आज हम श्री कृष्ण की आरती (Shri Krishna Ki Aarti) करने जा रहे हैं। यह आरती श्रीकृष्ण के गिरिधारी रूप को समर्पित आरती होगी। कृष्ण भगवान को गिरिधारी नाम गोवर्धन पर्वत को उठाने के कारण दिया गया था। गोवर्धन पर्वत को श्रीकृष्ण ने अपनी एक ऊँगली पर उठाकर वृंदावनवासियों को इंद्र देव के प्रकोप से बचाया था। इसी कारण इंद्रदेव का अहंकार टूटा था और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांग ली थी।
श्री कृष्ण के उन्हीं गिरिधारी रूप को समर्पित श्री कृष्ण जी की आरती (Shri Krishna Ji Ki Aarti) हम इस लेख में करेंगे। साथ ही आपको श्री कृष्ण की आरती का हिंदी में अर्थ भी बताया जाएगा। अंत में हम श्री कृष्ण जी की आरती पढ़ने से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व के बारे में भी जानेंगे। तो चलिए सबसे पहले पढ़ते हैं भगवान श्री कृष्ण की आरती लिखित में।
जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।
दानव दल बलहारी, गो द्विज हितकारी॥ जय जय॥
जय गोविंद दयानिधि, गोवर्धन धारी।
वंशीधर बनवारी, बृज जन प्रियकारी॥ जय जय॥
गणिका गीध अजामिल गजपति भयहारी।
आरत आरती हारी, जग मंगलकारी॥ जय जय॥
गोपालक, गोपेश्वर, द्रौपदी-दुःखदारी।
शबर सुता सुखकारी, गौतम तिय तारी॥ जय जय॥
जन प्रह्लाद प्रमोदक, नरहरि तनु धारी।
जन मन रंजनकारी, दिति सुत संहारी॥ जय जय॥
टिट्टिभ सुत सरंक्षक, रक्षक मंझारी।
पांडु सुवन शुभकारी, कौरव मद हारी॥ जय जय॥
मन्मथ मन्मथ मोहन, मुरली रवकारी।
वृन्दाविपिन विहारी, यमुना तट चारी॥ जय जय॥
अघ बक बकी उधारक, तृणावर्त तारी।
बिधि सुरपति मदहारी, कंस मुक्तिकारी॥ जय जय॥
शेष, महेश, सरस्वती गुण गावत हारी।
कल कीर्ति बिस्तारी, भक्त भीति हारी॥ जय जय॥
नारायण शरणागत, अति अघ, अघहारी।
पद रज पावनकारी, चाहत चितहारी॥ जय जय॥
जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।
दानव दल बलहारी, गो द्विज हितकारी॥
गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले भगवान श्रीकृष्ण की जय हो। वे दानवों की सेनाओं का नाश करते हैं और गौमाता तथा ब्राह्मणों की रक्षा करते हैं।
जय गोविंद दयानिधि, गोवर्धन धारी।
वंशीधर बनवारी, बृज जन प्रियकारी॥
श्रीकृष्ण का एक नाम गोविन्द भी है जो दया के सागर है। उन्हें गोवर्धनधारी के नाम से भी जाना जाता है। वे बांसुरी बजाते हैं और वनों में घूमते हैं। बृजवासियों को वे बहुत ही ज्यादा प्रिय है।
गणिका गीध अजामिल गजपति भयहारी।
आरत आरती हारी, जग मंगलकारी॥
श्रीकृष्ण ने ही सभी गणों, गरुड़ देवता, अजामिल, हाथियों के भय को दूर किया है। वे अपने भक्तों के दुःख को दूर कर इस जगत का मंगल करते हैं।
गोपालक, गोपेश्वर, द्रौपदी-दुःखदारी।
शबर सुता सुखकारी, गौतम तिय तारी॥
वे गायों की रक्षा करने वाले और उनके ईश्वर, द्रौपदी के दुःख को दूर करने वाले, शबरी को सुख देने वाले और गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार करने वाले हैं।
जन प्रह्लाद प्रमोदक, नरहरि तनु धारी।
जन मन रंजनकारी, दिति सुत संहारी॥
श्रीकृष्ण ने ही भक्त प्रह्लाद के मन को आनंदित किया था। आपने ही नरसिंह अवतार लेकर दिति के पुत्र हिरन्यकश्यप का वध कर दिया था। वे हम सभी के मन को आनंद देने वाले हैं।
टिट्टिभ सुत सरंक्षक, रक्षक मंझारी।
पांडु सुवन शुभकारी, कौरव मद हारी॥
श्रीकृष्ण ने तो छोटे पशु-पक्षियों के बच्चों तक की रक्षा की है। उन्होंने ही पांडवों को सुख प्रदान किया है और कौरवों के अहंकार को नष्ट कर दिया है।
मन्मथ मन्मथ मोहन, मुरली रवकारी।
वृन्दाविपिन विहारी, यमुना तट चारी॥
श्रीकृष्ण के रूप को देखकर तो कामदेव भी मोहित हो जाते हैं। उनकी मुरली की धुन बहुत ही रसभरी है। वे वृंदावन की गलियों में और यमुना किनारे घूमते हैं।
अघ बक बकी उधारक, तृणावर्त तारी।
बिधि सुरपति मदहारी, कंस मुक्तिकारी॥
श्रीकृष्ण ने ही अघासुर, बकासुर, पूतना इत्यादि कई राक्षसों का संहार कर दिया था। उन्होंने ही देवताओं के राजा इंद्र देव का मां भंग किया था और अत्याचारी कंस का वध कर उसे मुक्ति दे दी थी।
शेष, महेश, सरस्वती गुण गावत हारी।
कल कीर्ति बिस्तारी, भक्त भीति हारी॥
आपके गुणगान तो स्वयं शेषनाग, भगवान शिव और माता सरस्वती करते हैं। श्रीकृष्ण की कीर्ति तो कलियुग तक फैली हुई है और वे भक्तों के सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं।
नारायण शरणागत, अति अघ, अघहारी।
पद रज पावनकारी, चाहत चितहारी॥
जो भी नारायण की शरण में जाता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं। उनकी चरणों की धूल भी बहुत पवित्र है। श्रीकृष्ण की भक्ति करने से हमारे मन को आनंद मिलता है।
इस तरह से आज आपने श्री कृष्ण जी की आरती (Shri Krishna Ji Ki Aarti) हिंदी में अर्थ सहित पढ़ ली है। अब हम कृष्ण आरती पढ़ने से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व को भी जान लेते हैं।
भगवान श्री कृष्ण की आरती के माध्यम से हमें श्रीकृष्ण के गुणों, शक्तियों, महिमा, महत्व इत्यादि के बारे में जानकारी मिलती है। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का एक ऐसा पूर्ण अवतार है जो सभी गुणों से संपन्न है। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में एक नहीं बल्कि कई उद्देश्यों को पूरा किया है। अपने कर्मों के द्वारा उन्होंने हमें कई तरह की शिक्षा भी दी है।
श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में ही कलियुग के अंत तक की शिक्षा दे दी थी। जैसे-जैसे कलियुग का समयकाल आगे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे ही श्रीकृष्ण भी अधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं। ऐसे में श्रीकृष्ण के बारे में और अधिक जानने और उनके गुणों को आत्मसात करने के उद्देश्य से ही श्री कृष्ण जी की आरती का पाठ किया जाता है। यहीं श्री कृष्ण की आरती का महत्व है।
यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन के साथ श्री कृष्ण जी की आरती का पाठ करते हैं तो इससे श्रीकृष्ण आपसे प्रसन्न होते हैं। श्रीकृष्ण के प्रसन्न होने का अर्थ हुआ, आपकी सभी तरह की दुविधाओं, संकटों, कष्टों, परेशानियों, विघ्नों, दुविधाओं, उलझनों, मतभेदों, समस्याओं, नकारात्मकता, द्वेष, ईर्ष्या, इत्यादि का अंत हो जाना।
श्रीकृष्ण की कृपा से हमारा जीवन सरल हो जाता है, घर में सुख-शांति का वास होता है, व्यापार, करियर व नौकरी में उन्नति होती है, शिक्षा में अव्वलता आती है, स्वास्थ्य उत्तम होता है, रिश्ते मधुर बनते हैं और समाज में प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है। इसलिए आपको शुद्ध तन, निर्मल मन और स्वच्छ स्थान पर श्री कृष्ण की आरती का पाठ करना चाहिए।
आज के इस लेख के माध्यम से आपने श्री कृष्ण की आरती (Shri Krishna Ki Aarti) को अर्थ सहित पढ़ लिया है। आशा है कि आपको धर्मयात्रा संस्था के द्वारा दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी। यदि आप अपनी प्रतिक्रिया देना चाहते हैं या इस विषय पर हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो आप नीचे कमेंट कर सकते हैं। हमारी और से आप सभी को जय श्रीकृष्ण।
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