सनातन धर्म में मनुष्य जीवन के कुल सोलह संस्कारों में से निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman Sanskar) छठा संस्कार माना जाता है। यह संस्कार एक शिशु के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि वह पहली बार बाहरी दुनिया के संपर्क में आता है। इससे पहले शिशु को घर के अंदर ही रखा जाता है और उसे बाहर लेकर नहीं जाया जाता है।
दरअसल पहले तीन संस्कार तभी कर दिए जाते है जब शिशु अपना माँ के गर्भ में होता है। उसके बाद के दो संस्कार उसके जन्म के समय तथा नामकरण के समय किये जाते है। उसके बाद निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman Sanskar In Hindi) किया जाता है। ऐसे में आपके मन में यह प्रश्न उठता होगा कि आखिरकार निष्क्रमण संस्कार क्या है और इसमें क्या किया जाता है। आइये इसके बारे में जान लेते है।
निष्क्रमण संस्कार का अर्थ होता है बाहर निकलना अर्थात इस दिन शिशु को पहली बार अपने घर से बाहर निकाला जाता है। जन्म से लेकर चौथे माह तक शिशु को अपने घर से निकालना वर्जित होता है। इसलिये इतने समय तक वह अपने घर की चारदीवारी में रहता है जहाँ उसका पालन-पोषण होता है।
जब वह चार माह का हो जाता है तब उसे घर से पहली बार बाहर निकाला जाता है तथा सूर्य देव का प्रकाश उस पर सीधे डाला जाता है। इस उम्र तक शिशु का मस्तिष्क तथा शरीर बाहर की शक्तियों को सहने लायक हो जाता है। इसलिये शिशु के घर से बाहर निकालने की क्रिया को निष्क्रमण संस्कार कहते है।
मनुस्मृति में इस संस्कार (Nishkraman Sanskar In Hindi) को करने के लिए शिशु के जन्म का चौथा माह उचित बताया गया हैं क्योंकि तब तक एक शिशु परिपक्व हो जाता है तथा बाहरी दुनिया के प्रभाव को सह सकता है। इसलिये इसे शिशु के जन्म के चौथे माह में करना चाहिए।
हमारा शरीर मुख्यतया पांच चीज़ों से मिलकर बना होता है जिनमें अग्नि, वायु, मिट्टी, जल व आकाश होता है। जन्म के कुछ माह तक शिशु इनसे सीधे संपर्क नही कर सकता अन्यथा उसके शरीर में इनका संतुलन बिगड़ सकता है जो उसके लिए हानिकारक होता है। इसलिये तब तक उसे घर में रखा जाता है।
Nishkraman Sanskar के द्वारा उसे सूर्य देव व चंद्र देव के प्रकाश में सीधे लाया जाता है, बाहरी वायु का संपर्क करवाया जाता है जिससे वह बाहर के वातावरण के लिए अनुकूल बनता है। चूँकि अब वह बाहरी ऊर्जा को ग्रहण करने में सक्षम होता है इसलिये इसे निष्क्रमण संस्कार नाम दिया गया है।
इस समय माता-पिता सूर्य तथा चंद्रमा से प्रार्थना करते हैं कि वे इसी तरह उनके शिशु पर अपना तेज बनाये रखे तथा उसे सद्भुद्धि दे जिससे वह और ऊर्जावान व शक्तिशाली बने। वायुदेव से प्रार्थना की जाती हैं कि वे उनके शिशु के अंदर हमेशा स्वच्छ वायु बनाये रखे तथा उसकी प्राणवायु शुद्ध रहे। जल देव से प्रार्थना की जाती हैं कि वे इसी तरह अपने जल से उनके शिशु की काया को धोये तथा उसका मन पवित्र करे। कुल मिलाकर शिशु के माता-पिता पंचभूतों से अपने शिशु की दीर्घायु की कामना करते है।
निष्क्रमण संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: निष्क्रमण संस्कार क्या होता है?
उत्तर: निष्क्रमण संस्कार के अंतर्गत शिशु के जन्म के लगभग चार माह के पश्चात घर से बाहर सूर्य देव की रोशनी में लेकर जाया जाता है। उससे पहले शिशु को घर से बाहर निकालना वर्जित होता है।
प्रश्न: निष्क्रमण संस्कार किसे कहते हैं?
उत्तर: निष्क्रमण संस्कार का अर्थ होता है बच्चे को घर से बाहर निकालना। इस संस्कार के अंतर्गत एक शिशु के जन्म के कुछ माह के पश्चात उसे सूर्य देव की रोशनी में लेकर जाया जाता है।
प्रश्न: निष्क्रमण संस्कार कब किया जाता है?
उत्तर: निष्क्रमण संस्कार शिशु के जन्म के 4 माह के पश्चात किया जाता है। तब तक उसे घर के अंदर ही रखा जाता है और बाहरी दुनिया या तत्वों से संपर्क में नहीं लाया जाता है।
प्रश्न: निष्क्रमण संस्कार की विधि क्या है?
उत्तर: निष्क्रमण संस्कार की कोई अलग से विधि नहीं होती है। यह केवल एक नियम है जिसके तहत एक निश्चित अवधि तक शिशु को घर में रखकर फिर एक दिन उसे सूर्य की रोशनी में लेकर जाया जाता है।
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