त्रेता युग में भगवान श्रीकृष्ण ने जो संदेश (Krishna Sandesh In Hindi) मानव जाति को दिए थे वह आज के समय में किसी चमत्कार से कम नहीं है। उन्होंने महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सामने भागवत गीता का पाठ किया जिसके अंतर्गत इस विश्व व ब्रह्माण्ड के कई अनसुलझे रहस्यों को खोलकर रख दिया था। उसी में एक राजस्य है समय का, जिसके बारे में आज हम बात करने वाले हैं।
आज हम आपको कई महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देंगे जैसे कि भगवान कृष्ण समय के बारे में क्या कहते हैं या भगवत गीता समय के बारे में क्या कहती है, इत्यादि। आइए श्रीकृष्ण के अनुसार समय व वर्तमान की अवधारणा को जान लेते हैं।
द्वापर युग में महाभारत के समय श्रीकृष्ण ने गीता का संदेश देते हुए कई गूढ़ बाते कही थी जिनका अर्थ सामान्य तौर पर समझना कठिन है। यदि हम कान्हा को अच्छे से समझ जाये तथा उन्हें जान जाये तो उनके द्वारा कही गयी बातों से हमारा उद्धार तक हो सकता हैं। उन्हीं संदेशों में से एक संदेश था कि उन्होंने स्वयं को परमात्मा का रूप बताते हुए कहा था कि वे सभी मनुष्य के अंदर हैं और यदि उन्हें पाना हैं तो हम केवल अपनी आत्मा के द्वारा ही परमात्मा से संपर्क कर सकते हैं।
श्रीकृष्ण ने कहा था कि वे स्वयं ही भूतकाल, वर्तमान काल तथा भविष्य काल का प्रतिनिधित्व करते हैं। हम जो भी देख सकते हैं, सुन सकते हैं या बोल सकते हैं वह सब भूतकाल हैं, भविष्यकाल की हम कल्पना नही कर सकते तथा वर्तमानकाल केवल और केवल परमात्मा हैं जिसे केवल आत्मा के द्वारा ही अनुभव किया जा सकता हैं। आज हम इसका गूढ़ अर्थ समझेंगे।
दरअसल आपने विज्ञान इत्यादि में यह पढ़ा ही होगा कि हम जो भी देखते या सुनते हैं वह कुछ देर पहले हो चुका होता है अर्थात हम जो भी देख रहे हैं वह हम सीधे नही देख सकते। हम केवल सूर्य की किरणों के प्रकाश से ही कुछ देख सकते है। सूर्य की किरणें उस वस्तु पर पड़ती हैं तथा उससे परावर्तित होकर हम तक पहुँचती हैं तभी हमें वह वस्तु दिखाई पड़ती है। चाहे इसमें कुछ क्षण लगे लेकिन वह अब भूतकाल है।
उसी प्रकार हम जो भी सुनते हैं वह सीधे हमें नही सुनता। वह ध्वनि के रूप में गति करता हुआ हमारे कानों तक पहुँचता हैं और फिर वह संदेश मस्तिष्क तक पहुंचता हैं तभी हम उसे समझ पाते हैं तथा उस पर अपनी प्रतिक्रिया दे पाते है। इसलिये इसमें भी कुछ क्षण लगे तथा हमनें जो भी सुना वह भूतकाल में परिवर्तित हो चुका होता है।
इसका अर्थ यह हुआ कि हम जो भी करते हैं, बोलते है, देखते है, सुनते हैं वह हम वर्तमान में नही अपितु भूतकाल में कर रहे है। हमारा जीवन भी भूतकाल में व्यतीत हो रहा हैं। तो वर्तमान क्या हैं? उसका अनुभव कैसे किया जा सकता हैं? इसका उत्तर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने दिया हैं।
उन्होंने वर्तमान को परिभाषित करते हुए लिखा हैं कि वर्तमान केवल एक क्षण मात्र (Krishna Sandesh In Hindi) हैं। उसकी अपेक्षा भूतकाल और भविष्यकाल बहुत विशाल व बड़े हैं किंतु जो आनंद वर्तमान में हैं वह भूतकाल या भविष्यकाल में नही। वर्तमान केवल एक क्षण मात्र हैं जो व्यतीत होते ही भूतकाल में परिवर्तित हो जाता है। इसलिये उस क्षण का अनुभव करना ही वर्तमान काल होता हैं।
अब प्रश्न उठता हैं कि वर्तमान काल का अनुभव किस प्रकार किस जाएँ? इसका उत्तर भी श्रीकृष्ण ने भागवत गीता में ही दिया हैं। आपने देखा होगा कि भगवान हमेशा समाधि में लीन रहते हैं या ध्यान लगाते हैं। इसी को ही वर्तमान काल कहा जाता है। वर्तमान काल का अनुभव करने के लिए हमें किसी प्रकार के आँख, कान, मुहं की आवश्यकता नही पड़ती। वर्तमान काल का अनुभव करने के लिए केवल मन को सुनना होगा। आइये जानते हैं कैसे।
आप एक शांत कमरे में आँख बंद करके बैठ जाइये। अब अपने मन में कोई बात बोलिए। इसमें सुनने या समझने में कितना समय लगा? आपके मन में बोली गयी किसी भी बात को मस्तिष्क को समझने में एक क्षण भी नही लगेगा। कहने का अर्थ यह हुआ कि आपका मन ही बोलेगा और वही सुनेगा। तो इसमें कोई समय नही लगा। यह सीधा आपको अंतर्मन में सुनाई दिया। इसे बोलने के लिए आपको मुहं की आवश्यकता नही पड़ी तथा सुनने के लिए कान की नही। यही वर्तमान है।
इसी प्रकार आँख बंद करके किसी का ध्यान कीजिये, तो उस वस्तु की आकृति आपके सामने बन जाएगी। उदाहरण के लिए आप सोचिये कि आप कान्हा को मुरली बजाते हुए देख रहे हैं। उसी समय आपके सामने कान्हा मुरली बजाते हुए प्रकट हो जायेंगे। कोई देर नही, कोई प्रतीक्षा नही, यही वर्तमान हैं।
ऐसे में वर्तमान समय पर कृष्ण संदेश (Krishna Sandesh In Hindi) यहीं है कि वे हर जीवित व्यक्ति के अंदर निवास करते हैं। हर जीव रुपी शरीर में आत्मा रुपी वही परमात्मा हैं। वही आत्मा परमात्मा का रूप हैं। यदि हमें परमात्मा से संबंध बनाना हैं या उन्हें अनुभव करना हैं तो वह केवल वर्तमान काल में रहकर व आत्मा से ही संपर्क किया जा सकता हैं। अन्य किसी चीज़ से नही।
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