बूढानीलकंठ मंदिर (Budhanilkantha Mandir) भगवान विष्णु को समर्पित अति-प्राचीन व विशाल मंदिर है जो नेपाल के काठमांडू शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में शिवपुरी की पहाड़ियों पर स्थित है। इसका निर्माण 7वीं शताब्दी में महाराज विष्णुगुप्त के द्वारा करवाया गया था।
यहाँ पर भगवान विष्णु की शेषनाग पर सोते हुए विशाल मूर्ति तालाब में तैरते हुए स्थित है। यह तालाब क्षीर सागर का प्रतिनिधित्व करता है। इस मंदिर को नेपाल की स्थानीय भाषा में नारायन्थान मंदिर (Narayanthan Mandir) के नाम से भी जाना जाता है। आज हम आपको नेपाल में स्थित बुढानीलकण्ठ मंदिर का इतिहास, इससे जुड़ी कथा, विशेषता इत्यादि सभी के बारे में जानकारी देंगे।
नेपाल में स्थित यह बूढानीलकंठ मंदिर विश्वभर में इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ पर भगवान विष्णु की शेषनाग पर सोते हुए अति विशाल मूर्ति स्थापित है। एक तरह से यही इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता और मुख्य आकर्षण है जिसे देखने दूर-दराज से श्रद्धालु यहाँ आते हैं।
बूढानीलकण्ठ मंदिर (Budhanilkantha Temple in Hindi) से एक नहीं बल्कि कई कथाएं जुड़ी हुई है जो इसके प्राचीन इतिहास को दिखाती है। इसी के साथ ही यहाँ का एक आश्चर्य यह है कि यहाँ भगवान विष्णु की मूर्ति के नीचे भगवान शिव की छवि दिखाई देती है। ऐसे में आज हम आपको नेपाल में स्थित इस प्राचीन मंदिर के बारे में संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं।
सातवीं शताब्दी में नेपाल के काठमांडू राज्य पर महाराज समुंद्रगुप्त का आधिपत्य था। वे वैष्णव संप्रदाय के थे। उनके द्वारा भगवान विष्णु की क्षीर सागर पर लेटे हुए की मूर्ति बनवाने का निर्णय लिया गया। इसके बाद भगवान विष्णु की अति-विशाल मूर्ति का निर्माण किया गया जो अपने शेषनाग पर लेटी हुई थी। इसके बाद इसे तालाब के ऊपर रख दिया गया।
नेपाल के स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार, समय के साथ-साथ यह मूर्ति विलुप्त हो गयी। फिर कई सदियों के बाद मल्ला राजवंश के समयकाल में एक किसान को यह मूर्ति फिर से मिली। दरअसल इसी जगह एक किसान और उसकी पत्नी खेतों में हल जोत रहे थे कि उनका हल एक भारी चीज़ से टकराया। इसके बाद उस जगह को खोद कर देखा गया तो उसमे से भगवान विष्णु की यही विशाल मूर्ति निकली। इसके बाद वहां के राजाओं के द्वारा बूढानीलकंठ मंदिर का निर्माण करवाया गया।
यह मूर्ति बेसाल्ट के काले पत्थर से बनाई गयी है जो नेपाल की सबसे बड़ी मूर्ति मानी जाती है। इसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। मूर्ति की लंबाई 5 मीटर है जो कि एक 13 मीटर लंबे तालाब में स्थित है जिसे ब्रह्मांडीय समुंद्र का रूप माना गया है।
यह मूर्ति एक विशाल शेषनाग की कुंडली के ऊपर विराजमान (Sleeping Vishnu Temple In Nepal In Hindi) है। इस शेषनाग के 11 कीर्तिमुख हैं जो भगवान विष्णु की ओर मुहं किये हुए हैं। एक तरह से कहा जाये तो नागों के 11 मुख ने भगवान विष्णु के लिए एक छत्र का निर्माण किया हुआ है।
इसमें भगवान विष्णु अपने चतुर्भुज अवतार में हैं जिनके चार हाथ हैं। इन चार हाथों में भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र, कमल का पुष्प, शंख व गदा पकड़ी हुई है। साथ ही भगवान विष्णु के मस्तिष्क पर एक विशाल चांदी का मुकुट भी पहनाया गया है।
कुछ लोग बूढानीलकंठ के नाम को गौतम बुद्ध से जोड़ देते हैं लेकिन यह सही तथ्य नही है। साथ ही कुछ लोगों के द्वारा यह भ्रम भी फैलाया गया था कि मूर्ति का रूप गौतम बुद्ध से मेल खाता है लेकिन यह भी सही नही है। लेकिन भगवान विष्णु को बूढानीलकंठ के नाम से नही जाना जाता है, फिर कैसे इस मंदिर का नाम बूढानीलकंठ मंदिर पड़ा?
दरअसल बूढानीलकंठ एक संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है “बूढा नीला कंठ” अर्थात जिसका गला नीला हो, जो कि भगवान शिव का एक नाम है। इसके पीछे समुंद्र मंथन की कथा जुड़ी हुई है जब भगवान शिव के द्वारा विष को पी लिया गया था और उनका गला नीला पड़ गया था। लेकिन इस स्थल या मंदिर का उस कथा से क्या संबंध? आइए उसके बारे में भी जान लेते हैं।
अब हम बुढानिलकण्ठ मन्दिर की कहानी (Budhanilkantha Temple Story In Hindi) भी जान लेते हैं। देवताओं व असुरों ने जब अमृत प्राप्ति की लालसा में समुंद्र मंथन किया तब उसमे से विशाल मात्रा में विष भी निकला जिससे संपूर्ण स्रष्टि का विनाश हो सकता था। तब स्रष्टि को बचाने के उद्देश्य से भगवान शिव ने उस विष को पिया जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया।
विष को पीने के बाद भगवान शिव के कंठ में अत्यधिक जलन होने लगी तो वे नेपाल के काठमांडू में गए। वहां उन्होंने पहाड़ों पर त्रिशूल चलाकर एक झील का निर्माण किया जिसका जल गोसाईकुंड से आया। उस जल को पीकर भगवान शिव ने अपनी पीड़ा को शांत किया। कहते हैं कि उसी गोसाईकुंड का जल आज भी इस तालाब में है। इसलिए इस मंदिर का नाम भगवान शिव के नाम पर बूढानीलकंठ पड़ा।
स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु की मूर्ति तो साक्षात मंदिर में विराजमान है जो सभी को दिखाई भी देती (Narayanthan Mandir Mystery In Hindi) है लेकिन भगवान शिव की प्रतिमा अप्रत्यक्ष रूप से तालाब के पानी के अंदर विराजमान है। भगवान शिव की प्रतिमा की छवि वर्ष में केवल एक बार अगस्त मास के दौरान होने वाले वार्षिक शिव उत्सव के दौरान दिखाई देती है।
कहते हैं कि इस दौरान भगवान विष्णु की मूर्ति के ठीक नीचे पानी के अंदर भगवान शिव की प्रतिमा की छवि दिखाई देती है। इसलिए यह मंदिर भक्तों के बीच और ज्यादा प्रसिद्ध है और इस दौरान भारी संख्या में भक्त इसके दर्शन करने पहुँचते हैं।
जहाँ एक ओर देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु वर्षभर यहाँ आते हैं तो वहीं दूसरी ओर, नेपाल का ही राजपरिवार इस मंदिर में नही जा सकता है। दरअसल कहते हैं कि नेपाल के राजपरिवार को यह श्राप मिला था कि यदि राजपरिवार का कोई भी सदस्य इस मंदिर में जाएगा और भगवान विष्णु की इस मूर्ति के दर्शन कर लेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।
इसी श्राप के कारण आज तक नेपाल के राजपरिवार का कोई भी सदस्य इस मंदिर में नही गया है। किंतु राजपरिवार के लोगों के द्वारा भगवान विष्णु की मूर्ति का ही एक प्रतिरूप बनवाकर अपने पास रखा गया है ताकि वे उनकी पूजा कर सकें।
हर वर्ष देवउठनी एकादशी के दिन मंदिर में विशाल मेले (Narayanthan Mandir Ekadashi Mela) का आयोजन किया जाता है। यह मेला हिंदू वर्ष के कार्तिक मास के 11वें दिन (एकादशी) आयोजित किया जाता है। इस दिन देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान विष्णु के अति-विशाल स्वरुप के दर्शन करने आते हैं।
यह इस मंदिर में होने वाला सबसे मुख्य आयोजन होता है क्योंकि मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु एक लंबी निद्रा के बाद जागते हैं। इसी कारण इस उत्सव का नाम देवउठनी एकादशी पड़ा अर्थात देवों के उठने का समय।
यह मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से लगभग 7 से 10 किलोमीटर की दूरी पर है जिसमें आपको 30 मिनट से ज्यादा का समय नही लगेगा। काठमांडू आप हवाई यात्रा, रेल यात्रा या अपने निजी वाहन से पहुँच सकते हैं। इसके बाद काठमांडू से मंदिर जाने के लिए आपको कई साधन वहां से मिल जाएंगे।
यह मंदिर भक्तों के लिए सुबह 5 बजे खुलता है व शाम को 6-7 बजे के पास मंदिर के कपाट बंद हो जाते (Budhanilkantha Temple Timings In Hindi) हैं। साथ ही वर्ष के हर दिन मंदिर भक्तों के लिए खुला रहता है केवल सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण को छोड़कर।
वैसे तो इसका दूसरा नाम नारायन्थान मंदिर (Budha Nilkantha Temple Names In Hindi) है लेकिन लोग अपनी बोली के अनुसार इसके नाम में छोटे-मोटे बदलाव कर देते हैं। जैसे कि:
यदि आप नेपाल के बूढानीलकण्ठ मंदिर में जाने का सोच रहे हैं तो आप इसके आसपास और भी प्रसिद्ध जगहों (Budhanilkantha Temple Nearby Places In Hindi) पर घूम सकते हैं। जैसे कि:
इसके अलावा आपको काठमांडू शहर और उसके आसपास बहुत सी चीजें देखने को मिल जायेगी। साथ ही काठमांडू पहाड़ों के पास है जहाँ जाकर आपको अद्भुत आनंद की अनुभति होगी।
बूढानीलकंठ मंदिर से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: बुधनिलकांठा मंदिर की कहानी क्या है?
उत्तर: समुंद्र मंथन के समय जब भगवान शिव ने विष पी लिया था। तब इसी जगह आकर उन्होंने अपने गले की जलन को शांत किया था। उसके बाद से यह जगह पवित्र हो गयी थी।
प्रश्न: बुधनिलकांठा में कौन सा भगवान है?
उत्तर: बुधनिलकांठा में 13 मीटर के तालाब में 5 मीटर लंबी भगवान विष्णु की शेषनाग पर सोते हुए मूर्ति है।
प्रश्न: बुधनिलकांठा की मूर्ति किसने बनाई?
उत्तर: बुधनिलकांठा की मूर्ति किसी के द्वारा बनायी नहीं गयी थी बल्कि यह जमीन में से निकली थी।
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