आज हम आपके साथ गिरिराज जी की आरती (Giriraj Ji Ki Aarti) का पाठ करेंगे। श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में कई तरह की शिक्षाएं दी थी जो आज भी उतनी ही मान्य है जितनी द्वापर युग में थी। इसमें से एक शिक्षा इंद्र देव का मान भंग कर गोवर्धन पर्वत को अपनी एक ऊँगली पर उठाना भी था। इस पर्वत को हम गिरिराज के नाम से भी जानते हैं।
आज हम आपको गिरिराज आरती (Giriraj Aarti) अर्थ सहित भी समझाएंगे। इसे पढ़ कर आपको गिरिराज देवता के बारे में अच्छे से जानने और उनके महत्व को समझने में सहायता मिलेगी। इतना ही नहीं, हम आपको यह भी बताएँगे कि गिरिराज आरती को पढ़ने से क्या कुछ लाभ देखने को मिलते हैं और उसका क्या महत्व है। आइए सबसे पहले पढ़ते हैं श्री गिरिराज जी की आरती हिंदी में।
ॐ जय जय जय गिरिराज, स्वामी जय जय जय गिरिराज।
संकट में तुम राखौ, निज भक्तन की लाज॥ ॐ जय॥
इन्द्रादिक सब सुर मिल, तुम्हरौं ध्यान धरैं।
रिषि मुनिजन यश गावें, ते भवसिन्धु तरैं॥ ॐ जय॥
सुन्दर रूप तुम्हारौ श्याम सिला सोहें।
वन उपवन लखि-लखि के भक्तन मन मोहें॥ ॐ जय॥
मध्य मानसी, गङ्गा कलि के मल हरनी।
तापै दीप जलावें, उतरें वैतरनी॥ ॐ जय॥
नवल अप्सरा कुण्ड सुहावन-पावन सुखकारी।
बायें राधा-कुण्ड नहावें महा पापहारी॥ ॐ जय॥
तुम्ही मुक्ति के दाता कलियुग के स्वामी।
दीनन के हो रक्षक प्रभु अन्तरयामी॥ ॐ जय॥
हम हैं शरण तुम्हारी, गिरिवर गिरधारी।
देवकीनंदन कृपा करो, हे भक्तन हितकारी॥ ॐ जय॥
जो नर दे परिकम्मा पूजन पाठ करें।
गावें नित्य आरती पुनि नहिं जनम धरें॥ ॐ जय॥
ॐ जय जय जय गिरिराज, स्वामी जय जय जय गिरिराज।
संकट में तुम राखौ, निज भक्तन की लाज॥
हे गिरिराज देवता! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। हे हम सभी के स्वामी गिरिराज! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। जब आपके भक्तों पर संकट आये तब आप उसे दूर कर उनके मान-सम्मान की रक्षा कीजिये।
इन्द्रादिक सब सुर मिल, तुम्हरौं ध्यान धरैं।
रिषि मुनिजन यश गावें, ते भवसिन्धु तरैं॥
इंद्र देवता सहित सभी देवता मिल कर आपका ही ध्यान करते हैं। जो भी ऋषि-मुनि आपका ध्यान करता है, वह भव सिन्धु पार निकल जाता है।
सुन्दर रूप तुम्हारौ श्याम सिला सोहें।
वन उपवन लखि-लखि के भक्तन मन मोहें॥
आपका रूप बहुत ही ज्यादा सुन्दर है जिस पर वन, पेड़-पौधे इत्यादि लगे हुए हैं। इसे देख कर सभी भक्तों का मन मोहित हो जाता है।
मध्य मानसी, गङ्गा कलि के मल हरनी।
तापै दीप जलावें, उतरें वैतरनी॥
आपके मध्य में मानसी व गंगा नदी बहती है। जो भी आपके सम्मुख दीप जलाता है, वह वैतरणी नदी में उतर जाता है।
नवल अप्सरा कुण्ड सुहावन-पावन सुखकारी।
बायें राधा-कुण्ड नहावें महा पापहारी॥
आपके कुंड में तो स्वर्ग से आकर अप्सराएँ भी नहाती है और परम सुख की अनुभूति करती है। बायीं ओर जो राधा कुंड है, उसमे नहाने पर तो हमारे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
तुम्ही मुक्ति के दाता कलियुग के स्वामी।
दीनन के हो रक्षक प्रभु अन्तरयामी॥
आप ही हम सभी को मुक्ति प्रदान करने वाले हैं और आप कलयुग के स्वामी भी हैं। आप दीन लोगों की रक्षा करने वाले हैं और अंतर्यामी भी हैं।
हम हैं शरण तुम्हारी, गिरिवर गिरधारी।
देवकीनंदन कृपा करो, हे भक्तन हितकारी॥
हे गिरिराज पर्वत! हम सभी आपकी शरण में आये हैं। हे देवकी माता के पुत्र! अपने भक्तों के हितों की रक्षा कीजिये।
जो नर दे परिकम्मा पूजन पाठ करें।
गावें नित्य आरती पुनि नहिं जनम धरें॥
जो मनुष्य आपकी परिक्रमा करके आपकी पूजा करता है और गोवर्धन आरती का पाठ करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
जब भी किसी महापुरुष, देवता, ईश्वर, संत, गुरु इत्यादि पर आरती लिखी जाती है तो उसके पीछे का उद्देश्य उस आरती के माध्यम से उनके जीवन का संक्षिप्त रूप में परिचय देना, उनकी उपलब्धियां बताना, उनके कार्यों को दिखलाना तथा उनसे मिली शिक्षा को देना होता है।
श्रीकृष्ण ने गिरिराज पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठा कर और गोकुलवासियों को इंद्र देव की बजाये गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहके, जो प्रकृति प्रेम का संदेश दिया था, वही इस गिरिराज आरती में बताया गया है।
इस गिरिराज आरती को पढ़ कर आपको गिरिराज पर्वत की महानता के बारे में तो ज्ञान होता ही है किन्तु इसी के साथ-साथ आप यह भी समझ पाने में सक्षम होते हैं कि आसपास जो भी तत्व हमारे जीवन को सुचारू रूप से चलाने में प्रयासरत हैं, वे भी हमारे लिए उतने ही मूल्यवान हैं। ऐसे में सनातन धर्म में प्रकृति के सरंक्षण, उसकी देखभाल और उसके साथ ही जीवनयापन करने की प्रेरणा इस गिरिराज आरती के माध्यम से मिलती है।
यदि आप प्रतिदिन गिरिराज आरती का पाठ करते हैं तो आपके अंदर प्रकृति प्रेम तो जागृत होता ही है और उसी के साथ-साथ आपको प्रकृति से एक अलग जुड़ाव का भी अनुभव होता है जो आज के समय में बहुत आवश्यक है। मानव की बढ़ती आकांक्षाओं और तकनीक के कारण प्रकृति का जिस तरह से दिन-प्रतिदिन दोहन हो रहा है, वह किसी से छुपा हुआ नहीं है। ऐसे में गिरिराज आरती हमें बहुत कुछ सिखा कर जाती है।
गिरिराज जी की आरती को पढ़ कर आपके अंदर प्रकृति प्रेम जागृत होता है और आप उसके सरंक्षण का कार्य करते हैं। अब आप जितना ज्यादा प्रकृति के साथ समय बिताएंगे और उसकी देखभाल करेंगे, उतना ही आप शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे व इसी के साथ-साथ अपनी आने वाली पीढ़ी को एक स्वच्छ व स्वस्थ धरती सौंप कर जाएंगे।
आज के इस लेख के माध्यम से आपने गिरिराज जी की आरती (Giriraj Ji Ki Aarti) पढ़ ली है। साथ ही आपने गिरिराज आरती करने से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देना चाहते हैं या इस विषय पर हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपको प्रत्युत्तर देंगे।
गिरिराज जी की आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: गिरिराज जी की आरती लिरिक्स बताइए?
उत्तर: गिरिराज जी की आरती के लिरिक्स और उसका हिंदी अनुवाद हमने इस लेख में दिया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: आरती गिरिराज जी की कीजिये?
उत्तर: आरती गिरिराज जी की और वो भी अर्थ सहित हमने इस लेख में दी है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: आरती गिरिराज जी महाराज की क्या है?
उत्तर: आरती गिरिराज जी महाराज की इस लेख में दी गयी है और वो भी अर्थ सहित जिसे आपको पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: गिरिराज जी महाराज की आरती क्या है?
उत्तर: गिरिराज जी महाराज की आरती इस लेख में हिंदी अर्थ सहित दी गयी है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।
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