रामायण में श्रीराम के द्वारा समुद्र देव से रास्ता मांगते समय द्रुमकुल्य देश का वर्णन मिलता है। जब समुद्र देव ने श्रीराम को लंका तक जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो श्री राम का समुद्र पर क्रोध (Shri Ram Ka Samudra Par Krodh) देखने को मिलता है। इसी क्रोध में श्रीराम के द्वारा ब्रह्मास्त्र का आह्वान कर लिया जाता है जिसे वे समुद्र पर छोड़ने ही वाले होते हैं।
फिर समुद्र देव के आग्रह पर श्रीराम के द्वारा ब्रह्मास्त्र की दिशा को मोड़कर द्रुमकुल्य देश पर छोड़ दिया जाता है। अब यह द्रुमकुल्य देश कहा है (Drumkulya Desh Kaha Hai) और श्रीराम ने उसी ओर ही ब्रह्मास्त्र को क्यों छोड़ा था? आज हम आपके इसी प्रश्न का उत्तर देने वाले हैं।
वैसे तो इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण देखने को नहीं मिलते हैं लेकिन रामायण के अनुसार श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र को पश्चिमी दिशा में छोड़ा था। साथ ही ब्रह्मास्त्र एक परमाणु अस्त्र था। इसे जहाँ भी छोड़ा जाता था, वह भूमि सदियों-सदियों तक मरुभूमि में बदल जाती थी। इसका अर्थ हुआ वहाँ कई हज़ार वर्षों के लिए हरियाली नहीं होती या भूमि बंजर हो जाती है।
आज हम जो राजस्थान में स्थित थार मरुस्थल देखते हैं, वह एक समय में हरी-भरी जगह थी। जहाँ समुंद्र का जल पहुँचता था वही आज के समय में एक मरुभूमि बन चुकी है। इस मरुस्थल का क्षेत्रफल राजस्थान सहित पाकिस्तान में भी फैला हुआ है। मान्यता है कि इसी थार मरुस्थल को ही द्रुमकुल्य देश के नाम से जाना जाता था जहाँ श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा था।
उनके द्वारा ऐसा क्यों किया गया और इसके पीछे क्या कारण निहित थे, आइए उसके बारे में जान लेते हैं।
जब भगवान श्रीराम माता सीता की खोज में समुंद्र तट पर पहुँचे थे तो पूरी वानर सेना को लंका तक पहुँचने के लिए उसे पार करना था। तब समुंद्र देव से मार्ग मांगने के लिए भगवान श्रीराम ने 3 दिनों तक निर्जला व्रत किया था लेकिन समुंद्र देव ने उनकी कोई सहायता नहीं की थी।
अंतिम दिन भगवान श्रीराम समुंद्र देव पर इतने ज्यादा क्रोधित (Shri Ram Ka Samudra Par Krodh) हो गए थे कि उन्होंने ब्रह्मास्त्र का अनुसंधान किया व उसे समुंद्र देव की ओर तान दिया। उन्होंने समुंद्र देव को चेतावनी दी कि वे इस ब्रह्मास्त्र से समुंद्र का सारा जल सुखाकर उसे एक खाली स्थल में बदल देंगे ताकि वानर सेना समुंद्र को लांघ सके।
भगवान श्रीराम के द्वारा ब्रह्मास्त्र तान देने से समुंद्र देव उनके सामने प्रकट हुए व उनसे क्षमा मांगी। उन्होंने विधि के विधान अनुसार जल का गुण बताया व उसमें असंतुलन होने से सृष्टि पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसकी व्याख्या उनके सामने की। समुंद्र देव के द्वारा क्षमा मांगने व उचित उत्तर देने से श्रीराम का क्रोध शांत हुआ। परन्तु एक बार ब्रह्मास्त्र का अनुसंधान कर लिया जाए तो उसे चलाना आवश्यक हो जाता है। इसलिए श्रीराम ने समुंद्र देव से ही इसका उपाय पूछा।
इस पर समुंद्र देव ने उन्हें पश्चिम दिशा में द्रुमकुल्य नामक एक स्थल बताया व कहा कि वहाँ पर कई डाकू व बुरी प्रवत्ति के लोग रहते हैं जो उनके जल का दुरुपयोग करते हैं। इसलिए वे यह ब्रह्मास्त्र उस दिशा में छोड़कर उनका विनाश कर दे।
समुंद्र देव से उपाय जानकर भगवान श्रीराम ने उन डाकुओं इत्यादि के विनाश के उद्देश्य से पश्चिम दिशा की ओर ब्रह्मास्त्र ताना व कहा कि यह ब्रह्मास्त्र वहाँ की संपूर्ण भूमि को मरुभूमि में परिवर्तित कर देगा। किंतु साथ ही वहाँ सुगंधित व दिव्य औषधियों का भी निर्माण होगा जो वहाँ के जीव जंतुओं के काम आएगी। यह कहकर भगवान श्रीराम ने उस दिशा में ब्रह्मास्त्र को छोड़ दिया।
कहते हैं कि उसके बाद वह भूमि हमेशा के लिए मरुभूमि बन गई व वहाँ के समुंद्र का जल भी सूख गया। आज उसी भूमि को हम थार मरुस्थल के नाम से जानते हैं जो भारत का सबसे बड़ा मरुस्थल है। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार इसके लिए विभिन्न स्थल बताए गए हैं जैसे कि कजाकिस्तान, अफगानिस्तान इत्यादि। लेकिन मरू भूमि होने के कारण इसी स्थल की मान्यता सबसे अधिक प्रचलित है।
इस तरह से आज आपने द्रुमकुल्य देश कहा है (Drumkulya Desh Kaha Hai) व इसका रामायण से क्या संबंध है, के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली है।
द्रुमकुल्य देश से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: ध्रूमकुल्य कहां है?
उत्तर: ध्रूमकुल्य देश को वर्तमान में राजस्थान व पाकिस्तान में फैले थार मरुस्थल को माना जाता है। कुछ लोग इसे कजाकिस्तान या अफगानिस्तान देश भी कहते हैं।
प्रश्न: राम ने ब्रह्मास्त्र कहां जलाया था?
उत्तर: भगवान श्रीराम के द्वारा भारत की पश्चिम दिशा में द्रुमकुल्य देश पर ब्रह्मास्त्र को चलाया गया था।
प्रश्न: समुद्र से रास्ता मांगे के लिए राम ने क्या किया?
उत्तर: समुद्र से रास्ता मांगने के लिए राम ने तीन दिन का निर्जला व्रत किया था और समुद्र देव से अनुनय विनय की थी।
प्रश्न: श्री राम ने समुद्र से क्या प्रार्थना की?
उत्तर: श्री राम ने समुद्र से प्रार्थना की कि वे लंका तक वानर सेना को जाने के लिए मार्ग दे।
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