श्री गिरिराज चालीसा | Shri Giriraj Chalisa | गिरिराज चालीसा लिरिक्स | Giriraj Chalisa Lyrics

Giriraj Chalisa

भगवान विष्णु के इस युग में कुल 10 अवतार हैं जिनमे से उनका एक प्रसिद्ध और कलयुग में सर्वमान्य अवतार भगवान श्रीकृष्ण है। श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में कई तरह की शिक्षाएं दी थी जो आज भी उतनी ही मान्य है जितनी द्वापर युग में थी। इसमें से एक शिक्षा इंद्र देव का मान भंग कर गोवर्धन पर्वत को अपनी एक ऊँगली पर उठाना भी था जिस पर्वत को हम गिरिराज के नाम से भी जानते हैं। आज के इस लेख में आपको गिरिराज चालीसा (Giriraj Chalisa) ही पढ़ने को मिलेगी।

इस लेख के माध्यम से ना केवल आपको श्री गिरिराज चालीसा (Shri Giriraj Chalisa) पढ़ने को मिलेगी बल्कि गिरिराज चालीसा लिरिक्स (Giriraj Chalisa Lyrics) के अर्थ भी जानने को मिलेंगे। इसे पढ़ कर आपको गिरिराज देवता के बारे में जानने और उनकी महत्ता को समझने में सहायता मिलेगी। इसी कारण हम आपके लिए इस लेख में गिरिराज चालीसा के साथ-साथ उसका हिंदी अनुवाद भी लेकर आए हैं।

गिरिराज चालीसा (Giriraj Chalisa)

।। दोहा ।।

बन्दहुँ वीणा वादिनी, धरि गणपति को ध्यान।

महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण।

सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार।

बरनौ श्रीगिरिराज यश, निज मति के अनुसार।

।। चौपाई ।।

जय हो जय बंदित गिरिराजा, ब्रज मण्डल के श्री महाराजा।

विष्णु रूप तुम हो अवतारी, सुन्दरता पै जग बलिहारी।

स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें, सुर मुनि गण दरशन कूं आवें।

शांत कन्दरा स्वर्ग समाना, जहाँ तपस्वी धरते ध्याना।

द्रोणगिरि के तुम युवराजा, भक्तन के साधौ हौ काजा।

मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये, जोर विनय कर तुम कूँ लाये।

मुनिवर संघ जब ब्रज में आये, लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये।

विष्णु धाम गौलोक सुहावन, यमुना गोवर्धन वृन्दावन।

देख देव मन में ललचाये, बास करन बहु रूप बनाये।

कोउ बानर कोउ मृग के रूपा, कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा।

आनन्द लें गोलोक धाम के, परम उपासक रूप नाम के।

द्वापर अंत भये अवतारी, कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी।

महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी, पूजा करिबे की मन ठानी।

ब्रजवासी सब के लिये बुलाई, गोवर्द्धन पूजा करवाई।

पूजन कूँ व्यंजन बनवाये, ब्रजवासी घर घर ते लाये।

ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी, सहस भुजा तुमने कर लीनी।

स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में, माँग माँग के भोजन पावें।

लखि नर नारि मन हरषावें, जै जै जै गिरिवर गुण गावें।

देवराज मन में रिसियाए, नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए।

छाया कर ब्रज लियौ बचाई, एकउ बूँद न नीचे आई।

सात दिवस भई बरसा भारी, थके मेघ भारी जल धारी।

कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे, नमो नमो ब्रज के रखवारे।

करि अभिमान थके सुरसाई, क्षमा माँग पुनि अस्तुति गाई।

त्राहि माम् मैं शरण तिहारी, क्षमा करो प्रभु चूक हमारी।

बार बार बिनती अति कीनी, सात कोस परिकम्मा दीनी।

संग सुरभि ऐरावत लाये, हाथ जोड़ कर भेंट गहाए।

अभय दान पा इन्द्र सिहाये, करि प्रणाम निज लोक सिधाये।

जो यह कथा सुनैं चित लावें, अन्त समय सुरपति पद पावैं।

गोवर्द्धन है नाम तिहारौ, करते भक्तन कौ निस्तारौ।

जो नर तुम्हरे दर्शन पावें, तिनके दुःख दूर ह्वै जावे।

कुण्डन में जो करें आचमन, धन्य धन्य वह मानव जीवन।

मानसी गंगा में जो न्हावें, सीधे स्वर्ग लोक कूँ जावें।

दूध चढ़ा जो भोग लगावें, आधि व्याधि तेहि पास न आवें।

जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें, मन वांछित फल निश्चय पावें।

जो नर देत दूध की धारा, भरौ रहे ताकौ भण्डारा।

करें जागरण जो नर कोई, दुख दरिद्र भय ताहि न होई।

‘श्याम’ शिलामय निज जन त्राता, भक्ति मुक्ति सरबस के दाता।

पुत्र हीन जो तुम कूँ ध्यावें, ताकूँ पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें।

दण्डौती परिकम्मा करहीं, ते सहजहिं भवसागर तरहीं।

कलि में तुम सम देव न दूजा, सुर नर मुनि सब करते पूजा।

।। दोहा ।।

जो यह चालीसा पढ़ै, सुनै शुद्ध चित्त लाय।

सत्य सत्य यह सत्य है, गिरिवर करैं सहाय।

क्षमा करहुँ अपराध मम, त्राहि माम् गिरिराज।

श्याम बिहारी शरण में, गोवर्धन महाराज।

गिरिराज चालीसा लिरिक्स – अर्थ सहित (Giriraj Chalisa Lyrics – With Meaning)

।। दोहा ।।

बन्दहुँ वीणा वादिनी, धरि गणपति को ध्यान।

महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण।

सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार।

बरनौ श्रीगिरिराज यश, निज मति के अनुसार।

मैं वीणा वादिनी माँ सरस्वती व भगवान गणेश का ध्यान करता हूँ। माता राधा व भगवान श्रीकृष्ण मेरा कल्याण करें। सभी देवताओं, गुरुओं व अपने पिता का भी मैं ध्यान करता हूँ। इसके उपरांत मैं अपनी बुद्धि के अनुसार गिरिराज चालीसा का पाठ करता हूँ।

।। चौपाई ।।

जय हो जय बंदित गिरिराजा, ब्रज मण्डल के श्री महाराजा।

विष्णु रूप तुम हो अवतारी, सुन्दरता पै जग बलिहारी।

स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें, सुर मुनि गण दरशन कूं आवें।

शांत कन्दरा स्वर्ग समाना, जहाँ तपस्वी धरते ध्याना।

हे गिरिराज देव और ब्रज मंडल के महाराज!! आपकी जय हो। आप तो स्वयं भगवान विष्णु के एक रूप हैं और आपकी सुन्दरता पर सब मारे जा रहे हैं। आपका शिखर सोने के समान बहुत ही सुन्दर है जिसके दर्शन करने सभी देवता, ऋषि-मुनि, संत इत्यादि आते हैं। आपका क्षेत्रफल बहुत ही शांत है जहाँ पर तपस्वी लोग ध्यान करते हैं।

द्रोणगिरि के तुम युवराजा, भक्तन के साधौ हौ काजा।

मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये, जोर विनय कर तुम कूँ लाये।

मुनिवर संघ जब ब्रज में आये, लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये।

विष्णु धाम गौलोक सुहावन, यमुना गोवर्धन वृन्दावन।

आप द्रोणगिरि के युवराज हैं और अपने भक्तों के सभी कार्य पूरे कर देते हैं। ऋषि पुलस्त्य के द्वारा ही आपको यहाँ तक लाया गया था। आप उनके साथ इस ब्रजभूमि पर आकर ठहर गए थे। यह एक विष्णु धाम है जहाँ गाय माता भी निवास करती है। यहीं पर पवित्र यमुना नदी बहती है और इसे वृन्दावन भी कहते हैं।

देख देव मन में ललचाये, बास करन बहु रूप बनाये।

कोउ बानर कोउ मृग के रूपा, कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा।

आनन्द लें गोलोक धाम के, परम उपासक रूप नाम के।

द्वापर अंत भये अवतारी, कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी।

इस पावन धरा को देख कर तो स्वर्ग से सभी देवताओं का मन भी ललचाने लगा था और वे कई तरह के रूप धर कर यहाँ निवास करने आ गए थे। कोई बंदर बन कर आया तो कोई हिरन बन कर, किसी ने वृक्ष का रूप ले लिया तो कोई लता बन गया। सभी देवतागण इस पावन धरा का आनंद ले रहे थे और तभी द्वापर युग के अंत समय के आसपास स्वयं भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने यहाँ जन्म लिया।

महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी, पूजा करिबे की मन ठानी।

ब्रजवासी सब के लिये बुलाई, गोवर्द्धन पूजा करवाई।

पूजन कूँ व्यंजन बनवाये, ब्रजवासी घर घर ते लाये।

ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी, सहस भुजा तुमने कर लीनी।

श्रीकृष्ण की महिमा तो अपरंपार है और उन्होंने यहाँ के निवासियों को इंद्र देव की पूजा करने की बजाये गिरिराज पर्वत की पूजा करने को कहा। आपने सभी ब्रजवासियों को बुलाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करवायी। गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को हरेक ब्रजवासी अपने घर से पकवान बनाकर लेकर आया और उनकी पूजा की।

स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में, माँग माँग के भोजन पावें।

लखि नर नारि मन हरषावें, जै जै जै गिरिवर गुण गावें।

देवराज मन में रिसियाए, नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए।

छाया कर ब्रज लियौ बचाई, एकउ बूँद न नीचे आई।

यह देखकर आप उस कृष्ण पूजा में स्वयं प्रकट हो गए और भक्तों से माँग-माँग कर भोजन करने लगे। यह देख कर ब्रजवासी बहुत ही प्रसन्न हुए और आपके ही गुण गाने लगे। यह दृश्य देख कर स्वर्ग में बैठे इंद्र देव बहुत ही क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रज भूमि को नष्ट करने का निर्णय ले लिया। इसके बाद ब्रज भूमि पर बहुत तेज वर्षा होने लगी लेकिन श्रीकृष्ण ने अपनी एक ही ऊँगली पर संपूर्ण गोवर्धन पर्वत को उठा लिया जिसके नीचे वर्षा की एक बूँद तक नहीं आ पायी।

सात दिवस भई बरसा भारी, थके मेघ भारी जल धारी।

कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे, नमो नमो ब्रज के रखवारे।

करि अभिमान थके सुरसाई, क्षमा माँग पुनि अस्तुति गाई।

त्राहि माम् मैं शरण तिहारी, क्षमा करो प्रभु चूक हमारी।

इंद्र देव ने ब्रज भूमि पर लगातार सात दिनों तक घनघोर वर्षा की लेकिन इस दौरान श्रीकृष्ण ने एकटक अपने नाखून पर गिरिराज पर्वत को उठाये रखा। सात दिनों के पश्चात इंद्र देव थक गए और वर्षा रुक गयी। ब्रज क्षेत्र की रक्षा करने पर, हे श्रीकृष्ण! आपको हमारा बार-बार नमन है। इंद्र देव का घमंड अब चकनाचूर हो चुका था और वे भाग कर श्रीकृष्ण की शरण में गए और उनसे क्षमा याचना की और उनका गुणगान किया।

बार बार बिनती अति कीनी, सात कोस परिकम्मा दीनी।

संग सुरभि ऐरावत लाये, हाथ जोड़ कर भेंट गहाए।

अभय दान पा इन्द्र सिहाये, करि प्रणाम निज लोक सिधाये।

जो यह कथा सुनैं चित लावें, अन्त समय सुरपति पद पावैं।

इंद्र देव ने आपके पास आकर अपनी भूल की क्षमा याचना की और गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा की। वे अपने साथ सुरभि व ऐरावत हाथी भी लाये थे और श्रीकृष्ण के सामने हाथ जोड़ कर उन्हें कई तरह की वस्तुएं उपहार स्वरुप भेंट चढ़ाई थी। श्रीकृष्ण ने इंद्र देव को क्षमा प्रदान कर दी और इससे प्रसन्न होकर इंद्र देव पुनः अपने लोक को चले गए। जो भी भक्तगण यह कथा सुनता है, उसे अपने अंत समय में परम सुख की प्राप्ति होती है।

गोवर्द्धन है नाम तिहारौ, करते भक्तन कौ निस्तारौ।

जो नर तुम्हरे दर्शन पावें, तिनके दुःख दूर ह्वै जावे।

कुण्डन में जो करें आचमन, धन्य धन्य वह मानव जीवन।

मानसी गंगा में जो न्हावें, सीधे स्वर्ग लोक कूँ जावें।

आपका नाम गोवर्धन है और आप अपने भक्तों के सभी कार्यों को पूरा कर देते हैं। जो भी व्यक्ति आपका दर्शन कर लेता है, आप उसके सभी दुःख दूर कर देते हैं। जो आपके कुंड में आचमन करता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। जो मानसी गंगा में नहा लेता है, उसे सीधा स्वर्ग लोक मिलता है।

दूध चढ़ा जो भोग लगावें, आधि व्याधि तेहि पास न आवें।

जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें, मन वांछित फल निश्चय पावें।

जो नर देत दूध की धारा, भरौ रहे ताकौ भण्डारा।

करें जागरण जो नर कोई, दुख दरिद्र भय ताहि न होई।

जो आपको दूध का भोग लगाता है, उसके सभी संकट समाप्त हो जाते हैं। जो आपको जल, फल व तुलसी चढ़ाता है, उसे इच्छा अनुसार फल मिलता है। जो आपके ऊपर दूध का अभिषेक करता है, आप उसके घर को धन-सम्पदा से भर देते हो, जो आपके नाम का जागरण अपने घर में आयोजित करवाता है, आप उसके सभी दुःख, निर्धनता, भय इत्यादि को दूर कर देते हैं।

‘श्याम’ शिलामय निज जन त्राता, भक्ति मुक्ति सरबस के दाता।

पुत्र हीन जो तुम कूँ ध्यावें, ताकूँ पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें।

दण्डौती परिकम्मा करहीं, ते सहजहिं भवसागर तरहीं।

कलि में तुम सम देव न दूजा, सुर नर मुनि सब करते पूजा।

आप सभी मनुष्यों के दुखों को दूर करने वाले और उन्हें मुक्ति प्रदान करने वाले हो। जो कोई व्यक्ति पुत्र प्राप्ति की इच्छा से आपके पास आता है, आप उसकी इच्छा को पूर्ण कर देते हो। जो आपकी परिक्रमा करता है, आप उसे भव सागर पार करा देते हो। कलयुग में आपके समान कोई दूसरा देवता नहीं है और देवता, मनुष्य, ऋषि-मुनि सभी आपकी पूजा करते हैं।

।। दोहा ।।

जो यह चालीसा पढ़ै, सुनै शुद्ध चित्त लाय।

सत्य सत्य यह सत्य है, गिरिवर करैं सहाय।

क्षमा करहुँ अपराध मम, त्राहि माम् गिरिराज।

श्याम बिहारी शरण में, गोवर्धन महाराज।

जो भी व्यक्ति यह चालीसा पढ़ता है या शुद्ध मन से इसे सुनता है, तो यह बात सत्य है कि उस पर गिरिराज महाराज की कृपा होती है। हे गिरिराज महाराज! आप हमारे सभी तरह के अपराध क्षमा कर दीजिये। मैं श्याम बिहारी आपकी शरण में हूँ।

श्री गिरिराज चालीसा का महत्व (Shri Giriraj Chalisa Ka Mahatva)

जब भी किसी महापुरुष, देवता, ईश्वर, संत, गुरु इत्यादि पर चालीसा लिखी जाती है तो उसके पीछे का उद्देश्य उस चालीसा के माध्यम से उनके जीवन का संक्षिप्त रूप में परिचय देना, उनकी उपलब्धियां बताना, उनके कार्यों को दिखलाना तथा उनसे मिली शिक्षा को देना होता है। श्रीकृष्ण ने गिरिराज पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठा कर और गोकुलवासियों को इंद्र देव की बजाये गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहके, जो प्रकृति प्रेम का सन्देश दिया था, वही इस गिरिराज चालीसा में बताया गया है।

इस गिरिराज चालीसा को पढ़ कर आपको गिरिराज पर्वत की महानता के बारे में तो ज्ञान होता ही है किन्तु इसी के साथ-साथ आप यह भी समझ पाने में सक्षम होते हैं कि आसपास जो भी तत्व हमारे जीवन को सुचारू रूप से चलाने में प्रयासरत हैं, वे भी हमारे लिए उतने ही मूल्यवान हैं। ऐसे में सनातन धर्म में प्रकृति के सरंक्षण, उसकी देखभाल और उसके साथ ही जीवनयापन करने की प्रेरणा इस गिरिराज चालीसा के माध्यम से मिलती है।

गिरिराज चालीसा के लाभ (Giriraj Chalisa Benefits In Hindi)

यदि आप प्रतिदिन गिरिराज चालीसा का पाठ करते हैं तो आपके अंदर प्रकृति प्रेम तो जागृत होता ही है और उसी के साथ-साथ आपको प्रकृति से एक अलग जुड़ाव का भी अनुभव होता है जो आज के समय में बहुत आवश्यक है। मानव की बढ़ती आकांक्षाओं और तकनीक के कारण प्रकृति का जिस तरह से दिन-प्रतिदिन दोहन हो रहा है, वह किसी से छुपा हुआ नहीं है। ऐसे में गिरिराज चालीसा हमें बहुत कुछ सिखा कर जाती है।

गिरिराज जी की चालीसा को पढ़ कर आपके अंदर प्रकृति प्रेम जागृत होता है और आप उसके सरंक्षण का कार्य करते हैं। अब आप जितना ज्यादा प्रकृति के साथ समय बिताएंगे और उसकी देखभाल करेंगे, उतना ही आप शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे व इसी के साथ-साथ अपनी आने वाली पीढ़ी को एक स्वच्छ व स्वस्थ धरती सौंप कर जायेंगे।

गिरिराज चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: गिरिराज चालीसा लिखित में दे?

उत्तर: इस लेख में हमने लिखित में संपूर्ण गिरिराज चालीसा लिखी है और इसी के साथ-साथ उसका संपूर्ण हिंदी अनुवाद भी दिया है जो आपको पढ़ना चाहिए।

प्रश्न: गोवर्धन परिक्रमा कितने घंटे की होती है?

उत्तर: गोवर्धन परिक्रमा कुल 21 किलोमीटर की है। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप इतनी दूरी को कितने समय में पूरा कर पाते हैं। सामान्य तौर पर 21 किलोमीटर की दूरी तय करने में 5 घंटे का समय लगता है।

प्रश्न: गोवर्धन की परिक्रमा में कितना समय लगता है?

उत्तर: सामान्य तौर पर गोवर्धन की परिक्रमा में 5 से 6 घंटों का समय लगता है।

प्रश्न: गोवर्धन परिक्रमा में कितने किलोमीटर होते हैं?

उत्तर:गोवर्धन परिक्रमा में 21 किलोमीटर होते हैं।

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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