वर्ष 1999 में संजय दत्त की फिल्म वास्तव में भगवान गणपति जी की शेंदुर लाल चढ़ायो आरती (Shendur Lal Chadhayo Aarti) की गयी थी। यह आरती मराठी भाषा में है जिसे पूरे देश में प्रसिद्धि तब मिली जब इसे वास्तव फिल्म में गाया गया था। आज के समय में लगभग हर किसी ने यह गणपति आरती सुनी हुई है या इसे गाया भी हुआ है।
महाराष्ट्र में इसे शेंदूर लाल चढायो आरती (Shendur Laal Chadhayo Aarti) के नाम से जाना जाता है जबकि बाकि देश में यह सिंदूर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको आरती (Sindoor Lal Chadhayo Aarti) के नाम से प्रसिद्ध है। साथ ही हम आपको बता दें कि जो गणपति आरती पूरे देश में वास्तव फिल्म के कारण प्रसिद्ध है, वह वास्तविक शेंदूर लाल चढ़ायो आरती से थोड़ी भिन्न है।
वास्तव फिल्म वाली सिन्दूर लाल चढायो आरती में वास्तविक सिंदूर लाल चढायो आरती से एक अनुच्छेद कम लिया गया है लेकिन आखिरी में कुछ प्रसिद्ध मंत्र जोड़े गए हैं। ऐसे में आज के इस लेख में हम आपको दोनों तरह की शेंदूर लाल चढायो आरती देंगे और साथ ही वास्तविक वाली गणपति आरती का हिंदी अर्थ भी देंगे ताकि आप उसका भावार्थ समझ सकें। अंत में हम आपके साथ शेंदूर लाल चढ़ायो आरती के लाभ व महत्व भी सांझा करेंगे।
शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुख को।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहर को।
हाथ लिए गुड़लड्डू सांई सुरवर को।
महिमा कहे न जाय लागत हूं पद को॥
॥ जय देव जय देव ॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता॥
॥ जय देव जय देव ॥
अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी।
कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी।
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि॥
॥ जय देव जय देव ॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता॥
॥ जय देव जय देव ॥
भावभगत से कोई शरणागत आवे।
संतति संपत्ति सबहि भरपूर पावे।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे॥
॥ जय देव जय देव॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता॥
॥ जय देव जय देव ॥
शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुख को,
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहर को।
हाथ लिए गुड़लड्डू सांई सुरवर को,
महिमा कहे न जाय लागत हूं पद को॥
॥ जय देव जय देव ॥
मैं, भगवान गणपति जिनका गजानन वाला मुख बहुत ही सुंदर है, उन्हें सिंदूर चढ़ाता हूँ। मैं पार्वती माता के पुत्र गणेश जी के सामने अपना सिर झुकाता हूँ जो अपने मोटे पेट के साथ बैठे हुए हैं। उन्होंने अपने हाथ में गुड़ से बने हुए लड्डू ले रखे हैं जो उनका प्रिय भोग है।
वे सभी देवताओं में श्रेष्ठ हैं। उनकी महिमा का वर्णन मुझ अकेले से नहीं किया जा सकता है और मैं उनकी चरणों की वंदना करता हूँ। गणपति देवता की जय हो, जय हो।
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता॥
सभी गुणों में निपुण गणपति जी की जय हो, जय हो। वे ही हमें विद्या व सुख प्रदान कर हमारा उद्धार करते हैं। उनके दर्शन करने से ही हमारा जीवन धन्य हो जाता है और मेरा मन श्रीगणेश जी के पास ही लगता है।
अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी।
कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी।
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि॥
आप हमें आठों तरह की सिद्धियाँ प्रदान करते हैं और संकटों को दूर करते हैं। आप सभी तरह के विघ्नों का नाश कर हमारा मंगल ही मंगल करते हैं। आपके अंदर करोड़ो सूर्य जितना प्रकाश है जो आपकी छवि को सबसे अलग बनाता है। आपके गाल व मस्तक चंद्रमा के जैसे शीतलता प्रदान करते हैं।
भावभगत से कोई शरणागत आवे,
संतति संपत्ति सबहि भरपूर पावे।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे,
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे॥
जो मनुष्य भक्तिभाव के साथ गणपति जी की शरण में जाते हैं, उन्हें गणपति भगवान की कृपा से संतान व संपत्ति इत्यादि सभी सुखों की प्राप्ति होती है। हे गणपति महाराज!! आप मेरे मन को बहुत ही आनंद देते हो। गोसावीनंदन जी दिनरात आपके नाम का गुणगान करते हैं।
शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुख को,
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहर को।
हाथ लिए गुड़लड्डू सांई सुरवर को,
महिमा कहे न जाय लागत हूं पद को॥
॥ जय देव जय देव ॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता॥
॥ जय देव जय देव ॥
भावभगत से कोई शरणागत आवे,
संतति संपत्ति सबहि भरपूर पावे।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे,
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे॥
॥ जय देव जय देव॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता॥
॥ जय देव जय देव ॥
घालीन लोटांगण वंदिन चरन,
डोळ्यांनी पाहीं रुप तुझे।
प्रेम आलिंगिन आनंदे पूजीं,
भावे ओवालीन म्हणे नामा॥
त्वमेव माता पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वम मम देव देव॥
कयें वच मनसेन्द्रियैवा,
बुद्धयात्मना व प्रकृतिस्वभावा।
करोमि यद्यत सकलं परस्मै,
नारायणायेति समर्पयामि॥
अच्युत केशवम रामनरायणं,
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरी।
श्रीधरम माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचंद्रम भजे॥
हरे राम हरे राम,
राम राम हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा,
कृष्णा कृष्णा हरे हरे॥
भगवान गणपति का रूप सभी देवी-देवताओं में सबसे भिन्न है। उनके मुख पर हाथी की सूंड है तो दो दांत बाहर निकले हए हैं जिनमें से एक टूटा हुआ है। इसी के साथ ही उनका पेट भी मोटा है और वे अपने शरीर पर तरह-तरह के श्रृंगार करके रखते हैं। उनके इस रूप से हमें यह पता चलता है कि व्यक्ति चाहे किसी भी रंग-रूप का क्यों ना हो लेकिन उसकी पहचान उसके गुणों से होती है।
ऐसे में शेंदूर लाल चढायो आरती के माध्यम से हमें गणपति जी के अद्भुत रूप और उनके गुणों के बारे में ही बताया गया है। अब यदि हम सच्चे मन के साथ शेंदुर लाल चढ़ायो आरती करते हैं तो हमें गणपति जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और हमारे सभी दुःख-दर्द समाप्त हो जाते हैं। यही सिंदूर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको आरती का महत्व होता है।
यदि आपके जीवन में बार-बार संकट आ रहा है, कोई काम नहीं बन पा रहा है, भविष्य का मार्ग नहीं दिखाई दे रहा है, करियर में सफलता नहीं मिल पा रही है या पढ़ाई में व्यवधान आ रहा है तो उसके लिए आपको गणपति जी की शेंदूर लाल चढ़ायो आरती का पाठ करना शुरू कर देना चाहिए। गणपति आरती के प्रतिदिन पाठ से आपको कुछ ही दिनों में अभूतपूर्व लाभ देखने को मिलते हैं।
आपके जीवन में जो भी संकट या दुःख है, वह दूर होने लगते हैं या फिर उनका समाधान आपको मिल जाता है। साथ ही आपके अंदर नए कार्य करने की शक्ति आती है और आप उन्हें बेहतर तरीके से कर पाने में समर्थ होते हैं। यही शेंदुर लाल चढ़ायो आरती के लाभ होते हैं।
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