आज हम आपके सामने जगन्नाथ पुरी का 10 रहस्य (Jagannath Temple Mystery In Hindi) रखेंगे जिन्हें पढ़कर आप आश्चर्यचकित रह जाएँगे। भगवान जगन्नाथ का मंदिर हिंदू धर्म के चार धामों से एक है जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर से इतने चमत्कार जुड़े हुए हैं कि आज का विज्ञान भी इनका रहस्य नहीं जान पाया है। यह मंदिर भगवान कृष्ण की मृत्यु के कुछ वर्षों के पश्चात बनाया गया था।
जगन्नाथ मंदिर का रहस्य (Jagannath Mandir Ka Rahasya) जानने के लिए कई वैज्ञानिकों ने भी शोध किए हैं। इसका सबसे बड़ा रहस्य तो यही है कि गर्भगृह में स्थित तीनों मुख्य मूर्तियाँ तथा सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान कृष्ण के हृदय से किया गया है। ऐसे कुछ और भी चमत्कार हैं जिन्हें हम प्रत्यक्ष अपनी आँखों से देख सकते हैं। आइए जानते हैं भगवान जगन्नाथ मंदिर से जुड़े विभिन्न चमत्कारों के बारे में।
क्या आप जानते हैं कि भगवान जगन्नाथ मंदिर का शीर्ष ध्वज हमेशा वायु की विपरीत दिशा में लहराता है!! मंदिर के पास में ही समुद्र है लेकिन मंदिर के अंदर समुद्र की लहरों की बिल्कुल भी आवाज नहीं आती है। मंदिर के ऊपर लगा नील चक्र जिस भी दिशा से देखो, वह आपको अपनी ही दिशा में दिखाई देगा अर्थात यह चारों ही दिशाओं में दिखाई देता है।
ऐसे ही और भी बहुत से चमत्कार हैं जो जगन्नाथ मंदिर के रहस्य (Jagannath Temple Mystery In Hindi) को दिखाते हैं। आज हम एक-एक करके आपके सामने कुल 10 मुख्य चमत्कारों को रखने जा रहे हैं।
इस मंदिर के शीर्ष पर जो ध्वज लहराता है वह वायु की विपरीत दिशा में होता है। यह तो कोई भी बता सकता है कि कोई भी ध्वज हमेशा वायु की दिशा में ही लहराएगा लेकिन यह ध्वज वायु की विपरीत दिशा में लहराता है। साथ ही इस ध्वज को वहाँ के पुजारी के द्वारा प्रतिदिन बदला जाता है जो कि सबसे ऊंचाई पर स्थित है।
यह प्रथा आज तक तोड़ी नहीं गई है, कहते हैं कि यदि एक दिन भी ध्वज को नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों तक बंद हो जाएगा। यह आवश्यक नहीं कि ध्वज हमेशा विपरीत दिशा में ही लहराए। कभी-कभी यह वायु की दिशा में भी लहराता है तथा कई भक्त यह देखकर इस तथ्य को झुठलाते हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि शीर्ष ध्वज को बहुत बार वायु की विपरीत दिशा में लहराता हुआ देखा गया है।
यह ध्वज एक नील चक्र पर स्थित है जिसके अंदर आठ आरे हैं। यह चक्र अष्टधातु का बना है। इसकी विशेषता यह है कि आप पुरी में किसी भी दिशा या स्थल से इस ध्वज को देख लीजिए यह हमेशा आपकी ओर मुख किए ही दिखाई देगा।
हम सब यह तो जानते हैं कि पृथ्वी पर हर वस्तु की एक परछाई होती है लेकिन इस मंदिर के शीर्ष की दिन के किसी भी समय में कोई भी परछाई नहीं दिखाई देती है। इस मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि मंदिर के शीर्ष की परछाई मंदिर पर ही पड़ती है जिस कारण यह नीचे पहुँच ही नहीं पाती।
विश्व के सभी समुद्र तटों पर वायु दिन के समय समुद्र से भूमि की ओर तथा शाम में भूमि से समुद्र की ओर बहती है लेकिन पुरी के समुद्र तट पर ठीक इसका विपरीत होता है। अर्थात यहाँ दिन में वायु भूमि से समुद्र की ओर तथा संध्या में समुद्र से भूमि की ओर बहती है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मंदिर के गुंबद के ऊपर कभी भी कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया है। यहाँ तक कि मंदिर के ऊपर से कोई हवाई जहाज इत्यादि उड़ाने की भी अनुमति नहीं है। भारत सरकार की ओर से यहाँ “No Flying Zone” घोषित किया गया है अर्थात यहाँ से कोई भी प्लेन नहीं उड़ेगा।
इस मंदिर की रसोई को विश्व की सबसे बड़ी रसोई माना जाता है क्योंकि यहाँ एक बार में बीस लाख लोगों का पेट भर सकता है। लेकिन रहस्य यह नहीं है बल्कि रहस्य यहाँ प्रसाद के बनने पर है। यहाँ पर महाप्रसाद सात लकड़ी के बर्तनों में बनाया जाता है जिन्हें आग पर एक के ऊपर एक रखा जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर वाले पात्र में रखा भोजन सबसे पहले पकता है तथा उसके बाद एक-एक करके उसके नीचे वाले पात्रों में भोजन पकता है।
मंदिर के महाप्रसाद से एक और रहस्य जुड़ा हुआ है। प्रतिदिन मंदिर में दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भिन्न होती है लेकिन महाप्रसाद वर्ष के प्रत्येक दिन एक ही मात्रा में बनता है। आश्चर्य की बात यह है कि यह महाप्रसाद ना कभी कम पड़ता है तथा ना ही कभी बचता है।
इस मंदिर का मुख्य द्वार सिंह द्वार है जहाँ से मंदिर के अंदर प्रवेश किया जाता है। यह मंदिर समुद्र तट के निकट ही स्थित है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जैसे ही आप सिंह द्वार से मंदिर के अंदर प्रवेश करेंगे तो आपको समुद्र की लहरों की ध्वनि सुननी बिल्कुल बंद हो जाएगी जबकि बाहर निकलते ही वह आपको सुनाई देने लगेगी।
हर नौ, बारह तथा उन्नीस वर्षों में तीनों मुख्य मूर्तियों के बाहरी आवरण को बदला जाता है। इस समय किसी को भी यह दृश्य देखने की अनुमति नहीं होती। क्योंकि कहते हैं कि मूर्ति के अंदर का आवरण भगवान श्रीकृष्ण के शरीर से बना हुआ है। स्वयं पुजारी भी इस समय अपनी आँखों पर पट्टी बांधकर रखते हैं तथा हाथों पर कपड़ा लपेट लेते हैं।
जगन्नाथ मंदिर की समुद्र से रक्षा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने हनुमान को समुद्र तट पर तैनात किया था। लेकिन कभी-कभी हनुमान जी भगवान के दर्शन करने के उद्देश्य से मंदिर में चले आते थे जिसके कारण समुद्र भी पीछे-पीछे चला आता था। इसलिए भगवान ने हनुमान को समुद्र तट पर बेड़ियों में बांध दिया था। आज भी वहाँ हनुमान का मंदिर स्थित है जो बेड़ी हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है।
अब हम आपके सामने जगन्नाथ मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य रखने जा रहे हैं। यह रहस्य जगन्नाथ भगवान की मूर्तियों से जुड़ा हुआ है। अभी तक आपने भगवान जगन्नाथ मंदिर के कई रहस्यों के बारे में जान लिया है। लेकिन मंदिर के गर्भगृह में जो मूर्तियाँ रखी हैं, उनका रहस्य आज भी बना हुआ है। प्राचीन कथाओं के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु हो गई थी तब अर्जुन ने उनका अंतिम संस्कार किया था। उसके बाद कुछ ऐसा घटित हुआ जिस कारण जगन्नाथ की मूर्तियों का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। आइए जाने।
जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार कर दिया तो उसके कई दिनों बाद भी श्रीकृष्ण का हृदय जले जा रहा था। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सपने में आकर उनके हृदय को लकड़ी समेत समुद्र में बहाने का आदेश दिया। अर्जुन ने ठीक ऐसा ही किया और श्रीकृष्ण के हृदय को द्वारका के पास के समुद्र में बहा दिया।
कई महीनो तक श्रीकृष्ण का हृदय समुद्र में बहता हुआ भारत के पश्चिमी छोर से पूर्वी छोर में पुरी नगरी पहुँच गया। वहाँ के राजा इंद्रद्युम्न को श्रीकृष्ण ने सपने में आकर उनके हृदय से भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनवाने का आदेश दिया। राजा ने ठीक वैसा ही किया और मंदिर निर्माण का भव्य कार्य शुरू हो गया। मूर्तियों के निर्माण के लिए भगवान विश्वकर्मा जी को बुलावा भेजा गया।
विश्वकर्मा जी ने राजा इंद्रद्युम्न के सामने यह शर्त रखी कि वे एक बंद कमरे में श्रीकृष्ण के हृदय से मूर्ति निर्माण का कार्य करेंगे। इस दौरान कोई भी कमरे के अंदर ना आए। ऐसे ही कई दिन बीत गए और एक दिन जब राजा इंद्रद्युम्न से रहा नहीं गया तो वे कमरे को खोलकर उसके अंदर चले गए। राजा को वहाँ देखते ही विश्वकर्मा जी मूर्ति निर्माण का कार्य अधूरा छोड़कर वहाँ से विलुप्त हो गए।
विश्वकर्मा जी ने श्रीकृष्ण हृदय से मूर्तियां तो बना ली थी, बस उनके पैर नहीं बनाए थे और हाथ भी आधे बने हुए थे। अधूरी मूर्ति को मंदिर में स्थापित नहीं किया जा सकता था और यह सोचकर इंद्रद्युम्न बहुत ही परेशान हो गए। उसी रात श्रीकृष्ण ने इंद्रद्युम्न को फिर से सपने में आदेश दिया कि यही नियति थी और उनकी उन्हीं मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया जाए।
इस तरह से आज आपने जगन्नाथ पुरी का 10 रहस्य (Jagannath Temple Mystery In Hindi) तो जान ही लिया है, उसी के साथ ही भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के पीछे क्या रहस्य छुपा हुआ है, उसका भी पता लगा लिया है।
जगन्नाथ मंदिर का रहस्य से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: जगन्नाथ मंदिर की खासियत क्या है?
उत्तर: जगन्नाथ मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यही है कि वहाँ भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के हृदय से किया गया है। यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा जी ने किया था।
प्रश्न: जगन्नाथ मूर्ति के अंदर क्या है?
उत्तर: जगन्नाथ मूर्ति के अंदर भगवान श्रीकृष्ण का हृदय है। श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद उन्हीं के आदेश पर भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का निर्माण कार्य किया गया था। इसके लिए श्रीकृष्ण के हृदय का उपयोग किया गया था।
प्रश्न: जगन्नाथ पुरी कहां है?
उत्तर: जगन्नाथ पुरी भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित उड़ीसा राज्य में स्थित है। यह उड़ीसा के पुरी शहर में पड़ता है जिस कारण इसे जगन्नाथ मंदिर के साथ साथ जगन्नाथ पुरी या जगन्नाथ पुरी मंदिर कह दिया जाता है।
प्रश्न: जगन्नाथ पुरी का झंडा हर दिन क्यों बदला जाता है?
उत्तर: मान्यता है कि यदि एक दिन भी भगवान जगन्नाथ मंदिर का झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर अगले 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा। इसलिए जगन्नाथ पुरी का झंडा हर दिन बदला जाता है।
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