आज हम जानेंगे कि धनतेरस क्यों मनाया जाता है (Dhanteras In Hindi) और इसका क्या महत्व है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदाशी को धनतेरस का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन धन की देवी माँ लक्ष्मी व भगवान धन्वंतरी तथा कुबेर देवता की पूजा करने का विधान है। धनतेरस दो शब्दों के मेल से बना हैं “धन” व “तेरस”, इसलिये इसे धन त्रयोदशी भी कह देते है।
इस दिन सभी लोग अपने घर पर भगवान धन्वंतरी व कुबेर की पूजा करते है। इसके ठीक दो दिनों के बाद दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। ऐसे में आज हम आपको धनतेरस की कहानी (Dhanteras Kyu Manaya Jata Hai) और मनाने के तरीके के बारे में बताएँगे। आइए धनतेरस पर्व के बारे में जाने।
इस दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरी की पूजा की जाती है जो कि भगवान विष्णु का ही एक अंशावतार है। सतयुग में जब देवताओं व दानवो के बीच समुद्र मंथन का काम चल रहा था तो इसी दिन समुद्र में से भगवान धन्वंतरी प्रकट हुए थे। उनके एक हाथ में अमृत कलश था तो दूसरे में आयुर्वेद का ज्ञान। अमृत कलश से उन्होंने सभी देवताओं को अमरत्व प्रदान किया था जबकि आयुर्वेद से निरोगी काया का ज्ञान विश्व को दिया था। इसलिये उन्हें आयुर्वेद का जनक भी कहा जाता है।
आयुर्वेद बहुत ही शक्तिशाली चिकित्सा पद्धति है जिसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। एक तरह से बीमारी को जड़ सहित समाप्त करने और शरीर को स्वस्थ रखने में आयुर्वेद बहुत ही उपयोगी चिकित्सा पद्धति है। एक समय पहले तक आयुर्वेद के माध्यम से बहुत बिमारियों को दूर कर दिया जाता था। हालाँकि सैकड़ों वर्षों की गुलामी में आयुर्वेद व सनातन धर्म के सिद्धांतों को नष्ट करने का काम किया गया।
हालाँकि अब इस पर पुनः अध्ययन किया जा रहा है। लोग भी आयुर्वेद की शक्ति को पहचान रहे हैं और इसकी ओर आकर्षित हो रहे है। इतना ही नहीं, विश्व स्तर पर भी आयुर्वेद की चर्चा होने लगी है। छोटी से लेकर बड़ी कंपनियों ने भी अपने आयुर्वेदिक उत्पाद निकाले हैं। आइए अब हम आपको धनतेरस की कहानी बता देते हैं।
इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है जो भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन भगवान से जुड़ी है। एक समय में जब दैत्यों के राजा बलि ने सौ यज्ञ करके तीनो लोको पर अधिकार करने का निर्णय लिया तो उसके सौ यज्ञ पूर्ण होने से पूर्व ही भगवान विष्णु वामन अवतार में वहां पहुँच गए और उससे दान रूप में तीन पग धरती मांगी।
दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य भगवान विष्णु के इस छल को समझ गए व राजा बलि के कमंडल के जल से शपथ लेने से पहले अपना लघु रूप कर उसमे घुस गए। इससे कमंडल से निकलने वाले जल का मार्ग बाधित हो गया। भगवान विष्णु गुरु शुक्राचार्य की यह चाल समझ गए तब उन्होंने अपने केश को कमंडल में इस प्रकार रखा कि शुक्राचार्य की एक आँख फूट गयी।
एक आँख के फूटने से छटपटाते हुए शुक्राचार्य कमंडल से बाहर निकल आये व राजा बलि ने तीन पग धरती लेने का संकल्प ले लिया। उसके बाद भगवान विष्णु ने एक पग से धरती तथा एक पग से स्वर्ग लोक नाप लिया। अंत में उन्होंने अपने तीसरे पग से राजा बलि के अहंकार को दूर किया व पुनः अपने धाम लौट गए। इसी उपलक्ष्य में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता (Dhanteras Kyon Manaya Jata Hai) है।
धनतेरस के दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरी की पूजा करने का विधान है क्योंकि उनसे हमे निरोगी काया रखने की शिक्षा मिलती है। धन से ज्यादा महत्ता हमेशा स्वास्थ्य को दी जानी चाहिए क्योंकि जब शरीर ही स्वस्थ नही रहेगा तो धन का क्या लाभ।
इसी को ध्यान में रखते हुए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्यौहार मुख्य रूप से मनाया जाता है। दीपावली के दिन धन की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती हैं जबकि उससे दो दिन पूर्व आयुर्वेद के दाता भगवान धन्वंतरी की।
यह दिन भारतीय संस्कृति के अनुसार धातु या चांदी की कोई नयी वस्तु खरीदने, नया व्यापर या उद्योग शुरू करने, दुकान-घर इत्यादि का मुहूर्त करने, कोई नया वाहन या अन्य सामान खरीदने, कोई नया काम शुरू करने इत्यादि जैसे शुभ कार्यो के लिए जाना जाता है। इस दिन भक्त अपने घर में कोई धातु या चांदी से बनी चीज़ अवश्य लेकर आते है। इसके पीछे मान्यता है कि उनके धन व व्यापर में वृद्धि होती है व परिवार की आर्थिक स्थिति भी बेहतर होती है।
चांदी की वस्तु या सिक्का खरीदने का इसलिये भी महत्व हैं क्योंकि चांदी चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करता हैं जो शीतलता व संतोष का प्रतीक है। यदि हमारे मन में संतोष है तो हमे किसी चीज़ की कमी नही। बहुत बार धन प्राप्त करने के बाद भी व्यक्ति को संतोष नही मिलता तो उसका जीवन नीरस बन जाता है। इस कारण अपने मन में संतोष स्थापित करने के लिए इस दिन चांदी की कोई न कोई वस्तु खरीदने की परंपरा है।
इसके अलावा यदि किसी को अपने लिए नयी बाइक या कार लेनी हो, अपने घर या दुकान का मुहूर्त हो, या किसी शुभ कार्य की शुरुआत करनी हो तो उसके लिए धनतेरस के दिन को सबसे शुभ माना जाता है। इस तरह से आज आपने धनतेरस क्यों मनाया जाता है (Dhanteras In Hindi) और इसका क्या महत्व है, के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है।
धनतेरस से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: धनतेरस क्यों मनाते है?
उत्तर: धनतेरस भगवान धन्वंतरि के समुद्र से निकलने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। धन्वंतरि भगवान को ही आयुर्वेद का जनक कहा जाता है जो हमारे स्वस्थ्य लाभ के लिए आवश्यक है।
प्रश्न: धनतेरस कैसे मनाते हैं?
उत्तर: धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा-अर्चना की जाती है। इसी के साथ ही इस दिन किसी धातु या चांदी की कोई चीज़ खरीदी जाती है। नए काम की शुरुआत भी इसी दिन की जाती है।
प्रश्न: धनतेरस की असली कहानी क्या है?
उत्तर: धनतेरस की असली कहानी भगवान धन्वंतरि का समुद्र मंथन के समय प्रकट होना है। देव व दानवों के द्वारा किए जा रहे समुद्र मंथन के समय धन्वंतरि जी उसमें से अंतिम रत्न के रूप में प्रकट हुए थे।
प्रश्न: धनतेरस का इतिहास क्या है?
उत्तर: धनतेरस के इत्तिहास के अनुसार सतयुग में इसी दिन धन्वंतरि देवता समुद्र मंथन से निकले थे। उनके एक साथ में अमृत कलश था तो दूसरे हाथ में आयुर्वेद का ज्ञान।
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