आज हम आपको छठ पूजा की विधि (Chhath Puja Ki Vidhi) देंगे। छठ पूजा का पर्व दीपावली के बाद आता हैं। जहाँ दिवाली पांच दिनों का पर्व है तो वही छठ पूजा चार दिनों का। इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है व साथ में जल की महत्ता भी समझी जाती है। चूँकि सूर्य भगवान से ही इस पृथ्वी का स्वरुप है और हम सभी जीवित हैं, इसलिये उनका आभार प्रकट करने के लिए छठ पूजा का आयोजन किया जाता है।
नहाय खाय छठ पूजा (Nahay Khay Chhath Puja) का पहला दिन होता है। छठ पूजा का व्रत बहुत ही कठिन व्रत होता है क्योंकि सामान्यतया जो व्रत होते हैं उसमे सुबह से भूखा रहना पड़ता हैं लेकिन शाम के समय खा लिया जाता है। तो वही छठ पूजा के लिए जो व्रती होते हैं उन्हें पूरी दो रात और एक दिन खाना नही खाना होता है। इसलिये छठ पूजा के व्रत को बहुत कठिन माना जाता है। आज हम आपको छठ पूजा का व्रत करने की संपूर्ण विधि बताएँगे।
छठ पूजा का उत्सव चार दिन का होता है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी को समाप्त होता है। इसमें कार्तिक मास की षष्ठी तिथि छठ के लिए महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इसी दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसलिये इस पर्व का नाम भी छठ पड़ा अर्थात “छह”।
आइए इसके चार दिनों के बारे में विस्तार से जानते हैं व साथ ही जानते हैं कि एक व्रतधारी को इन दिनों क्या करना चाहिए।
छठ पर्व की शुरुआत होती हैं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से। इस दिन को छठ का प्रथम दिन या नहाय खाय के रूप में जाना जाता है। यहाँ “नहाय” का अर्थ “स्नान करने” से हैं जबकि “खाय” का अर्थ “भोजन ग्रहण करने” से है।
जैसा कि नाम से ही सपष्ट हैं कि इस दिन व्रती को नहा धोकर भोजन ग्रहण करना होता है लेकिन अब आप सोचेंगे कि यह तो प्रतिदिन का कार्य है तो इसमें अलग क्या है? आइए हम आपको बताते हैं क्योंकि इसमें व्रती के लिए कुछ विशेष नियम होते है।
ऐसे में छठ पूजा के पहले दिन नहाय खाय (Nahay Khay Chhath Puja) में सात्विक भोजन को ही ग्रहण करना चाहिए। व्रती के भोजन ग्रहण करने के पश्चात ही परिवार के अन्य सदस्य भोजन को ग्रहण करे।
छठ पूजा का दूसरा दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को आता है जिसे खरना या लोहंडा कहा जाता है। इस दिन व्रती के व्रत शुरू हो जाते है लेकिन जो असली परीक्षा शुरू होती है वह आज के दिन संध्या का भोजन ग्रहण करने के बाद शुरू होती है। पहले आज के दिन के बारे में जानते है।
इस दिन व्रती को सुबह से ही अन्न तो क्या जल की एक बूँद भी ग्रहण नही करनी होती है। फिर शाम के समय सूर्यास्त होने के पश्चात व्रती एक समय का भोजन ग्रहण कर सकता है जिसे खरना या लोहंडा कहा जाता है। इस खरने में गुड़ के मीठे चावल या खीर व घी लगी रोटी बनायी जाती है।
व्रती को इसी भोजन को ग्रहण करना होता है। व्रती के भोजन ग्रहण करने के पश्चात इसे सभी घरवालो व पड़ोस वालो में प्रसाद रूप में वितरित कर दिया जाता है। इस बात का ध्यान रखे कि व्रत के भोजन में ना चीनी का इस्तेमाल किया जाता है व ना ही नमक का। इसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का कठोर छठ व्रत।
छठ पूजा की विधि (Chhath Puja Ki Vidhi) का तीसरा दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इसी दिन ही मुख्य छठ होती है जिस दिन संध्या में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, इसी को संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। व्रती को खरना वाले दिन शाम का भोजन ग्रहण करने के पश्चात कुछ भी खाना या पीना नही होता है अर्थात व्रती पिछली रात से व्रत पर होता है।
इस दिन भी व्रती को ना ही अन्न और ना ही जल ग्रहण करना होता है। पूजा के लिए ठेकुआ को मुख्य रूप से मनाया जाता हैं जिसे टिकरी भी कह देते है। इसके अलावा चावल के लड्डू जिसे कचवानिया भी कह देते है वह भी बनाए जाते है। शाम के समय सभी व्रती अपने परिवार वालो के साथ गंगा घाट या उसकी सहायक नदियों में सूर्य देव को अर्घ्य देने पहुँच जाते है। इसमें बांस की टोकरी में पूजा का सारा सामान बांधकर घाट पर जाया जाता हैं व डूबते हुए सूर्य की आराधना की जाती है।
घर की महिलाएं छठ के गीत गाती हैं व सूर्य देव को जल व बाकि चीज़े समर्पित की जाती है। इन सबसे सूर्य देव का आभार प्रकट किया जाता है। सूर्य देव की आराधना करने के लिए व्रती का नीचे का आधा शरीर जल में तथा ऊपर का आधा शरीर बाहर होना चाहिए। सूर्य देव की पूजा करने के पश्चात कुछ व्रती वही बैठकर गीत गाते है व रात्रि वही विश्राम करते है तो कुछ अपने घर आकर विश्राम करते है।
तीसरे दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए जो सामान बांस की टोकरी में बांधकर ले जाना होता हैं, उसकी सूची इस प्रकार हैं:
यह छठ का अंतिम दिन होता हैं जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को आता है। इस दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है इसलिये इसे उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती को वही प्रक्रिया दोहरानी होती हैं जो उसने पिछले दिन अर्थात संध्या अर्घ्य के समय की थी।
सभी व्रती अपने परिवार वालो के साथ पुनः घाट पर जाते है व उगते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर उन्हें अपना धन्यवाद प्रकट करते हैं। इसके बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रती अपना व्रत तोड़ते है। ध्यान रखे व्रती दो रात व एक दिन के पश्चात ही कुछ ग्रहण करता है। इसके बाद छठ पूजा का भलीभांति समापन हो जाता है।
इस तरह से छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय (Nahay Khay Chhath Puja) होती है और चौथे दिन उषा अर्घ्य से समाप्त हो जाती है। यहीं छठ व्रत की विधि होती है जिसका पालन हर व्रती को करना होता है।
नहाय खाय से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: छठ पूजा के नहाय खाय कब है?
उत्तर: छठ पूजा में नहाय खाय उसका पहला दिन होता है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को पड़ता है। इसके बाद मुख्य छठ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है।
प्रश्न: नहाय खाय क्या है?
उत्तर: छठ चार दिनों का महापर्व होता है। इसमें से पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है। इसी से ही छठ पर्व की शुरुआत होती है। नहाय खाय में व्रती को शुद्ध जल से स्नान कर भोजन लेना होता है।
प्रश्न: नहाय खाय में क्या खाना चाहिए?
उत्तर: नहाय खाय में मुख्य रूप से कद्दू, लौकी की सब्जी, चने की दाल, चावल खाना चाहिए। इसके अलावा आप अपनी पसंद का कुछ भी खा सकते हैं लेकिन भोजन सात्विक होना चाहिए।
प्रश्न: छठ पूजा में क्या क्या बनाया जाता है?
उत्तर: छठ पूजा में मुख्य रूप से ठेकुआ बनाया जाता है। इसके अलावा चावल के लड्डू बनाने की भी परंपरा है।
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