भगवान शिव ने विष क्यों पिया? जाने महादेव के विष पीने की कथा

Shiv Ne Vish Kyu Piya

यह कथा बहुत ही रोचक हैं जो देवता तथा दैत्यों के द्वारा समुंद्र मंथन से जुड़ी हुई (Shiv Ne Zehar Kyon Piya Tha?) है। इसी घटना के बाद भगवान शिव का एक और नाम नीलकंठ पड़ गया (Shiv Ne Vish Kyu Piya) था। आज हम भगवान शिव का समुंद्र मंथन में योगदान तथा उनके द्वारा विष पीने की कथा के बारे में विस्तार से जानेंगे।

भगवान शिव के द्वारा विष पीने की कथा (Shiv Ke Vish Peene Ki Katha)

देवता तथा दानवों के द्वारा समुंद्र मंथन का कार्य

जब सृष्टि में महाप्रलय आई थी तब बहुत से अनमोल रत्न तथा औषधियां समुंद्र की गहराई में समा गये थे। तब भगवान विष्णु से आज्ञा पाकर देवता तथा दानवों ने मिलकर समुंद्र को मथने का निश्चय किया जिससे उन्हें अमृत तथा अन्य अनमोल रत्नों की प्राप्ति हो सके। इस कार्य के लिए भगवान विष्णु ने उन्हें मथनी के तौर पर मंदार पर्वत तथा रस्सी के लिए वासुकी नाग दिया व स्वयं कछुआ अवतार लेकर मंदार पर्वत का भार अपने पीठ पर सहन किया।

समुंद्र मंथन में निकला हलाहल/ विष (Samudra Manthan Se Nikla Vish)

कहते हैं ना हर अच्छाई के साथ बुराई भी जुड़ी होती है। यदि अमृत की प्राप्ति करनी थी तो उसकी जितनी मात्रा में विष का निकलना भी निश्चित था। देवता तथा दैत्यों के द्वारा समुंद्र को मथने का कार्य चल ही रहा था कि उसमे से अथाह मात्रा में विष निकल पड़ा। इसी विष को हलाहल के नाम से जाना जाता है। यह विष इतना ज्यादा भयंकर तथा विषैला था कि संपूर्ण सृष्टि में हाहाकार मच गया।

इसमें से तीव्र मात्रा में विषैली गैसे निकल रही थी जिसे देखकर देवता तथा दैत्यों दोनों में भय व्याप्त हो गया। कोई भी इस विष के पास नही जाना चाहता था तथा ना ही किसी में इतनी क्षमता थी। यह विष संपूर्ण सृष्टि का नाश कर सकता था।

भगवान शिव ने विष क्यों पिया? (Shiv Ne Vish Kyu Piya)

जब देवता तथा दानवों को कोई उपाय नही सुझा तो सभी देवों के देव महादेव के पास सहायता मांगने गए। उन्होंने महादेव से इसका कोई उपाय निकालने की याचना की। जब महादेव ने देखा कि इस विष के द्वारा संपूर्ण सृष्टि का विनाश संभव है तथा इसे ग्रहण करने की क्षमता किसी और के अंदर नही हैं तब स्वयं उन्होंने उस विष को पीने का निश्चय किया।

इसके पश्चात महादेव ने उस विष का प्याला लिया तथा एक पल में ही संपूर्ण विष अपने कंठ में उतार लिया। यह देखकर माता सती/पार्वती ने महादेव के कंठ पर हाथ रखा तथा उस विष को नीचे उतरने से रोक लिया। इसी के कारण वह विष महादेव के कंठ में ही रुक (Bhagwan Shiv Kaise Bane Nilkanth) गया। इस विष का प्रभाव इतना ज्यादा था कि महादेव का कंठ नीला पड़ गया। तब से महादेव को नीलकंठ के नाम से भी बुलाया जाने लगा अर्थात जिसका कंठ/ गला नीले रंग का हो।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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