पर्व/ त्यौहार

होली मनाने का क्या उद्देश्य है? जाने होली मनाने का वैज्ञानिक, शारीरिक व मानसिक कारण

हिंदू धर्म में दीपावली के बाद जिस त्यौहार की सबसे ज्यादा धूम रहती (Holi Manane Ke Labh) हैं वह है होली। कुछ को तो यह त्यौहार बहुत पसंद होता है तो कुछ इसके आने से डरते भी हैं कि कोई उनको रंग ना दे। कुछ भी हो, इस दिन सभी लोग आपसी मन-मुटाव को भुलाकर आनंद के साथ इस त्यौहार को मनाते है।

होली दो दिनों का त्यौहार हैं जिसमें पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन धुलंडी (रंगों का त्यौहार) आता है। आप सभी ने इससे जुड़ी धार्मिक कथाएं तो सुनी ही (Holi Ka Mahatva In Hindi) होगी जिससे आपको इसका धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व पता चल गया होगा किंतु यदि आज हम आपको बताए कि होली को खेलने का वैज्ञानिक महत्व भी हैं तो आपको कैसा लगेगा?

जी हां, हमारे ऋषि-मुनियों व महापुरुषों ने सनातन धर्म की हरेक चीज़ को वैज्ञानिक आधार पर परख कर ही शुरू किया था जिसमे से होली भी इसका एक प्रमुख उदाहरण हैं। आज हम आपसे होली के वैज्ञानिक, शारीरिक व मानसिक महत्व (Holi Manane Ka Mahatva) के बारे में ही बात करेंगे।

होली मनाने का क्या उद्देश्य है (Holi Manane Ka Kya Uddeshya Hai)

होली मनाने का वैज्ञानिक महत्व (Holi Manane Ka Vaigyanik Karan)

#1. होलिका दहन का वैज्ञानिक कारण (Holika Dahan Ka Mahatva)

इसका संबंध होलिका दहन से हैं जिसमें हम सुबह के समय उसकी पूजा करते हैं और रात्रि को पूरे देशभर में लाखों स्थानों पर एक साथ होलिका का दहन कर दिया जाता हैं। इसमें लोग अपने घरों पर बनाए बडकुल्ले, अन्य पूजा की वस्तुएं इत्यादि डालते हैं और परिक्रमा करते हैं। तो अब आपका प्रश्न यह होगा कि आखिर इससे पर्यावरण को क्या लाभ मिलेगा? चलिए जान लेते हैं।

दरअसल होली का त्यौहार फाल्गुन मास के अंत में आता हैं जिस समय शीत ऋतु जा रही होती हैं और ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो रहा होता हैं। जब भी प्रकृति में मौसम का परिवर्तन हो रहा होता हैं तो पर्यावरण में जीवाणुओं और विषाणुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिलती हैं। यही विषाणु कई प्रकार की बिमारियों, संक्रमण इत्यादि का कारण बनते हैं।

जब पूरे देश में एक साथ होलिका की अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती हैं और उनके साथ गोबर के बनाए बडकुल्ले भी जलते हैं तो इन जीवाणुओं के नष्ट होने में बहुत सहायता मिलती हैं।

#2. शरीर का भी जीवाणु मुक्त होना

पर्यावरण के साथ-साथ इसका लाभ प्रत्यक्ष रूप से हमारे शरीर को भी मिलता हैं क्योंकि जीवाणुओं की संख्या केवल पर्यावरण में ही नही अपितु हमारे शरीर के अंदर और बाहर भी होती हैं। शरीर के जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए भी हमारे ऋषि-मुनियों ने एक प्रथा बनाई थी।

उनके अनुसार जब होलिका का दहन होगा तब सभी हिंदू उस अग्नि के दर्शन करेंगे और उसके चारों ओर प्ररिक्रमा करेंगे। हम सभी ऐसा ही करते हैं। जब होलिका का दहन हो रहा होता हैं तब हम सपरिवार सहित उस अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। उस समय वहां का तापमान बहुत अधिक होता हैं जिसके ताप से हमारे शरीर के जीवाणु भी नष्ट हो चुके होते हैं।

#3. सफाई होने से भी बैक्टीरिया का नाश होना

हिंदू धर्म के दो बड़े त्यौहार दीपावली व होली ऋतु परिवर्तन के समय ही आते हैं। एक ग्रीष्म से शीत में आता हैं तो दूसरा शीत से ग्रीष्म में। ऋतु परिवर्तन के समय ही आसपास बैक्टीरिया की संख्या में बहुत वृद्धि देखने को मिलती हैं। इसलिये इन दोनों त्योहारों पर अपने घरों, दुकान इत्यादि की सामान्य दिनों की तुलना में अच्छे से साफ=सफाई करने को कहा गया हैं।

होली के दिन पूरे घर की अच्छे से साफ-सफाई होने से घर से बैक्टीरिया को खत्म करने में सहायता मिलती हैं और हम कई तरह की बिमारियों और संक्रमण से बच जाते हैं।

होली मनाने का शारीरिक कारण (Holi Ke Rango Ka Mahatva)

#1. शरीर में रंगों का संतुलन होना

कई वैज्ञानिक शोधों में यह बात सामने आई हैं कि हमारा शरीर विभिन्न रंगों के मिश्रण से बना हुआ हैं। जब भी शरीर में कहीं बीमारी होती हैं या संक्रमण फैलता हैं तो रंगों का संतुलन भी बिगड़ जाता हैं। इसके लिए डॉक्टर कलर थेरेपी भी करते है।

शरीर में रंगों के इसी संतुलन को ठीक करने के लिए अगले दिन रंगों का त्यौहार खेला जाता हैं लेकिन अब आप यह मत कहियेगा कि ये रंग तो शरीर को खराब करते हैं तो सही क्या करेंगे। दरअसल हम होली पर आजकल के रंगों की बात नही कर रहे हैं क्योंकि आजकल तो ज्यादातर सभी रसायन युक्त रंगों से खेलते हैं जो शरीर को नुकसान ही पहुंचाएंगे।

बाजार में भी जो प्राकृतिक रंगों के नाम से मिलते हैं वे भी पूरी तरह से प्राकृतिक हो यह भी निश्चित नही। पहले के समय में होली को पूरी तरह से प्राकृतिक रंगों से खेला जाता था जिन्हें फल, सब्जियों, पेड़-पौधों, हल्दी इत्यादि जैसी चीज़ों के मिश्रण से तैयार किया जाता था।

यह रंग चाहे आँखों में चले जाए, या आप इसे गलती से पी जाए या त्वचा पर कहीं भी लगे, हर तरीके से यह आपके शरीर को लाभ ही लाभ पहुंचाते थे।

#2. त्वचा में रंगत आना

जो प्राकृतिक रंग होते हैं वे शरीर को केवल अंदर से ही नही अपितु बाहर से भी बहुत लाभ पहुंचाते हैं। हल्दी, बेसन, मैदा, विभिन्न फलों और सब्जियों का मिश्रित घोल हमारे शरीर के लगभग हर भाग पर लगा होता हैं। इससे हमारी त्वचा को पोषण मिलता हैं और उसमे रंगत आती है।

होली खेलने के बाद हम इन रंगों को उतारने के लिए अच्छे से नहाते भी हैं। इससे मैल तो निकल ही जाता हैं बल्कि त्वचा और निखर कर आती हैं वो अलग।

होली मनाने का मानसिक कारण या होली का सामाजिक महत्व (Holi Ka Mahatva Par Nibandh)

#1. शरीर का ऊर्जा से भर जाना

जैसा कि हमने आपको ऊपर ही बताया कि होली का समय शीत से ग्रीष्म ऋतु आने का समय होता हैं। शीत ऋतु में मनुष्य ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा थोड़ा आलसी और कामचोर हो जाता हैं। अब जब ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो रहा होता हैं तो मनुष्य को पड़ चुकी इस आदत को छुड़वाना आवश्यक हो जाता हैं।

इसलिये होली के समय चारों ओर शोर-शराबा, हुडदंग, तेज आवाज में बोलना, मस्ती करना, रंग डालना, दौड़ना-भागना-बचना, इत्यादि गतिविधियाँ होती हैं जो मनुष्य की अधिकतम ऊर्जा को मांगती हैं।

#2. मन-मुटाव दूर करना

हम ज्यादातर संयुक्त परिवार में रहते हैं और हमारे रिश्ते-नाते, मित्र, जानने-पहचानने वाले भी बहुत होते हैं। पूरे वर्ष में कुछ बाते हम सभी के बीच ऐसी हो ही जाती हैं जिससे आपसी मन-मुटाव पनप जाता हैं। इसलिये होली को आपसी मन-मुटाव को समाप्त करने के लिए सबसे सही त्यौहार माना जाता हैं।

यह केवल कहने की बात नही हैं। बहुत से लोग असलियत में आपसी द्वेष, ईर्ष्या, कलेश इत्यादि भावनाओं को त्याग कर एक-दूसरे को रंग लगाकर खुशी-खुशी होली का त्यौहार मनाते हैं। अब इससे अच्छी बात और क्या ही होगी भला।

तो इस प्रकार होली को मनाने के हम सभी को कई लाभ मिलते (Holi Ka Mahatva Hindi Mein) हैं। इसलिये अगली बार रंगों से डरियेगा नही बल्कि खूब खेलिएगा लेकिन याद रखियेगा केवल प्राकृतिक रंगों से ही होली खेलिएगा वो भी घर पर बनाए हुए।

कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

Recent Posts

Sursa Kaun Thi | सुरसा कौन थी? जाने Sursa Rakshasi की कहानी

जब हनुमान जी माता सीता का पता लगाने के लिए समुद्र को पार कर रहगे…

4 दिन ago

Shabri Navdha Bhakti: नवधा भक्ति रामायण चौपाई – अर्थ व भावार्थ सहित

आज हम आपके सामने नवधा भक्ति रामायण चौपाई (Navdha Bhakti Ramayan) रखेंगे। यदि आपको ईश्वर…

4 दिन ago

Ram Bharat Milan: चित्रकूट में राम भरत मिलन व उससे मिलती अद्भुत शिक्षा

रामायण में राम भरत मिलाप (Ram Bharat Milap) कोई सामान्य मिलाप नहीं था यह मनुष्य…

1 सप्ताह ago

Kaikai Ka Anutap: कैकेयी का अनुताप के प्रश्न उत्तर

हम सभी कैकई की भ्रष्ट बुद्धि की तो बात करते हैं लेकिन श्रीराम वनवास के…

1 सप्ताह ago

सीता अनसूया संवाद में माता सीता को मिला पतिव्रत धर्म का ज्ञान

सती अनसूया की रामायण (Sati Ansuya Ki Ramayan) में बहुत अहम भूमिका थी। माता सीता…

1 सप्ताह ago

कैकई के वचनमुक्त करने के बाद भी राम वनवास क्यों गए थे?

आखिरकार कैकई के द्वारा वचन वापस लिए जाने के बाद भी राम वनवास क्यों गए…

1 सप्ताह ago

This website uses cookies.