सनातन धर्म में कई तरह के वर्ग व जाति के लोग होते हैं। ऐसे में उन सभी के देवता भी समय, स्थान व कुल के अनुसार परिवर्तित होते जाते हैं। किसी समयकाल के अंदर जिस व्यक्ति ने ईश्वरीय रूप में उनकी सहायता की होती है, आगे चलकर वह उनके लिए देवता का स्थान ले लेते हैं। कुछ ऐसी ही मान्यता सिंध समाज में झूलेलाल जी को लेकर है जो सिंधी लोगों के लिए पूजनीय है। ऐसे में आज के इस लेख में हम आपके साथ झूलेलाल चालीसा का पाठ (Jhulelal Chalisa) ही करने जा रहे हैं।
श्री झूलेलाल चालीसा (Shri Jhulelal Chalisa) के माध्यम से झूलेलाल जी के जीवन, उनकी शक्तियों तथा कर्मों के बारे में विस्तृत वर्णन दिया गया है। ऐसे में आज हम आपके साथ झूलेलाल चालीसा इन हिंदी (Jhulelal Chalisa In Hindi) में भी सांझा करेंगे ताकि आप उसका भावार्थ समझ सकें। अंत में हम आपके साथ झूलेलाल जी की चालीसा पढ़ने के फायदे व महत्व भी सांझा करेंगे। तो चलिए सबसे पहले पढ़ते हैं झूलेलाल चालीसा।
॥ दोहा ॥
जय जय जल देवता, जय ज्योति स्वरूप।
अमर उडेरो लाल जय, झुलेलाल अनूप॥
॥ चौपाई ॥
रतनलाल रतनाणी नंदन, जयति देवकी सुत जग वंदन।
दरियाशाह वरुण अवतारी, जय जय लाल साईं सुखकारी।
जय जय होय धर्म की भीरा, जिन्दा पीर हरे जन पीरा।
संवत दस सौ सात मंझरा, चैत्र शुक्ल द्वितिया भगऊ वारा।
ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा, प्रभु अवतरे हरे जन कलेशा।
सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी, मिरखशाह नऊप अति अभिमानी।
कपटी कुटिल क्रूर कूविचारी, यवन मलिन मन अत्याचारी।
धर्मान्तरण करे सब केरा, दुखी हुए जन कष्ट घनेरा।
पिटवाया हाकिम ढिंढोरा, हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा।
सिन्धी प्रजा बहुत घबराई, इष्ट देव को टेर लगाई।
वरुण देव पूजे बहुंभाती, बिन जल अन्न गए दिन राती।
सिन्धी तीर सब दिन चालीसा, घर घर ध्यान लगाये ईशा।
गरज उठा नद सिन्धु सहसा, चारो और उठा नव हरषा।
वरुणदेव ने सुनी पुकारा, प्रकटे वरुण मीन असवारा।
दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरुपा, कर पुष्तक नवरूप अनूपा।
हर्षित हुए सकल नर नारी, वरुणदेव की महिमा न्यारी।
जय जय कार उठी चाहुँओरा, गई रात आने को भौंरा।
मिरखशाह नऊप अत्याचारी, नष्ट करूँगा शक्ति सारी।
दूर अधर्म, हरण भू भारा, शीघ्र नसरपुर में अवतारा।
रतनराय रातनाणी आँगन, खेलूँगा, आऊँगा शिशु बन।
रतनराय घर खुशी आई, झुलेलाल अवतारे सब देय बधाई।
घर घर मंगल गीत सुहाए, झुलेलाल हरन दुःख आए।
मिरखशाह तक चर्चा आई, भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई।
मंत्री ने जब बाल निहारा, धीरज गया हृदय का सारा।
देखि मंत्री साईं की लीला, अधिक विचित्र विमोहन शीला।
बालक धीखा युवा सेनानी, देखा मंत्री बुद्धि चाकरानी।
योद्धा रूप दिखे भगवाना, मंत्री हुआ विगत अभिमाना।
झुलेलाल दिया आदेशा, जा तव नऊपति कहो संदेशा।
मिरखशाह नऊप तजे गुमाना, हिन्दू मुस्लिम एक समाना।
बंद करो नित्य अत्याचारा, त्यागो धर्मान्तरण विचारा।
लेकिन मिरखशाह अभिमानी, वरुणदेव की बात न मानी।
एक दिवस हो अश्व सवारा, झुलेलाल गए दरबारा।
मिरखशाह नऊप ने आज्ञा दी, झुलेलाल बनाओ बन्दी।
किया स्वरुप वरुण का धारण, चारो और हुआ जल प्लावन।
दरबारी डूबे उतराये, नऊप के होश ठिकाने आये।
नऊप तब पड़ा चरण में आई, जय जय धन्य जय साईं।
वापिस लिया नऊपति आदेशा, दूर दूर सब जन क्लेशा।
संवत दस सौ बीस मंझारी, भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी।
भक्तो की हर आधी व्याधि, जल में ली जलदेव समाधि।
जो जन धरे आज भी ध्याना, उनका वरुण करे कल्याणा।
॥ दोहा ॥
चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय।
पावे मनवांछित फल अरु जीवन सुखमय होय॥
॥ दोहा ॥
जय जय जल देवता, जय ज्योति स्वरूप।
अमर उडेरो लाल जय, झुलेलाल अनूप॥
हे जल देवता!! आपकी जय हो, जय हो। आप ही ज्योति स्वरुप हो जो हमें आशा की किरण दिखाते हो। आपने ही सिंध प्रांत में झूलेलाल के रूप में जन्म लेकर वहां के लोगों का उद्धार कर दिया था।
॥ चौपाई ॥
रतनलाल रतनाणी नंदन, जयति देवकी सुत जग वंदन।
दरियाशाह वरुण अवतारी, जय जय लाल साईं सुखकारी।
जय जय होय धर्म की भीरा, जिन्दा पीर हरे जन पीरा।
संवत दस सौ सात मंझरा, चैत्र शुक्ल द्वितिया भगऊ वारा।
आप रतनलाल जी के नंदलाला हो और आपकी माता का नाम देवकी है। आपकी वंदना पूरा जगत करता है। आप समुंद्र से वरुण देवता के अवतार के रूप में प्रकट हुए और प्रजा को सुख प्रदान किया। आपने जन्म लेकर धर्म की रक्षा की और सभी लोग आपको पीर के रूप में पूजते हैं। आपने 1007 ईसवीं के चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन जन्म लिया था।
ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा, प्रभु अवतरे हरे जन कलेशा।
सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी, मिरखशाह नऊप अति अभिमानी।
कपटी कुटिल क्रूर कूविचारी, यवन मलिन मन अत्याचारी।
धर्मान्तरण करे सब केरा, दुखी हुए जन कष्ट घनेरा।
सिंध प्रांत के नसरपुर गाँव में आपने अवतार लिया ताकि प्रजा के दुखों को समाप्त किया जा सके। उस समय सिंध प्रान्त का राजा मिरखशाह बहुत ही अहंकारी था। वह कपटी, कुटील, क्रूर व बुरे विचारों वाला था जो हिन्दुओं पर अत्याचार किया करता था। उसने सिंध प्रांत में जोरशोर से हिन्दुओं का इस्लाम में धर्म परिवर्तन करवाना शुरू कर दिया था जिस कारण प्रजा बहुत ही दुखी व कष्ट में थी।
पिटवाया हाकिम ढिंढोरा, हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा।
सिन्धी प्रजा बहुत घबराई, इष्ट देव को टेर लगाई।
वरुण देव पूजे बहुंभाती, बिन जल अन्न गए दिन राती।
सिन्धी तीर सब दिन चालीसा, घर घर ध्यान लगाये ईशा।
मिरखशाह के हाकिमो ने चारों ओर इस बात का ढिंढोरा पिटवा दिया कि सभी हिन्दुओं को इस्लाम में परिवर्तित होना पड़ेगा। यह सुनकर सिंध प्रांत के हिन्दू बहुत ही घबरा गये और उन्होंने अपने इष्ट देव से प्रार्थना की। उन्होंने वरुण देवता की पूजा करनी शुरू कर दी तथा अन्न, जल सभी का त्याग कर दिया। हर घर में वरुण देवता की चालीसा व प्रार्थना की जाने लगी।
गरज उठा नद सिन्धु सहसा, चारो और उठा नव हरषा।
वरुणदेव ने सुनी पुकारा, प्रकटे वरुण मीन असवारा।
दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरुपा, कर पुष्तक नवरूप अनूपा।
हर्षित हुए सकल नर नारी, वरुणदेव की महिमा न्यारी।
लोगों की प्रार्थना के फलस्वरूप सिंधु सागर में गरजना हुई और यह देखकर चारों ओर हर्ष का वातावरण छा गया। वरुण देव लोगों की पुकार को सुनकर मछली रूप में प्रकट हुए। वे दिव्य तथा ब्रह्म स्वरुप में थे। उनके हाथों में पुष्तक तथा रूप अनूठा था। वरुण देव की महिमा को देखकर सभी मनुष्यों में आनंद की लहर दौड़ पड़ी।
जय जय कार उठी चाहुँओरा, गई रात आने को भौंरा।
मिरखशाह नऊप अत्याचारी, नष्ट करूँगा शक्ति सारी।
दूर अधर्म, हरण भू भारा, शीघ्र नसरपुर में अवतारा।
रतनराय रातनाणी आँगन, खेलूँगा, आऊँगा शिशु बन।
वरुण देव की जय-जयकार हर जगह होने लगी और रात से दिन होने को आ गयी। वरुण देव ने लोगों से कहाँ कि मिरखशाह बहुत ही अत्याचारी राजा है और वे उसकी शक्ति को नष्ट कर देंगे। उन्होंने कहा कि वे जल्द ही इस धरती से अधर्म को दूर करने के लिए नसरपुर गाँव में अवतार लेंगे। उसके लिए वे रतनराय के घर शिशु रूप में जन्म लेंगे और वहां अपना बचपन बिताएंगे।
रतनराय घर खुशी आई, झुलेलाल अवतारे सब देय बधाई।
घर घर मंगल गीत सुहाए, झुलेलाल हरन दुःख आए।
मिरखशाह तक चर्चा आई, भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई।
मंत्री ने जब बाल निहारा, धीरज गया हृदय का सारा।
इसके कुछ समय के पश्चात रतनराय के घर में खुशियों ने प्रवेश किया और उनके घर वरुण देव झूलेलाल अवतार में प्रकट हुए। झूलेलाल जी के जन्म पर घर-घर में मंगल गीत गाये गए। झूलेलाल का जन्म प्रजा के दुखों को हरने के लिए हुआ था। जब मिरखशाह को इसकी सूचना मिली तो उसने क्रोधवश रतनराय के घर अपना मंत्री भेजा। जब मिरखशाह के मंत्री ने झूलेलाल बालक को देखा तो उसका सारा धीरज चला गया।
देखि मंत्री साईं की लीला, अधिक विचित्र विमोहन शीला।
बालक धीखा युवा सेनानी, देखा मंत्री बुद्धि चाकरानी।
योद्धा रूप दिखे भगवाना, मंत्री हुआ विगत अभिमाना।
झुलेलाल दिया आदेशा, जा तव नऊपति कहो संदेशा।
मंत्री साईं झूलेलाल की लीला को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। उसे उस बालक में एक युवा योद्धा दिखाई दिया जिसे देखकर मंत्री का दिमाग चकरा गया। उसे योद्धा रूप में साक्षात भगवान के दर्शन हुए और उसका अहंकार नष्ट हो गया। तब झूलेलाल ने मंत्री को आदेश दिया कि राजा मिरखशाह को उनका संदेश पहुँचाया जाए।
मिरखशाह नऊप तजे गुमाना, हिन्दू मुस्लिम एक समाना।
बंद करो नित्य अत्याचारा, त्यागो धर्मान्तरण विचारा।
लेकिन मिरखशाह अभिमानी, वरुणदेव की बात न मानी।
एक दिवस हो अश्व सवारा, झुलेलाल गए दरबारा।
झूलेलाल जी ने कहा कि मिरखशाह अपना अभिमान छोड़ दे और हिन्दू व मुस्लिम को एक समान समझ एक जैसा व्यवहार करे। उन्होंने मिरखशाह को हिन्दुओं के ऊपर अत्याचार बंद करने और धर्मान्तरण का खेल बंद करने को कहा। किन्तु मिरखशाह तो बहुत अभिमानी था और उसने वरुण देव की कोई बात नहीं मानी। इसके कुछ दिनों के पश्चात, झूलेलाल जी घोड़े पर सवार होकर मिरखशाह के दरबार में गए।
मिरखशाह नऊप ने आज्ञा दी, झुलेलाल बनाओ बन्दी।
किया स्वरुप वरुण का धारण, चारो और हुआ जल प्लावन।
दरबारी डूबे उतराये, नऊप के होश ठिकाने आये।
नऊप तब पड़ा चरण में आई, जय जय धन्य जय साईं।
झूलेलाल जी को अपने सामने देखकर मिरखशाह ने अपने सैनिकों को उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया। यह देखकर झूलेलाल जी ने वरुण देव का अवतार ले लिया और चारों ओर पानी ही पानी हो गया। उस पानी में सभी दरबारी डूबने लगे और यह देखकर मिरखशाह का होश ठिकाने आया। वह तुरंत झूलेलाल जी के चरणों में आकर गिर पड़ा और उनकी जय-जयकार की।
वापिस लिया नऊपति आदेशा, दूर दूर सब जन क्लेशा।
संवत दस सौ बीस मंझारी, भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी।
भक्तो की हर आधी व्याधि, जल में ली जलदेव समाधि।
जो जन धरे आज भी ध्याना, उनका वरुण करे कल्याणा।
तब दुष्ट मिरखशाह ने धर्मांतरण का अपना आदेश वापस ले लिया जिससे हिन्दुओं का कष्ट दूर हुआ। यह वर्ष 1020 का समयकाल था जो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी थी। अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर झूलेलाल जी ने जल में ही समाधि ले ली। जो भक्तगण आज भी झूलेलाल जी का ध्यान करते हैं, वरुण देव उनका कल्याण करते हैं।
॥ दोहा ॥
चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय।
पावे मनवांछित फल अरु जीवन सुखमय होय॥
जो कोई भी चालीस दिन तक इस झूलेलाल चालीसा का पाठ करता है, उसके मन की हरेक इच्छा पूरी हो जाती है तथा उसका जीवन सुखमय हो जाता है।
किसी भी समाज या वर्ग के लिए उनके लोक देवता या भगवान की बहुत ज्यादा मान्यता होती है। एक समय पहले तक भारत के सिंध प्रांत में इस्लामिक आक्रांताओं का प्रकोप बहुत बढ़ गया था और उनके द्वारा हिन्दू धर्म के अनुयायियों को लगातार मारा जा रहा था। मुगल आक्रांताओं के आंतक से त्रस्त हिन्दुओं ने वरुण देवता से सहायता मांगी तो उन्होंने झूलेलाल जी के रूप में अवतार लेकर उनका कष्ट हरा।
ऐसे में झूलेलाल चालीसा के माध्यम से भगवान झूलेलाल जी के उदय, जीवन, कर्मों, शक्तियों, गुणों व उद्देश्य का महत्व बताया गया है। झूलेलाल चालीसा को पढ़ने से हमें झूलेलाल जी के बारे में संपूर्ण परिचय संक्षिप्त रूप में मिल जाता है और साथ के साथ उनकी आराधना भी हो जाती है। बस यही झूलेलाल जी की चालीसा का महत्व होता है।
अब यदि आप नित्य रूप से भगवान झूलेलाल की चालीसा का पाठ करते हैं तो इसका सबसे प्रमुख लाभ तो यही मिलता है कि आपको जल संबंधित कोई भी रोग नहीं होता है। हमारे शरीर का अधिकांश हिस्सा पानी का ही होता है और यदि इसमें किसी प्रकार की गड़बड़ी हो जाती है तो कई तरह की बीमारियाँ हमें जकड़ लेती हैं। ऐसे में इन सभी बीमारियों से झूलेलाल चालीसा के माध्यम से बचा जा सकता है।
इतना ही नहीं, श्री झूलेलाल चालीसा के जाप से हम अपने शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त कर लेते हैं। यदि हमारे जीवन में किसी तरह का संकट, बाधा, दुःख, कष्ट, विपत्ति इत्यादि आ रही है या हमें आगे का मार्ग नहीं सूझ रहा है तो वह सब भी झूलेलाल चालीसा के माध्यम से सुलझ जाती है। भगवान झूलेलाल जी की कृपा से हम अपने करियर में उन्नति करते हैं तथा समाज में भी हमारा मान-सम्मान बढ़ता है।
झूलेलाल चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: झूलेलाल चालीसा कब है?
उत्तर: हमें लगता है कि आप झूलेलाल जयंती के बारे में पूछना चाह रहे थे। तो आज हम आपको बता दें कि प्रति वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय को झूलेलाल जी की जयंती मनाई जाती है।
प्रश्न: झूलेलाल किसका अवतार है?
उत्तर: झूलेलाल जी को वरुण देवता का अवतार माना जाता है जो जल के स्वामी होते हैं। उनका प्रकटन सिंधु नदी के समीप हुआ था।
प्रश्न: झूलेलाल का असली नाम क्या है?
उत्तर: झूलेलाल जी के बचपन का नाम उदयचंद था किन्तु बाद में उनका नाम झूलेलाल रख दिया गया। आज वे झूलेलाल नाम से ही हम सभी के बीच लोकप्रिय हैं।
प्रश्न: सिंधी भगवान कौन है?
उत्तर: सिंधी लोगों के लिए उनके भगवान वरुण देवता के अवतार झूलेलाल जी हैं जिनके जन्मोत्सव पर उनके द्वारा चेटीचंद का त्यौहार भी मनाया जाता है।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
अन्य संबंधित लेख:
आज के इस लेख में आपको संतोषी चालीसा (Santoshi Chalisa) पढ़ने को मिलेगी। सनातन धर्म…
आज हम आपके साथ वैष्णो देवी की आरती (Vaishno Devi Ki Aarti) का पाठ करेंगे।…
आज के इस लेख में आपको तुलसी आरती (Tulsi Aarti) हिंदी में अर्थ सहित पढ़ने…
आज हम तुलसी चालीसा (Tulsi Chalisa Lyrics) का पाठ करेंगे। हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे…
आज हम आपके साथ महाकाली माता की आरती (Mahakali Mata Ki Aarti) का पाठ करेंगे। जब…
आज हम आपके साथ श्री महाकाली चालीसा (Mahakali Chalisa Lyrics) का पाठ करेंगे। जब भी…
This website uses cookies.