नरसिंह अवतार की कहानी जब भगवान विष्णु ने भक्त प्रह्लाद के लिए दैत्य हिरण्यकश्यप का वध किया था

Narsingh Avatar Ki Katha

भगवान विष्णु के दशावतारों में से नरसिंह अवतार चतुर्थ अवतार (Narsingh Avatar In Hindi) है। इसे नृसिंह अवतार भी कहते हैं जिसमें उनका आधा शरीर सिंह तथा आधा मानव का (Narsingh Avatar Ki Katha) था। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य अधर्म के प्रतीक दैत्य हिरण्यकश्यप का वध करना तथा अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करके उसे राज सिंहासन पर बिठाना था।

भगवान विष्णु का यह अवतार इतना ज्यादा विध्वंसक (Bhagwan Narasimha Avatar Story In Hindi) था कि स्वयं उनका भक्त प्रह्लाद भी इससे डर गया था। तब भगवान शिव को शरभ अवतार लेकर उन्हें शांत करवाना पड़ा था। आज हम भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का संपूर्ण परिचय आपको देंगे।

भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार लेने की कथा (Narsingh Avatar Story In Hindi)

हिरण्यकश्यप को भगवान ब्रह्मा का वरदान (Hiranyakashyap Ka Vardan)

सतयुग में एक पराक्रमी दैत्य हिरण्यकश्यप हुआ था। उसने कई सैकड़ों वर्षों तक भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके अद्भुत वरदान प्राप्त किया था जिसके अनुसार उसका वध भगवान ब्रह्मा के बनाये किसी भी प्राणी से नही हो सकता था। इसके अनुसार वह न अपने घर के अंदर तथा ना ही बाहर, ना दिन में तथा ना ही रात में, ना भूमि पर तथा ना ही आकाश में, ना अस्त्र से तथा ना ही शस्त्र से, ना मनुष्य से तथा ना ही पशु से मारा जा सकता था।

इस वरदान को पाकर वह अत्यंत शक्तिशाली हो गया था तथा तीनों लोकों में उसे हराने वाला कोई नही था। इसी वरदान के फलस्वरूप वह स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल लोक का राजा बन गया था। उसने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया तथा विष्णु को मानने से मना कर दिया।

स्वर्ग लोक से देवराज इंद्र को अपदस्थ कर दिया गया था तथा पृथ्वी लोक में भी अधर्म की स्थापना कर दी गयी थी। सब जगह धर्म का नाश होने लगा तथा ऋषि-मुनियों की हत्या होने लगी किंतु कहते हैं ना भगवान सर्वत्र विद्यमान होते हैं और हर किसी को अपनी शक्ति का अनुभव करवा ही देते हैं।

जो हिरण्यकश्यप तीनों लोकों का राजा बना बैठा था और स्वयं को भगवान घोषित किये हुए थे, स्वयं उसी के घर में उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का सबसे बड़ा भक्त निकला। अब उस राजा की इससे बड़ी दुर्दशा क्या ही होगी कि जिसके भय से तीनों लोकों में लोग विष्णु का नाम लेने से डर रहे थे, उसी राजा का ही पुत्र दिन-रात विष्णु-विष्णु का नाम ही जपता था।

अपने पुत्र प्रह्लाद को दी यातनाएं (Prahlad Ki Kahani)

हिरण्यकश्यप के अधर्मी होने के बाद भी स्वयं उसके घर में विष्णु भक्त का जन्म हुआ जो उसका सबसे छोटा पुत्र प्रह्लाद था। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का भक्त था तथा उनकी भक्ति में ही लीन रहता था। जब वह केवल पांच वर्ष का था तब उसके पिता हिरण्यकश्यप के द्वारा उसे मारने के बहुत प्रयास किये गए।

इन प्रयासों में प्रह्लाद को सांपों से भरे कारावास में फिंकवा देना, हाथियों के पैरों के नीचे कुचलवाने का प्रयास करना, पहाड़ से नीचे खाई में फेंक देना, अस्त्रों से शरीर के टुकड़े करना, अग्नि में जलाने का प्रयास करना इत्यादि सम्मिलित है।

आश्चर्य की बात यह थी कि जब-जब भी वह अपने पुत्र के वध करने का प्रयास करता तब-तब प्रह्लाद श्रीहरि का नाम जपने लगता। उसके बाद स्वयं भगवान विष्णु उसकी रक्षा करने आ जाते लेकिन किसी को दिखाई नही देते। फिर एक दिन हिरण्यकश्यप की भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद पर अत्याचार की सीमा समाप्त हो गयी और भगवान विष्णु ने भयंकर नरसिंह अवतार लिया, आइये जानते है।

भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार लेना (Bhagwan Narsingh Ki Kahani)

वैसे तो भगवान विष्णु नरम स्वभाव के और धैर्यवान थे। इसी कारण हर बार वे शांति से और बिना क्रोध के अपने भक्त प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा करते आये (Bhagwan Narsingh Ki Katha) थे किंतु अपने छोटे से भक्त पर इस तरह के अत्याचार देखकर धीरे-धीरे उनका क्रोध बढ़ता जा रहा था। एक दिन वह क्रोध का घड़ा फूट गया व भगवान विष्णु के अत्यंत भयानक रूप नरसिंह अवतार का जन्म हुआ।

जब हिरण्यकश्यप के द्वारा प्रह्लाद को मारने के सभी प्रयास विफल (Narsingh Bhagwan Ki Kahani) हो गए तब उसने क्रोध में अपने पुत्र से पूछा कि यदि भगवान विष्णु हर जगह उपस्थित हैं तो क्या वह सामने वाले स्तम्भ में भी है। इस पर प्रह्लाद ने कहा कि श्रीहरि तो हर एक कण में उपस्थित हैं, इसलिये वह सामने वाले स्तम्भ में भी है। यह सुनकर हिरण्यकश्यप को क्रोध आ गया व उसने उस स्तम्भ को तोड़ डाला।

स्तम्भ के टूटते ही एक जोरदार दहाड़ सुनाई (Narsingh Bhagwan Ki Katha) पड़ी तथा उसमे से भगवान विष्णु अपने नरसिंह अवतार में बाहर निकले। उनका ऊपर का आधा शरीर सिंह का तथा नीचे का आधा शरीर मनुष्य का था। वह जोर-जोर से फुंफकार रहे थे जिस कारण आसपास हाहाकार मच गया। सभी सैनिक उनके इस भयानक रूप को देखकर आतंकित हो उठे।

हिरण्यकश्यप का वध (Hiranyakashyap Ka Vadh)

नरसिंह अवतार ने हिरण्यकश्यप पर भीषण प्रहार किया तथा उसे खींचकर उसके भवन की दहलीज पर ले गए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपने जांघों पर बिठा लिया तथा अपने बड़े-बड़े नाखूनों की सहायता से उसका पेट चीरकर आंतड़ियाँ बाहर निकाल दी। इस प्रकार भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का अंत कर दिया। किंतु आखिर भगवान विष्णु ने उसको मिले वरदान को विफल कैसे किया? आइये जाने।

जब भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध किया उस समय ना दिन था व ना ही रात, अपितु संध्या का समय था; उन्होंने उसे ना भवन के अंदर मारा तथा ना ही बाहर अपितु उसकी दहलीज पर मारा; उन्होंने ना उसे भूमि पर मारा तथा न ही आकाश में अपितु अपनी गोद में बिठाकर मारा, ना ही उन्होंने अस्त्र से मारा तथा ना ही शस्त्र से अपितु अपने नाखूनों से मारा। इसके साथ ही भगवान नरसिंह का अवतार ना ही मानव का था, ना पशु का तथा न ही किसी सुर-असुर का; ना ही उनकी उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा ने की थी। इस प्रकार उन्होंने हिरण्यकश्यप का वरदान विफल करके उसका वध कर दिया।

प्रह्लाद ने किया नरसिंह अवतार को शांत (Prahlad Narsingh Bhagwan Ki Kahani)

हिरण्यकश्यप का वध करने के पश्चात भी जब भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार शांत नही हुआ तो सभी जगह भय व्याप्त हो गया। नरसिंह भगवान अभी भी अत्यधिक क्रोध में थे जिससे सभी देवता व दैत्य चिंता में पड़ गए। तब भक्त प्रह्लाद साहस करके उनके पास गए तथा उन्हें शांत करवाने का प्रयास किया। भक्त प्रह्लाद को अपने सामने देखकर भगवान नरसिंह का क्रोध शांत हो गया तथा उन्होंने उसे बहुत प्रेम (Narsingh Prahlad Ki Kahani) दिया।

इसके पश्चात उन्होंने प्रह्लाद को अपने पिता का उत्तराधिकारी बनाया तथा पुनः श्रीहरि में समा गए। कुछ मान्यताओं तथा शिव पुराण के अनुसार यह कथा यही समाप्त नही हुई थी। आइये उसके बारे में भी जाने।

भगवान शिव का शरभ अवतार (Sharabha Avatar Vs Narasimha)

जब नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया तब उनका क्रोध शांत नही हो रहा था तथा वे पृथ्वी को समाप्त कर देने पर आमादा थे। तब उन्हें शांत करवाने के उद्देश्य से भगवान शिव ने उससे भी भयानक रूप लिया जो सिंह, मानव तथा पक्षी का भयानक रूप था। उसके दो पंख, चोंच तथा शक्तिशाली पंजे थे। शरभ अवतार ने पंजों में नरसिंह अवतार को पकड़ा तथा आकाश में उड़ गया। उससे युद्ध करके उन्होंने नरसिंह अवतार को शांत किया था।

इसके बाद भी कुछ कथाएं प्रचलित हैं जिसमे भगवान विष्णु शिव के शरभ अवतार लेने से और ज्यादा क्रोधित हो गए थे तथा उन्होंने उससे भी ज्यादा भीषण अवतार गंडभेरुंड अवतार लिया था। यह अवतार शरभ अवतार से भी ज्यादा बड़ा और भीषण था। यह सब देखकर माँ आदिशक्ति ने दोनों को शांत करवाने के उद्देश्य से अपना उग्र रूप प्रत्यंगिरा धारण किया था।

नरसिंह भगवान की मृत्यु कैसे हुई (Narsingh Bhagwan Ki Mrityu Kaise Hui)

वैसे प्रचलित मान्यता के अनुसार यह सब बाद की बनायी गयी कथाएं इत्यादि हैं। वास्तव में भगवान विष्णु ने केवल नरसिंह अवतार लिया था। उसके बाद भगवान शिव या विष्णु या माँ आदिशक्ति के अन्य अवतार लेने की कथाएं अप्रासंगिक हैं।

जब भगवान नरसिंह ने दैत्य हिरण्यकश्यप का वध कर दिया था तब भी उनका क्रोध शांत नही हुआ था। वे लगातार फुंफकार रहे थे और दहाड़ मार रहे थे। उनके इस रूप से तीनों लोकों में सभी भयभीत थे और कोई भी उनके पास नही जा पा रहा था। ऐसी स्थिति में उनका अनन्य भक्त प्रह्लाद डरते-डरते उनके पास गया और उन्हें शांत करवाने का प्रयास किया।

भक्त प्रह्लाद को अपने पास आता देखकर भगवान नरसिंह का क्रोध एकदम से शांत हो गया। उन्होंने छोटे से प्रह्लाद को उठाकर अपनी गोद में रखा और उसे बहुत प्रेम दिया। इसके पश्चात उन्होंने प्रह्लाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप के राज सिंहासन पर रखा और उसे अगला उत्तराधिकारी घोषित किया।

इसके पश्चात उनका उद्देश्य पूर्ण हो गया और वे पुनः अपने धाम को लौट गए और अपने रूप श्रीहरि में समा गए।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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