आज हम आपको राजा दशरथ और श्रवण कुमार की कहानी (Shravan Kumar Ki Katha) सुनाने जा रहे हैं। श्रवण कुमार अपने माता-पिता का आखिरी सहारा था। अपनी युवावस्था में महाराज दशरथ से इतनी बड़ी भूल हुई थी कि उन्हें श्रवण कुमार के माता-पिता का श्राप मिल गया था। यही श्राप उनकी मृत्यु का कारण बना और उनकी पुत्र वियोग में मुक्ति हुई थी।
सरवन के माता पिता की कथा में राजा दशरथ को मिले हुए श्राप का सार छुपा हुआ है। यह अयोध्या जैसे शक्तिशाली राज्य के राजा का दुर्भाग्य ही था कि उनकी मृत्यु के समय उनके चारों पुत्र उनके पास नहीं थे। जिनके घर में स्वयं भगवान विष्णु ने पुत्र रूप में जन्म लिया था, वे भी अपने अंतिम संस्कार को तरस गए थे।
ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि श्रवण कुमार की मृत्यु कैसे हुई और राजा दशरथ का उससे क्या संबंध था!! आज हम आपके समक्ष राजा दशरथ और श्रवण कुमार की इसी कथा को रखने जा रहे हैं।
श्रवण रामायण में एक ऐसा पात्र था जो आज तक पुत्र के रूप में एक आदर्श माना जाता है। उसकी अपने माता-पिता के प्रति सेवा को हम आज तक एक उदाहरण के रूप में देखते हैं। श्रवण के माता-पिता का नाम शांतनु व मलाया था। उसके माता-पिता दोनों अंधे थे व समय के साथ-साथ बहुत बूढ़े हो गए थे जिस कारण श्रवण ही उनका सब काम किया करता था।
अपने माता-पिता के प्रतिदिन के सब काम करना, भोजन बनाना, उन्हें खिलाना, बाहर से सब सामान लेकर आना इत्यादि सब कार्य श्रवण खुशी-खुशी करता था। हिंदू धर्म में सन्यास आश्रम में चारों तीर्थों को करने की बहुत महत्ता है। यह माना जाता है कि इससे मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति होती है।
यही इच्छा श्रवण के माता-पिता ने भी प्रकट की। चूँकि वह अपने माता-पिता की हर एक इच्छा को पूरी करता था तथा यह उसके माता-पिता की अंतिम इच्छा भी थी। इसलिए उसने दोनों को चारों तीर्थ करवाने का संकल्प लिया। बस यहीं से राजा दशरथ इस कहानी में आते हैं। आइए जाने राजा दशरथ और श्रवण कुमार की कहानी।
श्रवण का परिवार निर्धन था व उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे तीर्थ पर जाने का खर्च वहन कर सकें। साथ ही उसके माता-पिता अंधे थे व चल पाने में भी असमर्थ थे। इसलिए श्रवण ने दो बड़ी-बड़ी टोकरी ली व उन्हें एक मजबूत बांस के डंडे पर रस्सी की सहायता से बांधा। उन दोनों टोकरियों में उसने अपने बूढ़े माता-पिता को बिठाया व उस बांस के डंडे को अपने कंधे पर रखकर तीर्थ की यात्रा पर निकल पड़ा।
श्रवण अपने माता-पिता को कंधे पर लिए तीर्थ यात्रा करा रहा था। रास्ते में उन्होंने अयोध्या शहर में सरयू नदी के किनारे विश्राम करने का सोचा। उन्होंने वहीं सरयू नदी के किनारे अपना डेरा बनाया व आराम करने लगे। तभी उसके माता-पिता को प्यास लगी व उन्होंने श्रवण को पानी लाने को कहा। श्रवण जल का पात्र लेकर सरयू नदी से जल लेने चला गया।
उस समय दशरथ अयोध्या के राजकुमार थे व उनका विवाह नहीं हुआ था। उन्हें शब्द भेदी बाण चलाना आता था अर्थात वह केवल शिकार के शब्दों को सुनकर उस पर निशाना लगा सकते थे। उस समय वे अयोध्या में सरयू नदी के पास के जंगलों में ही शिकार कर रहे थे। जब उन्हें दूर से श्रवण के सरयू नदी से जल भरने की आवाज़ सुनाई दी तो उन्होंने उसे एक पशु समझा। उन्होंने अपना शब्द भेदी बाण उस ओर चला दिया जो सीधे जाकर श्रवण के हृदय में लगा।
बाण लगते ही श्रवण दर्द से कराह उठे। एक मनुष्य के कराहने की आवाज़ सुनकर दशरथ वहाँ दौड़े गए व उसे वहाँ देखकर अत्यंत डर गए। उन्होंने श्रवण को अपनी गोद में रखा व उससे क्षमा मांगने लगे। श्रवण को अपनी मृत्यु से ज्यादा दुःख अपने माता-पिता की सेवा ना कर पाने का था। उन्होंने राजा दशरथ से आग्रह किया कि यह जल वे उनके माता-पिता तक पहुंचा दें व उनकी मृत्यु का समाचार उन्हें दे दें। यह कहकर श्रवण ने अपने प्राण त्याग दिए।
दशरथ जल से भरा पात्र लेकर श्रवण कुमार के बूढ़े माता-पिता के पास पहुंचे व उन्हें पीने को दिया। उनके माता-पिता ने दशरथ से अपने पुत्र के बारे में पूछा तो दशरथ ने उन्हें सारा किस्सा सुना दिया। अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर दोनों अवसाद में चले गए। कुछ ही देर में श्रवण कुमार की माता ने दुःख में अपने प्राण त्याग दिए।
अपने पुत्र व पत्नी की मृत्यु से श्रवण कुमार के पिता इतने ज्यादा आहत हुए कि उन्होंने मरने से पहले उन्हें श्राप दे दिया। श्रवण कुमार के पिता ने महाराज दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार उनकी मृत्यु पुत्र वियोग में हो रही है, उसी प्रकार दशरथ भी एक दिन पुत्र वियोग के दुःख में ही मरेंगे। इतना कहकर उन्होंने भी वहीं प्राण त्याग दिए। आगे चलकर श्रीराम के वनवास जाने के बाद राजा दशरथ की पुत्र वियोग में मृत्यु हो गई थी।
राजा दशरथ और श्रवण कुमार की कहानी (Shravan Kumar Ki Katha) में यह भी एक संयोग ही था कि मृत्यु के समय राजा दशरथ के चारों पुत्रों में से कोई भी उनके पास नहीं था। उनके बड़े पुत्र श्रीराम को वनवास हुआ था तो छोटे पुत्र लक्ष्मण उनके साथ गए हुए थे। वहीं भरत अपने ननिहाल कैकेय प्रदेश में थे तो शत्रुघ्न भी उन्हीं के ही साथ थे। ऐसे में दशरथ ने राम-राम जपते हुए ही पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग दिए थे।
दशरथ श्रवण से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: श्रवण कुमार और दशरथ का क्या रिश्ता था?
उत्तर: श्रवण कुमार और दशरथ का कोई रिश्ता नहीं था। एक समय में अनजाने में राजा दशरथ से श्रवण कुमार की हत्या हो गई थी जिसके फलस्वरूप श्रवण के पिता ने उन्हें श्राप दिया था।
प्रश्न: श्रवण कुमार को किसने मारा था?
उत्तर: एक बार जब महाराज दशरथ शिकार करने गए हुए थे। तब उन्होंने भूलवश श्रवण कुमार को हिरण समझ कर मार डाला था।
प्रश्न: श्रवण कुमार की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर: श्रवण कुमार की मृत्यु महाराज दशरथ के शब्द भेदी बाण से हुई थी। इसे उन्होंने हिरण समझ कर श्रवण कुमार पर छोड़ दिया था।
प्रश्न: राजा दशरथ को श्राप किसने दिया?
उत्तर: राजा दशरथ को श्राप श्रवण कुमार के पिता ने अपने प्राण त्यागने से पहले दिया था। श्राप के अनुसार दशरथ की मृत्यु भी पुत्र वियोग से होनी थी।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
अन्य संबंधित लेख:
आज के इस लेख में आपको संतोषी चालीसा (Santoshi Chalisa) पढ़ने को मिलेगी। सनातन धर्म…
आज हम आपके साथ वैष्णो देवी की आरती (Vaishno Devi Ki Aarti) का पाठ करेंगे।…
आज के इस लेख में आपको तुलसी आरती (Tulsi Aarti) हिंदी में अर्थ सहित पढ़ने…
आज हम तुलसी चालीसा (Tulsi Chalisa Lyrics) का पाठ करेंगे। हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे…
आज हम आपके साथ महाकाली माता की आरती (Mahakali Mata Ki Aarti) का पाठ करेंगे। जब…
आज हम आपके साथ श्री महाकाली चालीसा (Mahakali Chalisa Lyrics) का पाठ करेंगे। जब भी…
This website uses cookies.