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Mata Sati Ki Kahani: माता सती की मृत्यु कैसे हुई? जाने सती माता की कहानी

आज हम माता सती की कथा (Mata Sati Ki Katha) आपको सुनाने वाले हैं। सती भगवान शिव की प्रथम पत्नी थी। वैसे तो भगवान शिव को वैराग्य पसंद था किन्तु उन्हें अपनी पत्नी सती से बहुत प्रेम था। सती महान राजा दक्ष की पुत्री थी जिनका विवाह स्वयं महादेव के साथ हुआ था। हालाँकि दक्ष को शिव इतने पसंद नहीं थे और शिव जी को भी यह बात पता थी।

शिव और सती की कहानी का अंत बहुत ही दुखदायी रहा था। इसी के फलस्वरूप आज हम भारतवर्ष के अलग-अलग हिस्सों में मातारानी के 51 शक्तिपीठ देखते हैं। इसके लिए आपको सती माता की कहानी (Mata Sati Ki Kahani) को जानना पड़ेगा। इसलिए आज के इस लेख में हम आपके सामने माता सती की कहानी को शुरू से अंत तक रखने जा रहे हैं।

माता सती की कथा (Mata Sati Ki Katha)

माता सती स्वयं देवी आदिशक्ति का रूप थी जिसे उनके पिता राजा दक्ष ने कठोर तपस्या के बाद प्राप्त किया था। राजा दक्ष की और भी कई पुत्रियाँ थी लेकिन सती का स्वयं देवी भगवती का रूप होने के कारण वह सबसे सुंदर व अलौकिक थी। माता सती बचपन से ही भगवान शिव की सादगी व पवित्रता से बहुत आसक्त थी।

शिव जी को अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता सती ने उनकी भक्ति व आराधना शुरू कर दी। बस इसी के बाद से ही अनहोनी होनी शुरू हो गई। यहाँ हम आपके सभी प्रमुख प्रश्नों जैसे कि, सती का आत्मदाह या माता सती की मृत्यु कैसे हुई, सती का अंग कहां कहां गिरा इत्यादि का उत्तर देने वाले हैं। आइए पढ़ते हैं सती माता की कहानी।

शिव और सती की कहानी

माता सती को भगवान शिव अत्यधिक पसंद थे और वे उन्हीं से ही विवाह करना चाहती थी। अब शिवजी तो वैरागी थी और उनका किसी भी चीज़ में मोह नहीं था। इसलिए माता सती के द्वारा भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करना बहुत ही कठिन था। इसके लिए सती ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उनकी भक्ति करनी शुरू कर दी।

अपने प्रति इस निश्छल प्रेम को देखकर शिव का मन भी माता सती के प्रति आसक्त हो गया। इसके बाद शिव ने सती को अपनी पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया। दूसरी ओर, राजा दक्ष शिव को सती के लिए योग्य वर नहीं मानते थे क्योंकि शिव पहाड़ों पर बिना किसी सुख-सुविधा के आदिवासियों के जैसे जीवनयापन करते थे। माता सती ने अपने पिता दक्ष की आज्ञा के विरुद्ध जाकर शिव से विवाह किया था।

राजा दक्ष और शिव

एक बार भगवान ब्रह्मा ने यज्ञ का आयोजन किया था। इसमें सभी देवतागण व महान ऋषियों को बुलाया गया था। इस यज्ञ में स्वयं महादेव भी आए थे। जब दक्ष प्रजापति इस यज्ञ में पहुंचे तब सभी देवता उनके सम्मान में खड़े हो गए किंतु भगवान शिव खड़े नहीं हुए।

यह देखकर दक्ष को अपना अपमान महसूस हुआ। उन्होंने वहीं पर सभी के सामने शिव को भला बुरा कहा किंतु शिव ने उनसे कुछ नहीं कहा। भगवान शिव अपने मन में वैराग्य का भाव रखते थे। इसलिए उन्हें किसी भी प्रकार की माया, ईर्ष्या, अपमान का अंतर नहीं पड़ता था।

दक्ष का यज्ञ

उसके कुछ दिनों के पश्चात राजा दक्ष ने भी एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया। इसमें समस्त देवी-देवता व ऋषियों को न्योता दिया गया था किंतु दक्ष ने स्वयं महादेव व अपनी पुत्री सती को नहीं बुलाया था। इस बात से सती अनभिज्ञ थी किंतु उन्होंने आकाश मार्ग से देवताओं को जाते हुए देखा तो जिज्ञासापूर्वक अपने पति से इसका कारण पूछा।

सती माता की कहानी (Mata Sati Ki Kahani) में जो अनहोनी हुई थी, वह इसी यज्ञ से ही शुरू हुई थी। वह इसलिए क्योंकि ना तो सती माता इस यज्ञ में जाती, ना ही उन्हें आत्म-दाह करना पड़ता और ना ही भगवान शिव के जीवन में इतना दुःख आता।

माता सती का यज्ञ में जाना

माता सती के पूछने पर शिव ने उन्हें राजा दक्ष के द्वारा आयोजित किए गए यज्ञ की बात बताई तो माता सती ने उनसे पूछा कि क्या इस यज्ञ में हमें नहीं बुलाया गया। शिव ने उस दिन की सारी बात सती को बताई और कहा कि वे हमसे ईर्ष्या व वैमनस्य भाव रखते हैं, इसलिए हमें वहां नहीं बुलाया गया है।

फिर भी माता सती ने वहां जाने का आग्रह किया। शिव को किसी अनहोनी के होने का डर था। इस पर माता सती ने उन्हें अपनी दस महाविद्या के दर्शन दिए। इन्हें देखकर भगवान शिव ने माता सती को राजा दक्ष के यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। इसके तुरंत बाद माता सती दक्ष के यज्ञ में जाने के लिए निकल पड़ी थी।

सती का आत्मदाह

वहां पहुंचकर सती ने देखा कि उन्हें देखकर उनके पिता को बिल्कुल भी प्रसन्नता नहीं हुई। इसी के साथ माता सती यज्ञ स्थल पर भगवान शिव का स्थान ना देखकर नाराज़ हो गई। उन्होंने अपने पिता दक्ष से इसका कारण पूछा तो उन्होंने भगवान शिव का अपमान किया। राजा दक्ष ने शिव को भरी सभा में भगवान मानने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि वह तो भूतों के राजा हैं जो पहाड़ों पर नग्न अवस्था में रहते हैं व मेरी पुत्री को भी बिना गहनों व श्रृंगार के रखते हैं।

अपने पति का सभी के सामने ऐसा अपमान देखकर सती अत्यंत क्रोधित हो गई। सभा में शिव के अपमान के बाद भी समस्त देवता व ऋषियों के चुप रहने के कारण उनका क्रोध अत्यधिक बढ़ गया। इसी क्रोध में माता सती उस यज्ञ में अपने शरीर की आहुति देने के लिए उस ज्वाला में कूद पड़ी। यह देख सब जगह हाहाकार मच गया।

माता सती की मृत्यु कैसे हुई?

राजा दक्ष के यज्ञ कुंड की अग्नि में माता सती के कूद जाने को हम सभी सती के आत्म-दाह के नाम से जानते हैं। यज्ञ कुंड की अग्नि बहुत तेज थी। अपने पति का अपमान नहीं सह पाने के कारण ही माता सती ने उस कुंड में कूदने का निर्णय लिया था। जैसे ही माता सती उसमें कूदी, उनके शरीर ने आग पकड़ ली और उनकी मृत्यु हो गई। इस तरह से माता सती की कथा (Mata Sati Ki Katha) का अंत तो यहीं हो गया था लेकिन अब आपको भगवान शिव का रोद्र व मार्मिक दोनों रूप देखने को मिलेंगे।

जैसे ही भगवान शिव को इसके बारे में पता चला तो वे अग्नि की तेज गति से यज्ञ की ओर दौड़ पड़े। वहाँ पहुँच कर जब भगवान शिव ने अपनी पत्नी सती का जला हुआ मृत शरीर देखा तो उनका शरीर फुंफकारने लगा। उनके इसी क्रोधित रूप में से वीरभद्र का जन्म हुआ जिसने संपूर्ण यज्ञ को तहस-नहस कर दिया। इसी के साथ ही वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति का सिर धड़ से काटकर अलग कर दिया था।

सती का अंग कहां कहां गिरा?

जब भगवान शिव ने राजा दक्ष का भी वध कर दिया तब उनका ध्यान फिर से अपनी पत्नी पर गया। माता सती की मृत्यु हो चुकी थी और उनका अधजला शरीर यज्ञ कुंड में पड़ा हुआ था। यह देखकर शिव का क्रोध भयानक पीड़ा में बदल गया था। उन्होंने तुरंत माता सती के अधजले शरीर को यज्ञ कुंड से निकाल कर अपने सीने से लगा लिया। इसके बाद वे दसों दिशाओं में उनके मृत शरीर को लेकर पागलों की तरह दौड़ने लगे।

स्वयं भगवान शिव की ऐसी दयनीय स्थिति देखकर तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे कुछ करने को कहा। यह देखकर भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र शिव की ओर छोड़ दिया। सुदर्शन चक्र ने एक-एक करके सती के शरीर के विभिन्न अंगों को काट डाला जो पृथ्वी पर 51 अलग-अलग स्थानों पर गिरे।

वर्तमान में उन्हीं स्थानों पर माँ आदिशक्ति के 51 शक्तिपीठ स्थापित हैं जहाँ हर वर्ष करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यह शक्तिपीठ वर्तमान भारत में ही नहीं पड़ते बल्कि यह पूर्व के अविभाजित भारत में आते हैं। इसमें आतंकी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, इत्यादि सम्मिलित है।

शिव के आंसुओं से बना कुंड

सती के शरीर के टुकड़े होने के बाद भी भगवान शिव का दुःख कम नहीं हुआ। सती के 51 अंग जहाँ-जहाँ भी गिरे, वहां उनके साथ भगवान शिव के भैरव अवतार भी हुए ताकि वे उनकी रक्षा कर सके। इसके बाद भगवान शिव सती की याद में इतना रोए थे कि उनके आंसुओं से दो कुंड का निर्माण हुआ। इसमें से एक कुंड राजस्थान के पुष्कर में स्थित है तो दूसरा कुंड पाकिस्तान के कटासराज मंदिर में।

कुछ दिनों के पश्चात भगवान शिव का दुःख कम हुआ तो उन्होंने फिर से सब मोहमाया का पूर्ण रूप से त्याग कर दिया था। इसके बाद वे लंबी साधना में चले गए थे जिसमें वे वर्षों वर्ष तक रहे थे। उनकी साधना के दौरान ही माता सती का पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ था। माता पार्वती ने पुनः उन्हें पति रूप में प्राप्त करने के लिए वर्षों की कठोर तपस्या की थी। इसके बाद शिव उन्हें पुनः पति रूप में प्राप्त हुए थे।

निष्कर्ष

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने माता सती की कथा (Mata Sati Ki Katha) को संपूर्ण रूप में जान लिया है। इस कहानी को सुनकर हमें भगवान शिव के क्रोधित और मार्मिक रूप का पता चलता है। साथ ही प्रेम और वैराग्य का संगम भी दिखाई देता है। वह भगवान शिव ही थे जो किसी से भी मोहमाया का भाव नहीं रखते थे और वे भी भगवान शिव ही थे जो अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात इतना रोए थे कि उससे दो कुंड का निर्माण हो गया था।

माता सती की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: सती का इतिहास क्या है?

उत्तर: माता सती का इतिहास यही है कि वे राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थी उन्होंने अपने पति का अपमान होने पर अपने पिता के ही यज्ञ कुंड में कूद कर आत्म-दाह कर लिया था

प्रश्न: पार्वती जी सती क्यों हुई थी?

उत्तर: पार्वती माता कभी सती नहीं हुई थीहालाँकि पार्वती माता सती का पुनर्जन्म थी अपने पहले जन्म में वे माता सती के रूप में अपने पिता के यज्ञ कुंड में कूदकर सती हो गई थी

प्रश्न: सती ने खुद को क्यों मारा?

उत्तर: जब माता सती अपने पिता के यज्ञ में गई तो वहां उनके पिता ने उनके पति भगवान शिव का अपमान किया इस कारण सती ने अपने आप को मार लिया था

प्रश्न: सती का पहला नाम क्या था?

उत्तर: माता सती का पहला नाम सती ही था और उन्हें माँ भगवती का ही रूप माना जाता है स्वयं माँ भगवती ही राजा दक्ष के यहाँ पुत्री रूप में जन्मी थी

प्रश्न: सती के 51 टुकड़े कहां गिरे थे?

उत्तर: माता सती के 51 टुकड़े अविभाजित भारत की 51 अलग-अलग जगहों पर गिरे थे वर्तमान में इसमें भारत, आतंकी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, इत्यादि देश आते हैं

प्रश्न: शिव की असली पत्नी कौन है?

उत्तर: भगवान शिव की पत्नी एक ही है जिन्हें माता सती या पार्वती कहा जाता है माता सती के आत्म-दाह करने के पश्चात पार्वती उनका ही पुनर्जन्म थी

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कृष्णा

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