त्रेता युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में राजा दशरथ के घर जन्म लिया तब शेषनाग ने भी उनके छोटे भाई लक्ष्मण (Laxman Ka Avtar) के रूप में जन्म लिया था। लक्ष्मण की माता का नाम सुमित्रा था। लक्ष्मण को कई अन्य नामों (Lakshman Ka Dusra Naam Kya Hai) जैसे कि लखन, सुमित्रानंदन, सौमित्र, रामानुज के नाम से भी जाना जाता हैं। लक्ष्मण का चरित्र संपूर्ण रामायण (Essay On Lakshman In Hindi) में ऐसा हैं कि उन्होंने हर पथ पर अपने भाई श्रीराम का साथ दिया तथा इसके लिए उन्होंने अपने सुख-सुविधा का भी ध्यान नही दिया। उन्होंने एक छोटे भाई होने के उच्च आदर्श स्थापित किये थे। आज हम लक्ष्मण के जन्म से लेकर उनके समाधि लेने तक की कथा को जानेंगे।
जब अयोध्या नरेश दशरथ के घर भगवान श्रीराम का माता कौशल्या के गर्भ से जन्म हुआ तब लक्ष्मण ने दशरथ की तीसरी पत्नी माता सुमित्रा (Laxman Ki Maa Ka Naam Kya Tha) के गर्भ से जन्म लिया। माता सुमित्रा के दो बच्चे हुए थे जिनमे लक्ष्मण बड़े थे तथा शत्रुघ्न छोटे। इसके अलावा दशरथ की दूसरी पत्नी से भरत का जन्म हुआ था। सभी भाइयो में श्रीराम सबसे बड़े थे तथा लक्ष्मण का शुरू से ही अपने भाई श्रीराम से बहुत लगाव था।
विद्या ग्रहण करने की आयु हो जाने पर लक्ष्मण को श्रीराम व अन्य भाइयों सहित महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में भेज दिया गया। वहां जाकर कई वर्षों तक लक्ष्मण ने अपने भाई श्रीराम के साथ ही विद्या ग्रहण की व सभी संस्कारो का पालन किया।
शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात सभी भाई वापस अयोध्या आ गए। कुछ दिनों के पश्चात ब्रह्मर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ से सहायता मांगने आए (Laxman History In Hindi) व राक्षसों का वध करने श्रीराम को अपने साथ ले जाने को कहा। दशरथ ने इसकी आज्ञा दे दी लेकिन लक्ष्मण अपने भाई को अकेले जाने देने को तैयार नहीं थे। इसलिये वे भी अपने भाई श्रीराम के साथ गए। वहां जाकर लक्ष्मण ने श्रीराम की ताड़का, सुबाहु व मारीच से युद्ध करने में सहायता की।
विश्वामित्र जी के आश्रम को राक्षसों से मुक्त करवाने के पश्चात लक्ष्मण अपने भाई श्रीराम के साथ मिथिला गए जहाँ माता सीता का स्वयंवर होना था। वहां श्रीराम ने विश्वामित्र के आदेशानुसार स्वयंवर में भाग लिया तथा विजयी रहे। श्रीराम का माता सीता के साथ विवाह होने पर लक्ष्मण ने भी माता सीता की छोटी बहन उर्मिला (Lakshman And Urmila In Hindi) के साथ विवाह कर लिया।
लक्ष्मण का अपने भाई श्रीराम के प्रति प्रेम किसी से भी छुपा नही है। श्रीराम के विवाह के कुछ दिनों के पश्चात दशरथ ने श्री राम के राज्याभिषेक की घोषणा कर दी थी। यह सुनकर लक्ष्मण बहुत उत्साहित थे तथा उत्सव की तैयारियां कर रहे थे किंतु अगले दिन उन्हें ज्ञात हुआ कि महाराज दशरथ ने कैकेयी को दिए वचन के अनुसार भरत के राज्याभिषेक करने का निर्णय लिया हैं तथा श्रीराम को चौदह वर्ष का कठोर वनवास सुनाया गया हैं।
अपने भाई श्रीराम का यह अपमान देखकर लक्ष्मण क्रोधित हो उठे तथा अपने ही पिता के समक्ष विद्रोह पर उतर आये थे। वे तो दशरथ के साथ युद्ध कर उनसे अपने भाई के लिए राज्य लेने पर भी उतारू हो गए थे लेकिन श्रीराम के समझाने पर वे शांत हो गए थे।
लक्ष्मण ने श्रीराम को वनवास में जाने से बहुत रोका (Laxman Charitra In Hindi) लेकिन जब उन्हें अहसास हो गया कि श्रीराम वनवास में जाएंगे ही तो उन्होंने अपने भाई व भाभी के साथ वन में जाने के निर्णय लिया।
श्रीराम के साथ वन में जाने का निर्णय जब उन्होंने अपनी माता सुमित्रा को बताया तो वे अत्यधिक प्रसन्न हुई। उन्होंने लक्ष्मण को आशीर्वाद देकर कहा कि जहाँ भी श्रीराम का वास हैं वही तुम्हारी अयोध्या हैं। इसलिये चौदह वर्षों तक श्रीराम की मन लगाकर सेवा करना व उन्हें कोई कष्ट मत होने देना।
इसके बाद लक्ष्मण अपनी पत्नी उर्मिला से मिलने गए तब उनकी असली परीक्षा की घड़ी आयी। माता सीता ने अपने पति की सेवा करने के लिए उनके साथ ही वन में जाने का निर्णय लिया था तो वही उर्मिला भी लक्ष्मण की सेवा करने के लिए वन में जाना चाहती थी।
तब लक्ष्मण ने उर्मिला से कहा कि वे वन में श्रीराम व माता सीता की सेवा करने जा रहे हैं और यदि उर्मिला (Lakshman Urmila Ka Milan) भी उनके साथ होगी तो वे सही से श्रीराम की सेवा नही कर पाएंगे। साथ ही श्रीराम व माता सीता के जाने से उनकी माता कौशल्या बहुत व्याकुल हो जाएँगी तो उर्मिला को चौदह वर्षों तक माता कौशल्या की सेवा करनी होगी व उनका ध्यान रखना होगा।
इसके साथ ही उन्होंने उर्मिला से चौदह वर्षों तक आंसू नहीं बहाने का कठोर वचन ले लिया। यह कहकर लक्ष्मण अपने भाई व भाभी के साथ एक वनवासी के भेष में अयोध्या छोड़कर वन में चले गए।
अपने वनवास के शुरूआती चरण में वे चित्रकूट में कुटिया बनाकर रह रहे थे। तब उन्हें भरत का सेना सहित वहां आने की सूचना मिली। तब लक्ष्मण को यह लगा कि भरत सेना सहित श्रीराम का वध करने आ रहा हैं ताकि भविष्य में प्रकट होने वाली संभावनाओं को समाप्त किया जा सके। यह देखकर लक्ष्मण ने भरत से युद्ध करने के लिए अपने अस्त्र उठा लिए।
श्रीराम के समझाने पर लक्ष्मण शांत हुए थे व अपने अस्त्र रखे थे। तब भरत के आने का औचित्य व अपने पिता दशरथ की मृत्यु का समाचार सुनकर लक्ष्मण अधीर हो गए थे व विलाप करने लगे थे। उन्होंने श्रीराम के साथ अपने पिता दशरथ को जलांजलि दी। इसके बाद श्रीराम ने अयोध्या लौटने से मना कर दिया व भरत उनकी चरण पादुका लेकर वापस लौट गए।
लक्ष्मण की सेवा व भक्ति को व्यक्त किया जाए तो शायद शब्द कम पड़ जाए। सबसे पहली बात तो वे दिनभर श्रीराम की सेवा करते व उनके लिए भोजन इत्यादि की व्यवस्था करते। पहले वे अपने भाई व भाभी को खिलाते व उसके बाद बचा हुआ ही स्वयं खाते।
रात्रि में भी श्रीराम की सुरक्षा करने के उद्देश्य से लक्ष्मण कभी सोये नही थे। जी हां, चौदह वर्षों तक लक्ष्मण ने अपनी योग की शक्ति से निद्रा का त्याग कर दिया था तथा दिन-रात श्रीराम की सेवा की थी।
अपने वनवास के अंतिम वर्ष में लक्ष्मण श्रीराम व माता सीता के साथ पंचवटी के वनों में रह रहे थे। वहां एक दिन रावण की बहन शूर्पनखा ने श्रीराम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे श्रीराम ने विनम्रता से ठुकरा दिया। इसके बाद वही प्रस्ताव जब शूर्पनखा ने लक्ष्मण के सामने रखा (Lakshman Surpanakha Samvad) तो उन्होंने उसका उपहास किया।
यह देखकर वह माता सीता पर आक्रमण करने के लिए दौड़ी तो लक्ष्मण ने क्रोध में आकर शूर्पनखा की नाक व एक कान काट दिया। वह रोती हुई अपने भाई खर-दूषण के पास गयी तो उनका भी वध श्रीराम ने कर दिया।
एक दिन माता सीता ने अपनी कुटिया के बाहर स्वर्ण मृग देखा तो उन्होंने श्रीराम से वह मृग लाने की इच्छा प्रकट की। श्रीराम लक्ष्मण को वही रहने की आज्ञा देकर मृग लेने चले गए तथा कई देर तक नही आए। कुछ देर बाद श्रीराम के दर्द से कराहने व लक्ष्मण को पुकारने की आवाज़ आयी। यह सुनकर लक्ष्मण चिंता में पड़ गए लेकिन अपने भाई की आज्ञा का पालन करते हुए वही रुके रहे।
दूसरी ओर माता सीता अपने पति की यह आवाज़ सुनकर अति-व्याकुल हो उठी तथा लक्ष्मण को उनके पास जाने का कहने लगी। लक्ष्मण ने इसके लिए मना किया (Laxman In Ramayan In Hindi) तो माता सीता ने लक्ष्मण को कई कटु वचन कहे। इससे द्रवित होकर लक्ष्मण ने उस कुटिया के चारो ओर अपनी शक्ति से लक्ष्मण रेखा का निर्माण किया तथा माता सीता को उन दोनों के ना आने तक उस लक्ष्मण रेखा से बाहर आने को मना किया।
इसके बाद लक्ष्मण दौड़े-दौड़े उस आवाज़ की दिशा में गए तथा वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि श्रीराम कुटिया की ओर ही आ रहे हैं। तब श्रीराम ने उन्हें बताया कि वह मृग एक मायावी राक्षस था जो मरते समय श्रीराम की आवाज़ में कराह रहा था ताकि लक्ष्मण सीता को अकेला छोड़कर यहाँ आ जाए। यह सुनकर दोनों कुटिया को ओर भागे लेकिन तब तक माता सीता का हरण हो चुका था।
इसके बाद लक्ष्मण अपने भाई श्रीराम के साथ माता सीता को ढूंढने लगे तो उन्हें कुछ दूर जटायु घायल अवस्था में दिखाई दिए। रावण द्वारा माता सीता का हरण होने का बताकर जटायु ने अपने प्राण त्याग दिए। इसके बाद लक्ष्मण ने श्रीराम के साथ मिलकर जटायु का अंतिम संस्कार किया।
उसके बाद अपने भाई के साथ माता सीता की खोज करते हुए वे शबरी, फिर हनुमान व अंत में सुग्रीव से मिले। श्रीराम ने सुग्रीव को उनका खोया हुआ राज्य किष्किन्धा पुनः लौटा दिया व चार मास के पश्चात माता सीता की खोज करने को कहा।
भगवान श्रीराम ने चार मास के पश्चात सीता की खोज करने को इसलिये कहा था क्योंकि उस समय वर्षा ऋतु थी जिसमे माता सीता को खोजना मुश्किल था। इसलिये वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु में माता सीता को खोज शुरू करने का निर्णय लिया गया था। चार मास का समय समाप्त होने के बाद भी सुग्रीव श्रीराम से मिलने नही आया तो श्रीराम ने लक्ष्मण को किष्किन्धा नगरी भेजा।
लक्ष्मण अत्यंत क्रोध में किष्किन्धा नगरी पहुंचे। उनके क्रोध (Lakshman Ka Krodh Sugriv) का सामना करने का साहस किसी में नही था। किष्किन्धा के सभी सैनिक थर-थर कांपने लगे थे। तब हनुमान ने अपनी चतुराई से बालि की पत्नी से लक्ष्मण का क्रोध शांत करवाया तथा सुग्रीव ने आकर उनसे क्षमा मांगी। यह देखकर लक्ष्मण का क्रोध शांत हुआ था।
सुग्रीव की वानर सेना के द्वारा माता सीता की खोज शुरू की गयी तथा अंत में भक्त हनुमान ने दक्षिण दिशा में लंका राज्य में माता सीता को खोज निकाला। इसके बाद लक्ष्मण अपने भाई श्रीराम व वानर सेना के साथ दक्षिण दिशा में चल पड़े व समुंद्र पर सेतु बनाकर लंका पहुँच गए।
लंका पहुँचने के बाद श्रीराम व रावण की सेना के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया। जब एक-एक करके रावण के सभी योद्धा मारे गए तब अंत में उसने अपने सबसे शक्तिशाली पुत्र मेघनाथ को भेजा। उससे युद्ध करने स्वयं लक्ष्मण आए लेकिन मेघनाद ने अपनी मायावी शक्ति के प्रभाव से श्रीराम सहित लक्ष्मण को नागपाश (Nagpash Ram Lakshman) में बांध दिया।
इस नागपाश के प्रभाव से बचाने के लिए हनुमान गरुड़ देवता को लेकर आए जिन्होंने अपनी चोंच से नागपाश को काटा व श्रीराम-लक्ष्मण को उससे मुक्त करवाया।
इसके बाद अगले दिन जब मेघनाद फिर से युद्ध करने आया तब लक्ष्मण फिर से उससे युद्ध करने गए। चूँकि लक्ष्मण पैदल युद्ध कर रहे थे (Meghnath Vs Laxman In Hindi) तथा मेघनाद अपनी मायावी शक्तियों के प्रभाव से आकाश से युद्ध कर रहा था। मेघनाद आकाश में किसी भी दिशा से लक्ष्मण पर लगातार तीरों की बौछार किये जा रहा था जिसका उत्तर लक्ष्मण भी भलीभांति दे रहे थे।
फिर मेघनाद ने छुपकर शक्ति बाण चला दिया जो लक्ष्मण की पीठ में आकर धंस गया। इस बाण के आघात से लक्ष्मण मुर्छित होकर गिर पड़े (Laxman Indrajit Yudh In Hindi) तथा धीरे-धीरे मृत्यु के मुख में जाने लगे। इसके बाद मेघनाद ने लक्ष्मण को उठाकर लंका ले जाने का प्रयास किया लेकिन वे इतने भारी हो गए थे कि उससे उठे ही नही।
इसके बाद हनुमान वहां आए व लक्ष्मण को उठाकर युद्धभूमि से बाहर लेकर गए। जब श्रीराम ने लक्ष्मण को इस स्थिति में देखा तो विलाप करने लगे। लक्ष्मण के जीवित न बचने पर वे स्वयं अपने प्राण त्यागने का कहने लगे। यह देखकर आनन-फानन में लंका के राजवैद्य सुषेण की सहायता ली गयी जिन्होंने लक्ष्मण के प्राण बचाने का एकमात्र उपाय सूर्योदय से पहले तक हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लाना बताया।
तब हनुमान हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लेकर आए तथा लक्ष्मण का उपचार किया गया। इसके प्रभाव से लक्ष्मण तुरंत स्वस्थ हो गए तथा उठते ही मेघनाद से युद्ध करने को व्याकुल हो उठे।
तीसरे दिन मेघनाद अपनी कुलदेवी निकुंबला का यज्ञ करने जा रहा था जिसके सफल हो जाने के बाद उसका वध करना असंभव हो जाता। तब लक्ष्मण ने विभीषण की सहायता से मेघनाद का यज्ञ विफल कर दिया व उसे युद्ध की चुनौती दी।
तीसरे दिन जब मेघनाद युद्ध करने युद्धभूमि में आया तो लक्ष्मण फिर से उससे युद्ध करने गए। आज फिर से मेघनाद लक्ष्मण पर चारो दिशाओं से अपनी मायावी शक्तियों (Laxman indrajit Ladai) का प्रयोग कर रहा था। इससे कुपित होकर लक्ष्मण ने एक बाण का अनुसंधान किया तथा उसे यह कहकर मेघनाद पर छोड़ा कि यदि उसने सच्चे मन से श्रीराम की सेवा की हैं तो यह बाण मेघनाद का मस्तक काटकर ही वापस आएगा। इसके बाद मेघनाद का वध हो गया।
रावण का वध होने के बाद विभीषण को लंका का नया राजा घोषित किया गया। विभीषण ने माता सीता को तुरंत मुक्त करने का आदेश दिया। तब श्रीराम ने लक्ष्मण को अग्नि का प्रबंध करने को कहा ताकि सीता अग्नि परीक्षा देकर उनके पास आ सके।
यह सुनकर जीवन में पहली बार लक्ष्मण को अपने भाई श्रीराम पर क्रोध आया तथा माता सीता के चरित्र पर संदेह करने के लिए उन्होंने अपने भाई के विरुद्ध ही विद्रोह करने का मन बना लिया। यह सुनकर भगवान श्रीराम ने उन्हें सत्य से अवगत करवाया तो लक्ष्मण का क्रोध शांत हुआ था।
चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात तीनो पुनः अयोध्या आ गए व श्रीराम का राज्याभिषेक हो गया। कुछ दिनों के बाद ऐसी घटना घटित हुई कि श्रीराम को माता सीता का त्याग करना पड़ा तथा उन्हें वन में छोड़कर आने का उत्तरदायित्व लक्ष्मण को ही मिला।
लक्ष्मण भारी मन से अपनी माता समान भाभी सीता को रथ पर लेकर वन की ओर निकल पड़े तथा वाल्मीकि आश्रम के पास पहुँच गए। वहां पहुंचकर लक्ष्मण जोर-जोर से रोने लगे थे और माता सीता के साथ ही वन में जाने की जिद्द करने लगे। उन्होंने जीवनभर माता सीता की एक पुत्र की भांति सेवा करने को कहा।
तब माता सीता ने लक्ष्मण रेखा की भांति सीता रेखा खिंची तथा लक्ष्मण को उस रेखा को पार न करने का आदेश दिया तथा वहां से चली गयी। लक्ष्मण अत्यंत प्रलाप करते हुए पुनः अयोध्या आ गए।
समय के साथ-साथ लक्ष्मण ने बहुत कुछ देखा जैसे कि भगवान श्रीराम का माता सीता के विरह में जीवन, अश्वमेघ यज्ञ, लव-कुश से युद्ध, अपने दो पुत्रों अंगद व चंद्रकेतु का जन्म, माता सीता का भूमि में समाना व श्रीराम का अपने पुत्रों लव-कुश को अपनाना इत्यादि।
जब श्रीराम का धरती त्यागकर पुनः वैकुण्ठ जाने का समय आ गया तो उनके जाने से पहले लक्ष्मण को वहां भेजना आवश्यक था। एक दिन यमराज ऋषि के भेष में श्रीराम से मिलने आए। तब श्रीराम ने ऋषि के कहेनुसार लक्ष्मण को द्वार पर प्रहरा देने को कहा तथा किसी के भी अंदर आने पर उसे मृत्युदंड (Shri Ram Ne Lakshman Ko Mrityudand Kyu Diya) देने की घोषणा की।
जब लक्ष्मण द्वार पर प्रहरा दे रहे थे तो ऋषि दुर्वासा वहां आ गए व उसी समय श्रीराम से मिलने की जिद्द करने लगे अन्यथा अयोध्या नगरी को अपने श्राप से भस्म करने की चेतावनी देने लगे। इस पर लक्ष्मण ने सोचा कि केवल उनके प्राण दे देने से अयोध्यावासियों के प्राण बच सकते है (Lakshman Ka Tyag Ramayan) तो वे अपने प्राण दे देगे।
यह सोचकर लक्ष्मण श्रीराम की आज्ञा के विरुद्ध उनके कक्ष में गए व ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना दी। लक्ष्मण को कक्ष में देखते ही यमराज वहां से चले गए व श्रीराम ने अपने आज्ञा की अवहेलना होने पर मंत्रणा बुलायी। उस मंत्रणा में लक्ष्मण को मृत्युदंड दिए जाने की चर्चा हो रही थी कि तभी हनुमान ने लक्ष्मण का त्याग (Lakshman Ka Parityag Ramayan In Hindi) करने का सुझाव दिया। शास्त्रों के अनुसार किसी सज्जन व्यक्ति का त्याग करना उसे मृत्युदंड देने के ही समान होता है, इसलिये यह सुझाव सभी को पसंद आया। फलस्वरूप भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण का हमेशा के लिए त्याग (How Laxman Died In Hindi) कर दिया।
अपने भाई श्रीराम के द्वारा त्याग किए जाने पर लक्ष्मण को अपने जीने का कोई औचित्य नही दिखाई दिया। इसलिये उन्होंने अयोध्या के निकट सरयू नदी में जाकर समाधि ले ली (Death Of Laxman In Ramayan In Hindi) व वापस अपने धाम वैकुण्ठ लौट गए। उनके जाने के कुछ दिनों के पश्चात ही श्रीराम ने भी उसी नदी में समाधि ले ली व वैकुण्ठ पहुँच गए।
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nice sir lakshman katha
Hanuman ji sanjivani buti Himalay se laye the, yahan apne Lanka mention ki hai.Kripya correct karen.
नमस्कार आशुतोष जी,
हमारी त्रुटी को बताने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अब यह त्रुटी ठीक कर ली गयी हैं।