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आज हम आपको सोलह संस्कारों में से एक संस्कार सीमन्तोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar) के बारे में जानकारी देने वाले हैं। सनातन धर्म में कुल 16 संस्कार माने गए हैं जिसमे से तीन संस्कार शिशु के जन्म से पूर्व ही कर दिए जाते हैं। इसमें से सीमंतोन्नयन संस्कार तीसरा संस्कार कहा जाता हैं जिसे शिशु के जन्म से कुछ माह पहले ही संपन्न किया जाता है।
इससे पहले वाले दो संस्कार गर्भाधान तथा पुंसवन संस्कार होते हैं। इसके पश्चात सीमंतोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar In Hindi) को किया जाता है। इस संस्कार को करने का विशेष महत्व हैं जिससे एक गुणकारी संतान की प्राप्ति होती है। आइये जानते हैं सीमन्तोन्नयन संस्कार का प्रयोजन क्या है और इसमें क्या कुछ किया जाता है।
सबसे पहले तो सीमन्तोन्नयन संस्कार का अर्थ जान लेते हैं। यह दो शब्दों के मेल से बना हैं सीमंत तथा उन्नयन। इसमें सीमंत का अर्थ केश/ बालों से हैं तथा उन्नयन का अर्थ ऊपर उठाने से अर्थात एक पति अपने पत्नी के केशों को ऊपर उठाता है। गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में एक महिला का व्यवहार बदलने लगता हैं तथा उसे मानसिक अवसाद घेर लेते है। ऐसे समय में एक पति से यह अपेक्षा होती हैं कि वह एक स्वस्थ शिशु की प्राप्ति के लिए अपनी पत्नी को खुश रखे तथा उसकी हर इच्छा को पूर्ण करे।
इसके साथ ही सीमन्तोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar In Hindi) के माध्यम से महिला के मन में परिवर्तन लाया जाता है तथा उसे धर्म व आध्यात्म की शिक्षा दी जाती है। महिला के द्वारा शिक्षाप्रद कहानियां सुनने से केवल उसी में परिवर्तन नही आता बल्कि गर्भ में पल रहे शिशु पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
इसे आप एक उदाहरण लेकर समझ सकते है। जब अभिमन्यु सुभद्रा के गर्भ में था तब उस समय अर्जुन ने सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदने की कथा सुनाई थी लेकिन उसको भेदकर उससे बाहर कैसे आया जाये इससे पहले ही सुभद्रा सो गयी थी। इसलिये जब अभिमन्यु बड़ा हुआ तब गर्भ में सुनी उस कथा के अनुसार उसने चक्रव्यूह भेद तो दिया था लेकिन उससे बाहर नही निकल पाया था।
पुंसवन संस्कार को गर्भावस्था के तीसरे माह में किया जाता है। इसके पश्चात सीमन्तोन्नयन संस्कार को छठे से आठवें माह के बीच किया जाता है। प्रचलित मान्यता के अनुसार इसे गर्भावस्था के आठवें माह में करना शुभ माना गया हैं। दरअसल इसे करने का शुभ समय तब होता हैं जब शिशु का ज्यादातर विकास हो चुका होता हैं तथा उसमे सोचने व समझने की क्षमता विकसित हो जाती है।
ऐसे समय में वह शिशु गर्भ में अपनी माँ के भावों, उसकी क्रियाओं, बातों इत्यादि को सुन सकता है तथा उन पर अपने भाव भी प्रकट कर सकता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस समय यदि आपका मन प्रसन्न है तो आपका शिशु भी प्रसन्न होगा और यदि आपका मन दुखी हैं तो शिशु भी अंदर से दुखी होगा।
इसके साथ ही वह अपनी माँ तथा बाहर की आवाज़ों को सुनकर उन पर अपनी प्रतिक्रिया भी देने लगता है। इसलिये इस समय सीमंतोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar) किया जाना उचित माना गया है ताकि गर्भ में ही शिशु को संस्कार दिए जा सके तथा उसमे बुद्धि का विकास किया जा सके।
गर्भ की तीसरी तिमाही में इसे करने से शिशु के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आता है तथा उस समय मिली शिक्षा उसे जीवनभर याद रहती है। ऐसे में शिशु को गुणकारी तथा बुद्धिमान बनाने के उद्देश्य से यह संस्कार किया जाता है।
यदि आप इसे वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में देखे तो बहुत महिलाएं अपनी गर्भावस्था के आखिरी समय में शिक्षाप्रद कहानियां पढ़ती हैं तथा मधुर संगीत सुनती हैं जिसका प्रभाव उसके शिशु पर पड़ता है। बस इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसे धर्म कथाएं सुनाकर गर्भ से ही संस्कारी बनाया जाता है। बस यहीं सीमन्तोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar) का प्रयोजन या उद्देश्य होता है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: सीमन्तोन्नयन संस्कार कैसे करें?
उत्तर: सीमन्तोन्नयन संस्कार करने की संपूर्ण विधि महत्व सहित हमने इस लेख में दी है। यह संस्कार शिशु के विकास और स्वास्थ्य के लिए बहुत ही आवश्यक माना गया है।
प्रश्न: सीमंतो नयन संस्कार कब होता है?
उत्तर: सीमंतो नयन संस्कार गर्भधारण करने के छठे से आठवें महीने के बीच में क्या जाता है। आदर्श रूप से इसे छठे से सातवें माह में ही शुरू कर देना चाहिए ताकि अजन्मे शिशु पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिले।
प्रश्न: सीमन्तोन्नयन संस्कार मुहूर्त कब है?
उत्तर: सीमन्तोन्नयन संस्कार मुहूर्त कोई निश्चित तिथि नहीं होती है। यह मुख्य तौर पर गर्भावस्था की तीसरी तिमाही के शुरू होने पर किया जाता है। यह एक दिन के लिए नहीं बल्कि शिशु के जन्म होने तक चलने वाला संस्कार है।
प्रश्न: सीमन्तोन्नयन संस्कार पूजन सामग्री क्या है?
उत्तर: सीमन्तोन्नयन संस्कार पूजन सामग्री में घी की बनी सामग्रियां, लड्डू इत्यादि होते हैं। इन्हें गर्भवती महिला को ग्रहण करना होता है और वैदिक मंत्रों का जाप करना होता है।
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