जब दुष्ट रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था (Maa Sita Ki Khoj Mein Ram Aur Lakshman) तब ना तो भगवान श्रीराम जानते थे व ना लक्ष्मण की उनका अपहरण किसके द्वारा किया गया, क्यों किया गया व वह उन्हें कहां ले जाया गया है। वे दोनों इधर-उधर माता सीता की खोज में भटक रहे थे (Ramayan Mein Sita Ki Khoj)। तब मुख्यतया 7 महापुरुषों ने माता सीता की खोज में योगदान दिया। आइये जानते हैं उनके बारें में।
जटायु भगवान श्रीराम की कुटिया की सुरक्षा में तैनात थे व रावण को माता सीता को ले जाते हुए सबसे पहले उसी ने देखा था। उससे रावण से युद्ध किया था किंतु उस युद्ध में वह बुरी तरह घायल होकर मरणासन्न की स्थिति में जा पहुंचा था।
जब भगवान श्रीराम माता सीता को खोजते हुए जटायु के पास पहुंचे तो उसने मरने से पहले उन्हें रावण के द्वारा माता सीता के अपहरण करने की बात बतायी। इसके बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिए थे।
जटायु से रावण के बारे में जानकर भगवान श्रीराम दक्षिण दिशा में आगे की ओर बढ़ रहे थे तभी उन्हें रास्ते में कबंध राक्षस दिखाई दिया। उसके कहने पर भगवान श्रीराम ने उसका वध किया। उसी राक्षस ने श्रापमुक्त होकर शबरी माता का पता दिया जिससे उन्हें अपने आगे का मार्ग मिल सके।
शबरी माता बहुत वर्षों से भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। जब अंत में श्रीराम उनकी कुटिया में आये तब उन्होंने उनका बहुत आदर-सत्कार किया व किष्किन्धा के राजा बालि के छोटे भाई सुग्रीव का पता बताया। माता शबरी से सुग्रीव का पता पाकर भगवान राम ऋषिमुख पर्वत पर उनसे मिलने पहुंचे थे।
सुग्रीव से मिलकर भगवान श्रीराम ने उनसे मित्रता की व बालि का वध करके उन्हें किष्किन्धा का राजा बनाया। उसके बाद बालि ने अपना वचन निभाने के उद्देश्य से अपनी वानर सेना को माता सीता की खोज में चारों दिशाओं में भेजा था ताकि उन्हें जल्द से जल्द ढूंढा जा सके।
सम्पाती जटायु के बड़े भाई थे जो दक्षिण तट पर समुंद्र के किनारे रहते थे। जब वानर सेना का एक दल वहां पहुंचा तो उन्होंने सम्पाती को सब बात बतायी। सम्पाती ने अपनी गिद्ध दृष्टि से माता सीता का पता लगाया व उनके लंका में होने की बात कही। उन्होंने वानर सेना को समुंद्र पार कर लंका में जाकर माता सीता को खोजने को कहा।
वानर सेना के लिए समुंद्र को पार करना असंभव था। स्वयं जाम्बवंत जी बहुत शक्तिशाली थे लेकिन वृद्धावस्था के कारण अब वे इसमें असक्षम थे। इसलिये उन्होंने हनुमान को अपनी भूली हुई शक्तियों को याद करवाया। बचपन में हनुमान एक ऋषि के श्राप के कारण अपनी अद्भुत शक्तियों को भूल गए थे लेकिन जाम्बवंत जी के द्वारा पुनः याद दिलाने के कारण हनुमान के अंदर वही पराक्रम व बल वापस आ गया था।
हनुमान स्वयं भगवान शिव के 11वें अंशावतार थे व जाम्बवंत जी के द्वारा उन्हें अपनी शक्तियां याद दिलाने के पश्चात वे सौ योजन का समुंद्र लांघकर लंका पहुँच गए। वहां जाकर उन्होंने माता सीता को खोज निकाला व उनसे भेंट की। वापस आकर उन्होंने माता सीता का पता प्रभु श्रीराम को दिया जिसके बाद श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने का निर्णय लिया।
जब हनुमान जी माता सीता का पता लगाने के लिए समुद्र को पार कर रहगे…
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उपयोगी जानकारी उपलब्ध कराई गई है आपके योग हेतु कोटि कोटि धन्यवाद।