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रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष का कारण (Russia Ukraine War Reason Hindi Mein)

आजकल स्थानीय मीडिया हो या राष्ट्रीय या वैश्विक, हर जगह रूस-यूक्रेन का विवाद ही चल रहा (Russian Ukraine News In Hindi) हैं। विश्व का हर छोटे से छोटा नेता इसके बारे में बात कर रहा हैं कि आखिरकार रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष का कारण क्या हैं जबकि बड़े नेता अपने-अपने देश के लिए निर्णय ले रहे (Russia Ukraine Conflict In Hindi) हैं। आप सभी के मन में भी इस विवाद को लेकर कई तरह की शंकाएं होंगी जैसे कि:

  • रूस यूक्रेन विवाद का कारण क्या है?
  • यूक्रेन नाटो का सदस्य क्यों बनना चाहता था?
  • इसमें अमेरिका और यूरोप की क्या भूमिका हैं?
  • आखिर रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण क्यों किया?
  • भारत किसी का साथ खुलकर क्यों नही दे पा रहा हैं?

हमने आपकी सभी शंकाओं को इन 5 मुख्य प्रश्नों में समेट दिया हैं क्योंकि इनका उत्तर पाकर आपकी सभी शंकाओं का चुटकियों में समाधान हो (Russia Ukraine War Reason Hindi Mein) जाएगा। इसके लिए हम सबसे पहले जंगल के शेर का सहारा लेकर आपको समझाएंगे ताकि आपको यह विवाद आसानी से समझ आ जाये।

उसके बाद हम आपको इन सभी पाँचों प्रश्नों का क्रमानुसार उत्तर (Russia VS Ukraine In Hindi) देंगे। आइए समझते हैं।

शेर का इलाका व जंगल का नियम (Russia Ukraine War Reason In Hindi)

यह तो हम सभी जानते होंगे कि किसी भी जंगल में एक ही शेर रहता हैं या यूँ कहे कि किसी भी शेर का एक इलाका होता हैं और उसमे कोई दूसरा शेर नही आ सकता हैं। उस जंगल में अन्य जानवर रह सकते हैं लेकिन दूसरा शेर नही।

अब ऊपर वाले मानचित्र को देखिये। इसमें आपको दो बड़े शेर दिखाई देंगे: बड़ा शेर नंबर 1 व बड़ा शेर नंबर 2, साथ ही उन शेर के कुछ बच्चें भी दिखाई देंगे जिसमें लाल निशान वाला यूक्रेन भी शामिल हैं।

अब हुआ कि कुछ सालों पहले तक दोनों शेर अपने-अपने इलाकों में मस्ती से रह रहे थे। शेर नंबर 1 के बच्चें भी मस्ती में रह रहे थे लेकिन उस शेर की महत्वाकांक्षाएं बहुत बड़ी थी। वो शेर नंबर 2 की शक्तियां कम कर उसके इलाके पर अपना अधिकार जमाना चाहता था।

इसके लिए उसने शेर नंबर 2 के उन बच्चों से दोस्ती की जो उससे सबसे ज्यादा दूर रहते थे। कहने का मतलब यह हुआ कि शेर नंबर 2 ने अपने कुछ बच्चों को जंगल के किनारे वाले इलाकों की सुरक्षा में लगाया हुआ था। अब शेर नंबर 1 ने शेर नंबर 2 के किनारे रह रहे बच्चों को भड़काया और उन्हें कहा कि अब तुम्हारा भी बड़ा शेर बनकर अपना खुद का जंगल बनाने का समय आ गया हैं।

सन 1991 में शेर नंबर 2 को कुछ बीमारी लग गयी और वह बहुत कमजोर हो गया। मौके का फायदा उठाकर शेर नंबर 1 ने शेर नंबर 2 के बच्चों की सहायता की और उन्हें उनके पापा के जंगल में हिस्सा दिलवा कर उनका अलग छोटा जंगल दिलवा दिया।

शेर नंबर 1 ने शेर नंबर 2 के कुल 14 बच्चों को उनका अपना-अपना जंगल का हिस्सा दिलवा कर वहां का राजा घोषित कर दिया। बेचारा शेर नंबर 2 यह सब होते हुए देखता रहा और कुछ नही कर पाया क्योंकि वह बहुत कमजोर था।

चूँकि शेर नंबर 1 के बच्चें भी शेर नंबर 2 के जंगल के पास रहते थे, इसलिए उन्होंने अपने पापा के साथ मिलकर उनके जंगल की रक्षा के लिए एक सेना बनाई। उस सेना में उसने अपने इलाके और अपने बच्चों के इलाके के बहादुर जानवरों को इकठ्ठा किया और घोषणा की कि अगर कोई भी दूसरा शेर मेरे या मेरे बच्चे के जंगल पर हमला करेगा तो वो सेना उसके साथ लड़ेगी।

इस सेना में उसने शेर नंबर 2 के अलग हुए कुछ बच्चों को भी शामिल कर लिया। इस तरह शेर नंबर 1 ने अपना इलाका शेर नंबर 2 के और पास कर लिया और वो भी उसी के बच्चों की मदद से। अब शेर नंबर 1 शेर नंबर 2 के इलाके पर करीबी से नज़र रखने लगा था।

किंतु अभी भी शेर नंबर 2 के कुछ बच्चें उस सेना में शामिल नही हुए थे क्योंकि उनका इलाका अपने पापा के इलाके से 3 ओर से घिरा हुआ था। इसका उदाहरण आप ऊपर दिए गये चित्र में लाल निशान वाला इलाका देख सकते हैं।

लाल निशान वाला छोटा शेर अपने इलाके की सेना को भी उस सेना में शामिल करवाना चाहता था लेकिन वो ऐसा करवा नही पाया क्योंकि उसके पापा इतने भी कमजोर नही थे। साथ ही उसका जंगल अपने पापा के जंगल से 3 ओर से घिरा हुआ था। उसके ऊपर वाले जंगल का इलाका जो उसका भाई चलाता था, वो अभी भी अपने पापा के ही करीब था।

अब यूँ ही समय बीतता गया और कहानी यूँ ही चलती रही। शेर नंबर 2 फिर से शक्तिशाली हो रहा था। यह देखकर शेर नंबर 1, उसके बच्चों और लाल निशान वाले छोटे शेर में खलबली मच गयी।

बड़े शेर ने लाल निशान वाले छोटे शेर को लालच दिया कि अब तुम भी अपने इलाके को हमारे साथ मिला लो और हमारी सेना में शामिल हो जाओ। अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम्हें अपने पापा की सेना से बचाने के लिए हम अपनी सेना को तुम्हारे जंगल की उस सीमा तक भेज देंगे और तुम्हारी रक्षा करेंगे।

बेचारा छोटा शेर उसके लालच में आ गया और जोरशोर से उनकी सेना में शामिल होने की तैयारी करने लगा। शेर नंबर 2 ने अपने अलग हो चुके बच्चे को ऐसा ना करने को कहा तो उसने अपने ही पापा को भला बुरा कहा और शेर नंबर 1 की ताकत दिखाने लगा।

शेर नंबर 1 भी शेर नंबर 2 को आँखें दिखाने लगा। अब शेर नंबर 2 को यह डर था कि ऐसा हो जाएगा तो शेर नंबर 1 की सेना बिल्कुल उसके जंगल की सीमा तक आ जाएगी और इस हिसाब से उसका जंगल असुरक्षित हो जाएगा। साथ ही अपने बच्चों के अलग होने की टीस भी उसमें थी।

चूँकि शेर नंबर 2 अब बहुत ताकतवर हो चुका था और उसका अलग हो चुका बच्चा उसकी बिल्कुल भी बात नही मान रहा था तो अपने बच्चे को शेर नंबर 1 की सेना में शामिल होने से रोकने के लिए उसने अपनी पूरी सेना के साथ उसके जंगल पर धावा बोल दिया।

जब शेर नंबर 1 ने ये देखा तो वो बहुत डर गया और छोटे शेर को बोला कि मैं इसमें तुम्हारी मदद नही कर सकता। तुम ही अपना जंगल संभालो। बेचारा छोटा शेर बड़े शेर नंबर 1 की बातों में आकर अपना ही जंगल गवां बैठा।

रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष का कारण सरल शब्दों में (Russia Ukraine War Reason Hindi Mein)

हमें यकीन हैं कि आपको ऊपर दिए गए उदाहरण से ज्यादातर बात तो समझ आ ही गयी होगी। फिर भी अब हम इसे सही शब्दों में आपको समझा देते हैं और आपके प्रश्नों का उत्तर दे देते हैं।

शेर नंबर 1- अमेरिका

शेर 1 के बच्चें– यूरोप के देश (इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन इत्यादि)

शेर नंबर 2- रूस

शेर 2 के बच्चें- सोवियत संघ से टूटे 14 देश (यूक्रेन, बेलारूस, उज्बेकिस्तान इत्यादि)

लाल निशान वाला छोटा शेर- यूक्रेन

शेर 1 और उसके बच्चों इत्यादि की सेना- नाटो (NATO)

अब आते हैं ऊपर दिए गए प्रश्नों पर और जानते हैं एक-एक करके उनका उत्तर।

#1. रूस यूक्रेन विवाद का कारण क्या है? (Russia Ukraine War Reason News In Hindi)

वर्ष 1991 से पहले रूस को सोवियत संघ के नाम से जाना जाता था जिसकी सीमायें यूरोप तक फैली हुई थी। किंतु 1991 में अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर सोवियत संघ के 15 टुकड़े कर दिए जिससे रूस नामक देश दुनिया के सामने आया।

सोवियत संघ के 14 छोटे-छोटे टुकड़े टूटकर अलग हो गए और उन्हें अलग देशों की मान्यता मिली। सोवियत संघ का बाकि बचा हुआ बड़ा इलाका रूस कहलाया जिसे हम आज के मानचित्र में देखते हैं।

उसी के बाद से यूक्रेन विवाद प्रचलन में आया क्योंकि रूस वापस अपनी संप्रभुता चाहता था। हालाँकि उस समय तक रूस एक कमजोर राष्ट्र बन चुका था लेकिन 20 सदी के बाद रूस की सत्ता पुतिन के हाथों में आ गयी।

रूस के राष्ट्रपति बनने से पहले पुतिन रूस के ख़ुफ़िया विभाग के लिए काम करते थे। जब अमेरिका ने 1991 में सोवियत संघ के टुकड़े किये थे तब पुतिन यह सब होते हुए देख रहे थे। इसकी टीस राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने सार्वजनिक की थी और कहां था कि उनका सपना रूस को फिर से सोवियत संघ बनाने का हैं।

#2. यूक्रेन नाटो का सदस्य क्यों बनना चाहता था? (What Is The Cause Of Ukraine And Russia Conflict In Hindi)

रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष का कारण यदि नाटो (NATO) को कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। आइए जानते हैं कैसे।

नाटो विश्व के लगभग 30 देशों की सामूहिक सेना की एक संस्था हैं जिसमें अमेरिका, कनाड़ा, यूरोप के देश व कई अन्य देश आते हैं। नाटो का नियम हैं कि यदि इसके किसी भी सदस्य देश पर कोई अन्य देश आक्रमण करेगा तो यह पूरे नाटो के सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाएगा और तब सभी देश मिलकर उस देश से लड़ेंगे।

सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका ने उसके कई देशों को नाटो का सदस्य बनाकर अपनी सेनाओं को रूस के करीब ला दिया था। यह बात रूस को बिल्कुल अच्छी नही लगी थी क्योंकि एक तो अमेरिका ने उसके टुकड़े किये और अब वह उन अलग हुए देशों के साथ मिलकर अपनी नाटो की सेनाओं को उसके देश की सीमाओं के करीब ला रहा था।

यूक्रेन की पूर्वी व दक्षिणी सीमा रूस को, उत्तरी सीमा रूस से अलग हुए बेलारूस देश से छूती थी जो कि रूस का ही सहयोगी देश था। उसकी केवल पश्चिमी सीमा यूरोप को छूती थी। इसलिए उसे डर लगा रहता था कि रूस कभी भी उस पर आक्रमण कर अपना कब्ज़ा जमा सकता हैं।

दूसरी ओर, अमेरिका व यूरोप ने उसे नाटो में शामिल होने का लालच दिया और कहा कि अगर वह नाटो का सदस्य बन जाता हैं तो उसकी सीमाओं की सुरक्षा नाटो के सभी सदस्य देश मिलकर करेंगे।

#3. इसमें अमेरिका और यूरोप की क्या भूमिका हैं? (US On Ukraine Russia War In Hindi)

विश्व में चाहे किसी भी देश में अस्थिरता हो वहां प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका का हाथ होता हैं। फिर चाहे वह इराक हो, सिरिया हो, अफगानिस्तान हो, कोलंबिया हो, उत्तरी कोरिया हो, अफ्रीका हो या कोई अन्य देश। अमेरिका की भूमिका अर्थात यूरोप की भी अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका।

अमेरिका और यूरोप को शुरू से ही एशिया के रूस, चीन व भारत जैसे देशों से खतरा रहा हैं क्योंकि यह तीनों ही देश अत्यंत शक्तिशाली और पूरी तरह से उसकी शर्तों पर चलने वाले नही हैं। इसलिए अमेरिका समय-समय पर तीनों के साथ चाले चलता रहता हैं। अमेरिका अपने प्रतिद्वंद्वियों में दुश्मन नंबर एक रूस को व दूसरे नंबर पर चीन को मानता हैं।

इसलिए रूस पर प्रत्यक्ष रूप से नज़र रखने और उसे दबाये रखने के लिए वह यूक्रेन को मोहरा बना रहा था। यदि यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता तो उसकी सेनाएं यूक्रेन की सीमा को लांघकर रूस की सीमा तक पहुँच जाती और उस पर नज़र रख सकती थी।

रूस के साथ किसी भी तरह के युद्ध की स्थिति में अमेरिका यूरोप के देशों को कोई हानि पहुंचाएं बिना रूस से अलग हुए देशों को युद्ध का अड्डा बना देता जिसमें यूक्रेन भी एक प्रमुख देश था क्योंकि उसकी बहुत सारी सीमा रूस को छूती थी।

साथ ही यूरोप को यह डर था कि यदि भविष्य में कभी यूक्रेन रूस में शामिल हो जाता हैं तो रूस उनके देशों पर प्रत्यक्ष रूप से नज़र रख सकता हैं। इसलिए सभी यूरोप के देश भी जल्द से जल्द यूक्रेन को अपने देश में मिलाकर अपने देश की सीमाओं को सुरक्षित करना चाहते थे।

#4. आखिर रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण क्यों किया? (Why War Between Ukraine And Russia In Hindi)

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की साफ तौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन के बहुत करीब थे। वे आसानी से अमेरिका और यूरोप के देशों की बातों में भी आ गए और रूस से मिलती चेतावनियों को अनदेखा किया।

रूस ने कई बार यूक्रेन को नाटो का सदस्य ना बनने को कहा लेकिन वह नही माना। उसने नाटो के साथ मिलने की प्रक्रिया तेज कर दी जो रूस के राष्ट्रपति पुतिन को बिल्कुल नागवार गुजरी। अगर एक बार यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता तो फिर वह कभी भी रूस का हिस्सा नही बन पाता।

नाटो का सदस्य बनने के बाद अगर रूस यूक्रेन पर हमला भी करता तो यह सीधा-सीधा नाटो के सभी सदस्यों पर हमला माना जाता और पुतिन यह बात अच्छी तरह जानते थे। जब पुतिन को समझ आ गया कि अब सिर्फ बातों से बात नही बनेगी तो उन्होंने यूक्रेन पर हमले की तैयारी शुरू कर दी।

अन्तंतः रूस के द्वारा यूक्रेन पर जोरदार हमला बोल दिया गया और अमेरिका समेत पूरे यूरोप ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। यूक्रेन अमेरिका की बातों में आकर एकदम अकेला पड़ गया और अपना देश भी गँवा बैठा।

#5. भारत किसी का साथ खुलकर क्यों नही दे पा रहा हैं? (India Stand On Ukraine Russia War In Hindi)

इस महायुद्ध में सबसे बड़ा मुद्दा यह हैं कि भारत किसका साथ देगा लेकिन भारत ही वह देश हैं जो सबसे बड़े धर्मसंकट में फंसा हुआ हैं। दुनिया का लगभग हर बड़ा देश अमेरिका के साथ खड़ा हैं जबकि अकेला चीन रूस के साथ हैं।

छोटे देशों में भी 70 से 90 प्रतिशत देश अमेरिका के साथ तो बाकि रूस के साथ हैं। जबकि भारत अभी तक इस मामले में निष्पक्ष व तटस्थ बना हुआ हैं। इसके पीछे भारत का धर्मसंकट हैं क्योंकि वह खुलकर किसी भी एक देश का समर्थन कर दूसरे देश को अपना दुश्मन बनाने का खतरा मोल नही लेना चाहता।

भारत रूस का खुलकर इसलिए साथ नही दे सकता क्योंकि चीन व पाकिस्तान के साथ विवाद में अमेरिका भारत का साथी रहा हैं। साथ ही चीन को अपनी सीमाओं में अतिक्रमण करने से रोकने में भारत को अमेरिका की और चीन को वैश्विक महाशक्ति बनने से रोकने में अमेरिका को भारत की आवश्यकता पड़ती हैं।

अमेरिका के साथ भारत के संबंध हमेशा ऊँच-नीच वाले रहे हैं क्योंकि भारत के तेवर दिखाने पर अमेरिका पाकिस्तान का साथ देता रहता हैं। हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान के पूरी तरह चीन के पाले में जाने से भारत व अमेरिका की दोस्ती मजबूत हुई हैं।

यहीं कारण हैं कि भारत खुलकर रूस का विरोध या अमेरिका का समर्थन नही कर पा रहा हैं लेकिन उस पर अमेरिका व उसके साथी देशों का अत्यधिक कूटनीतिक दबाव हैं।

अब बात करते हैं कि भारत रूस का खुलकर विरोध क्यों नही कर सकता। इसके भी कई कारण हैं। एशिया के ज्यादातर शक्तिशाली देशों में भारत के विरोधी देश हैं खासकर उसके सीमावर्ती दो मुख्य देश (चीन व पाकिस्तान)। साथ ही भारत के अन्य छोटे सीमावर्ती देश भी समय-समय पर चीन के बहकावे में आकर उसका साथ देने लग जाते हैं जैसे कि नेपाल, श्रीलंका इत्यादि।

अब यदि भारत एशिया के एक ओर शक्तिशाली संपन्न देश रूस का भी विरोध करने लगेगा तो एशिया में वह बिल्कुल अकेला पड़ जाएगा। साथ ही अमेरिका व यूरोप पर आँख बंद कर भरोसा भी नही किया जा सकता क्योंकि उस पर आँख बंद कर भरोसा करने का परिणाम यूक्रेन देख ही रहा हैं।

साथ ही रूस के साथ भारत के संबंध आज से नही बल्कि वर्षों से दोस्ताना रहे हैं। रूस शुरू से ही भारत देश का मित्र व सहयोगी रहा हैं। रूस के साथ हमारे कई रक्षा व व्यापारिक समझौते हैं। इसलिए भारत खुलकर रूस का विरोध भी नही कर सकता हैं।

यहीं कारण हैं कि विश्व के सभी बड़े देशों में केवल भारत का पक्ष ही अभी तक तटस्थ बना हुआ हैं और उसने किसी भी देश का खुलकर समर्थन या विरोध नही किया हैं। अब भारत का इन दोनों देशों को लेकर अपनी रणनीति को नए सिरे से बनाने का समय आ गया हैं जो कि समय की मांग भी है।

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कृष्णा

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