गणेश चालीसा | Ganesh Chalisa | गणपति चालीसा | Ganpati Chalisa

Ganesh Chalisa In Hindi

भगवान गणेश की आरती को सभी भगवानों में प्रथम स्थान पर गाया जाता है, ऐसे में गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa In Hindi) को कैसे ना गाया जाए। यदि आप भी गणपति चालीसा (Ganpati Chalisa) का पाठ करना चाहते हैं तो आज हम आपको गणेश जी की संपूर्ण चालीसा अर्थ सहित बताएँगे।

इस लेख में सर्वप्रथम आपको श्री गणेश चालीसा (Shri Ganesh Chalisa) पढ़ने को मिलेगी। तत्पश्चात भगवान गणेश की चालीसा को अर्थ सहित समझाया जाएगा ताकि आप इसका संपूर्ण महत्व समझ सकें, आइए पढ़ते हैं श्रीगणेश चालीसा।

श्री गणेश चालीसा (Shri Ganesh Chalisa)

।। दोहा ।।

जय गणपति सद्गुण सदन, कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल।।

।। चौपाई ।।

जय जय जय गणपति गणराजू, मंगल भरण करण शुभ काजू।

जय गजबदन सदन सुखदाता, विश्वविनायक बुद्धि विधाता।

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन, तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।

राजत मणि मुक्तन उर माला, स्वर्ण मुकुट सिर नयन विशाला।

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं, मोदक भोग सुगन्धित फूलं।

सुन्दर पीताम्बर तन साजित, चरण पादुका मुनि मन राजित।

धनि शिव सुवन षड़ानन भ्राता, गौरी ललन विश्व विधाता।

ऋद्धि सिद्धि तव चंवर डुलावे, मूषक वाहन सोहत द्वारे।

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी, अति शुचि पावन मंगलकारी।

एक समय गिरिराज कुमारी, पुत्र हेतु तप कीन्हों भारी।

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा, तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।

अतिथि जानि कै गौरी सुखारी, बहु विधि सेवा करी तुम्हारी।

अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा, मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा।

मिलहिं पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला, बिना गर्भ धारण यहि काला।

गणनायक गुण ज्ञान निधाना, पूजित प्रथम रूप भगवाना।

अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै, पालना पर बालक स्वरूप ह्वै।

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना, लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना।

सकल मगन सुख मंगल गावहिं, नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं।

शम्भु उमा बहु दान लुटावहिं, सुर मुनिजन सुत देखन आवहिं।

लखि अति आनन्द मंगल साजा, देखन भी आए शनि राजा।

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं, बालक देखन चाहत नाहीं।

गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो, उत्सव मोर न शनि तुहि भायो।

कहन लगे शनि मन सकुचाई, का करिहौ शिशु मोहि दिखाई।

नहिं विश्वास उमा उर भयऊ, शनि सों बालक देखन कहऊ।

पड़तहिं शनि दृगकोण प्रकाशा, बालक सिर उड़ि गयो आकाशा।

गिरजा गिरी विकल ह्वै धरणी, सो दुख दशा गयो नहिं वरणी।

हाहाकार मच्यो कैलाशा, शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा।

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए, काटि चक्र सो गज सिर लाए।

बालक के धड़ ऊपर धारयो, प्राण मंत्र पढ़ि शंकर डारयो।

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हें, प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हें।

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा, पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा।

चले षड़ानन भरमि भुलाई, रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई।

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें, तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें।

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे, नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस मुख सके न गाई।

मैं मति हीन मलीन दुखारी, करहुं कौन बिधि विनय तुम्हारी।

भजत राम सुन्दर प्रभुदासा, जग प्रयाग ककरा दुर्वासा।

अब प्रभु दया दीन पर कीजै, अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै।

।। दोहा ।।

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करैं धर ध्यान।

नित नव मंगल गृह बसै, लहै जगत सनमान।।

सम्वत् अपन सहस्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश।।

गणेश चालीसा इन हिंदी (Ganesh Chalisa Lyrics In Hindi With Meaning)

।। दोहा ।।

जय गणपति सद्गुण सदन, कविवर बदन कृपाल।

हे सभी गुणों से युक्त भगवान श्रीगणेश!! आपकी जय हो, सभी कवि भी आपको कृपा दृष्टि रखने वाला बताते हैं।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल।।

आप हम सभी के कष्टों का निवारण कर हमारा भला करते हो। हे माता पार्वती के दुलारे!! आपकी सदा जय हो।

।। चौपाई ।।

जय जय जय गणपति गणराजू, मंगल भरण करण शुभ काजू।

हे सभी देवताओं के स्वामी और उनके राजा! आप सभी कार्यों को मंगल कार्य में बदल देते हो, आप सभी का कल्याण करते हो, आपकी सदा जय हो, जय हो, जय हो।

जय गजबदन सदन सुखदाता, विश्वविनायक बुद्धि विधाता।

हे भगवान गणेश!! आपका शरीर हाथी के समान विशाल है, आपकी सदैव जय हो, आप हर घर में सुख व शांति प्रदान करते हो, आप संपूर्ण विश्व के विधाता हो, आप सभी को बुद्धि प्रदान करते हो।

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन, तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।

आपकी नाक हाथी के सूंड के समान मुड़ी हुई है जो कि हमारे मन को बहुत सुहाती है। आपके माथे पर लगा तीन धारियों वाला तिलक हर किसी के मन को मोहित कर देता है।

राजत मणि मुक्तन उर माला, स्वर्ण मुकुट सिर नयन विशाला।

आपकी छाती पर रत्नजड़ित मालाएं व आभूषण हैं, आपके सिर पर सोने का मुकुट है और आपकी आँखें भी बड़ी व विशाल है।

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं, मोदक भोग सुगन्धित फूलं।

आपके हाथों में पुस्तक, कुल्हाड़ी (फरसा) व त्रिशूल है तथा आपको मोदक व सुगन्धित फूलों का भोग लगाया जाता है।

सुन्दर पीताम्बर तन साजित, चरण पादुका मुनि मन राजित।

आपने पीले रंग के वस्त्र धारण किये हुए हैं तथा आपके चरण इतने आकर्षक हैं कि ऋषि-मुनियों का मन भी इन्हें देखकर मोहित हो जाता है।

धनि शिव सुवन षड़ानन भ्राता, गौरी ललन विश्व विधाता।

हे भगवान शिव के पुत्र व भगवान कार्तिक के भाई!! आप धन्य हैं। हे माँ पार्वती के पुत्र!! आप विश्व के विधाता हैं।

ऋद्धि सिद्धि तव चंवर डुलावे, मूषक वाहन सोहत द्वारे।

आपकी पत्नियाँ ऋद्धि व सिद्धि सदैव आपकी सेवा में तत्पर रहती हैं तथा आपके दरवाजे पर आपका वाहन मूषक रहता है।

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी, अति शुचि पावन मंगलकारी।

हे प्रभु! आपके जन्म की अतिशुभ कथा सुनना व कहना हर किसी के लिए मंगलकारी है।

एक समय गिरिराज कुमारी, पुत्र हेतु तप कीन्हों भारी।

एक समय पर्वत की पुत्री माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी।

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा, तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।

जब उनकी तपस्या समाप्त हो गयी तब आप वहां ब्राह्मण का वेश बनाकर पहुंचे थे।

अतिथि जानि कै गौरी सुखारी, बहु विधि सेवा करी तुम्हारी।

माता पार्वती ने आपका आतिथ्य-सत्कार किया व आपकी बहुत सेवा की।

अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा, मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा।

माता पार्वती की सेवा से प्रसन्न होकर आपने उन्हें तपस्या के फलस्वरूप पुत्र होने का आशीर्वाद प्रदान किया।

मिलहिं पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला, बिना गर्भ धारण यहि काला।

आपने माता पार्वती को बिना गर्भ धारण किये स्वयं को पुत्र रूप में प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया जिसकी बुद्धि बहुत ही विलक्षण होगी।

गणनायक गुण ज्ञान निधाना, पूजित प्रथम रूप भगवाना।

वह पुत्र सभी देवताओं का राजा होगा और गुणों व ज्ञान का निर्धारण करने वाला होगा। इसके साथ ही सभी भगवानों में वह प्रथम पूजनीय होगा।

अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै, पालना पर बालक स्वरूप ह्वै।

माता पार्वती को यह आशीर्वाद देकर आप अंतर्धान हो गए तथा पालने में एक बालक स्वरुप में बदल गए।

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना, लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना।

माता पार्वती ने जैसे ही आपको उठाया, आपने एक शिशु की भांति रोना शुरू कर दिया। माता पार्वती ने आपके मुहं की ओर देखा जो कि सुख देने वाला था लेकिन आपका रूप उनके समान नही था।

सकल मगन सुख मंगल गावहिं, नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं।

आकाश से इस दृश्य को देखकर सभी देवतागण नृत्य और मंगलगान करने लगे तथा आकाश से फूलों की वर्षा शुरू हो गयी।

शम्भु उमा बहु दान लुटावहिं, सुर मुनिजन सुत देखन आवहिं।

भगवान शिव व माता पार्वती ने आपके जन्म के उपलक्ष्य में बहुत दान किया। आपको देखने देवता व ऋषि-मुनि आने लगे।

लखि अति आनन्द मंगल साजा, देखन भी आए शनि राजा।

आपके दर्शन करके सभी देवताओं व मुनियों को बहुत ही आनंद आया तथा स्वयं शनि देव भी आपके दर्शन करने पहुंचे।

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं, बालक देखन चाहत नाहीं।

साथ ही शनि देव को अपने अवगुणों के कारण आपको देखने का मन नही कर रहा था ताकि उनकी गलत छाया आप पर ना पड़े।

गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो, उत्सव मोर न शनि तुहि भायो।

शनिदेव को भगवान गणेश से मुहं फेरता देखकर माता पार्वती के मन में संदेह उत्पन्न हुआ और उन्होंने शनि देव से कहा कि हमारे यहाँ पुत्र प्राप्ति के उत्सव से क्या तुम प्रसन्न नही हो।

कहन लगे शनि मन सकुचाई, का करिहौ शिशु मोहि दिखाई।

यह सुनकर शनिदेव ने माता पार्वती से हिचकते हुए कहा कि मुझे शिशु को दिखाकर क्या करोगी क्योंकि इससे कुछ अनिष्ट हो जाएगा।

नहिं विश्वास उमा उर भयऊ, शनि सों बालक देखन कहऊ।

इस पर माता पार्वती को विश्वास नही हुआ और उन्होंने शनि देव को शिशु देखने को कहा।

पड़तहिं शनि दृगकोण प्रकाशा, बालक सिर उड़ि गयो आकाशा।

माता पार्वती के कहने पर जैसे ही शनि देव ने भगवान गणेश के शिशु रूप पर दृष्टि डाली, उसी समय शिशु का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया।

गिरजा गिरी विकल ह्वै धरणी, सो दुख दशा गयो नहिं वरणी।

अपने शिशु का सिर धड़ से अलग देखकर माता पार्वती इतनी व्याकुल हो उठी कि वे वहीं मूर्छित होकर नीचे गिर पड़ी। उनके दुःख को शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता है।

हाहाकार मच्यो कैलाशा, शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा।

इस घटना से पूरे कैलाश पर्वत पर हाहाकार मच गया और इसका दोष शनिदेव पर लगा कि उनके कारण यह सब हुआ है।

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए, काटि चक्र सो गज सिर लाए।

यह दृश्य देखकर उसी समय भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर वहां पहुंचे और अपने सुदर्शन चक्र से हाथी का सिर काटकर ले आये।

बालक के धड़ ऊपर धारयो, प्राण मंत्र पढ़ि शंकर डारयो।

भगवान विष्णु ने उस हाथी के सिर को उस शिशु के धड़ पर रखा और इसके बाद भगवान शिव ने मंत्रों इत्यादि को पढ़कर उसमे पुनः प्राण डाल दिए।

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हें, प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हें।

इसके पश्चात भगवान शिव ने आपका नाम गणेश रखा और आशीर्वाद दिया कि संपूर्ण जगत में सर्वप्रथम आपकी पूजा की जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने आपको बुद्धि व निधि पाने का वरदान दिया।

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा, पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा।

इसके पश्चात भगवान शिव ने आपकी बुद्धि की परीक्षा लेनी चाही और आपको व भगवान कार्तिक को पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर आने को कहा।

चले षड़ानन भरमि भुलाई, रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई।

इतना सुनते ही भगवान कार्तिक तुरंत अपने वाहन पर पृथ्वी का चक्कर लगाने निकल पड़े किंतु आपने बुद्धिमता से काम लिया।

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें, तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें।

आपने उसी समय अपने माता-पिता के चरण स्पर्श किये और उनके चारों ओर 7 बार प्रदक्षिणा कर डाली।

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे, नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे।

आपकी बुद्धिमता को देखकर भगवान शिव का हृदय बहुत प्रसन्न हुआ और उन्होंने आपकी प्रशंसा की तथा आकाश से देवताओं ने पुष्प वर्षा की।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस मुख सके न गाई।

हे भगवान श्रीगणेश!! आपकी बुद्धि का बखान तो हजारों मुख मिलकर भी नही कर सकते हैं।

मैं मति हीन मलीन दुखारी, करहुं कौन बिधि विनय तुम्हारी।

हे भगवान श्रीगणेश!! मैं तो बुद्धिहीन हूँ, पापी हूँ, दुखी हूँ, मैं किस युक्ति से आपकी प्राथना करूँ।

भजत राम सुन्दर प्रभुदासा, जग प्रयाग ककरा दुर्वासा।

मैं राम सुंदर आपका दास हूँ और आपके भजन करता हूँ। मेरा तो इस जगत में ककरा नामक गाँव है जहाँ से ऋषि दुर्वासा हुए हैं।

अब प्रभु दया दीन पर कीजै, अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै।

हे प्रभु! अपने इस दीन हीन भक्त पर कुछ दया दिखाइए, अपनी भक्ति व शक्ति मुझे दीजिए।

।। दोहा ।।

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करैं धर ध्यान।

नित नव मंगल गृह बसै, लहै जगत सनमान।।

जो भी भक्तगण नियमित रूप से इस श्रीगणेश चालीसा का पाठ करता है, उसके घर में मंगल कार्य होते हैं तथा समाज में प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।

सम्वत् अपन सहस्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश।।

हजारों संबंधों की पालना करते हुए, ऋषि पंचमी के दिन, आपकी यह गणेश चालीसा समाप्त हुई।

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

अन्य संबंधित लेख:

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.