आज हम केदारनाथ मंदिर का इतिहास (Kedarnath Temple History In Hindi) क्या है, इसके बारे में जानेंगे। पिछले एक दशक में केदारनाथ मंदिर की प्रसिद्धि तेजी से बढ़ी है। भारत सरकार ने भी केदारनाथ में अभूतपूर्व निर्माण कार्य करवाए हैं। हालाँकि केदारनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व पहले से ही था। पहले भी लाखों करोड़ों लोग हर वर्ष केदारनाथ मंदिर की यात्रा पर जाते थे।
ऐसे में बहुत से भक्तों के मन में यह प्रश्न उठता है कि केदारनाथ मंदिर किसने बनवाया (Kedarnath Mandir Kisne Banwaya)? वह इसलिए क्योंकि इतनी दुर्गम चढ़ाई पर इतने बड़े-बड़े पत्थरों की सहायता से केदारनाथ मंदिर को बनाया गया है। इसके लिए आपको केदारनाथ का इतिहास जानना होगा। आइये केदारनाथ मंदिर के पीछे की कहानी जानते हैं।
केदारनाथ मंदिर जहाँ स्थित है, वहां की चढ़ाई बहुत ही कठिन है। हालाँकि आज के समय में भारत सरकार ने कई तरह की सुविधाएँ प्रदान की हुई है लेकिन पहले ऐसा नहीं था। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि केदारनाथ जहाँ स्थित है, वहां इतने बड़े-बड़े पत्थर कैसे ले जाए गए और मंदिर का निर्माण आखिरकार संभव कैसे हुआ?
इसके लिए आज हम आपके सामने केदारनाथ मंदिर की कहानी (Kedarnath Temple Story In Hindi) को रखेंगे। यह कहानी पांडवों से जुड़ी हुई है जिसकी शुरुआत महाभारत युद्ध के बाद से होती है। कहने का अर्थ यह हुआ कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था और पांडव हस्तिनापुर के महाराज बन चुके थे, उसके बाद केदारनाथ मंदिर के इतिहास की शुरुआत हुई थी। तो चलिए जानते हैं।
कुरुक्षेत्र की भूमि पर 18 दिनों तक लड़े गए महाभारत के भीषण युद्ध के बारे में भला कौन नही जानता। इस युद्ध में सभी रिश्तों की बलि चढ़ गयी थी फिर चाहे वह गुरु-शिष्य का रिश्ता हो या भाई-भाई का या चाचा-भतीजे का। 18 दिनों तक निरंतर कुरुक्षेत्र की भूमि कौरव व पांडवों की सेना के रक्त से लाल हो गयी थी।
महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात विजय तो अवश्य ही पांडवों की हुई थी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि उन्होंने भी बहुत कुछ खो दिया था। युद्ध समाप्ति के कुछ समय बाद, जब सभी पांडव भगवान श्रीकृष्ण के साथ बैठकर युद्ध के परिणामों व प्रभावों के बारे में चर्चा कर रहे थे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें पश्चाताप करने को कहा।
श्रीकृष्ण के अनुसार पांडवों के ऊपर ब्रह्महत्या, गौत्रहत्या, कुलहत्या, गुरुहत्या इत्यादि कई पाप चढ़ चुके थे। इसके लिए उनका प्रायश्चित करना आवश्यक था। पांडवों ने इसका उपाय पूछा तो श्रीकृष्ण ने बताया कि उन्हें इन पापों से मुक्ति केवल भगवान भोलेनाथ ही दे सकते हैं। इसके पश्चात, सभी पांडव भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से भगवान शिव से मिलने काशी नगरी की ओर चले गए।
श्रीकृष्ण के आदेशानुसार सभी पांडव भगवान शिव की नगरी काशी (बनारस या वाराणसी) पहुंचें। हालाँकि भगवान शिव को पांडवों के उनसे मिलने आने की सूचना पहले ही मिल चुकी थी लेकिन वे उनसे मिलना नही चाहते थे। भगवान शिव पांडवों के द्वारा किये गए ब्रह्महत्या व गौत्रहत्या के पाप से अत्यधिक क्रोधित थे, इसलिए वे पांडवों से बिना मिले ही वहां से चले गए।
पांडवों ने काशी नगरी में भगवान शिव को हर जगह ढूंढा लेकिन वे उन्हें नही मिले। इसके बाद सभी पांडव हिमालय के पहाड़ों पर बसे उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में चले गए। भगवान शिव भी पांडवों से छुप कर यहीं आये थे।
जब भगवान शिव ने पांडवों को अपने पीछे-पीछे गढ़वाल क्षेत्र की ओर बढ़ते हुए देखा तो उन्होंने इसका एक उपाय निकाला। वहां पहाड़ों के बीच कई पशु घास के मैदान में चर रहे थे। भगवान शिव उन पशुओं के बीच में गए और बैल रुपी अवतार ले लिया ताकि पांडव उन्हें पहचान ना पाए।
अपने बैल रुपी अवतार के साथ महादेव उन पशुओं के बीच में चले गए। इस तरह से महादेव का एक अवतार बैल अवतार भी था। इससे ना केवल केदारनाथ मंदिर बल्कि सभी पंच केदारों का निर्माण हुआ था। चलिए केदारनाथ मंदिर की कहानी (Kedarnath Temple Story In Hindi) में आगे जानते हैं कि पांडवों ने महादेव के बैल रुपी अवतार को कैसे पहचाना।
गढ़वाल के पहाड़ों पर भी पांडवों ने भगवान शिव को हर जगह ढूंढा लेकिन वो उन्हें नही मिले। अंत में महाबली भीम को एक उपाय सूझा और उसने अपना शरीर पहाड़ों से भी बड़ा कर लिया। उसने अपना एक पैर एक पहाड़ी पर और दूसरा पैर दूसरी पहाड़ी पर टिकाया और गहनता से महादेव को ढूंढने लगा।
भीम के विशालकाय रूप को देखकर पहाड़ों के सभी पशुओं में हलचल पैदा हो गयी और वे इधर-उधर भागने लगे लेकिन एक बैल अपनी जगह पर स्थिर खड़ा रहा। उस बैल पर भीम के विशालकाय रूप का कोई प्रभाव नही दिखा। यह देखकर भीम समझ गया कि यही बैल महादेव का रूप है जो बैल का अवतार लेकर हमसे छिप रहे हैं।
महादेव को भी पता चल गया कि भीम ने उन्हें पहचान लिया है। यह देखकर वे बैल रुपी अवतार के साथ धरती में समाने लगे। भगवान शिव के बैल अवतार को धरती में समाते देख भीम तेजी से उनकी ओर लपका और बैल की पीठ अपने हाथों से जकड़ ली।
भीम के द्वारा बैल की पीठ अपने हाथों में जकड़े जाने के कारण वह वहीं पर रह गयी जबकि बैल के अन्य चार भाग उत्तराखंड के चार अन्य स्थलों पर निकले। आज उन्हीं स्थलों पर चार अन्य केदार हैं। इनमें भगवान शिव के बैल रुपी अवतार का मुख रुद्रनाथ में, भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में व जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी। इन्हीं पाँचों जगहों को सम्मिलित रूप से पंचकेदार के नाम से जाना जाता हैं।
भीम के द्वारा भगवान शिव के बैल अवतार की पीठ पकड़े जाने के बाद वह वहीं रह गयी थी। जब उन्हें बैल के बाकि चार अंग चार अन्य स्थानों पर प्रकट होने का ज्ञान हुआ तब उन्होंने शिव की महिमा को समझ लिया। इसके बाद पांडवों के द्वारा ही इन पाँचों जगहों पर शिवलिंग की स्थापना कर शिव मंदिरों का निर्माण करवाया गया। इससे भगवान शिव सभी पांडवों से अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्हें सभी पापों से मुक्त कर दिया।
इस तरह से केदारनाथ मंदिर का निर्माण का श्रेय तो पांडवों को जाता है। हालाँकि समय-समय पर भारत पर शासन करने वाले राजाओं व सरकारों का इस मंदिर के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
इस तरह से केदारनाथ मंदिर का इतिहास (Kedarnath Temple History In Hindi) बहुत ही गौरवशाली रहा है। साथ ही इससे जुड़ी कहानी भी सभी का मन मोह लेती है। भगवान शिव की महिमा अपरंपार है जो उनके क्रोध व क्षमा कर देने वाले स्वभाव को दर्शाती है।
केदारनाथ मंदिर के इतिहास से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: केदारनाथ की असली कहानी क्या है?
उत्तर: केदारनाथ की असली कहानी यही है कि यहाँ पर पांडवों में से भीम ने भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की पीठ पकड़ ली थी। उसके बाद यहाँ पीठ रूप शिवलिंग की पूजा की जाती है।
प्रश्न: केदारनाथ मंदिर की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर: केदारनाथ मंदिर की उत्पत्ति नहीं हुई थी बल्कि इसे पांडवों के द्वारा बनवाया गया था। यह सब उन्होंने महादेव का आशीर्वाद लेकर किया था।
प्रश्न: केदारनाथ शिवलिंग के पीछे क्या कहानी है?
उत्तर: केदारनाथ शिवलिंग के पीछे यही कहानी है कि यहाँ जिस शिवलिंग की पूजा की जाती है, वह किसी समय में महादेव के बैल रुपी अवतार की पीठ था।
प्रश्न: पांडव केदारनाथ क्यों गए थे?
उत्तर: पांडव महाभारत के युद्ध में हुए भीषण रक्तपात का पश्चाताप करने के लिए महादेव को ढूंढते हुए केदारनाथ पहुंचे थे।
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