यज्ञोपवित/ उपनयन संस्कार: हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में ग्यारहवें संस्कार की विधि व महत्व

Upnayan Sanskar In Hindi

सनातन धर्म में सोलह संस्कारों में यज्ञोपवित संस्कार जिसे उपनयन संस्कार (Upnayan Sanskar In Hindi) भी कहा जाता है, ग्यारहवें नंबर पर आता है। इससे पहले उसे विद्यारंभ संस्कार करवाया जाता है जो उसकी पांच वर्ष की आयु में शुरू होता है। विद्यारंभ संस्कार के द्वारा उसे अक्षरों इत्यादि का ज्ञान करवाया जाता है ताकि आगे जाकर उसे वेदों का अध्ययन करवाया जा सके। इसके पश्चात उसका उपनयन संस्कार (Yagyopavit Sanskar Vidhi In Hindi) किया जाता है जिसमें उसे वेदों-शास्त्रों के अध्ययन के लिए सक्षम मान लिया जाता है। आइये जानते है उपनयन संस्कार के बारे में।

यज्ञोपवित संस्कार के बारे में जानकारी (Yagyopavit Sanskar In Hindi)

उपनयन संस्कार कब किया जाता हैं? (Upnayan Sanskar Kab Kiya Jata Hai)

इसमें अलग-अलग वर्णों के लिए अलग-अलग आयु निर्धारित होती हैं। चूँकि जन्म से सभी मनुष्यों को निम्न स्तर का माना जाता है तथा विद्या ग्रहण करने के पश्चात ही उसे शिक्षित माना जाता है। इसलिये गुरुकुल में भेजने के लिए उपनयन संस्कार किया जाता था।

इसके लिए ब्राह्मण को आठ वर्ष की आयु में, क्षत्रिय को ग्यारह वर्ष की आयु में तथा वैश्य को बारह वर्ष की आयु में उपनयन संस्कार के लिए योग्य समझा जाता था। चूँकि शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार सभी को होता था इसलिये यह गुरुकुल के गुरु पर निर्भर करता था कि वह अपने शिष्य के रूप में किसे किस आयु में स्वीकार करता है।

इसके लिए आठ वर्ष के बाद की आयु उपयुक्त मानी जाती थी क्योंकि 2 से 3 वर्ष उसे अक्षर तथा भाषा के ज्ञान में लगते थे जो उसे विद्यारंभ संस्कार में दिए जाते थे।

उपनयन संस्कार क्या होता है? (Upanayana Ceremony Meaning In Hindi)

उपनयन शब्द का अर्थ होता है समीप जाना (Upnayan Meaning In Hindi) अर्थात इस संस्कार के माध्यम से एक मनुष्य अपने गुरु के समीप जाकर रहने लगता है। उपनयन संस्कार के पश्चात एक गुरु अपने शिष्य के रूप में उसे स्वीकार कर लेता है तथा उसे अपने गुरुकुल में स्थान देता है। इसके पश्चात उस बालक/बालिका पर माता-पिता का अधिकार समाप्त हो जाता है तथा वह उनके पास ब्रह्मचर्य की अवधि पूर्ण करने के पश्चात ही लौटता है जो 25 वर्ष की आयु तक निर्धारित है।

इसे जनेऊ संस्कार (Janeu Sanskar In Hindi) भी कहा जाता है क्योंकि गुरुकुल जाने से पूर्व पूरे विधि-विधान के साथ उसे गायंत्री मंत्र की शिक्षा दी जाती है तथा वेदों का अध्ययन करने के लिए शुरूआती मंत्र सिखा दिया जाता है। इसके बाद उसे जनेऊ पहनाया जाता है जिसमे तीन सूत्र होते है जो भगवान ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश को समर्पित है।

इस विधि (Yagyopavit Sanskar Vidhi) को करने के पश्चात वह वेदों का अध्ययन करने के लिए सक्षम हो जाता है तथा फिर उसे सनातन धर्म के विज्ञान, रहस्य, खगोल, भूगोल इत्यादि की गूढ़ शिक्षा दी जाती है।

उपनयन संस्कार का महत्व (Upnayan Sanskar Ka Mahatva)

यह संस्कार बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि बिना वेदों के ज्ञान के एक व्यक्ति को निंदनीय समझा जाता था। एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए व्यक्ति का शिक्षा ग्रहण करना अति-आवश्यक होता है अन्यथा समाज में उसकी कोई भागीदारी नही रह जाती है। इसे एक तरह से मनुष्य का दूसरा जन्म भी कहा जाता है इसलिये उसे द्वीज भी कहा जाता है अर्थात शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात उसका दूसरा जन्म।

यह एक तरह से वेदों का अध्ययन करने के लिए प्रवेश पत्र होता है जिसके पश्चात ही एक गुरु उसे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर उसे वेदों-शास्त्रों का अध्ययन करवाता है। इसकी शिक्षा भी उसे आगे के कर्म के अनुसार दी जाती है अर्थात जिसे आगे ब्राह्मण का कर्तव्य निभाना है उसे संपूर्ण शिक्षा दी जाती है, जिसे क्षत्रिय का धर्म निभाना है उसे कूटनीति, राजनीति इत्यादि की शिक्षा दी जाती है, जिसे वैश्य का धर्म निभाना है उसे व्यापर, धन, मोलभाव इत्यादि की शिक्षा दी जाती है।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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