रामायण: भरत का जीवन परिचय

Bharat Ramayan In Hindi

त्रेता युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र के रूप में जन्म लिया तब उनके सुदर्शन चक्र ने उनके सौतेले भाई भरत (Bharat Ramayan In Hindi) के रूप में कैकेयी के गर्भ से जन्म लिया था। रामायण में भरत का चरित्र एक ऐसे आदर्श भाई (Ram Ke Bhai Bharat) के रूप में दिखाया गया हैं जिन्होंने अपने माथे पर अपनी माँ के द्वारा लगाए गए कलंक को मिटाने के अथक प्रयास किए थे। आज हम आपको भरत का संपूर्ण जीवन परिचय देंगे।

रामायण में भरत का जीवन परिचय (Bharat Ramayan In Hindi)

भरत का जन्म (Ramayan Bharat Ka Janam)

राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी जिनमे से उनकी दूसरी रानी कैकेयी (Ramayan Mein Bharat Ki Mata Ka Naam Kya Tha) थी जो कि कैकेय देश की राजकुमारी भी थी। उन्ही के गर्भ से भरत का जन्म हुआ। वे दशरथ के चार पुत्रों में दूसरे नंबर पर थे। उनके बड़े भाई कौशल्या पुत्र श्रीराम थे जबकि दो छोटे भाई सुमित्रानंदन लक्ष्मण व शत्रुघ्न थे।

भरत की शिक्षा (Ramayan Bharat Ki Shiksha)

जब सभी भाइयो की आयु शिक्षा ग्रहण के लिए हो गयी तब भरत अपने भाइयो के साथ महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने गए। वहां जाकर उन्होंने विधिवत रूप से शिक्षा ग्रहण की तथा उसके बाद पुनः अयोध्या लौट आए।

भरत का विवाह (Ramayan Bharat Ka Vivah)

अयोध्या लौटने के कुछ समय के पश्चात श्रीराम व लक्ष्मण ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के साथ गए थे। उसके कुछ दिनों के बाद मिथिला से अयोध्या में सूचना आयी कि श्रीराम का माता सीता से विवाह हो चुका हैं। तब राजा दशरथ व राजा जनक ने अपने बाकि पुत्र-पुत्रियों का भी आपस में विवाह (Ramayan Bharat History In Hindi) करवाने का निर्णय किया।

इसके फलस्वरूप भरत का विवाह माता सिता की चचेरी बहन व कुशध्वज की बड़ी पुत्री मांडवी के साथ हुआ। मांडवी से भरत को दो पुत्र प्राप्त हुए जिनके नाम तक्ष व पुष्कल (Ramayan Bharat Son Name In Hindi) थे।

भरत का कैकेय प्रदेश जाना (Bharat Ke Nana Ka Naam)

विवाह के कुछ समय के पश्चात भरत के नाना के घर से उनके लिए बुलावा आया। उनके नाना अश्वपति (Ramayan Mein Bharat Ke Nana Ka Kya Naam Tha) कैकेय देश के राजा थे जिनका स्वास्थ्य ठीक नही चल रहा था इसलिये वे भरत से मिलना चाहते थे। यह सूचना पाकर भरत अपने छोटे भाई शत्रुघ्न को साथ लेकर कैकेय देश चले गए।

वहां कुछ दिन रहने के पश्चात उन्हें अचानक से अयोध्या से बुलावा आया तथा तुरंत अयोध्या लौटने को कहा गया। भरत ने सैनिको से बहुत पूछा लेकिन उन्हें कुछ नही बताया गया। इसके बाद भरत तीव्र गति से अयोध्या के लिए निकल गए।

भरत का अयोध्या आकर सब षड़यंत्र जानना (Ramayan Bharat Kekai Samvad)

अयोध्या आकर उन्होंने देखा कि पूरी अयोध्या में मातम पसरा हैं व सभी उन्हें हेय तथा तुच्छ दृष्टि से देख रहे हैं। जब वे राजमहल पहुंचे तो उन्हें अपनी माँ की प्रिय दासी मंथरा के द्वारा सीधे कैकेयी के कक्ष में ले जाया गया। वहां जाकर भरत अपनी माँ को विधवा के वस्त्रों में देखकर सन्न रह गए।

किंतु जब कैकेयी के द्वारा उन्हें सब घटना का वृतांत सुनाया गया तो उन्हें अपने कानो पर विश्वास नही हुआ। कैकेयी के द्वारा उन्हें बताया गया कि (Bharat Kaikeyi Samvad Ramayan) किस प्रकार राजा दशरथ ने श्रीराम के राज्याभिषेक करने का निर्णय लिया था। तब कैकेयी ने अपने प्रभाव व अपने दो वचनों की आड़ में सब कुछ पलट दिया।

कैकेयी ने भरत को बताया कि उसने अपने दो वचनों में श्रीराम की बजाए भरत का राज्याभिषेक मांग लिया व श्रीराम के लिए चौदह वर्षों का वनवास। इसके पश्चात श्रीराम अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण सहित चौदह वर्ष के वनवास पर चले गए व पुत्र वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु हो गयी।

भरत के द्वारा अपनी माँ के कर्मो के लिए पश्चाताप (Bharat Ka Charitra Chitran In Hindi)

कैकेयी को आशा थी कि भरत यह सुनकर बहुत प्रसन्न होगा तथा खुशी-खुशी अयोध्या का राज सिंहासन संभाल लेगा लेकिन हुआ इसके विपरीत। भरत की आँखों से विवशता के आंसू बह रहे थे, हृदय क्रोध की अग्नि से जलने लगा था तथा मस्तिष्क ने कार्य करना बंद कर दिया था।

उसने उसी समय अपनी माँ कैकेयी का हमेशा के लिए त्याग कर दिया तथा जीवनभर उनका मुख ना देखने का प्रण लिया। इसके बाद वे सीधे माँ कौशल्या के कक्ष में गए (Bharat Kaushalya Samvad) तथा अपनी माँ के द्वारा किये गए कर्मो के लिए क्षमा मांगी। वे कौशल्या से लिपटकर विलाप करने लगे थे।

तब अयोध्या के राजगुरु महर्षि वशिष्ठ ने भरत को बुलाया तथा अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार करने को कहा। दुर्भाग्य से जब दशरथ की मृत्यु हुई तब उनके चारो पुत्रों में से एक भी वहां उपस्थित नही था। इसलिये भरत ने शत्रुघ्न के साथ अपने पिता का अंतिम संस्कार (Dashrath Ka Antim Sanskar) किया।

भरत गए चित्रकूट (Ramayan Bharat Milap)

अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के पश्चात भरत श्रीराम को वन से वापस अयोध्या वापस लाने चित्रकूट के लिए निकल गए। उनके साथ अयोध्या का पूरा राज परिवार, सैनिक व प्रजागण (Bharat Milap Katha) भी गए। चित्रकूट पहुंचकर भरत श्रीराम के चरणों में गिरकर रोने लगे तथा उनसे वापस चलने की विनती की।

श्रीराम ने चौदह वर्ष से पहले वापस जाने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें यह वचन उनके पिता ने दिया था (Ram Bharat Milap Story In Hindi) जो अब जीवित नही थे। इसलिये वचन को वापस लेने का अधिकार केवल उन्ही का था किंतु भरत ने उन्हें अयोध्या का राज्य उन्हें ही सँभालने को कहा।

इस पर श्रीराम ने उनकी यह बात मान ली तथा अपनी अनुपस्थिति में चौदह वर्षों तक भरत को अयोध्या सँभालने का आदेश दिया। इसके बाद भरत ने श्रीराम से अपनी खडाऊ उन्हें देने का आग्रह किया। वह खडाऊ भरत अपने सिर पर रखकर आँखों में आंसू भरकर वापस अयोध्या लौट गए।

भरत ने लिया चौदह वर्ष के वनवास का निर्णय (Ramayan Bharat Ka Tyag)

श्रीराम की खडाऊ अपने सिर पर रखकर भरत अयोध्या पहुँच गए तथा पूरी प्रजा के सामने घोषणा की कि अयोध्या के राजा केवल और केवल श्रीराम हैं। उन्होंने वह खडाऊ राज सिंहासन (Bharat Worshipping Charan Padukas Of Rama) पर रख दी। श्रीराम ने उनकी अनुपस्थिति में अयोध्या का राज्य सँभालने का आदेश दिया था। इसलिये भरत ने श्रीराम की भांति ही अयोध्या के निकट नंदीग्राम के वनों में एक वनवासी का जीवन व्यतीत करने व वही से राज्य की व्यवस्था सँभालने का निर्णय लिया।

इसके बाद भरत नंदीग्राम में कुटिया (Ramayan Bharat Vanvas) बनाकर रहने लगे। उन्होंने भूमि में एक गड्डा बनाया ताकि उनका स्थान हमेशा श्रीराम से नीचे रहे। वे प्रतिदिन श्रीराम के चरणों की खडाऊ की पूजा करते व अयोध्या का राजकाज सँभालते।

हनुमान पर बाण चलाना (Hanuman Bharat Milap)

जब श्रीराम अपने वनवास के अंतिम वर्ष में थे तब भरत ने अयोध्या के ऊपर से एक विशाल प्राणी को पर्वत के साथ उड़ते हुए देखा। उन्हें लगा कि अयोध्या पर किसी ने आक्रमण कर दिया हैं इसलिये उन्होंने उस पर बाण चला दिया। बाण के प्रभाव से वह प्राणी पर्वत समेत नीचे गिर पड़ा।

जब उसे होश आया तब उसने अपना परिचय हनुमान के रूप में दिया तथा बताया कि वे यह पर्वत श्रीराम की सेवा के लिए ही लेकर जा रहे हैं। तब हनुमान के द्वारा उन्हें माता सीता के हरण, श्रीराम-रावण युद्ध व लक्ष्मण के मुर्छित होने की बात पता चली। यह सुनकर भरत अत्यधिक अधीर हो गए लेकिन अपने भाई की आज्ञा का पालन करते हुए वही रहे।

भरत का श्रीराम को अयोध्या वैसी ही लौटाना

भरत ने श्रीराम से यह प्रतिज्ञा ली थी कि यदि वे चौदह वर्ष पूरे होने के बाद एक दिन देर से भी आए तो वे अपना आत्म-दाह कर लेंगे। इसलिये श्रीराम तय समय पर वहां आ गए। श्रीराम के आते ही भरत ने उन्हें उनका राज्य वैसा का वैसा सौंप दिया। इसके बाद श्रीराम का राज्याभिषेक किया गया।

भरत का समाधि लेना (Ramayan Bharat Ki Mrityu)

भरत ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण घटनाओं को देखा जिनमे मुख्य हैं माता सीता का वनगमन, लव-कुश से युद्ध, माता सीता का भूमि में समाना, श्रीराम का लव-कुश को अपने पुत्रों के रूप में अपनाना इत्यादि।

अंत में जब श्रीराम का धरती को छोड़ने का समय पास आया तो उन्होंने अयोध्या के निकट सरयू नदी में समाधि ले ली। उनके साथ ही भरत ने भी सरयू में समाधि ले ली तथा अपने धाम वैकुण्ठ लौट गए।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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