गौरीकुंड (Gauri Kund) उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक धार्मिक स्थल है। इसका संबंध भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती से है जिनका एक नाम माँ गौरी भी है। साथ ही यह केदारनाथ आने वाले भक्तों के लिए मोटर मार्ग का आखिरी पड़ाव है। गौरी कुंड (Gorikund) से ही भक्तगण केदारनाथ व वासुकी ताल के लिए ट्रेक शुरू करते हैं।
गौरी कुण्ड की धार्मिक मान्यता को देखते हुए जो भी भक्तगण केदारनाथ जाते हैं, वे इस कुंड में स्नान करके ही आगे बढ़ते हैं। अब गौरीकुंड की केदारनाथ से दूरी कितनी है व गौरीकुंड का इतिहास (Gaurikund History In Hindi) क्या है, इत्यादि सभी बातों के बारे में जानकारी आपको इस लेख के माध्यम से मिलने वाली है।
जितना महत्व केदारनाथ मंदिर का है, उतना ही महत्व गौरीकुंड का भी है। ऐसे में जो भी भक्तगण केदारनाथ मंदिर के दर्शन के लिए जाते हैं, वे सभी गौरीकुंड के मंदिर में भी माथा टेकते हैं। इसे हम ऐसे कहें कि केदारनाथ की यात्रा गौरीकुंड मंदिर में माँ गौरी का आशीर्वाद लेकर ही शुरू की जाती है।
गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी (Gaurikund Se Kedarnath Ki Duri) लगभग 16 किलोमीटर है। वहीं गौरीकुंड से वासुकी ताल की दूरी 24 किलोमीटर की है। यदि आपको गौरी कुंड जाना है तो आपको यहाँ तक जाने के कई साधन मिल जाएंगे जो सीधा आपको गौरीकुंड छोड़ देंगे। वहां से आगे केदारनाथ मंदिर जाने के लिए ट्रेक करना पड़ता है या अन्य माध्यमों का सहारा लेना पड़ता है। आइये गौरी कुंड के इतिहास व अन्य चीज़ों के बारे में जान लेते हैं।
गौरीकुंड के इतिहास से दो कथाएं जुड़ी हुई है जिसमें एक का संबंध माता पार्वती की तपस्या से है तो दूसरे का भगवान गणेश का मस्तक कटने से है। इन दोनों ही घटनाओं के बारे में आपने पहले पढ़ रखा होगा। दरअसल गौरीकुंड ही वह जगह है, जहाँ माता पार्वती ने भोलेनाथ को पुनः अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था। साथ ही यह वही जगह है जहाँ पार्वती माता स्नान करने गयी थी और महादेव ने क्रोधित होकर अपने ही पुत्र गणेश का सिर काट दिया था। आइये दोनों घटनाओं के बारे में जान लेते हैं।
गौरीकुंड की कहानी (Gaurikund Ki Kahani) माता पार्वती के तप से जुड़ी हुई है। राजा दक्ष के द्वारा भगवान शिव का अपमान किये जाने के पश्चात माता सती ने यज्ञकुंड की अग्नि में आत्म-दाह कर लिया था। इससे क्रुद्ध होकर भगवान शिव ने राजा दक्ष का वध कर दिया था व लंबी साधना में चले गए थे। इसके कुछ वर्षों के पश्चात माता सती का हिमालय पुत्री के रूप में पुनर्जन्म हुआ जिनका नाम माता पार्वती था।
माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से इसी स्थल पर बैठकर वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। इसके बाद ही भगवान शिव माता पार्वती से विवाह करने को तैयार हुए थे। शिव-पार्वती का विवाह गौरीकुंड से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में संपन्न हुआ था।
गणेश को माता पार्वती ने जन्म नही दिया था अपितु अपने शरीर के मेल से उनका निर्माण किया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि माता पार्वती इस कुंड में स्नान करने जा रही थी तब उन्होंने गणेश को द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया था व किसी को भी अंदर प्रवेश ना देने को कहा था।
जब माता पार्वती अंदर स्नान कर रही थी तभी भगवान शिव वहां आ पहुंचे। माता पार्वती के आदेश पर गणेश ने भगवान शिव को अंदर जाने से रोक दिया। इससे क्रोधित होकर शिव ने गणेश का मस्तक काटकर धड़ से अलग कर दिया। बाद में माता पार्वती के रुष्ट हो जाने पर भगवान शिव ने एक हाथी के सिर को गणेश के मस्तक पर जोड़कर उसे पुनः जीवन प्रदान किया था।
यह उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में सोनप्रयाग के पास स्थित है। इसके पास में ही मंदाकिनी नदी बहती है। यहीं से केदारनाथ धाम व वासुकी ताल का ट्रेक शुरू होता है। समुंद्र तट से इसकी ऊंचाई छह हज़ार फीट के आसपास है।
गौरीकुंड (Gorikund) जाने के लिए सबसे पास का रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। वहीं यदि आप हवाई जहाज से आ रहे हैं तो उसके लिए आपको देहरादून हवाईअड्डे तक पहुंचना होगा। वहां से आपको गौरीकुंड के लिए बहुत से प्राइवेट साधन व बस मिल जायेगी।
गौरीकुंड में वर्ष 2013 से पहले तक की स्थिति सही थी व यहाँ पर गौरी झील (Gauri Kund Lake) थी। इस झील का पानी गर्म होता था। भक्तगण जब केदारनाथ जाने के लिए यहाँ आते थे तब इस ठंडे मौसम में इस गर्म झील में स्नान करने के पश्चात ही आगे बढ़ते थे।
हालाँकि 2013 में आई भयंकर प्राकृतिक आपदा ने सबकुछ नष्ट करके रख दिया। उस आपदा ने केदारनाथ मंदिर के मार्ग व उसके आसपास के स्थलों को नष्ट कर दिया था। इसमें गौरी कुंड भी एक था। पहले जो सरोवर यहाँ हुआ करता था, अब उसकी जगह केवल एक पतली गर्म पानी की धार यहाँ होती है। इसके साथ ही सरकार के द्वारा एक पाइप की सहायता से गौरी कुंड का गर्म पानी उपलब्ध करवाया जाता है।
यहाँ पर माता पार्वती को समर्पित गौरी मंदिर (Gaurikund Mandir) स्थित है। केदारनाथ जाने वाले भक्त पहले गौरी मंदिर में जाकर माता पार्वती से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। गौरी मंदिर में माता पार्वती की मूर्ति स्थापित है। गौरी मंदिर से आधा किलोमीटर की दूरी पर सिरकटा मंदिर है जो कि भगवान गणेश को समर्पित है।
गौरीकुण्ड से केदारनाथ की दूरी 16 किलोमीटर है। केदारनाथ जाने के लिए आपको पहले गौरीकुंड (Gauri Kund) ही पहुंचना पड़ेगा। यह मोटर मार्ग से पहुँचने वाला आखिरी पड़ाव है अर्थात यह केदारनाथ ट्रेक का आधार क्षेत्र है। यहीं से केदारनाथ मंदिर जाने के लिए ट्रेक शुरू होता है।
यहाँ से आप पैदल केदारनाथ के ट्रेक पर भी जा सकते हैं या फिर अपनी इच्छानुसार घोड़ा, टट्टू/खच्चर, पालकी, पिट्ठू, पोनी इत्यादि की सुविधा ले सकते हैं। केदारनाथ से वापस लौटते समय भी आपको गौरीकुंड ही पहुंचना पड़ेगा व फिर यहाँ से आगे सोनप्रयाग जाना पड़ेगा।
यहाँ आप वर्ष में किसी भी समय जा सकते हैं लेकिन भक्तगण सर्दियों में यहाँ नही आते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सर्दियों में छह माह के लिए केदारनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते हैं। केदारनाथ धाम के कपाट दिवाली के अगले दिन से बंद हो जाते हैं व फिर मई माह में अक्षय तृतीया के दिन खोले जाते हैं।
ऐसे में यदि आप उस समय गौरीकुंड (Gorikund) आएंगे तो केदारनाथ नही जा पाएंगे। इसलिए मई से अक्टूबर माह के बीच में यहाँ आया जा सकता है। यदि आपको सर्दियों का मौसम पसंद है व बर्फबारी का आनंद उठाना चाहते हैं तो आपको अक्टूबर माह में यहाँ आना चाहिए। हालाँकि उस समय यहाँ सर्दियाँ बहुत अधिक बढ़ जाती है।
इसके लिए आपको सबसे पहले उत्तराखंड के ऋषिकेश, देहरादून या हरिद्वार पहुंचना पड़ेगा। फिर वहां से सोनप्रयाग के लिए स्थानीय बस, टैक्सी या कार लेनी होगी। सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर दूर है गौरीकुण्ड, यहाँ से आपको शेयर्ड जीप में बैठकर गौरीकुण्ड पहुंचना पड़ेगा।
ध्यान रखें आप सरकारी या निजी वाहन से सोनप्रयाग तक ही आ सकते हैं। इसके बाद आपको मंदाकिनी नदी पर बने पुल को पार करना होगा और वहां खड़ी जीप स्टैंड से शेयर्ड जीप लेनी होगी। इस जीप का किराया 20 से 30 रुपए के पास होता है जो आधे घंटे से भी कम समय में आपको गौरीकुंड (Gauri Kund) छोड़ देगी।
गौरीकुंड से जुड़े प्रश्नोत्तर
प्रश्न: गौरीकुंड कहाँ स्थित है?
उत्तर: गौरीकुंड उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में सोनप्रयाग के पास स्थित है। यहीं से सभी केदारनाथ की चढ़ाई भी शुरू करते हैं।
प्रश्न: गौरीकुंड क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर: गौरीकुंड ही वह स्थान है जहाँ माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए हजारों वर्षों की कठोर तपस्या की थी। साथ ही यहीं से केदारनाथ धाम की चढ़ाई शुरू होती है।
प्रश्न: गौरीकुंड से पहले क्या आता है?
उत्तर: गौरीकुंड से पहले सोनप्रयाग आता है। सोनप्रयाग से गौरीकुंड की दूरी लगभग 5.2 किलोमीटर की है जिसे वाहन द्वारा तय किया जा सकता है।
प्रश्न: गौरीकुंड से केदारनाथ कितना है?
उत्तर: गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी 16 किलोमीटर की है। यहाँ पर वाहन नहीं चल सकते हैं और इसे चलकर या पालकी/ घोड़े के द्वारा पार करना होता है।
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