आज हम आदि शंकराचार्य समाधि केदारनाथ (Adi Shankaracharya Samadhi Kedarnath) की बात करेंगे। आदि शंकराचार्य का जन्म आठवीं शताब्दी में केरल राज्य में हुआ था। उनके द्वारा ही हिंदू धर्म का पुनः उत्थान किया गया था व संपूर्ण भारतवर्ष की पैदल यात्रा की गयी थी। आदि शंकराचार्य ने ही भारत की चारों दिशाओं में चार धाम की स्थापना की थी।
संपूर्ण भारतवर्ष की यात्रा व चार धाम की स्थापना करने के पश्चात अपने अंतिम समय में आदि शंकराचार्य केदारनाथ (Shankaracharya Kedarnath) आ गए थे। वहां उन्होंने केदारनाथ मंदिर का पुनः निर्माण करवाया व मंदिर के ठीक पीछे 32 वर्ष की आयु में समाधि ले ली थी। आइये केदारनाथ में स्थित आदि गुरु शंकराचार्य समाधि स्थल के बारे में जान लेते हैं।
आदि शंकराचार्य ने अल्पायु में ही अपने शरीर का त्याग कर मोक्ष प्राप्त कर लिया था। उन्हें अंतिम बार उनके शिष्यों के द्वारा केदारनाथ मंदिर के आसपास घूमते हुए और मंदिर के पीछे ध्यान लगाते हुए देखा गया था। इसके बाद उन्हें कभी नही देखा गया।
आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर के पीछे लगभग 20 मीटर की दूरी पर अपने प्राण त्याग दिए थे व भूमि में समाहित हो गए थे। इसके बाद उनके भक्तों के द्वारा उस स्थल पर आदि शंकराचार्य को समर्पित समाधि स्थल का निर्माण करवाया गया।
जो भी भक्तगण केदारनाथ मंदिर में त्रिकोण शिवलिंग के दर्शन करने आते थे वे आदि शंकराचार्य समाधि स्थल (Adi Shankaracharya Samadhi Sthal) भी होकर जाते थे। इसके पास में एक गर्म पानी का सरोवर भी है जिसे आदि शंकराचार्य ने अपने शिष्यों की सुगमता के लिए बनाया था। यह केदारनाथ के ठन्डे मौसम में अपने शिष्यों को आराम दिलाने के लिए आदि शंकराचार्य के द्वारा बनवाया गया था।
एक शोध में यह बात सामने आई थी कि 13वीं सदी से लेकर 17वीं सदी तक केदारनाथ का यह पूरा क्षेत्र बर्फ में दब गया था। उस समय केदारनाथ मंदिर व आदि शंकराचार्य का समाधि स्थल भी 400 वर्षों तक बर्फ में दबे रहे थे। उसके बाद 17वीं शताब्दी में जब बर्फ हटी तब मंदिर व समाधि स्थल पुनः देखने में आए। इसे केदारनाथ का एक चमत्कार ही कहा जा सकता है।
आदि शंकराचार्य समाधि केदारनाथ मंदिर (Adi Shankaracharya Samadhi Kedarnath) से ज्यादा दूर नहीं है। ऐसे में मंदिर पर यदि कोई आपदा आयी है तो उसका प्रत्यक्ष प्रभाव शंकराचार्य जी की समाधि पर भी पड़ा है।
वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई भीषण प्राकृतिक आपदा के बारे में कौन नही जानता। उस प्राकृतिक आपदा में लगभग 10 हज़ार से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो गयी थी। इस आपदा में केदारनाथ मंदिर को तो भीमशिला के चमत्कार के कारण कोई नुकसान नही हुआ था लेकिन आदि शंकराचार्य की समाधि पूरी तरह से नष्ट हो गयी थी।
उस समय बाढ़ के पानी में शंकराचार्य की समाधि बह गयी थी। इसके बाद मई के महीने में जब केदारनाथ के मार्ग खुले तब भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा इस क्षेत्र का दौरा किया गया। उस समय उन्होंने केदारनाथ के पुनरुद्धार का कार्य अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में सम्मिलित कर लिया जिसमे आदि शंकराचार्य की समाधि का भी पुनः निर्माण करवाना सम्मिलित था।
वर्तमान में शंकराचार्य समाधि स्थल (Shankaracharya Samadhi Sthal) का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। केदारनाथ मंदिर के पीछे भीमशिला के पास जमीन की छह मीटर खुदाई की गयी थी जहाँ समाधि का निर्माण किया गया है।
इस जगह के बीचों बीच आदिगुरु शंकराचार्य की 12 फीट ऊँचीं व 35 टन वजनी मूर्ति को स्थापित किया गया है। इस मूर्ति का निर्माण कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले से योगीराज शिल्पी व उनके पुत्र अरुण के द्वारा किया गया है। मूर्ति का निर्माण कृष्णशिला के पत्थरों से किया गया है।
5 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा इसका उद्घाटन किया गया था। समाधि स्थल के पास ही भक्तों के ध्यान लगाने व योग-साधना के लिए एक प्रांगन का निर्माण भी किया गया है। इसे देखने हर वर्ष लाखों करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं।
चूँकि हमने आपको बताया कि यह समाधि स्थल केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे स्थित है। इसलिए यहाँ जाने का समय केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने व बंद होने पर निर्भर करता है। केदारनाथ मंदिर के कपाट मई माह में अक्षय तृतीया के दिन खोल दिए जाते हैं व उसके बाद दीपावली के अगले दिन से बंद कर दिए जाते हैं।
सर्दियों में छह माह तक केदारनाथ के कपाट भीषण बर्फबारी के कारण बंद हो जाते हैं। उस समय वहां के स्थानीय नागरिक भी नीचे रहने चले जाते हैं और केदारनाथ जाने के सभी मार्ग पूरी तरह बंद हो जाते हैं। इसलिए आप मई माह से लेकर अक्टूबर माह के बीच में आदि शंकराचार्य की समाधि स्थल पर जा सकते हैं।
यदि आप भी शंकराचार्य केदारनाथ (Shankaracharya Kedarnath) की यात्रा पर जाने का सोच रहे हैं तो इसके लिए सबसे पहले आपको उत्तराखंड के ऋषिकेश, देहरादून या हरिद्वार पहुंचना पड़ेगा। फिर वहां से सोनप्रयाग के लिए स्थानीय बस, टैक्सी या कार लेनी होगी। सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर दूर है गौरीकुण्ड, यहाँ से आपको शेयर्ड जीप में बैठकर गौरीकुण्ड पहुंचना पड़ेगा।
गौरीकुण्ड से केदारनाथ की 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा शुरू होती है। आप चाहें तो पैदल केदारनाथ का ट्रेक कर सकते हैं या फिर वहां उपलब्ध पालकी, घोड़ी, पिट्ठू, खच्चर इत्यादि की सुविधा ले सकते हैं। इसके अलावा आप गुप्तकाशी के पास स्थित फाटा एयरबेस से हवाई सेवा के द्वारा सीधे केदारनाथ भी पहुँच सकते हैं।
वहां केदारनाथ मंदिर में दर्शन करने के पश्चात आप आदि गुरु शंकराचार्य की समाधि को भी देख सकते हैं और कुछ देर वहां बैठकर ध्यान लगा सकते हैं। समाधि के आसपास का दृश्य मन को लुभाने वाला व शांति प्रदान करने वाला होता है। इसलिए कुछ देर वहां बैठें व ध्यान अवश्य लगाएं।
इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने आदि शंकराचार्य समाधि केदारनाथ (Adi Shankaracharya Samadhi Kedarnath) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। ऐसे में यदि आप केदारनाथ यात्रा पर जाने का सोच रहे हैं तो उसी के साथ ही आदि शंकराचार्य समाधि स्थल जाना बिल्कुल भी ना भूलें।
आदि शंकराचार्य समाधि स्थल से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: शंकराचार्य को समाधि कहां प्राप्त हुई थी?
उत्तर: पूजनीय शंकराचार्य जी ने भारत के चारों कोनों में चार धाम की स्थापना कर केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे समाधि ले ली थी।
प्रश्न: शंकराचार्य किसकी पूजा करते थे?
उत्तर: शंकराचार्य जी भगवान शिव व माँ आदिशक्ति की मुख्य रूप से पूजा किया करते थे। उन्होंने अपनी समाधि भी भगवान शिव के धाम केदारनाथ में ली थी।
प्रश्न: आदि शंकराचार्य को किसका अवतार माना जाता है?
उत्तर: आदि शंकराचार्य किसी ईश्वर के अवतार नहीं हैं अपितु वे तो ईश्वर के द्वारा भेजे गए पूजनीय गुरु थे जिन्होंने धर्म का मार्ग प्रशस्त किया।
प्रश्न: केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की समाधि क्यों?
उत्तर: आदि शंकराचार्य जी ने केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे ही समाधि ले ली थी। इसी कारण वहां उनकी समाधि को बनाया गया है।
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