चंद्रग्रहण (Chandragrahan) वर्ष में कई बार लगता है जो कि एक खगोलीय घटना है। इस दिन चंद्रमा दिखाई तो देता है लेकिन वह आंशिक या गहरा लाल होता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि चंद्र ग्रहण के समय चंद्रमा गायब नहीं होता है, जैसा कि अमावस्या के दिन होता है। इस दिन हमें चंद्रमा सफेद रंग का नहीं बल्कि लाल या मटमैले रंग का दिखाई देता है।
साथ ही यदि हम आपको यह भी बताएं कि जिस दिन चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) होता है, उसी दिन पूर्णिमा भी होती है। मतलब चंद्रमा पूरा तो निकलता है लेकिन उसका रंग बदला हुआ होता है। आज हम चंद्र ग्रहण से जुड़ी कुछ ऐसी ही रोचक बातें आपको बताएँगे जिन्हें जानकर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे। आइए जानते हैं।
ब्रह्मांड में कुछ भी स्थाई नहीं है और ना ही कोई रुका हुआ है। वहाँ पर हर कोई गतिमान है और हर कोई किसी ना किसी का चक्कर लगा रहा है। सूर्य तारा मंदाकिनी आकाशगंगा के चारों ओर चक्कर लगा रहा है, पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूम रही है तो वहीं चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर गतिमान है। इस तरह से सभी किसी ना किसी के चारों और घूम रहे हैं।
अब इसी तरह घूमते-घूमते कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि चंद्रमा तक सूर्य का प्रकाश सीधे ना पहुँच कर पृथ्वी से टकरा कर पहुँचता है। एक तरह से चंद्रमा पृथ्वी की छाया में चला जाता है। इस स्थिति में Chandra Grahan लगता है और चंद्रमा का रंग बदला-बदला सा नज़र आता है। आइए इसके बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
सबसे पहले तो हम यह जान लेते हैं कि चंद्रग्रहण कहते किसे हैं और इसका क्या अर्थ होता है। यह तो सभी जानते होंगे कि चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है और वह हमेशा इसके चारों ओर चक्कर लगाता रहता है। आज आप यह भी जान लें कि रात में हमें जो चंद्रमा दिखाई देता है, वह उसकी खुद की रोशनी नहीं होती है। चंद्रमा हमें सूर्य के प्रकाश के कारण दिखाई देता है।
यदि आप ध्यान से देखें तो चंद्रमा कभी छुपता नहीं है और यह आपको दिन में भी दिखाई दे जाएगा। रात में बस सूर्य छिप जाता है जिस कारण हमें चंद्रमा साफ-साफ दिखाई देता है। अब होता क्या है कि घूमते-घूमते चंद्रमा एक ऐसी स्थिति बना लेता है कि वह पृथ्वी के ठीक पीछे चला जाता है। ऐसे में चंद्रमा पृथ्वी की छाया क्षेत्र में आ जाता है और उस पर सूर्य का प्रकाश सीधे नहीं पहुँच पाता है। उस समय चंद्रमा लाल या हल्का पीला सा दिखाई देता है जिसे चंद्रग्रहण कहते हैं।
चंद्र ग्रहण की स्थिति में सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक सीधे नहीं पहुँच पाता लेकिन फिर भी वह हमें दिखाई देता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर विभिन्न रंगों में पहुँचता है लेकिन हमारे तक पहुँचते-पहुँचते केवल लाल रंग शेष बचता है। इस कारण चंद्रग्रहण के दिन उस तक प्रकाश न पहुँचने के बाद भी वह हमें लाल प्रतीत होता है।
यह आवश्यक नहीं कि इस दिन चंद्रमा पूरा लाल ही दिखाई दे। यह पूर्ण रूप से चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करता है। कुछ अन्य स्थितियों में यह आधा लाल और आधा मटमैला या कम लाल या पीला दिखाई देता है। वहीं कभी-कभी यह पूरा ही मटमैला सा दिखाई देता है। अब यह कैसे होता है, इसके बारे में आपको नीचे जानने को मिलेगा।
Chandragrahan होता कैसे है और किस तरह से यह पृथ्वी के पीछे छुप जाता है, यह भी जान लेते हैं। दरअसल यह तो आप सभी जानते ही होंगे कि पृथ्वी का आकार चंद्रमा से बड़ा है लेकिन कितना? तो यहाँ आप यह जान लीजिए कि जब हम सैकड़ों चंद्रमा को मिला लेंगे तो एक पृथ्वी बनती है। इसे आप इस तरह से समझ लें कि पृथ्वी फुटबॉल है तो चंद्रमा क्रिकेट की एक गेंद। वहीं यदि हम सूर्य की परिकल्पना करें तो वह तीन मंजिल जितनी विशाल गेंद समझ लें जिसके सामने पृथ्वी भी कुछ नहीं।
अब चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ घूमता रहता है। ऐसे में एक स्थिति ऐसी आती है जब यह पृथ्वी के पीछे चला जाता है। उस समय यह सूर्य को दिखाई नहीं देता है। इसे आप कुछ इस तरह से समझें कि एक पिता अपने छोटे बच्चे को डांट रहा हो लेकिन माँ उसे अपने पीछे छुपा लेती है। ठीक इसी तरह पृथ्वी के पीछे चंद्रमा छुप जाता है और सूर्य को वह दिखाई नहीं देता है। इस स्थिति में सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर सीधे ना पड़कर पृथ्वी से टकरा कर पहुँचता है। ऐसी स्थिति में उस पर ग्रहण लग जाता है और वह लाल या मटमैला दिखाई देता है।
पूर्ण चंद्रग्रहण के दिन सूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं जिस कारण चंद्रमा पृथ्वी की गहरी छाया में एक दम ढक जाता है। केवल यही वह स्थिति होती है जिस समय चंद्रमा तक सूर्य का प्रकाश बिल्कुल भी नहीं पहुँचता। ऐसी स्थिति में हमें चंद्रमा गहरे लाल रंग में होने का आभास होता है। चूँकि यह आवश्यक नहीं कि चंद्रमा हमेशा पृथ्वी तथा सूर्य की एक सीधी रेखा में ही रहे, कभी-कभार यह ऊपर नीचे भी होता है इसलिए उस स्थिति में अर्ध या उपच्छाया चंद्र ग्रहण लगता है।
अर्ध चंद्र ग्रहण का यह अर्थ नहीं है कि हमें केवल आधा चाँद ही दिखाई देगा। दरअसल अर्ध चंद्र ग्रहण में हमें आधा चाँद गहरा लाल तथा आधा चाँद आंशिक लाल या मटमैला दिखाई देता है। उपच्छाया चंद्र ग्रहण की स्थिति में चंद्रमा तक सूर्य का प्रकाश पहुँचता तो है लेकिन सीधे नहीं अपितु यह पृथ्वी की सतह से टकराकर उस तक पहुँचता है। इसलिए उस दिन हमें पूरा चाँद आंशिक लाल या मटमैला दिखाई पड़ता है।
क्या आप जानते हैं कि चंद्र ग्रहण के दिन चाँद छुपता नहीं है बल्कि उस दिन तो पूर्णिमा की रात होती है अर्थात चंद्रग्रहण के दिन हम चाँद को उसके पूर्ण आकार में देखते हैं। इसलिए Chandra Grahan हमेशा पूर्णिमा की रात को ही लगता है। अब सोचने वाली बात यह है कि यदि हम चंद्रमा को उसके पूर्ण अवतार में देखते हैं तो उस दिन चंद्र ग्रहण कैसे हुआ?
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पूर्णिमा होने के लिए चंद्रमा का पृथ्वी से पीछे होना आवश्यक होता है। यदि चंद्रमा पृथ्वी के थोड़ा सा भी आगे हुआ तो उसका वह भाग दिखेगा ही नहीं क्योंकि वह भाग सूर्य के सामने होता है तथा पृथ्वी उसके पीछे होती है। इसलिए पूर्णिमा होने के लिए चंद्रमा का पृथ्वी से पीछे होना आवश्यक है जिससे सूर्य का प्रकाश पूर्ण रूप से उस पर पड़कर पृथ्वी तक पहुँचे तथा वह हमें पूर्ण रूप से दिखाई दे।
अब आपके मन में यह प्रश्न आ रहा होगा कि जब पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण के समय एक ही स्थिति बनती है तो फिर हर पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण क्यों नहीं होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते समय केवल एक रेखा में नहीं घूमता है बल्कि यह नीचे की ओर 5 डिग्री का कोण बनाता हुआ घूमता है। इसलिए चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए ऊपर नीचे भी घूमता है जिससे कभी वह पृथ्वी की कक्षा के ऊपर तो कभी नीचे तो कभी बीच में आ जाता है। इसे आप इस चित्र से समझें।
उक्त चित्र को देखकर आप समझ सकते हैं कि चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर अलग-अलग रेखाओं में चक्कर लगाता है। ऐसे में जब वह उस रेखा में होता है जहाँ उस तक सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचे और वह पृथ्वी की छाया में आ जाए, तब Chandragrahan की स्थिति बनती है। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि हर पूर्णिमा चंद्रग्रहण नहीं होती जबकि हर चंद्रग्रहण पूर्णिमा के दिन लगता है।
यह एक खगोलीय घटना तो है लेकिन इस समय परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती है। वह इसलिए क्योंकि जो सामान्य रूप से चल रहा होता है, वह पृथ्वी के लिए सही होता है लेकिन जब कुछ असामान्य होता है तो उसके दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं। चंद्रमा हमें शीतलता प्रदान करता है और उससे पृथ्वी को जल तत्व भी प्राप्त होता है। अब यदि वही चंद्रमा छुप जाता है और उस पर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता है तो यह सही नहीं है।
इस कारण शास्त्रों में ग्रहण को शुभ नहीं माना गया है और उस समय कई सावधानियाँ बरतने को कहा गया है। वह इसलिए क्योंकि इस समय वायुमंडल में नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है और हानिकारक किरणें फैली होती है। असुरी शक्तियां इस समय शक्तिशाली होती है जबकि देवता कमजोर पड़ जाते हैं। यह मनुष्य जीवन को भी प्रभावित करती है। आइए जाने इस समय आपको क्या कुछ सावधानी रखनी चाहिए।
ग्रहण के समय बाहर निकलने से इसलिए मना किया जाता है क्योंकि उस समय वातावरण में हानिकारक किरणों का प्रभाव बढ़ जाता है। शास्त्रों के अनुसार आपको इस दौरान अन्न-जल का भी त्याग कर देना चाहिए। ग्रहण से पहले ही भोजन कर लें और उसे बचाकर ना रखें। इसी तरह पीने के पानी में भी तुलसी का पत्ता डालकर रखें ताकि उस पर ग्रहण का प्रभाव ना पड़े।
इतना ही नहीं, Chandra Grahan के समय आपको सोना भी नहीं चाहिए और ना ही इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल करना चाहिए। भगवान की मूर्तियों को भी स्पर्श करने या पूजा स्थल में जाने से बचना चाहिए। वह इसलिए क्योंकि ईश्वरीय मूर्तियाँ सकारात्मक ऊर्जा लिए होती है और उस समय वायुमंडल में नकारात्मक शक्तियां हावी होती है। ऐसे में दोनों में टकराव होने पर आपको इसके दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं।
ऊपर आपने यह तो जान लिया है कि चंद्रग्रहण में क्या ना करें लेकिन अब आप यह भी जान लें कि उस दौरान आपको क्या कुछ करना चाहिए। तो चंद्रग्रहण में आपको जितना हो सके, सकारात्मक रहना चाहिए। इस समय असुरी शक्तियां हावी होती है और वातावरण में भी नकारात्मकता छाई रहती है। ऐसे में यदि आप भी नकारात्मक सोचेंगे तो इससे आपकी मनोस्थिति पर बहुत बुरा असर हो सकता है।
इसलिए आपको सकारात्मक रहना चाहिए। इसके लिए उन लोगों से बात करें जिनसे बात करके आपको खुशी मिले। अच्छी पुस्तकें पढ़ें और वह काम करें, जिसमें आपको आनंद आए। Chandragrahan समाप्त होने के बाद घर के हरेक कमरे में गंगाजल छिड़कें और खुद भी नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
गर्भवती महिलाओं को मुख्यतया बाहर जाने तथा ग्रहण को देखने की मनाही होती है क्योंकि गर्भ में पल रहा शिशु अत्यंत नाजुक होता है। वातावरण में फैली नकारात्मकता उसे शारीरिक तथा मानसिक तौर पर प्रभावित कर सकती है। इस समय प्रेग्नेंट लेडी के द्वारा बरती गई छोटी सी भी कोताही उसके अजन्मे शिशु पर बहुत बुरा असर डाल सकती है। इससे वह जन्म के समय अपंग या मानसिक रूप से अक्षम हो सकता है।
ऐसे में गर्भवती महिला को Chandragrahan के दौरान आराम करना चाहिए। धर्म के अनुसार, उसे अपनी गोद में एक नारियल रखकर बैठ जाना चाहिए और वैदिक मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। इसमें ॐ व गायत्री मंत्र का जाप किया जाना अत्यंत लाभदायक होता है। यदि गर्भवती महिला ऐसा करती है तो उसके अजन्मे शिशु पर ग्रहण का प्रभाव ना के बराबर देखने को मिलता है।
चंद्रग्रहण से जुड़े प्रश्नोत्तर
प्रश्न: चंद्रग्रहण क्या है समझाइए?
उत्तर: चंद्रग्रहण के समय चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमते हुए उसकी छाया में चला जाता है अर्थात उसके पीछे छुप जाता है। इस स्थिति में उस तक सूर्य का प्रकाश सीधे ना पहुँच कर पृथ्वी से टकरा कर पहुँचता है।
प्रश्न: चन्द्र ग्रहण कब होता है?
उत्तर: जब चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ उसके पीछे ऐसी जगह चला जाता है जहाँ से वह सूर्य को दिखाई ही ना दे तो उस समय चन्द्र ग्रहण होता है।
प्रश्न: चन्द्र ग्रहण क्यों होता है?
उत्तर: यह एक खगोलीय घटना है। इसमें चन्द्रमा पृथ्वी के पीछे चला जाता है और उस समय सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक सीधे नहीं पहुँच पाता है। इसलिए चन्द्र ग्रहण हो जाता है।
प्रश्न: अमावस्या के दिन और चंद्र ग्रहण में क्या अंतर है?
उत्तर: अमावस्या के दिन और चंद्र ग्रहण में दिन-रात का अंतर है। अमावस्या में चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में होता है जबकि चंद्र ग्रहण में पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच में एक सीधी रेखा में होती है।
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