राधा व कृष्ण की प्रेम कथा

Radha Krishna Prem Kahani

जब हम राधा व श्रीकृष्ण के प्रेम की बात करते हैं तो यह केवल शारीरिक या भौतिक प्रेम ना होकर, इन सबसे परे एक दिव्य प्रेम होता है (Radha Krishna Prem)। हम व आप केवल इस प्रेम की एक झलक मात्र अनुभव कर सकते है क्योंकि जिस दिन हमनें वह प्रेम संपूर्ण रूप में देख लिया तब हम भी मीरा या सूरदास बन जाये। यह प्रेम केवल एक शरीर/ काया से ना होकर अपितु अपने हृदयपटल के अंतःकरण में झांककर महसूस किया जा सकता हैं।

एक प्रेम ही भक्ति का सार होता हैं (Radha Krishna Prem Kahani)। प्रेम के बिना भक्ति नही हो सकती तथा भक्ति के बिना ईश्वर का कोई औचित्य नही। यही कारण था कि महान भक्त हनुमान ने अपना सीना फाड़कर उसमें श्रीराम तथा माता सीता को दिखा डाला था।

जब कृष्ण वृंदावन (Radha Krishna Prem Thought In Hindi) में रहा करते थे तो उनके द्वारा बंसी बजाने मात्र से ही राधा बरसाना से दौड़ी-दौड़ी चली आती थी। वे दोनों यमुना किनारे एक दूसरे के हाथों में हाथ डालकर घंटों बैठे रहते। यह प्रेम ऐसा होता था कि दोनों की पलके तक नही झपकती थी, पैर जहाँ होते वही ठहरे रहते तथा दोनों बस एक टक एक-दूसरे को ही निहारते रहते।

कई बार राधा अन्य गोपियों के द्वारा कृष्ण को प्रेम करने से रूठ जाती तो कृष्ण उन्हें मनाया करते (Radha Krishna Prem Ras)। कभी राधा अपने बेचैन हृदय तथा विरह की कथा कान्हा को सुनाती तो स्वयं कान्हा राधा के वस्त्र पहनकर राधा का रूप धर लेते। अपनी राधा के लिए कृष्ण और अपने कृष्ण के लिए राधा सब मोह माया, लोभ लज्जा, सांसारिक बातों इत्यादि को भूल जाते (Radha Krishna Ki Love Story)।

वही राधा व कृष्ण के परीक्षा की घड़ी तब आई जब दोनों के विरह का समय आ गया। हालाँकि दोनों को ही पता था कि निश्चित समय आने पर दोनों का विरह होगा तथा उसके बाद फिर पहले वाली स्थिति कभी नही रहेगी। किंतु दोनों ने यह सब भूलकर निश्चल मन से एक दूसरे से प्रेम किया (Radha Krishna Love Story In Hindi)।

जब कृष्ण वृंदावन से मथुरा जाने लगे तब राधा ने उनसे वचन में भी यही माँगा था कि उनके हृदय में केवल और केवल उन्हीं का निवास हो। इसी के साथ राधा को यह भी ज्ञात था कि अब उनका मिलन नही होगा इसलिये उन्होंने दूसरे वचन में यह मांग लिया कि उनके इस भूमि को छोड़ने से पहले एक बार कान्हा से मिलन अवश्य हो। क्या आप इस विरह को समझ सकते हैं? जो राधा पहले एक क्षण कान्हा से जुदाई का अनुभव सहन नही कर सकती थी उस राधा को अब अपने कान्हा से हमेशा के लिए दूर रहना है।

इसी के साथ कान्हा भी राधा से अश्रु ना बहाने का वचन लेकर चले गए। अब अपने मन में उमड़ रही सैकड़ों भावनाओं तथा उन्माद के ज्वार होते हुए भी राधा ने अपने वचन को निभाते हुए अश्रु नही बहने दिए। यह एक बहुत कठिन वचन था।

दूसरी ओर कृष्ण ने जिस मईया की गोद में बैठकर शरारते की थी, जिस निश्चिंत भाव से अपनी गाय माता को चराया करते थे, राधा संग प्रेम किया था (Radha or Krishan ka Prem) व गोपियों संग रास रचाया था, अब उनका जीवन एक दम उलट मोड़ ले चुका था। अब वे अपने कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ चुके हैं जिसमें केवल युद्ध, दुष्टों का नाश व धर्म की स्थापना हैं। वही कृष्ण जब रात्रि में अकेले होते थे तब स्वयं को एक दम अकेला तथा राधा के रस में डूबा पाते थे।

उन्हें यह भलीभांति ज्ञात था कि अब उन्हें अपने जीवन के आगे के कर्तव्यों का निर्वहन करना हैं लेकिन उन्हें यह भी ज्ञात था कि अब उन्हें जीवनभर राधा की एक मधुर याद के सहारे व्यतीत करना हैं। वही राधा जो उनके हृदय में बसी हैं वही राधा जो उनसे कभी अलग नही हो सकती वही राधा जो स्वयं उनकी अर्धांगिनी हैं वही राधा जिनके बिना वे अधूरे हैं वही राधा जिनके बिना उनका भी कोई अस्तित्व नही लेकिन इस समाज को संदेश देने तथा प्रेम किस प्रकार निश्चल भाव से किया जाता हैं, उसके लिए यह विरह की व्यथा तथा तड़प भी आवश्यक थी।

इसलिये हम व आप कितना भी इसे समझने का प्रयास कर ले, जब तक हम साफ हृदय से अपने मन में झांककर कान्हा व राधा के प्रेम को महसूस करने का प्रयास नही करेंगे तब तक हमें उसकी गहराई का ज्ञान नही होगा। यह प्रेम एक ऐसा प्रेम था जिसे केवल और केवल महसूस किया जा सकता हैं क्योंकि एक समय के बाद शब्द कम पड़ जाते हैं।

इसलिये श्रीकृष्ण ने विश्व की सभी भाषाओँ से परे अपनी मुरली की धुन से एक ऐसे संगीत की उत्पत्ति की जिसमें कोई शब्द नही अपितु प्रेम का अथाह सागर था। जो भी उस प्रेम सागर में डूब जाता था उसे मुक्ति मिल जाती थी।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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