आज हम शत्रुघ्न रामायण (Shatrughan In Hindi) के बारे में जानेंगे। त्रेता युग में जब भगवान विष्णु ने अपना सातवाँ अवतार लिया तब उनके साथ उनके तीन भाइयों ने भी जन्म लिया था। इनमें से एक शत्रुघ्न सबसे छोटे भाई थे। वे भगवान विष्णु के शंख का अवतार थे। शत्रुघ्न की रामायण में महत्वपूर्ण भूमिका थी।
वैसे तो शत्रुघ्न (Shatrughan Ramayan) का उल्लेख बहुत कम ही मिलता है और उन्होंने अपना ज्यादातर समय भरत के साथ बिताया था। श्रीराम के राज्याभिषेक के कुछ समय बाद ही उन्हें मथुरा का राजा बनाकर भेज दिया गया था। आज हम आपको शत्रुघ्न के जीवन के बारे में शुरू से अंत तक बताएँगे।
अयोध्या नरेश दशरथ ने अपनी तीनो रानियों के साथ पुत्र कामेष्टि यज्ञ किया था जिसके फलस्वरूप उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। इसमें उनकी सबसे छोटी रानी सुमित्रा के गर्भ से दो पुत्रों का जन्म हुआ जिनमे लक्ष्मण बड़े व शत्रुघ्न सबसे छोटे थे। सबसे बड़े भाई श्रीराम व उनके बाद भरत थे। कुछ वर्षों तक अयोध्या के राजमहल में रहने के पश्चात शत्रुघ्न अपने भाइयों के साथ गुरु वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने चले गए थे।
गुरुकुल से शिक्षा ग्रहण करने के बाद शत्रुघ्न (Ramayan Shatrughan) अपने भाइयो सहित पुनः अयोध्या आ गए। तब श्रीराम का मिथिला की राजकुमारी माता सीता से विवाह हो गया। इसके पश्चात शत्रुघ्न का विवाह माता सीता की चचेरी बहन व महाराज जनक के छोटे भाई कुशध्वज की छोटी पुत्री श्रुतकीर्ति के साथ हुआ। श्रुतकीर्ति से शत्रुघ्न को दो पुत्रों की प्राप्ति हुई जिनके नाम शत्रुघाती व सुबाहु थे।
अपने विवाह के कुछ समय पश्चात शत्रुघ्न भरत के साथ उनके नाना के राज्य कैकेय गए हुए थे। तब अचानक से अयोध्या के लिए दोनों राजकुमारों का बुलावा आया। वहां जाकर शत्रुघ्न को सब घटना का ज्ञान हुआ। उन्हें पता चला कि किस प्रकार उनके पीछे से उनकी सौतेली माँ कैकई के द्वारा प्रपंच रचा गया जिस कारण उनके पूजनीय भाई श्रीराम को चौदह वर्षों का कठोर वनवास मिला तथा उनकी भाभी सीता व भाई लक्ष्मण भी उनके साथ वनवास में चले गए। इस दुःख में उनके पिता दशरथ की भी मृत्यु हो गयी।
इस सब प्रपंच के पीछे उन्हें कैकेयी की प्रिय दासी मंथरा का हाथ होने का पता चला। मंथरा को कैकेयी ने बहुत सारे आभूषण तथा बहुमूल्य वस्तुएं उपहार में दी थी जिन्हें पहनकर वह मस्ती से अयोध्या के राजमहल में विचरण कर रही थी। जब शत्रुघ्न ने मंथरा को देखा तो वे आग-बबूला हो गए।
वे मंथरा को बालों से घसीटकर भरत के पास लेकर आए व उसका वध करने लगे। तब भरत ने उन्हें ऐसा करने से रोका तथा समझाया कि एक स्त्री का वध करना निंदनीय हैं तथा इसके लिए श्रीराम उन्हें कभी क्षमा नही करेंगे। यह सुनकर शत्रुघ्न (Shatrughan In Hindi) ने मंथरा के प्राण नही लिए।
शत्रुघ्न ने भरत के साथ मिलकर अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार किया व उसके बाद चित्रकूट के लिए निकल गए। वहां उनकी श्रीराम से भेंट हुई जहाँ उन्होंने श्रीराम को वापस अयोध्या चलने का आग्रह किया लेकिन श्रीराम ने मना कर दिया। तब शत्रुघ्न भरत के साथ खाली हाथ अयोध्या लौट आए।
भरत ने श्रीराम की भांति चौदह वर्ष वनवासी की भांति रहने का निर्णय लिया और अयोध्या के पास नंदीग्राम में कुटिया बनाकर रहने लगे। वे वही से अयोध्या का राजकाज सँभालने लगे। उस समय अयोध्या के दो राजकुमार वन में थे तो एक राजकुमार नंदीग्राम में। केवल शत्रुघ्न (Shatrughan Ramayan) ही अयोध्या के राजमहल में रहकर राजकीय व्यवस्था को संभाल रहे थे।
इस प्रकार शत्रुघ्न ने अयोध्या के राजमहल में रहकर चौदह वर्षों तक राजकाज को सँभालने में सहायता की व सभी माताओं की सेवा की। चौदह वर्ष पश्चात जब श्रीराम वापस अयोध्या आ गए तब उन्होंने वैसी की वैसी अयोध्या उन्हें सौंप दी।
श्रीराम के राज्याभिषेक के कुछ वर्षों के पश्चात मथुरा से कुछ ऋषि-मुनि आये और लवणासुर के आंतक के बारे में बताया। तब श्रीराम ने शत्रुघ्न को लवणासुर का वध करके मथुरा का राजकाज सँभालने का आदेश दिया। श्रीराम के आदेश स्वरुप शत्रुघ्न सेना लेकर मथुरा गए व लवणासुर से युद्ध करके उसका वध कर दिया। इसके बाद उन्हें मथुरा का राजा बना दिया गया। अब वे वही अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहने लगे व मथुरा का राजकाज सँभालने लगे।
इसके बाद शत्रुघ्न (Ramayan Shatrughan) ने माता सीता को वन में जाते देखा। श्रीराम ने राजधर्म के आगे झुककर माता सीता का त्याग कर दिया था। इसके कई वर्षों के पश्चात श्रीराम के द्वारा अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया गया। इस दौरान अश्वमेध घोसे को भारत की सीमाओं में घुमाया गया था। इसके लिए शत्रुघ्न को उसकी रक्षा करने के लिए भेजा गया था।
उस घोड़े को वाल्मीकि आश्रम के पास दो बालकों लव कुश के द्वारा रोक लिया गया। उन दोनों ने शत्रुघ्न को युद्ध की चुनौती दी। शत्रुघ्न ने उसे स्वीकार किया और दोनों बालकों के साथ भीषण युद्ध किया। अंत में शत्रुघ्न उस युद्ध में परास्त हो गए थे।
कुछ समय बाद शत्रुघ्न को पता चला कि लव कुश कोई और नहीं बल्कि श्रीराम और माता सीता के ही पुत्र है। ऐसे में श्रीराम के द्वारा उन दोनों को पुत्र रूप में अपना लिया गया। अंत में भगवान श्रीराम ने अयोध्या के निकट सरयू नदी में जल समाधि ले ली। उनके समाधि लेने के पश्चात शत्रुघ्न ने भी सरयू में समाधि ले ली व पुनः अपने धाम वैकुण्ठ लौट गए। इस तरह से शत्रुघ्न रामायण (Shatrughan In Hindi) का यहीं अंत हो जाता है।
शत्रुघ्न रामायण से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: शत्रुघ्न किसका अवतार है?
उत्तर: शत्रुघ्न भगवान विष्णु के शंख अवतार है। जब भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में इस धरती पर अवतार लिया था तब उनके शंख ने शत्रुघ्न के रूप में अवतार लिया।
प्रश्न: शत्रुघ्न का सगा भाई कौन है?
उत्तर: शत्रुघ्न के सगे भाई का नाम लक्ष्मण था जो उनके बड़े भाई थे। दोनों अयोध्या नरेश दशरथ और उनकी सबसे छोटी पत्नी सुमित्रा के पुत्र थे।
प्रश्न: शत्रुघ्न किसका बेटा था?
उत्तर: शत्रुघ्न अयोध्या के महाराज दशरथ और उनकी सबसे छोटी और तीसरी पत्नी सुमित्रा के पुत्र थे। उनके बड़े और सगे भाई लक्ष्मण थे।
प्रश्न: शत्रुघ्न कौन सा अवतार था?
उत्तर: शत्रुघ्न भगवान श्रीहरि के शंख का अवतार थे। जब भगवान श्रीहरि ने त्रेता युग में श्रीराम के रूप में जन्म लिया था तो उनके साथ शंख ने शत्रुघ्न के रूप में जन्म लिया।
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