हम सभी जब स्कूल में पढ़ते थे तब अवश्य ही हम सभी ने गायत्री मंत्र का जाप किया होगा। यहाँ तक कि हर पूजा पाठ से पहले भी गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है और यह हम सभी को याद भी होता है। गायत्री माता को भगवान ब्रह्मा की पत्नी माना गया है जो हमें सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली होती हैं। उन्हें सरस्वती माता की तरह ही ज्ञान व बुद्धि की देवी भी माना गया है। इसी कारण गायत्री आरती (Gayatri Aarti) का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।
आज के इस लेख में हम आपको गायत्री आरती लिखित में देने जा रहे हैं। किन्तु क्या आप जानते हैं कि गायत्री माता की आरती (Gayatri Mata Ki Aarti) एक नहीं बल्कि दो-दो हैं जिसमें से एक सर्वप्रसिद्ध है तो दूसरी कम विख्यात है। ऐसे में हम आपके साथ दोनों तरह की ही गायत्री माता आरती (Gaytri Aarti) का पाठ करेंगे। इसी के साथ ही आपको इस लेख के माध्यम से गायत्री आरती इन हिंदी में भी पढ़ने को मिलेगी।
यदि हम माँ गायत्री आरती को पढ़ने के साथ-साथ उसका अर्थ भी जान लेते हैं तो इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है और हम उनका महत्व भी जान पाते हैं। इसी के साथ ही आपको गायत्री आरती के चमत्कार भी जानने को मिलेंगे। लेख के अंत में आपको गायत्री आरती के लाभ भी पढ़ने को मिलेंगे। तो आइये करते हैं आरती गायत्री माता की।
जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता।।
जयति जय गायत्री माता…
आदि शक्ति तुम अलख निरञ्जन, जग पालन कर्त्री।
दुःख, शोक, भय, क्लेश, कलह, दारिद्रय, दैन्य हर्त्री।।
जयति जय गायत्री माता…
ब्रह्म रुपिणी, प्रणत पालिनी, जगतधातृ अम्बे।
भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे।।
जयति जय गायत्री माता…
भय हारिणि, भव तारिणि अनघे, अज आनन्द राशी।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी।।
जयति जय गायत्री माता…
कामधेनु, सत्, चित् आनन्दा, जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती शक्ति, तुम सावित्री सीता।।
जयति जय गायत्री माता…
ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्राणयिनी प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्त्रार सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे।।
जयति जय गायत्री माता…
स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरुपा, वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी।।
जयति जय गायत्री माता…
जननी हम हैं दीन-हीन दुःख-दारिद्र के घेरे।
यद्यपि कुटिल, कपटी, कपूत, तऊ बालक है तेरे।।
जयति जय गायत्री माता…
स्नेह सनी करुणामयी माता, चरण शरण दीजै।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै।।
जयति जय गायत्री माता…
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये।।
जयति जय गायत्री माता…
तुम समर्थ सब भाँति तारिणी तुष्टि-पुष्टि त्राता।
सत्यमार्ग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता।।
जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता।।
जयति जय गायत्री माता…
जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता।।
हे गायत्री माता!! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप ही हमें सत्य का मार्ग दिखा सकती हैं ताकि हम उस पर आगे बढ़ सकें। उसी सत्य के मार्ग पर चल कर ही हमें सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होगी।
आदि शक्ति तुम अलख निरञ्जन, जग पालन कर्त्री।
दुःख, शोक, भय, क्लेश, कलह, दारिद्रय, दैन्य हर्त्री।।
आप ही माँ आदि शक्ति हो, आप ही अलख निरंजन हो और इस जगत का पालन-पोषण करने वाली भी आप ही हो। आप हम सभी के दुःख, शोक, भय, चिंता, कलेश, गरीबी इत्यादि को दूर करती हो।
ब्रह्म रुपिणी, प्रणत पालिनी, जगतधातृ अम्बे।
भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे।।
आप ही ब्रह्म रूप में इस सृष्टि की रचयिता हो, आप ही श्रीहरि के रूप में इस सृष्टि का पालन-पोषण करती हो और आप ही जगत का संहार करने वाली माँ अम्बा हो। आप सभी लोकों के डर को दूर करने वाली, मनुष्य जाति के हित में कार्य करने वाली तथा हम सभी को सुख प्रदान करने वाली हो।
भय हारिणि, भव तारिणि अनघे, अज आनन्द राशी।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी।।
आप हमारे भय का नाश करने वाली, भव सागर पार करवाने वाली तथा हम सभी को आनंद प्रदान करने वाली हो। आपका कोई आकार नहीं है, आप अघहरी हो, आप विचलित नहीं हो सकती हैं, आपका विनाश नहीं किया जा सकता है।
कामधेनु, सत्, चित् आनन्दा, जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती शक्ति, तुम सावित्री सीता।।
आप ही कामधेनु, सत्य, मन, आनंद, गंगा व भगवत गीता हो। आप ही सविता रूप में सदा रहने वाली शक्ति हो और आप ही माँ सावित्री व माँ सीता हो।
ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्राणयिनी प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्त्रार सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे।।
आपने ही चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद की उत्पत्ति कर इस सृष्टि का कल्याण किया है। आप ही कुंडली की निर्माता, सुषमा, शोभा, गुण, गरिमा इत्यादि प्रदान करने वाली हो।
स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरुपा, वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी।।
आप ही स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी (सरस्वती), राधा व रुद्राणी (पार्वती) हो। आपके सात रूप हैं जिनमें आप वाणी, विद्या, कमला व कल्याणी माता के गुण प्रदर्शित करती हैं।
जननी हम हैं दीन-हीन दुःख-दारिद्र के घेरे।
यद्यपि कुटिल, कपटी, कपूत, तऊ बालक है तेरे।।
हे माता गायत्री व हम सभी की जननी!! हम बहुत ही दुखी हैं तथा कष्टों से घिरे हुए हैं। अब हम चाहे कुटील, दुष्ट, पापी, नासमझ इत्यादि कुछ भी हो लेकिन बालक तो आपके ही हैं अर्थात आप ही हमारी जननी हैं।
स्नेह सनी करुणामयी माता, चरण शरण दीजै।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै।।
आप सभी को स्नेह करने वाली तथा दयावान हैं, इसलिए अपने चरणों में हमें शरण देकर हमारा उद्धार कीजिये। हम सभी आपकी छत्रछाया में आने को तड़प रहे हैं, इसलिए हम पर थोड़ी दया कीजिये।
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये।।
आप हम सभी के काम, क्रोध, मोह, लालसा, अहंकार, दुर्भावना, ईर्ष्या इत्यादि दुष्ट भावों को दूर कर दीजिये। आप हमारी बुद्धि को शुद्ध कीजिये, हमारे हृदय को निष्पाप करें तथा मन को पवित्र बनाये।
तुम समर्थ सब भाँति तारिणी तुष्टि-पुष्टि त्राता।
सत्यमार्ग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता।।
आप हर चीज़ को करने में समर्थ हैं और आप ही हम सभी का कल्याण कर सकती हैं। आप ही हमें सत्य के मार्ग पर आगे लेकर जा सकती हैं जो सुख प्रदान करने वाला है।
आरती श्री गायत्री जी की।
ज्ञान दीप और श्रद्धा की बाती।
सो भक्ति ही पूर्ति कर जहं घी की।।
आरती श्री गायत्री जी की।
मानस की शुचि थाल के ऊपर।
देवी की जोति जगै जहं नीकी।।
आरती श्री गायत्री जी की।
शुद्ध मनोरथ के जहां घण्टा।
बाजै करैं आसहु ही की।।
आरती श्री गायत्री जी की।
जाके समक्ष हमें तिहुं लोक कै।
गद्दी मिले तबहुं लगै फीकी।।
आरती श्री गायत्री जी की।
आरती प्रेम सों नेम सो करि।
ध्यावहिं मूरति ब्रह्मा लली की।।
आरती श्री गायत्री जी की।
संकट आवैं न पास कबौ तिन्हैं।
सम्पदा और सुख की बनै लीकी।।
आरती श्री गायत्री जी की।
ज्ञान दीप और श्रद्धा की बाती।
सो भक्ति ही पूर्ति कर जहं घी की।।
जो भी भक्तगण अपने ज्ञान का दीपक लेकर उसमे श्रद्धा रुपी बाती को प्रज्ज्वलित करता है और अपनी भक्ति को घी के रूप में उसमे जलाकर माँ गायत्री की आरती करता है, माँ गायत्री अवश्य ही उसका उद्धार कर देती हैं।
मानस की शुचि थाल के ऊपर।
देवी की जोति जगै जहं नीकी।।
हर मनुष्य को थाली लेकर माँ गायत्री की आरती करनी चाहिए और उनकी ज्योत जलानी चाहिए जो कभी भी फीकी नहीं पड़ती है।
शुद्ध मनोरथ के जहां घण्टा।
बाजै करैं आसहु ही की।।
यदि हम शुद्ध मन के साथ माँ गायत्री की पूजा करते हैं तो हमारे सभी काम पूर्ण हो जाते हैं।
जाके समक्ष हमें तिहुं लोक कै।
गद्दी मिले तबहुं लगै फीकी।।
माँ गायत्री के सामने तो तीनों लोकों का सिंहासन भी मिल जाए तो भी वह फीका सा लगता है।
आरती प्रेम सों नेम सो करि।
ध्यावहिं मूरति ब्रह्मा लली की।।
जो कोई भी भक्तगण प्रेम सहित माँ गायत्री की आरती करता है और उनका ध्यान लगाता है तो उसका कल्याण होना तय है।
संकट आवैं न पास कबौ तिन्हैं।
सम्पदा और सुख की बनै लीकी।।
उस भक्त को किसी भी तरह के संकट नहीं सताते हैं और ना ही उसे किसी चीज़ का दुःख रहता है। उसके घर में सुख-शांति बनी रहती है तथा वह आर्थिक रूप से संपन्न हो जाता है।
गायत्री माता माँ आदिशक्ति का ही एक रूप हैं या फिर यूँ कहें कि माँ आदिशक्ति ही गायत्री माता हैं। सनातन धर्म में देवी माता के हर रूप का एक गुण होता है और इसी कारण उनकी पूजा की जाती है किन्तु गायत्री माता इन सभी से बिल्कुल भिन्न हैं। वह इसलिए क्योंकि इन्हें धर्म की स्थापना करने वाली प्रमुख देवी माना जाता है। हिन्दू धर्म का मुख्य आधार वेद ही हैं और यही सबसे पुराने ग्रंथ हैं जो सृष्टि की रचना से पहले और बाद में भी रहेंगे।
तो इन्हीं चारों वेदों की जननी गायत्री माता को माना जाता है। चारों वेदों की शक्तियां भी गायत्री मंत्र में ही निहित होती है और इसकी छाप गायत्री आरती में भी देखने को मिलती है। गायत्री आरती के माध्यम से हम गायत्री माता के द्वारा प्रदान की जाने वाली शक्तियां ग्रहण कर सकते हैं और आत्म-ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री आरती का महत्व यही है कि इसके जाप से आप स्वयं ब्रह्म को अपने अंदर अनुभव कर सकते हैं और परम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
ऊपर आपने गायत्री आरती के महत्व को पढ़ा तो उससे आपको गायत्री आरती के लाभ भी कुछ सीमा तक समझ में आ गए होंगे। फिर भी हम इसे विस्तार देते हुए बता दें कि गायत्री माता को केवल चारों वेदों की ही नहीं अपितु सभी तरह के शास्त्रों व पुराणों की भी जननी माना जाता है। उनके द्वारा ही धर्म व संस्कृति की स्थापना की गयी थी तथा मनुष्य जाति को जीवन पद्धति व मानव कल्याण का संदेश दिया गया था।
यदि हम गायत्री आरती का नियमित रूप से पाठ करते हैं तो हम अपने अंदर एक नयी चेतना का अनुभव करते हैं। इस चेतना के माध्यम से हम में कार्य करने की शक्ति आती है और साथ के साथ हम मेधावी भी बनते हैं। इससे हमारे दिमाग का विकास होता है और हमारी सोचने-समझने की शक्ति भी बढ़ती है। कुल मिलाकर नियमित रूप से गायत्री आरती को पढ़ने से हमारे दिमाग व शरीर का संपूर्ण रूप में विकास होता है।
गायत्री आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: मां गायत्री का दिन कौन सा है?
उत्तर: वैसे तो किसी भी दिन गायत्री माता की पूजा की जा सकती है लेकिन शुक्रवार के दिन को गायत्री माता के प्रमुख दिनों में माना जाता है।
प्रश्न: सुबह सुबह गायत्री मंत्र सुनने से क्या होता है?
उत्तर: यदि हम सुबह के समय गायत्री मंत्र को सुनते हैं या उसका जाप करते हैं तो इससे हमारे अंदर एक नयी चेतना जागृत होती है जो हमें दिनभर सकारात्मक कार्य करने की ऊर्जा देती है।
प्रश्न: गायत्री मंत्र में कितनी शक्ति है?
उत्तर: गायत्री मंत्र में कुल चौबीस अक्षर होते हैं और इसके हरेक अक्षर का संबंध एक देवता से है जो इसकी शक्ति का परिसूचक है।
प्रश्न: क्या हम रात में गायत्री मंत्र सुन सकते हैं?
उत्तर: रात के समय गायत्री मंत्र को पढ़ना या सुनना सही नहीं माना जाता है किन्तु आप उस समय मन ही मन गायत्री मंत्र का जाप कर सकते हैं।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
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