रामायण में लव कुश की कथा (Luv Kush Ki Katha) की शुरुआत महर्षि वाल्मीकि जी के आश्रम में होती है। लव कुश श्रीराम तथा माता सीता के पुत्र थे जिनका जन्म वाल्मीकि आश्रम में हुआ तथा उनकी शिक्षा भी वहीं हुई। चूँकि वे स्वयं भगवान के पुत्र थे, इसलिए उनके अंदर सीखने की क्षमता भी अधिक थी। भविष्य में उनके योगदान को देखते हुए महर्षि वाल्मीकि जी ने भी तेजी से उन्हें ज्ञान दिया।
गुरु वाल्मीकि का श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद रामायण कथा में महत्वपूर्ण योगदान था। भगवान ब्रह्मा के द्वारा श्रीराम कथा को लिखने का उत्तरदायित्व उन्हें ही मिला था तथा माता सीता के वनगमन के पश्चात उन्हें शरण भी वाल्मीकि जी ने ही दी थी। ऐसे समय में उनके द्वारा माता सीता को शरण देने के साथ-साथ उनके दोनों पुत्रों लव कुश की शिक्षा (Luv Kush Ki Shiksha) का भार उठाया गया।
महर्षि वाल्मीकि जी जानते थे कि आगे चलकर लव कुश को क्या कुछ करना है। ऐसे में उन्हें जल्द से जल्द सभी तरह की शिक्षा में पारंगत करना अति आवश्यक था। एक तरह से लव कुश को धर्म ज्ञान और शस्त्र विद्या लेने के साथ-साथ संगीत विद्या भी सीखनी थी। तभी वे महर्षि वाल्मीकि जी की लिखी रामायण को राम दरबार में सुना सकते थे।
इस तरह से आज हमने लव कुश की शिक्षा (Luv Kush Ki Shiksha) को चार भागों में बांटा है जो महर्षि वाल्मीकि जी ने उन्हें दी थी। इसमें धर्म ज्ञान, शस्त्र विद्या, संगीत विद्या, दैवीय अस्त्र व गुरु कवच आएँगे। आइए इन सभी के बारे में जान लेते हैं।
चूँकि लव कुश का जन्म ही गुरुकुल में हुआ था इसलिए उनकी शिक्षा भी शुरूआती चरण में ही शुरू हो गई थी। दिनभर आश्रम में रहने तथा नित्य काम करते रहने के कारण उनमें धर्म का ज्ञान दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। गुरु वाल्मीकि का भी उन पर विशेष ध्यान था इसलिए उनकी शिक्षा में कोई कमी नहीं रही। गुरु वाल्मीकि जी के द्वारा उन्हें संपूर्ण शास्त्रों, वेदों तथा पुराणों की शिक्षा दे दी गई थी।
महर्षि वाल्मीकि ने लव कुश को तीरंदाजी की शिक्षा देना भी बहुत छोटी उम्र से ही शुरू कर दिया था क्योंकि भविष्य में उन्हें श्रीराम का उत्तराधिकारी बनना था। इसके लिए वाल्मीकि जी ने दोनों के लिए छोटे धनुष का निर्माण करवाया तथा प्रतिदिन उन्हें अभ्यास करवाते। उनकी दी हुई शिक्षा का ही परिणाम था कि दोनों ने मिलके श्रीराम के अश्वमेघ वाले घोड़े को पकड़कर उनकी सेना को चुनौती दी थी तथा सभी को पराजित किया था।
जब लव कुश का जन्म भी नहीं हुआ था तब से ही महर्षि वाल्मीकि ने रामायण कथा को लिखना आरंभ कर दिया था। उचित समय आने पर उन्होंने लव कुश को संगीत विद्या का ज्ञान दिया ताकि वे अयोध्या की प्रजा को उनकी गलती का अहसास करवा सकें। उनकी शिक्षा का ही परिणाम था कि लव कुश को श्रीराम दरबार में रामायण कथा को सुनाने का अवसर मिला जहाँ उन्होंने माता सीता के वनगमन के पश्चात की भी कथा सुनाई।
महर्षि वाल्मीकि जी के द्वारा लव कुश को उचित समय आने पर दैवीय अस्त्र भेंट किए गए ताकि वे श्रीराम की सेना का सामना कर सकें तथा उन तक अपना संदेश पहुँचा सकें। इसी के साथ किसी भी खतरे से निपटने के लिए उन्होंने लव कुश के चारों ओर स्वयं का गुरु कवच बनाया ताकि किसी भी अस्त्र-शस्त्र से उन्हें नुकसान न हो।
इन्हीं सब शिक्षा के कारण ही लव कुश की कथा (Luv Kush Ki Katha) आगे जाकर रोमांचक मोड़ लेती है। अपनी मजबूत शिक्षा प्रणाली के कारण ही लव कुश श्रीराम के अश्वमेघ घोड़े को पकड़ लेते हैं और उसके बाद राम दरबार में रामायण कथा का पाठ करते हैं।
लव कुश की कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: वाल्मीकि ने लव और कुश को क्या सिखाया?
उत्तर: वाल्मीकि ने लव और कुश को धर्म ज्ञान, शस्त्र विद्या, संगीत विद्या व दैवीय अस्त्र प्रदान किए थे। इसके अलावा उन्होंने दोनों को गुरु कवच भी दिया था।
प्रश्न: लव कुश के गुरु का क्या नाम है?
उत्तर: लव कुश के गुरु का नाम महर्षि वाल्मीकि जी है। उन्होंने ही दोनों को धर्म व शस्त्र विद्या का ज्ञान दिया था।
प्रश्न: लव कुश के गुरु कौन है?
उत्तर: लव कुश के गुरु महर्षि वाल्मीकि जी हैं। माता सीता उन्हीं के आश्रम में रह रही थी। ऐसे में उनके दोनों पुत्रों ने भी वाल्मीकि जी के सानिध्य में रहकर शिक्षा ग्रहण की थी।
प्रश्न: लव कुश में से बड़ा कौन है?
उत्तर: लव कुश में से कुश बड़े भाई हैं जबकि लव छोटे हैं। दोनों भगवान श्रीराम और माता सीता के पुत्र हैं।
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