रामायण: रानी सुमित्रा का जीवन परिचय

Ramayan Sumitra In Hindi

रामायण में सुमित्रा (Ramayan Sumitra) एक ऐसा पात्र हैं जिनके बारे में ज्यादा वर्णन नही मिलता लेकिन जितनी बार भी उनका उल्लेख आया (Information About Mata Sumitra In Hindi) तो हृदय से उनके लिए सम्मान ही निकलेगा। उन्होंने अपने कर्तव्य व धर्म को निभाने के लिए इतने बड़े-बड़े बलिदान दिए जो आपको इस लेख के माध्यम से जानने को मिलेगा। इसलिये आज हम आपको रानी सुमित्रा के बारे में संपूर्ण परिचय देंगे।

महारानी सुमित्रा का जीवन परिचय (Mata Sumitra Ka Jeevan Parichay In Ramayan In Hindi)

सुमित्रा का जन्म काशी नरेश (Sumitra Ke Pita Ka Naam) की पुत्री के रूप में हुआ था। वह स्वभाव से अति-विनम्र तथा कर्मठ स्त्री थी। जब वह विवाह योग्य हो गयी तब उनका विवाह अयोध्या नरेश दशरथ के साथ हुआ। दशरथ की पहले से ही दो पत्नियाँ थी तथा तीसरे पत्नी सुमित्रा बनी।

अयोध्या की सबसे बड़ी रानी व दशरथ की प्रथम पत्नी कौशल्या थी तो वही कैकेयी दशरथ की प्रिय पत्नी थी जो उनकी दूसरी पत्नी थी किंतु सुमित्रा (Mata Sumitra Ki Jivani) हमेशा अपने पति की सेवा में लीन रहती थी। वह तीनो रानियों में सबसे होशियार व संयम से काम लेने वाली स्त्री थी।

उसे अपनी सबसे बड़ी सौतन कौशल्या से बहुत प्रेम था। कौशल्या भी उसे अपनी बहन के समान प्रेम करती थी। कैकेयी का स्वभाव इतना ज्यादा अच्छा नही था तथा वह राजा दशरथ पर अपना अधिकार ज़माने का ही प्रयास करती। राजा दशरथ भी उनके प्रेम में आसक्त थे इसलिये वे ज्यादातर कैकेयी के कक्ष में ही रहते।

दूसरी ओर सुमित्रा (Ramayan Sumitra History In Hindi) कौशल्या के निकट रहना पसंद करती व उनकी सेवा करना ही अपना धर्म समझती। वह अयोध्या का कामकाज देखने के साथ-साथ दशरथ व कौशल्या की बहुत सेवा भी करती थी।

सुमित्रा को हुए दो पुत्र (Sumitra Ke Putra Ka Naam)

जब कई वर्षों तक राजा दशरथ के कोई पुत्र नही हुआ तो उन्होंने पुत्र कामेष्टि यज्ञ का आयोजन करवाया। इसमें से उन्हें खीर प्राप्त हुई जो उन्होंने आधी-आधी कौशल्या व कैकेयी को दे दी। दोनों रानियों ने अपनी खीर में से आधा-आधा भाग सुमित्रा को खाने को दे दिया।

फलस्वरूप सुमित्रा को दो पुत्रों की प्राप्ति हुई (Son Of Sumitra In Ramayana) जिनमे बड़े लक्ष्मण थे तो छोटे शत्रुघ्न। लक्ष्मण कौशल्या के पुत्र श्रीराम के ज्यादा करीब थे तो शत्रुघ्न कैकेयी के पुत्र भरत के।

सुमित्रा का वात्सल्य (Devi Sumitra Ka Charitra Chitran Ramayan)

तीनों माताओं में से सभी पुत्रों का स्नेह सुमित्रा से ही सबसे ज्यादा था। सुमित्रा ही बचपन में सभी राजकुमारों को अपनी गोद में सुलाया करती व उन्हें लोरी सुनाती थी। वह सभी से एक समान प्रेम करती किंतु उनका मुख्य प्रेम कौशल्या पुत्र श्रीराम के प्रति था।

श्रीराम का वनवास (Shri Ram Ke Vanvas Par Sumitra)

जब चारो राजकुमार गुरुकुल से अपनी शिक्षा पूर्ण करके वापस आ गए तब सुमित्रा भी बहुत प्रसन्न थी। फिर सभी का विवाह भी हो गया व सुमित्रा को भी चार-चार बहुएं मिली। कुछ समय बाद ही कैकेयी ने ऐसी चाल चली कि अयोध्या के राजपरिवार में हलचल मच गयी।

कैकेयी के द्वारा श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास सुना दिया गया व भरत को अयोध्या का नरेश बनाने की घोषणा की गयी। सुमित्रा यह सुनकर बहुत व्यथित हो गयी व श्रीराम की चिंता करने लगी। उस समय उसका एक पुत्र शत्रुघ्न भरत के साथ कैकेय देश गए हुआ था।

सुमित्रा का लक्ष्मण के लिए कठोर निर्णय लेना (Sumitra’s Son Soumitra Lakshman)

लक्ष्मण शुरू से ही श्रीराम के प्रिय थे तथा वे उनके बिना नही रह सकते थे। कैकेयी के द्वारा केवल श्रीराम को ही चौदह वर्ष का वनवास हुआ था (Sumitra Ka Tyag) लेकिन लक्ष्मण ने उनके साथ वन में रहकर उनकी सेवा करने का निर्णय लिया। जब लक्ष्मण इसकी आज्ञा मांगने अपनी माँ सुमित्रा के पास आए तब वे थोड़ा झिझक रहे थे लेकिन सुमित्रा ने उनकी सारी शंकाएं दूर कर दी।

उन्होंने लक्ष्मण को कहा कि जहाँ भी श्रीराम हैं वही तुम्हारी अयोध्या हैं। तुम्हे हमेशा श्रीराम की सेवा करनी हैं व उनके चरणों में रहना हैं। उन्होंने लक्ष्मण को चौदह वर्षों तक श्रीराम की मन-कर्म-वचन से सेवा करने का आदेश दिया व कहा कि उन्हें कोई दुःख ना पहुंचे। एक माँ के द्वारा ऐसे वचन सुनकर लक्ष्मण की भी आँखों में आंसू आ गए थे।

वनवास के समय सुमित्रा (Mata Sumitra Ka Tyag Ramayan)

रामायण में उल्लेख हैं कि जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष के वनवास में थे तब सुमित्रा का अपनी बहु उर्मिला से विशेष स्नेह था क्योंकि वह अकेली रह गयी थी। उन्होंने उर्मिला को भी अपनी बड़ी बहन समान कौशल्या की सेवा करने को कहा।

इस प्रकार सुमित्रा ने ऐसे समय में भी अपने धैर्य व संयम का परिचय दिया तथा सब कुछ त्याग कर दिया। उन्होंने इस विकट परिस्थिति में अपने एक पुत्र को श्रीराम के साथ वन में भेज दिया तो बहु को कौशल्या की सेवा में लगाया, दूसरे पुत्र शत्रुघ्न को भरत की राजकाज सँभालने में सहायता करने को कहा तो छोटी बहुत श्रुतकीर्ति को कैकेयी का ध्यान रखने को कहा।

सुमित्रा की मृत्यु (Mata Sumitra Ki Mrityu Kaise Hui Ramayan)

इसके बाद सुमित्रा ने अपने जीवन में कई घटनाक्रम देखे। जैसे कि अपने पति दशरथ की राम वियोग में मृत्यु, भरत का अयोध्या आना व राज सिंहासन त्यागना, चित्रकूट की घटना, श्रीराम लक्ष्मण सीता का चौदह वर्ष के पश्चात लौटना, राम का राज्याभिषेक, सीता का वनवास व उनका धरती में समाना इत्यादि।

अंत में सुमित्रा (Ramayan Sumitra Biography In Hindi) अपनी दोनों सौतन के साथ तीर्थयात्रा पर गयी व शांतिपूर्वक अपने प्राण त्याग दिए व परलोक सिधार गयी।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

4 Comments

  1. धन्य है, माता सुमित्रा!
    संयुक्त परिवार की महिलाओं का आचरण कैसा हो, बिना लाइम लाइट में आए तथा बिना किसी स्वार्थ के कैसे अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया जाता है– यह कोई उनसे सीखे।

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