्रहण कैसे लगता है (Surya Grahan Kaise Lagta Hai) और उस समय क्या स्थिति बनती है!! सूर्य ग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य में आ जाता है। इस कारण सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुँचने में गतिरोध उत्पन्न होता है। उस स्थिति में पृथ्वी पर कुछ समय के लिए सूर्य ग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है।
अब यहाँ प्रश्न उठता है कि सूर्य ग्रहण कैसे होता है (Surya Grahan Kaise Hota Hai) और इस तरह की स्थिति कब बन जाती है। ऐसे में आज हम आपको इसके बारे में तो बताएँगे ही लेकिन साथ ही यह भी बताएँगे कि किस-किस परिस्थिति में कौन-कौन से सूर्य ग्रहण देखने को मिलते हैं। इससे आपको सूर्य ग्रहण के विभिन्न प्रकारों को भी जानने को मिलेगा।
पृथ्वी सूर्य के चारों ओर निरंतर घूमती रहती है अर्थात उसके चक्कर लगाती है। ठीक उसी तरह चंद्रमा भी हमारी पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है। अब जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के सामने आ जाता है तो उस पर सूर्य का प्रकाश तो पड़ता है लेकिन उसका पिछला हिस्सा अंधकार में चला जाता है। इस कारण पृथ्वी पर चंद्रमा दिखाई नहीं देता और वह अमावस्या का दिन होता है।
अब यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि चंद्रमा पृथ्वी की एक ही परिधि या रेखा में चक्कर नहीं लगाता है बल्कि वह हर परिधि में 5 डिग्री का कोण बनाता हुआ झुका होता है। इसे आप नीचे दिए गए चित्र से समझिए।
चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमता है, यह बात सही है लेकिन इसी के साथ ही यह भी जान लें कि वह ऊपर बताए गए चित्र के अनुसार अलग अलग परिधि में घूमता है। अब जब यह चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमते हुए इस स्थिति में आ जाए कि सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर कुछ समय के लिए ना पहुँचे तो उस समय सूर्य ग्रहण देखने को मिलता है।
इसी के साथ ही यह भी जान लें कि चंद्रमा हमेशा पृथ्वी से समान दूरी पर नहीं होता। साथ ही वह सूर्य तथा पृथ्वी के बीच ग्रहण की स्थिति में हमेशा सीधी पंक्ति में ही स्थित हो, यह भी आवश्यक नही हैं। इसलिए हर स्थिति के अनुसार सूर्य ग्रहण के प्रकार भी भिन्न होते हैं। सूर्य ग्रहण मुख्यतया तीन प्रकार का होता है जो चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करता है। आइए जान लेते हैं।
इस स्थिति में चंद्रमा सूर्य तथा पृथ्वी के बीच में एक दम सीधी पंक्ति में आ जाता है अर्थात सूर्य, चंद्रमा तथा पृथ्वी तीनों एक ही रेखा में स्थित होते हैं। उस समय चंद्रमा पृथ्वी के सबसे पास होता है तथा अपनी छाया से पृथ्वी के कुछ भूभाग को ढक लेता है जिस कारण वहाँ सूर्य का प्रकाश बिल्कुल भी नहीं पहुँच पाता।
इस स्थिति में पृथ्वी के उस क्षेत्र पर चंद्रमा सूर्य को अपने आकार से पूर्ण रूप से ढक लेता है जिससे दिन में भी अँधेरा छा जाता है तथा सूर्य दिखना बंद हो जाता है। हालाँकि पृथ्वी तथा चंद्रमा के लगातार गति करते रहने तथा सूर्य का आकार चंद्रमा से अत्यधिक बड़े होने के कारण यह स्थिति ज्यादा से ज्यादा 7.5 मिनट तक ही रह पाती है। उसके पश्चात चंद्रमा धीरे-धीरे सूर्य के सामने से हट जाता है तथा पुनः सूर्य उसी अवस्था में दिखने लगता है।
यह स्थिति भी पूर्ण सूर्य ग्रहण के समान ही होती है जिसमें सूर्य चंद्रमा तथा पृथ्वी तीनों एक ही रेखा में होते हैं लेकिन इस समय चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी अधिक होती है जिस कारण वह सूर्य को पूर्ण रूप से नहीं ढक पाता। ऐसी स्थिति में चंद्रमा की छाया पृथ्वी से पहले एक क्षेत्र पर समाप्त होकर नया छाया क्षेत्र बनाती है जो पहले वाले छाया क्षेत्र से छोटा होता है।
इस स्थिति में चंद्रमा सूर्य को पूर्ण रूप से नहीं ढक पाता जिस कारण सूर्य का बाहरी आवरण दिखाई पड़ता है अर्थात इस स्थिति में चंद्रमा सूर्य को बीच में से एक दम ढक लेता है लेकिन किनारों से सूर्य दिखाई देता है। इस स्थिति में होने के कारण सूर्य एक अंगूठी या छल्ले के आकार का दिखाई देता है। इसलिए इसे वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
इस स्थिति में चंद्रमा सूर्य तथा पृथ्वी के बीच में तो आ जाता है लेकिन तीनों एक ही रेखा में स्थित नहीं होते। चंद्रमा पृथ्वी की कक्षा से थोड़ा ऊपर या नीचे की ओर होता है जिस कारण वह सूर्य के कुछ भाग को ही ढक पाता है। ऐसी स्थिति में सूर्य का भाग कटा हुआ दिखाई देता है। इसलिए इसे आंशिक सूर्य ग्रहण की संज्ञा दी गई है।
संकर सूर्य ग्रहण ऊपर बताए गए तीनों प्रकारों से भिन्न और विचित्र होता है। वह इसलिए क्योंकि संकर सूर्य ग्रहण पूर्ण तथा वलयाकार सूर्य ग्रहण का मिश्रित रूप होता है। इस समय पृथ्वी पर एक ही समय में दोनों सूर्य ग्रहण दिखाई देते हैं। इस समय चंद्रमा पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य में एक सीधी रेखा में तो स्थित होता है लेकिन वह पृथ्वी से न ज्यादा दूर होता है तथा न ही ज्यादा पास।
इस स्थिति में चंद्रमा की छाया पृथ्वी के क्षेत्र की सतह पर पड़ती है या एक बहुत ही छोटे भूभाग पर जिस कारण वहाँ पूर्ण सूर्य ग्रहण हो जाता है। बाकि कुछ क्षेत्र में वह सूर्य को पूर्ण रूप से नहीं ढक पाता जिस कारण वह किनारों से दिखाई पड़ता है। इस स्थिति में पृथ्वी के एक छोटे भूभाग पर पूर्ण सूर्य ग्रहण तथा उससे बड़े भाग पर वलयाकार सूर्य ग्रहण दिखाई देता है। इसलिए इसे हाइब्रिड सूर्य ग्रहण भी कहते हैं। इस प्रकार का सूर्य ग्रहण बहुत कम ही देखने को मिलता है।
आज के इस लेख में आपने सूर्य ग्रहण कैसे लगता है (Surya Grahan Kaise Lagta Hai) और उसके क्या कुछ प्रकार होते हैं, के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। यदि अभी भी आपके मन में कोई शंका शेष रह गई हो तो आप नीचे कमेंट में पूछ सकते हैं।
सूर्यग्रहण से जुड़े प्रश्नोत्तर
प्रश्न: सूर्य को ग्रहण कैसे लगता है?
उत्तर: जब चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए ऐसी स्थिति में आ जाता है कि सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं पहुँच पाता या बहुत कम पहुँच पाता है तो सूर्य ग्रहण लग जाता है।
प्रश्न: सूर्य पर ग्रहण कैसे लगता है?
उत्तर: यह एक खगोलीय घटना है। इसमें चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच कुछ इस तरह से आ जाता है जिस कारण सूर्य की किरणें पृथ्वी पर नहीं पहुँच पाती है और उसमें बाधा उत्पन्न होती है। तब सूर्य पर ग्रहण लग जाता है।
प्रश्न: सूर्य ग्रहण से क्या होता है?
उत्तर: सूर्य ग्रहण के समय नकारात्मक शक्तियां बहुत हावी हो जाती है। इस दौरान पृथ्वी पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और मंदिर भी बंद हो जाते हैं।
प्रश्न: सूर्य ग्रहण में कैसे रहना चाहिए?
उत्तर: सूर्य ग्रहण में घर से बाहर ना निकलें और अंदर बैठकर वैदिक मंत्रों का जाप करें। यह अपने कमरे में बैठकर करें, ना कि पूजा स्थल या मंदिर में बैठकर।
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