त्रेता युग में जन्मा रावण (Ravan Biography In Hindi) एक ऐसा दुष्ट राक्षस था जो भगवान शिव का भी अनन्य भक्त था। उसका जन्म ब्राह्मण-राक्षस कुल में (Ravan Ka Gotra Kya Tha) हुआ था लेकिन उसके अंदर राक्षस प्रवत्ति के गुण ज्यादा थे। ब्राह्मण होने के कारण उसे समस्त वेदों व शास्त्रों का अच्छे से ज्ञान था लेकिन उसके कर्म राक्षसों के समान थे।
रावण ने अपने जीवन में कई वरदान व सम्मान प्राप्त किए थे लेकिन उसकी सबसे बड़ी भूल माता लक्ष्मी के अवतार माता सीता का हरण (Lankapati Ravan History In Hindi) करना था जिसने रावण समेत उसके कुल का नाश (Lines On Ravan In Hindi) कर दिया था। आज हम आपको रावण के जन्म से लेकर उसके वध तक की कथा का वर्णन करेंगे।
सप्त ऋषियों व दस मुख्य प्रजापतियों में से एक महर्षि पुलस्त्य (Ravan Ke Purvaj) के पुत्र महान ऋषि विश्रवा (Ravan Father Name In Hindi) हुए। दूसरी ओर राक्षस कुल में सुमाली के दस पुत्रो व चार पुत्रियों में से एक कैकसी थी। सुमाली अपनी राक्षसी पुत्री कैकसी का विवाह उच्च कोटि के पुरुष से करवाना चाहते थे लेकिन उन्हें पृथ्वी पर कोई भी ऐसा महान राजा दिखाई नही दिया।
अंत में कैकसी ने महान ऋषि विश्रवा को अपने पति रूप में (Ravan Ka Itihas) चुन लिया। ऋषि विश्रवा का पहले से ही एक पुत्र था जिसे धन का देवता कुबेर के नाम से जाना जाता हैं। कैकसी से उनके विवाह के पश्चात उन्हें रावण पुत्र रूप में प्राप्त हुआ।
रावण को कई नामो से जाना जाता हैं जो उसकी विभिन्न विशेषताओं को दिखाता है, जैसे कि:
रावण के अलावा महर्षि विश्रवा व कैकसी के कई अन्य पुत्र-पुत्रियाँ (Ravan Ki Vanshavali) भी हुए। रावण के सात भाई व दो बहने थी (Ravan Ke Kitne Bhai The) जिनके नाम हैं:
इन सभी भाई-बहनों में कुबेर सबसे बड़े व धार्मिक प्रवत्ति के प्राणी थे क्योंकि उनके माता-पिता दोनों ब्राह्मण थे। विभीषण राक्षस पुत्र होने के बाद भी भगवान विष्णु का भक्त था। अन्य सभी में राक्षसी प्रवत्ति के गुण विद्यमान थे।
रावण की तीन पत्नियाँ थी जिनमे मुख्य मंदोदरी (Ravan Aur Mandodari Ka Vivah) थी। अन्य दो में एक का नाम धन्यमालिनी (Ravan Ke Kitne Patni Thi) था तथा तीसरी का नाम कही लिखित नही हैं। इन तीन पत्नियों से रावण को 6 पुत्र (Ravan Ke Kitne Bete The) प्राप्त हुए, जिनके नाम हैं:
पहले लंका का राजा कुबेर था (Kuber Relation With Ravana In Hindi) जिसके पास पुष्पक विमान भी था। कुबेर को पुष्पक विमान देवशिल्पी विश्वकर्मा जी ने बनाकर दिया था। जब रावण बड़ा हो गया तब उसने अपनी शक्ति के प्रभाव से कुबेर से लंका छीन ली तथा स्वयं लंका का स्वामी बन गया। रावण के भय से कुबेर लंका को छोड़कर चले गए।
अब रावण का लंका पर एकछत्र राज (Ravan Ko Sone Ki Lanka Kaise Mili) था। उसके भाई व पुत्र शासन सँभालने में उसकी सहायता करते थे। अपने दो भाइयों खर व दूषण को उसने समुंद्र के उस पार दंडकारण्य के वनों में छावनी बनाने का आदेश दिया था।
रावण ने अपने दो भाइयो कुंभकरण व विभीषण के साथ मिलकर हजारो वर्षों तक भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या (Ravana Boon From Brahma) की। इससे रावण को कई वरदान प्राप्त हुए। उसने भगवान ब्रह्मा के बनाए किसी भी प्राणी से अपनी मृत्यु ना होने का वरदान माँगा लेकिन मनुष्य व वानर को छोड़कर। रावण मनुष्य व वानर को तुच्छ समझता था इसलिये उसने अपने वरदान में इन दोनों को नही माँगा।
इसके साथ ही रावण ने अपनी नाभि में अमृत भी पा लिया जो उसे कभी मरने नही देता था। यदि किसी कारणवश रावण का वध भी हो जाता तो उसकी नाभि का अमृत उसे पुनः जीवित कर देता।
रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बहुत प्रयास किए थे। एक बार उसने अपने हाथ से कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास (Ravan Or Shiv Ki Kahani) किया था तब भगवान शिव ने अपने पैर के भार से रावण का हाथ कैलाश पर्वत के नीचे दबा दिया था।
अपने हाथ के दबने के बाद भी रावण शिव की भक्ति करता रहा। रावण को वीणा बजाने में बहुत रुचि थी। वह भगवान शिव के तांडव की धुन को अपनी वीणा पर बजाकर उन्हें सुनाया करता था। इससे प्रसन्न होकर महादेव ने रावण को एक शक्तिशाली खड्ग व लिंगम उपहार में दिया था।
इन वरदानो को पाने के पश्चात रावण की शक्तियां और अधिक बढ़ गयी। इसके साथ ही उसकी तीनो लोको को जीतने की महत्वाकांक्षा भी बढ़ गयी थी। उसने पाताल लोक को जीतने के लिए अपनी बहन शूर्पनखा के पति विद्युत्जिव्ह (Ravan ke Jija Ka Kya Naam Tha) का भी वध कर डाला था। इसके बाद शूर्पनखा ने मन ही मन रावण के सर्वनाश करने की प्रतिज्ञा कर ली थी।
रावण ने पाताल लोक पर अधिकार कर वहां का राजा अपने भाई अहिरावण को बना दिया था। पृथ्वी लोक के कई राजाओं को भी उसने परास्त कर दिया था। उसके पुत्र मेघनाद ने देवराज इंद्र को परास्त कर बंदी बना लिया था तथा उसका वध करने वाला था। तब भगवान ब्रह्मा ने आकर इंद्र के प्राणों की रक्षा की थी।
सभी ग्रह व नक्षत्र रावण के नाम से भय खाते थे। उसने अपनी ही पुत्रवधू रंभा के साथ दुराचार किया था जिस कारण उसे अपने भतीजे नलकुबेर से श्राप (Nalkuber Curse To Ravana In Hindi) मिला था कि वह किसी भी परायी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध दुष्कर्म करने का प्रयास करेगा तो वह जलकर भस्म हो जाएगा।
रावण अपने राज सिंहासन पर अपने पैरों के नीचे शनि देव (Ravan Ki Buraiyan In Hindi) को रखता था तथा उसके महल में सभी नवग्रह, नक्षत्र इत्यादि दास रूप में थे। अपने इसी विश्व विजयी अभियान के कारण रावण का अहंकार सातवें आसमान तक पहुँच गया था।
ऐसा नही हैं कि रावण ने जितने भी युद्ध किये उसमे हमेशा उसकी जीत हुई। उसे कई बार पराजय का भी मुख देखना पड़ा था। जैसे कि:
रावण के जीवन में जो सबसे बड़ी भूल थी वह थी माँ लक्ष्मी के रूप माँ सीता का अपहरण। एक दिन रावण अपने राजमहल में बैठा था कि तभी उसकी बहन शूर्पनखा रोती हुई वहां आयी। उसकी नाक व एक कान कटा हुआ था। शूर्पनखा ने भरी सभा में बताया कि अयोध्या के राजकुमार श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने उनका यह हाल किया हैं। इसके साथ ही श्रीराम ने उनके दो भाइयो खर व दूषण का भी वध कर दिया हैं।
शूर्पनखा ने भरी सभा में सीता के रूप व गुणों का वर्णन किया तथा उन्हें रावण के लिए उपयुक्त स्त्री बताया। उसने सीता को विश्व की सबसे सुंदर स्त्री (Ravan Ne Sita Ka Haran Kyun Kiya) बताया। रावण सीता का ऐसा वर्णन सुनकर मनमोहित हो गया तथा उन्हें पाने के लिए बैचेन हो उठा।
उसने अपने मामा मारीच की सहायता से माता सीता का पंचवटी से अपहरण कर लिया। इसके लिए उसने छल का आश्रय लिया तथा छुपके से माता सीता को लंका (Ravan Ne Sita Ka Haran Kiya) ले आया। वहां लाकर उसने माता सीता को स्वयं से विवाह करने के लिए बहुत मनाया लेकिन वे नही मानी। रावण जनता था कि यदि वह सीता की आज्ञा के बिना उसके साथ कुछ भी करेगा तो अपने भतीजे के मिले श्राप के फलस्वरूप जलकर भस्म हो जाएगा।
सीता अपहरण के कुछ माह के पश्चात रावण को किसी वानर के द्वारा अशोक वाटिका में उथल-पुथल किये जाने की सूचना मिली तो उसने अपने छोटे पुत्र अक्षय कुमार को भेजा। वह वानर कोई और नही बल्कि स्वयं हनुमान थे जो माता सीता को ढूंढते हुए वहां आए थे। हनुमान ने अक्षय कुमार का वध कर डाला।
इसके बाद रावण ने मेघनाथ को भेजा। मेघनाद के द्वारा हनुमान को बंदी बनाकर रावण की सभा में (Ravan Hanuman Samvad) प्रस्तुत किया गया। हनुमान ने माता सीता को सम्मान सहित लौटा देने व श्रीराम की शरण में जाने को कहा लेकिन रावण ने उनका उपहास किया व उनकी पूँछ में आग लगा दी।
इसके बाद हनुमान ने रावण की लंका को जला डाला और वह कुछ नही कर सका। इस अग्नि में रावण को बहुत नुकसान हुआ था जिसमे उसके कई शस्त्रागार, सुरक्षा परकोटे इत्यादि जलकर खाक हो गए थे। तब रावण ने इसे वापस बनवाने में बहुत धन खर्च किया था।
इसके बाद रावण को सूचना मिली कि श्रीराम किष्किन्धा के नए राजा सुग्रीव को साथ लेकर समुंद्र पर सेतु बना रहे हैं। रावण के दरबार में सभी उसकी चापलूसी करते थे लेकिन उसका भाई विभीषण उसे सही बात कहता था। जब विभीषण ने उसे श्रीराम की शरण में जाने को कहा तो रावण अत्यंत क्रोधित हो गया। इसी क्रोध में उसने विभीषण को देश निकाला (Ravan Ne Vibhishan Ko Nikala) दे दिया। इसके बाद विभीषण समुंद्र पार करके श्रीराम की शरण में चले गए। यह रावण की दूसरी सबसे बड़ी भूल थी।
रावण पूरी तरह से आश्वस्त था कि उसे व उसकी सेना को कोई नही हरा सकता। उसे कई गणमान्य लोगो जैसे कि उसकी पत्नी मंदोदरी, नाना माल्यवान, माता कैकसी, भाई कुंभकरण तथा अन्य कई लोगों ने माता सीता को लौटा देने व श्रीराम की शरण में जाने को कहा लेकिन उसने किसी की नही सुनी।
अंत में श्रीराम की सेना लंका (Ram Ravan Yudh In Hindi) तक पहुँच गयी तथा अंगद के द्वारा रावण को शांति संदेश भेजा गया जिसे रावण ने निर्लज्जता के साथ ठुकरा दिया। इसके बाद दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया। रावण ने एक-एक करके अपने कई योद्धाओं, पुत्रों व भाइयों को खो दिया।
उसे पहली बार सबसे गहरा आघात तब पहुंचा था जब वह स्वयं पहली बार युद्धभूमि (Ramayan Mein Ram Aur Ravan Ki Ladai) में गया तथा श्रीराम के हाथो पराजित होकर लौटा। अपनी हार से रावण इतना ज्यादा बोखला गया था कि उसने अपने महापराक्रमी भाई कुंभकरण को जगा दिया।
कुंभकरण ने पहले रावण को समझाने का प्रयास किया लेकिन उसके ना समझने पर वह युद्ध भूमि में गया। तब रावण को दूसरा आघात लगा जब कुंभकरण के वध की सूचना उसके पास आयी। अब तक रावण के सभी भाई, पुत्र व योद्धा मारे जा चुके थे केवल उसके पुत्र मेघनाथ व भाई अहिरावण को छोड़कर।
जब रावण ने अपने पुत्र मेघनाथ को युद्ध के लिए भेजा तो पहले दिन वह श्रीराम व लक्ष्मण को नागपाश में बांधकर विजयी होकर आया। बहुत दिनों बाद रावण अपनी विजय से इतना खुश हुआ था लेकिन कुछ ही देर में उसके पास सूचना आयी कि गरुड़ देवता ने राम-लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त कर दिया हैं।
अगले दिन उसने फिर से अपने पुत्र मेघनाद (Ram Aur Ravan Ki Antim Ladai) को भेजा। इस बार भी मेघनाद विजयी होकर लौटा था तथा लक्ष्मण को शक्ति बाण के प्रभाव से मूर्छित कर दिया था। लेकिन सुबह होते-होते सूचना आयी कि संजीवनी बूटी के प्रभाव से लक्ष्मण स्वस्थ हो गए है।
इसका अगला दिन रावण के जीवन का सबसे गहरा आघात लेकर आया था। रावण को सूचना मिली कि युद्ध में उसके पुत्र मेघनाद का भी वध हो चुका हैं। यह समाचार सुनकर रावण जोर-जोर से चीत्कार करने लगा था तथा उसके मन में प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठी थी।
युद्ध में और शक्तिशाली होने के लिए रावण ने शिव के दिए गए लिंगम की कठोर साधना की व सभी दिव्य अस्त्र प्राप्त किए। अब रावण पूरी तैयारी के साथ युद्ध भूमि में उतरा (Ram Ravan Ka Antim Yudh) तथा चारो और त्राहिमाम मचा दिया। सभी देवता, ऋषिगण, गन्धर्व इत्यादि आकाश से यह युद्ध देख रहे थे। प्रथम दिन श्रीराम व रावण के बीच घमासान युद्ध हुआ लेकिन कोई विजयी नही रहा। संध्या होने के पश्चात युद्ध अगले दिन के लिए टाल दिया गया।
अगला दिन रावण के जीवन का अंतिम दिन था। इस दिन श्रीराम को इंद्र का दिव्य रथ प्राप्त था। दोनों का आकाश में भयंकर युद्ध चल रहा था। श्रीराम ने अपने धनुष बाण से रावण के सिर को दस बार काट डाला लेकिन अपनी नाभि में स्थित अमरत्व से वह पुनः जीवित हो उठता।
उसके इस रहस्य का ज्ञान उसके निष्कासित भाई विभीषण (Ram Ravan Yudh Antim Charan) को था। उसने आकाश में आकर श्रीराम को यह रहस्य बता दिया। इसके बाद श्रीराम ने आग्नेय अस्त्र का अनुसंधान करके रावण की नाभि का सारा अमृत सुखा दिया। अंत में श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र का अनुसंधान करके रावण का उसकी सेना सहित विनाश कर दिया।
रावण को जब ब्रह्मास्त्र लगा तो वह श्रीराम-श्रीराम का चीत्कार (Ravan Vadh Ki Kahani) करता हुआ रथ सहित भूमि पर गिर पड़ा व मृत्यु को प्राप्त हो गया। इस प्रकार एक दुष्ट व पापी राजा का भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम के हाथों अंत हो गया।
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जय श्री राम जय सियाराम